दोहा की सीमा नहीं, कहता है सच देव।
जो दोहा का मीत हो, टरै न उसकी टेव।
रीति-नीति, युगबोध नव, पूरा-पुरातन सत्य.
सत-शिव-सुन्दर कह रहा, दोहा छंद अनित्य।
दोहा के पद अंत में, होता अक्षर एक।
दीर्घ और लघु को रखें, कविजन सहित विवेक।
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय।
आया कुत्ता खा गया, बैठी ढोल बजाय।
ला, पानी पिला।
अमीर खुसरो ने उक्त दोहा पढ़कर पानी माँगा. आजकल हास्य कवि दुमदार दोहे सुनते हैं. पहला दुमदार दोहा रचने का श्रेय खुसरो को है. नीलम जी! आपने दोहा ठीक बूझा पर जिस रूप में लिखा उसमें चौथे चरण में ११ के स्थान पर १२ मात्राएँ हैं. सम पदों के अंत में समानाक्षर जरूरी है. उक्त रूप इन दोषों से मुक्त है. मनु जी ने भी सही कहा है.
शत-शत वंदन आपका, दोहा बूझा ठीक.
नीलम-मनु चलती रहे, आगे भी यह लीक.
शन्नो जी! स्वागत करे, हँस दोहा-परिवार.
पूर्व पाठ पढ़, कीजिये, दोहा पर अधिकार.
दोहा में दो पद (पंक्ति), चार चरण, १३-११ पर यति (विराम) विषम पदों ( १, ३ ) के आरम्भ में एक शब्द में जगण ( लघु गुरु लघु = १ २ १ ) वर्जित तथा सम पदों के अंत में लघु गुरु (१ २) के साथ समान अक्षर होना जरूरी है. इन आधारों पर खरा ण होने के कारण निम्न पंक्तियाँ दोहा नहीं हैं, उन्हें द्विपदी (दोपदी) कह सकते है. कुछ परिवर्तन से उन्हें दोहा में ढाला जा सकता है.
'अंगना में बहू ढोल बजावे = १७ मात्राएँ, १३ होना जरूरी
और सासू चरखा रही चलाइ = १८ मात्राएँ, ११ होना जरूरी
चुप्पे से कुत्ता गओ रसोई में = २० मात्राएँ, १३ होना जरूरी
और खीर गओ सब खाइ.' = १४ मात्राएँ, ११ होना जरूरी
एक प्रयोग देखिये -
चरखा- ढोल चला-बजा, सास-बहू थीं लीन.
घुस रसोई में खीर खा, श्वान गया सुख छीन.
मैंने एक और दोहा लिख लिया है. उत्सुकता है इसके बारे में भी जानने की कि कैसा लिखा है. कृपया बताइये.
'खीर देखि लार गिरावे = १४ मात्राएँ, १३ होना जरूरी
बैठो कुत्ता एक चटोर = १५ मात्राएँ, ११ होना जरूरी
घर्र-घर्र चरखा चले = १३ मात्राएँ, सही
ढोलक लुढ़की एक ओर.' = १४ मात्राएँ, ११ होना जरूरी
लार गिरा चट खीरकर, भागा श्वान चटोर.
घर्र-घर्र चरखा चले, ढोल पडी इक ओर.
शन्नो जी के मन जगी, दोहा सृजन उमंग.
झट-पट कुछ दोहा रचें, हुलसित भाव-तरंग.
'चरखा और ढोल धरे आँगन में = १९ मात्राएँ, १३ होना जरूरी
और खीर भरो कटोरा पास = १७ मात्राएँ, ११ होना जरूरी
एक कुत्ता घर में कूँ-कूँ करे = १८ मात्राएँ, १३ होना जरूरी
मन में लगी खीर की आस.' = १५ मात्राएँ, १३ होना जरूरी
देख ढोल चरखा सहित, खीर-कटोरा पास.
आँगन में कूँ-कूँ करे, कुत्ता लेकर आस.
Dr. Smt. ajit gupta said...
ज्ञान बड़ा संसार में
21 12 221 2 = 13
शक्तिहीन धनवान
2121 1121 = 11
पुस्तक है प्रकाश पुंज
211 2 121 21 = 13
जीवन बने महान।
211 12 121= 11
अजित जी! बधाई, आपने मात्रा-संतुलन पूरी तरह साध लिया है किन्तु तीसरी पंक्ति में लय में कुछ दोष है. इसे पहली पंक्ति की तरह कीजिये....ज्ञान पुंज पुस्तक गहें,
अवनीश एस तिवारी
झटपट खा दौडा कुत्ता
११११ २ २२ १२ =13
चरखे पर का खीर
११२ 11 २ २१ = ११
ढोल बजाओ अब सभी,
२१ १२२ ११ १२ = १३
फूट गयी तकदीर
२१ १२ ११२१ = ११
अवनीश जी! एक अच्छी कोशिश के लिए शाबास. कुत्ता = कुत + ता = २ + २ = ४, पहली पंक्ति में मात्राएँ १४ हैं, १३ चाहिए. 'दौड़ा कुत्ता खा गया' या इसी तरह की पंक्ति रखें.
पूजा जी! ने कर दिया, सचमुच आज कमाल.
होली के रंग में लिखा, दोहा मचा धमाल.
होली के रंग में रंगी, दोहा गोष्ठी विशेष ,
२२ २ ११ २ १२ २२ २२ १२१
वीर गाथा कहें सलिल, सुनें सभी अनिमेष
२१ २२ १२ १११ 12 १२ ११२१ .
तीसरे चरण को 'कहें वीर-गाथा 'सलिल' करने से लय ठीक बन जाती है.
तपन जी! आप और अन्य सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं आपके साथ हूँ जब तक आप चाहें... 'एक कहे दूजे ने मानी, कहे कबीरा दोनों ज्ञानी.'
टिप्प्णी नहीं कर पाते, पढ़ते तो हम रहते है,
आप जाने की कहते हैं, हम परिवार कहते हैं
इस तरह कहें तो दोहा हो जायेगा-
भले न करते टिप्पणी, पढ़ने को तैयार.
आप न जाने को कहें, बना रहे परिवार.
दोहा गाथा से जुड़े सभी साथियों के प्रति आभार कि वे सब दोहा को अंगीकार कर रहे हैं. कठिनाई और असफलता से न डरें, याद रखें - 'गिरते हैं शह सवार ही, मैदाने जंग में. वह तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले.'
गोष्ठी के अंत में दोहा चौपाल में सुनिए एक सच्चा किस्सा-चित-पट दोनों सत्य हैं...
आपके प्रिय और अमर दोहाकार कबीर गृहस्थ संत थे. वे कहते थे 'यह दुनिया माया की गठरी', इस माया के मोह जाल से मुक्त रहकर ही वे कह सके- ' यह चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया. दास कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया.' कबीर जुलाहा थे, जो कपड़ा बुनते उसे बेचकर परिवार पलता पर कबीर वह धन साधुओं पर खर्च कर कहते ' आना खाली हाथ है, जाना खाली हाथ'. उनकी पत्नी लोई बहुत नाराज होती पर कबीर तो कबीर...लोई ने पुत्र कमाल को कपड़ा बेचने के लिए भेजना शुरू कर दिया. कमाल कपड़ा बेचकर साधुओं पर खर्च किये बिना पूरा धन घर ले आया, कबीर को पता चला तो खूब नाराज हुए. दोहा ही कबीर की नाराजगी का माध्यम बना-
'बूडा वंश कबीर का, उपजा पूत कमाल.
हरि का सुमिरन छोड़ के, घर लै आया माल.
कबीर ने कमाल को भले ही नालायक माना पर लोई प्रसन्न हुई. पुत्र को समझाते हुए कबीर ने कहा-
चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय.
दो पाटन के बीच में,. साबित बचा न कोय.
कमाल था तो कबीर का ही पुत्र, उसका अपना जीवन-दर्शन था. दो पीढियों में सोच का जो अंतर आज है वह तब भी था.कमाल ने कबीर को ऐसा उत्तर दिया कि कबीर भी निरुत्तर रह गए. यह उत्तर भी दोहे में हैं. सोचिये याद न आये तो खोजिये और बताइये वह दोहा. दोहा सही बतानेवाले को मिलेगा उपहार में एक दोहा....
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
आचार्य जी इस दोहे पर आपकी कृपा दृष्टि चाहूँगी।
श्रेष्ठ वचन से ही नहीं
21 111 2 2 12 = 13
बनते कभी महान
112 12 121 = 11
कर्म करे तब हो बड़े
21 12 11 2 12= 13
बने तभी पहचान।
12 12 1121 = 11
मेरे मन का कमाल यह उत्तर सोच रहा है -
है सर रखा अपने भी,
२ ११ १२ ११२ २ = १३
कुटुंब का भार |
121 २२ २१ = ११
केवल साधु सेवा से ,
२११ 2 १ २२ २ = १३
नहीं चले संसार ||
१२ १२ २२१ = ११
लेख अच्छा है |
आचार्यजी ने सभी के दोहों को जाँचा है | उन्हें धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
आचार्य जी,
देर हो गयी मुझे आने में, क्षमा करियेगा. दोहे लिखने के चक्कर में हूँ. कोशिश बहुत की है पर गलतियाँ तो जरूर होंगी. कृपा करके देखने व दोष बताने का कष्ट करें.
१. दोहों से खिल उठा है, हिंदयुग्म का संसार
गुरु जी के पाठों से, मिलता हर्ष अपार
२. मैं दोहा लिखि-लिखि थकी, फिर भी हुई फ़ेल
छोडूं न आसानी से, फिर से होगा खेल.
३. हुई फ़ेल तो मन टूटा, न होवे बात हजम
दोहे में मात्रा अधिक, नंबर हो गए कम.
४. चाव बड़ा था लिखने का, पर करी न कभी नक़ल
असली वजह बताय दी, मैं न हुई सफ़ल.
५. नक़ल करन की हो अकल, यदि उधार मिली जाय.
लिखन लगें दोहा सभी, फिर पंडित वही कहाय.
६. दोहा जाने बिना ही, ले ली उसकी जान
सर्वप्रथम गुरुदेव से, ले लेती कुछ ज्ञान.
७. मूरख थी भूलें हुईं, पछता रही अनंत
क्षमा आपसे मांगती, मैं ज्ञानी न संत.
८. भूलों को पहचान कर, दो बातें लीं सीख
मात्रायों पर ध्यान दें, अंत करे लघु ठीक.
९. अटकलबाजी से लिखा, अब लग गया विराम
शिक्षा बिन मैं हो गयी, लिखने में नाकाम.
१०. दोहों में भूलें देखि, मनु जी हुए निहाल
ही- ही- ही करने लगे, बुरा हुआ तब हाल.
११. मनु जी से अब डर लगे, ही- ही- हा- हा होय
झेंप बहुत ही लग रही, समझ न आये मोय.
१२. खुद तो दोहा ना लिखें, लगे हाजिरी रोज़
कहते दोहा लिखन से, पड़े अकल पे बोझ.
१३. ही, ही करत सब हंसें, सूखे जाएँ प्रान
नीलम जी, अब आइये, पड़ी मुसीबत आन.
१४. समझ न दोहे की इसे, कहन लगे सब छात्र.
दोहे लिखि-लिखि बनी, सबके हंसी का पात्र.
१५. सबके हास्य का पात्र, करेंगे ही- ही सब
कक्षा में पढेंगे पाठ, मसखरी होगी अब.
१६. कहें गुरु जी कक्षा में, तुम सब हो बेकार
फिर से दोहे तुम लिखो, या खाओ सब मार.
१७. गुल्ली-डंडा न है यह, दोहे का है पाठ
कहें गुरु जी बांध लो, इसको अपनी गांठ.
१८. गलती सभी सुधारि दें, कितने आप महान
सही मायनों में हुई, दोहों से पहचान.
१९. सोच समझकर ही लिखे, यह दोहे इस बार
कृपा करें पढ़न की, कहिए अपुन बिचार.
पिछली बार से सम्बंधित एक दोहा:
आँचल से ढंके अवगुन, मातृ-नेह अटूट
पित्र-सीख ठुकराय के, होवे पूत कपूत.
और भी कुछ:
१. कुतवा खीर खा लेटा, लेकर बड़ी डकार
चरखा बोला ढोल से, अब खायेगा मार.
२. बंदर भागा जल्दी से, कुतवा की दुम काट
ढोलक चरखे पे गिरी, खीर बनाये सास.
आचार्य जी,
सादर नमन
मैंने अभी ही एक अपनी टिप्पणी दोहों के साथ भेजी थी, तो उसके तुंरत बाद देखा कि नंबर ५ के दोहे में 'मिली' की जगह 'मिलि' होना चाहिए. और नंबर १९ में 'पढ़न' नहीं मेरा मतलब था 'पढ़ने'. वरना शायद मात्रा की गड़बडी हो जाती. बाकी सब आपकी दया दृष्टि पर निर्भर है.
आचार्य जी,
बूझ पहेली आज की , दोहा लाइ खोज ,
21 122 21 2 22 22 21
कमाल वाचे पिता से , अपने मन की मौज .
121 22 12 2 112 11 2 21
-----
"चलती चक्की देखकर दिया कमाल ठठाय
जो कीली से लग गया वो साबुत रह जाय "
"कबीर ने इस पर कहा कि यूँ तो वह कहने को कह गया लेकिन कितनी बड़ी बात कह गया उसे खुद नहीं पता।"
आचार्य जी,
वैसे तो साधारण भाषा में यह दोहा कहा गया है, क्या आप इसका गूढ़ अर्थ भी समझायेंगे?
आपने सभी दोहों को परखा उसके लिए धन्यवाद. बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, अच्छा लग रहा है .
सादर
पूजा अनिल
प्रणाम आचार्या,,
होनहार छात्रा के लेखन की बधाई,,,,(हम तो खैर सदा ही,,भागे हुए निक्कमे छात्र रहे हैं,,)
भागे हुए भी नहीं ,,,,फुटके हुए,,,,:::::::::)))))))))))०
अगला पाठ ज़रा रूक कर दें,,,,,
या तो आपको ही पढें या,,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!!!!!!१
शन्नो जी के काम से आपको शायद लग गया होगा के आपका लिखा यहाँ पर बेकार नहीं जाता,,,,,अतः दोबारा अपना काम बंद ना करने की बात ना करें,,,,
यदि संभव हो तो कहीं से,,,चरखे,,,ढोल ,,आदि का जुगाड़ कर के,,,,
खीर जरूर पका दें,,या पकवा दें,,,,,,,,,,,
देखा ,,,, इतने दोहे लिखने के बाद भी शन्नो जी ,,,, खीर के कटोरे परे ही ठहरी हुई
hain,
::::::::::::::)))))))))))))
bahut hi achhaa lagaaa,,,,,
shanno ji,
agar waakai ye shuruaat hai aapki to,,,
kamaaaaaal hai,,,,,,,,,,,
आचार्य जी, आप नाराज तो नहीं हैं? मनु जी की बातों से ऐसा महसूस हुआ कि जैसे मैंने दोहे लिखने का home-work कुछ अधिक ही कर लिया हो, और वह भी ऐसा जो गलतियों से भरा हो. भेजने के बाद पढ़कर देखा और लगने लगा कि नियमों के अनुसार करीब-करीब सभी में गलतियाँ भरी हुई हैं. अब क्या करूं? आपका भी home-work बढा दिया (मेरी गलतियाँ सुधारने के). आगे से ध्यान रखूँगी कि आप झल्लाएँ ना. अच्छा हुआ कि मनु जी ने संकेत दे दिया. आपको तो और छात्रों पर भी ध्यान रखना होता है. आप हम सबको मार्ग-दर्शन कराते रहें और दोहे की भाषा बताते रहें तो मैं तो आपकी बहुत आभारी रहूंगी. दोहा लिखने पर विराम नहीं लगाना चाहती हूँ. लेकिन मेरे दोहों की वजह से यदि आपको कोई तकलीफ हुई हो तो माफ़ी मांगती हूँ. आपके आदर में:
'ज्ञान-सलिल में डूब के, रखिए ज्ञान सहेज
जीवन-पथ कंटक भरा, ना फूलन की सेज.'
कैसा है? जानने की इच्छुक हूँ.
और मनु जी, आपसे मैं क्या कहूं?....ही-ही-ही
आपकी टिप्पणी पढ़ के बोलती बंद हो गयी है मेरी. आपने जो ज्ञान की बातें कही है उन पर बिचार करूंगी, और आगे से सतर्क रहूंगी. धन्यबाद.
'आपकी बात पर गया, मेरा भी कुछ ध्यान
मिले अगर संकेत भी, सीखें उससे ज्ञान.'
शन्नो जी,
आप एक दम गलत समझी हैं,,,आपको मालूम नहीं के एक बार आचार्य ने कहा था के लगता है मैं व्यर्थ ही क्लास ले रहा हूँ,,,,कोई शायद दोहा में रुचि लेता भी या नहीं,,
इस बात पर मैंने लिखा है,,( मेरे कहने का अर्थ है के शन्नो जी के कम को देखते हुए आप ये ना सोचें )
आप प्लीज ऐसे ही लिखें,,,;; अब एक शानदार होमवर्क देख कर ( थोडी सी इर्ष्या ) होनी तो स्वाभाविक है,,,
ही,,ही,,,ही,,,ही,,,,
स्क्रीन पर ज्यादा देर देखा नहीं जाता मगर आपके दोहे मुझे बेहद पसंद आये,,,
यदि आपका प्रथम प्रयास है,,,तो आपकी समझ और बुद्धि को नमन करता हूँ,,,,,
एकदम सीरियसली ,,,,,,,,,,,,
मनु जी,
मेरे दोहे पढ़ने के लिए आपको भी नमन. हर बार पूरी श्रद्धा और उम्मीद के साथ लिखती हूँ फिर भी बाद में अपने आप ही कुछ गलतियाँ दिखने लगती हैं. आप दोहों में मात्रायों की मात्र भर भी चिंता न करें, दिमाग पर जोर पड़ेगा. बस छात्र लोगों पर ही आँखें रखें. सभी की उपस्थिति अनिवार्य है. किसी की उपस्थिति में विराम ना लगे, ऐसी प्रार्थना है. कहीं ऐसा न हो कि सलिल जी फिर इस्तीफा की बात करनें लगें. आप मात्रा और टंकण गिनने का प्रयास ना करें, please. गुरु जी का कहा सर आँखों पर. वैसे गुरु जी हैं कहाँ? कहीं छुट्टी पर गए हुए हैं क्या? कोई खबर है किसी को?
सही-सही दोहा कहा, मात्रा गणना ठीक.
साधुवाद लें अजित जी, पकडी दोहा-लीक.
शन्नो जी! शुभ आगमन, इसी तरह लिख आप.
दोहा के आकाश को, कलम पकड़ लें नाप.
१. दोहों से खिल उठा है (सही), हिंदयुग्म का संसार(१३ मात्रा, ११ चाहिए, 'का' निकल दें)
गुरु जी के पाठों से(१२ मात्रा, १३ चाहिए) , मिलता हर्ष अपार (सही)
दोहों से खिल उठा है, हिंद युग्म संसार.
गुरु जी के हर पाठ से, मिलता हर्ष अपार.
२. मैं दोहा लिखि-लिखि थकी (सही) , फिर भी हुई फ़ेल (१०/११)
छोडूं न आसानी से (मात्रा सही, लय या गण देखें) , फिर से होगा खेल (सही)
मैं दोहा लिख-लिख थकी, किन्तु न होऊँ fel.
सफल हुए बिन न तजूं, फिर-फिर खेलूँ khel.
३. हुई फ़ेल तो मन टूटा (१४/१३), न होवे बात हजम ( लय?)
दोहे में मात्रा अधिक, नंबर हो गए कम.
हुई फ़ेल मन टूटता, हजम न होती बात.
मात्रा ज्यादा अंक कम, करुँ न ऐसा तात.
४. चाव बड़ा था लिखने का (१४/१३), पर करी न कभी नक़ल (१२/११)
असली वजह बताय दी ( बताय शब्द अशुद्ध) , मैं न हुई सफ़ल. (९/११)
लिखने का है चाव पर, नकल नहीं है राह .
असली वजह बता रही, मिले सफलता चाह.
५. नक़ल करन की हो अकल (सही), यदि उधार मिली जाय.(१२/११)
लिखन लगें दोहा सभी (सही), फिर पंडित वही कहाय.(१३/११, फिर हटा दें)
अकल नकल-हित यदि मिले, जाएँ सभी बाज़ार.
पंडित बन दोहा लिखें, लेकर अकल उधार.
६. दोहा जाने बिना ही, ले ली उसकी जान
सर्वप्रथम गुरुदेव से, ले लेती कुछ ज्ञान. -बधाई. पूरी तरह सही दोहा.
७. मूरख थी भूलें हुईं, पछता रही अनंत
क्षमा आपसे माँगती, मैं ज्ञानी न संत. (१०/११) - ना ज्ञानी ना संत. शेष ठीक
८. भूलों को पहचान कर, दो बातें लीं सीख
मात्रायों पर ध्यान दें, अंत करे लघु ठीक. - बिलकुल सही
९. अटकलबाजी से लिखा, अब लग गया विराम
शिक्षा बिन मैं हो गयी, लिखने में नाकाम. -सही
१०. दोहों में भूलें देखि, मनु जी हुए निहाल - पहला चरण, लय दोष -दोहों में त्रुटि देखकर, शेष ठीक.
ही- ही- ही करने लगे, बुरा हुआ तब हाल.
११. मनु जी से अब डर लगे, ही- ही- हा- हा होय
झेंप बहुत ही लग रही, समझ न आये मोय. -सही ( होय, मोय आदि के प्रयोग से बचें)
१२. खुद तो दोहा ना लिखें, लगे हाजिरी रोज़
कहते दोहा लिखन से, पड़े अकल पे बोझ. - 'पे' को 'पर' कीजिये, शेष सही.
१३. ही, ही करत (करके) सब हंसें, सूखे जाएँ प्रान
नीलम जी, अब आइये, पड़ी मुसीबत आन. - सही
१४. समझ न दोहे की इसे, कहन लगे सब छात्र.
दोहे लिखि-लिखि बनी (११/१३), सबके हंसी का पात्र.(१२/११)
समझ न दोहे की इसे, कहते हैं सब छात्र,
दोहे लिख-लिखकर बनी, स्वयं हँसी का पात्र.
१५. सबके हास्य का पात्र (१२/१३), करेंगे ही- ही सब
कक्षा में पढेंगे पाठ (१४/१३), मसखरी होगी अब.
स्वयं हँसी का पात्र, करेंगे ही ही ही सब.
खाक पढेंगे पाठ, मसखरी ही होगी अब. - (यह दोहा नहीं है. मात्राएँ ११-१३ हैं.)
१६. कहें गुरु जी कक्षा में, तुम सब हो बेकार
फिर से दोहे तुम लिखो, या खाओ सब मार. - शिल्प की दृष्टि से ठीक. .
मेरी छवि इतनी ख़राब...सुधारनी पड़ेगी. - संव्स्
१७. गुल्ली-डंडा न है यह, दोहे का है पाठ
कहें गुरु जी बांध लो, इसको अपनी गांठ. - सही
१८. गलती सभी सुधारि दें, कितने aap महान ( सुधारि गलत, सुधार सही)
सही मायनों में हुई, दोहों से पहचान. - सही
१९. सोच समझकर ही लिखे, यह दोहे इस बार
कृपा करें पढ़न की, कहिए अपुन बिचार.
दूसरी पंक्ति- पढने की करिए कृपा, कहिये सोच- विचार.
पिछली बार से सम्बंधित एक दोहा:
आँचल से ढंके अवगुन, मातृ-नेह अटूट
पित्र-सीख ठुकराय के, होवे पूत कपूत.
आँचल से अब्गुन ढंके, मान का नेह अटूट.
सीख पिता की दे भुला, तो हो पूत कपूत.
और भी कुछ:
१. कुतवा खीर खा लेटा, लेकर बड़ी डकार - लेटा कुत्ता खीर खा, शेष सही.
चरखा बोला ढोल से, अब खायेगा मार.
२. बंदर भागा जल्दी से, कुतवा की दुम काट
ढोलक चरखे पे गिरी, खीर बनाये सास.
बंदर भागा उछलकर, कुत्ते की दुम काट.
ढोलक चरखे पर गिरी, खीर बनाये सास.
'ज्ञान-सलिल में डूब के (कर), रखिए ज्ञान सहेज
जीवन-पथ कंटक भरा, ना फूलन (फूलों) की सेज.'
'आपकी बात पर गया, मेरा भी कुछ ध्यान -पहला चरण : गया आपकी बात पर, शेष ठीक.
मिले अगर संकेत भी, सीखें उससे ज्ञान.'
शन्नो जी! पूजा अजित, करता सलिल प्रणाम.
दोहों के दरबार में, खूब कमाया नाम.
इसी तरह लिखती रहें, रखकर लय का ध्यान.
भाव-शिल्प-रस कथ्य संग, बिम्ब-प्रतीक विधान.
दोहा गौ-भाषा दुहे, अर्थ अधिक कम शब्द.
सिन्धु-बिंदु सम्बन्ध रच, 'सलिल' करे निःशब्द.
बिना किसी संकोच के, दोहे रचिए खूब.
सफल साधना कीजिये, भाव सलिल में डूब.
दोहा साधा आपने, किया सत्य शुभ काज.
'सलिल' आपके शीश पर, रखे सफलता ताज.
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