मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
इस शहर में मोल क्या ईमान का, कैसे कहूँ ?
हर चौक पर बेदाम हीं कईयों ने है सौदा किया।
एक दौर तक तहज़ीब की ऊँगली थाम कर चले,
फिर जिंदा लाश छोड़के,सबने ज़ुदा रस्ता किया।
खुद को बददुआ दी तो कभी जग को बुरा कहा,
खुदाया! मैने हिस्से का हर काम बावफ़ा किया।
कहते हैं, दौरे-आदम से यह बात चलती आ रही,
इंसां ने खुद के हक़ के हीं साथ है धोखा किया।
बस आह आने-जाने को हीं जिंदगी कह देते हैं,
रफ्ता-रफ्ता ज़ेहन में मैने यह मुगलता किया।
खुशी-गम के दो लहज़े में हीं इंसान तराशे गए ,
खुदा ने ’तन्हा’ वास्ते मुख्तलिफ सांचा किया।
शब्दार्थ:
हक़ = अधिकार, भगवान
ज़ेहन = दिमाग
मुगलता = भ्रम
मुख्तलिफ= भिन्न
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
तनहा जी,
मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
एक दौर तक तहज़ीब की ऊँगली थाम कर चले,
फिर जिंदा लाश छोड़के,सबने ज़ुदा रस्ता किया।
हर शेर के कथ्य सशक्त हैं यद्यपि बहुत चमत्कृत तो नहीं करते। अच्छी रचना की संज्ञा दूंगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
इस शहर में मोल क्या ईमान का, कैसे कहूँ ?
हर चौक पर बेदाम हीं कईयों ने है सौदा किया।"
In panktiyon men aapne, Logon ki marti antaratma aur samaj men badhte bhrashtachar ko bilkul hin salike se pesh kiya hai...
bahut bahut badhi sweekar karen....
खुशी-गम के दो लहज़े में हीं इंसान तराशे गए ,
खुदा ने ’तन्हा’ वास्ते मुख्तलिफ सांचा किया।
वाह तन्हाजी ! क्या बात है!
बहुत बढ़िया मेरी और से बधाई
खुशी-गम के दो लहज़े में हीं इंसान तराशे गए ,
खुदा ने ’तन्हा’ वास्ते मुख्तलिफ सांचा किया।
tanha ji gazal k bhaav bahut he sunder hai
beher k baare mei mujhe jankari nahi hai abhi guru ji ne kafiye aur radeef ki he jankari pradan ki hai
gazal ka makta behed pasand aaya
sumit bhardwaj
मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
तन्हा जी अच्छी ग़ज़ल कही है , कुछ वास्तविकता बयान करती है और कुछ आपके विचारों को दर्शाती है , शुभकामनाएं,
पूजा अनिल
एक दौर तक तहज़ीब की ऊँगली थाम कर चले,
फिर जिंदा लाश छोड़के,सबने ज़ुदा रस्ता किया।
-बहुत खूब !
-गहरे भाव हैं आप के शेरों में
सभी शेर पसंद आए |
अवनीश तिवारी
मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
bahut khub
waah waah tanha ji
कहते हैं, दौरे-आदम से यह बात चलती आ रही,
इंसां ने खुद के हक़ के हीं साथ है धोखा किया।
इंसान ऐसा ही है |अच्छी लग आपकी रचना
Kya baat hai tanhaji.....itne dino baad aapko padhkar bahut aacha mehsoos hua...
dil khush kar diya apne
तन्हा भाई ,
अच्छी गजल है, और प्रभावशाली हो सकती थी ।
बस आह आने-जाने को हीं जिंदगी कह देते हैं,
रफ्ता-रफ्ता ज़ेहन में मैने यह मुगलता किया।
ये शेर अच्छा लगा ,
लिखते रहें ।
खुद को बददुआ दी तो कभी जग को बुरा कहा,
खुदाया! मैने हिस्से का हर काम बावफ़ा किया।
बहुत खूब दीपक जी
कहते हैं, दौरे-आदम से यह बात चलती आ रही,
इंसां ने खुद के हक़ के हीं साथ है धोखा किया।
बहुत ही पसन्द आई आपकी यह गजल मुझे ..बधाई अच्छी गजल है:)
सुधार की गुंजाइश है .. प्रवाह अच्छा नही है..
गज़ल कहीं कहीं सायास कही गई प्रतीत होती है। मेरे विचार से काव्य जब तक अनायास है, उतना ही सुन्दर है।
कुछ शे'र अच्छे लगे।
मेरी आँखों में था जो, जिसे आईना समझा किया,
सामने हीं बिक गया, पूजा जिसे, सज़दा किया ।
बस आह आने-जाने को हीं जिंदगी कह देते हैं,
रफ्ता-रफ्ता ज़ेहन में मैने यह मुगलता किया।
खुशी-गम के दो लहज़े में हीं इंसान तराशे गए ,
खुदा ने ’तन्हा’ वास्ते मुख्तलिफ सांचा किया।
बेहतरीन
आलोक सिंह "साहिल"
बेहतरीन
आलोक सिंह "साहिल"
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