माएं
क्यों जनती हैं
बेटियां
और फिर क्यों
रोकती हैं
उन्हें प्यार करने को
जबकि
उनकी
बूढी हड्डियों में
सुलग रहा है
उनका कच्ची उम्र का प्यार
गीली लकड़ी की
मानिन्द
धुआंता-सा
और
उस धुएं से
उपजा मोतिया-बिंद
क्यों नहीं देखने देता
उन्हें अपनी बेटी की आत्मा
छटपटाहट
और उसकी टुकुर-टुकुर
देखती आंखें
जो तरस रही हैं देख पाने को
मां की
आंखों में
अपने लिए छुपी
सान्त्वना को
मां
क्यो नहीं सहेज लेती
बेटी के दर्द
को अपनी गोद में
जिससे बेटी
बच जाए
जमाने की
जिल्लत से
और उसके जिस्म में
दहेज के सिक्के
तलाशते
लिज-लिजे हाथों से
मां
क्यों भूल जाती है
कि
वह भी कभी
बेटी थी
उसने खुद भी
कभी किया था प्यार
और फिर
उसका प्यार
गर्भ में स्फुरित मादा भ्रूण
सा
सोनो ग्राफिक होकर
खटकने लगा था,
समाज की
आंखों में
और फिर सबने
मिलकर
प्यार के
उस भ्रूण
की
हत्या कर दी थी।
मां
क्यों भूल जाती है
कि
वह भी कभी
बेटी थी
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
मर्मस्पर्शी .... माँ क्यों भूल जाती है .....दिल तक पहुँची आपकी ये पंक्तियाँ
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बिल्कुल स्वाभाविक ढंग से एक किशोर मन में उठने वाला प्रश्न ... सुंदर प्रस्तुतिकरण ... अच्छी रचना है।
मां
क्यो नहीं सहेज लेती
बेटी के दर्द
को अपनी गोद में
जिससे बेटी
बच जाए
जमाने की
जिल्लत से
और उसके जिस्म में
दहेज के सिक्के
वाह बहुत ही सुन्दर
maa per to ek pura kavya pallavan hi hona chahiye,,,
मर्मस्पर्शी
पुस्तक परिचय :१
माँ भूलती नहीं,
याद रखती है
हर टूटा सपना.
नहीं चाहती कि
उसकी बेटी को भी पड़े
उसी की तरह
आग में तपना.
माँ जानती है
जिन्दगी के बगिया में
फूल कम - शूल अधिक हैं,
उसे यह भी ज्ञात है कि
समय सदा साथ नहीं देता.
वह अपनी राजदुलारी को
रखना चाहती है महफूज़
नहीं चाहती कि
उस जान से ज्यादा अज़ीज़
बेटी पर कभी भी उठे उँगली.
इसलिए वह
भीतर से नर्म होता तुए भी
ऊपर से दिखती है कठोर.
जैसे रत की सियाही
छिपाए रहती है
अपने दामन में उजली भोर.
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आपकी भाव प्रवण रचना को पढ़कर मन में हुई प्रतिक्रिया आपको सस्नेह समर्पित.
जब श्याम सखा जी की कविता पढ़ी तो कुछ भाव मन में आए मै उनको लिखने वाली ही थी की . कमेन्ट देखा तो पाया की आचार्य जी ने सब कुछ वही लिख दिया है .मेरा काम आसान होगया
श्याम सखा जी आप की कविता बहुत सुन्दर है .
सादर
रचना
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