ऐसा कभी नहीं होता कि हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम से हमारे सभी पाठक संतुष्ट हों। और यह हमारे लिए एक तरह से ठीक भी है, क्योंकि उनकी शिकायतें ही निरंतर निर्माण की प्रक्रिया शुरू करती हैं। हम समय-समय पर निर्णय प्रक्रिया में तरह-तरह के प्रयोग करते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि कई बार हमारे 90 प्रतिशत पाठक संतुष्ट होते हैं, कई बार 70 प्रतिशत तो कई बार 50 प्रतिशत।
सितम्बर माह का निर्णय बिलकुल अलग ढंग से किया गया है। इस प्रक्रिया और हमारी पुरानी प्रक्रिया में बस एक ही समानता है कि निर्णय को कई चरणों में कराया गया है। इस बार पहले चरण में 4 निर्णायकों को कुल प्राप्त 42 कविताओं को भेजा गया और उनसे कहा गया कि कृपया वो इन कविताओं में से अपनी पसंद की 10 कविताएँ चुनें और उन्हें 10 में से अंक दें। इस तरह से जब 4 पसंदों को मिलाया गया तो अलग-अलग 25 कविताएँ दूसरे चरण के लिए सफल हो पाईं। दूसरे चरण में 2 जजों को शेष बचीं 25 कविताओं को भेजा गया और उनसे निवेदित किया गया कि वे इसमें से अपनी पसंद की 10 कविताएँ चुनें और अंक दें।
अंतिम चरण में नियंत्रक सभी जजों की पसंद, कविता का अलग-अलग जजों की सूची में स्थानों के आधार पर शीर्ष 10 कविता की सूची बनाता है। हमारी यह प्रक्रिया लोगों को कितनी पसंद आती है। यह तो आने वाला वक़्त बतायेगा।
वैसे हमने जिनको यूनिकवि के लिए चुना है, उनकी कविता को सभी 6 जजों ने शीर्ष 10 में स्थान दिया और अधिकतर ने इसे अपनी सूची में ऊपर रखा। तो आइए मिलते हैं, इस माह के यूनिकवि से।
यूनिकवि- दीपक चौरसिया 'मशाल'
माता- श्रीमती विजयलक्ष्मी
पिता- श्री लोकेश कुमार चौरसिया
जन्म- 24 सितम्बर 1980, उरई (उत्तर प्रदेश)
प्रारंभिक शिक्षा- कोंच (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- जैवप्रौद्योगिकी में परास्नातक, पी एच डी(शोधार्थी)
संस्थान- क्वीन'स विश्वविद्यालय, बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैण्ड, संयुक्त गणराज्य
14 वर्ष की आयु से साहित्य रचना प्रारंभ की, प्रारंभ में सिर्फ लघु कथाओं, व्यंग्य एवं निबंध लिखने का प्रयास किया। कुछ अभिन्न मित्रों से प्रेरित और प्रोत्साहित होके धीरे-धीरे कविता, ग़ज़ल, एकांकी, कहानियां लिखनी प्रारंभ कीं। अब तक देश व क्षेत्र की कुछ ख्यातिलब्ध पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में कहानी, कविता, ग़ज़ल, लघुकथा का प्रकाशन, रचनाकार एवं शब्दकार में कुछ ग़ज़ल एवं कविताओं को स्थान मिला। श्रोताओं की तालियाँ, प्रेम एवं आशीर्वचनरूपी सम्मान व पुरस्कार प्राप्त किया।
रुचियाँ- साहित्य के अलावा चित्रकारी, अभिनय, पाककला, समीक्षा, निर्देशन, संगीत सुनने में खास रूचि।
यूनिकविता- वह आतंकवाद समझती है
वो जब घर से निकलती है,
खुद ही
खुद के लिए दुआ करती है,
चाय की दुकान से उठे कटाक्षों के शोलों में,
पान के ढाबे से निकली सीटियों की लपटों में,
रोज़ ही झुलसती है.
चौराहों की घूरती नज़रों की गोलियाँ,
उसे हर घड़ी छलनी करती हैं.
आतंकवाद!!!!
अरे इससे तो तुम
आज खौफ खाने लगे हो,
वो कब से
इसी खुराक पे जीती-मरती है.
तुम तो आतंक को
आज समझने लगे हो
आज डरने लगे हो,
वो तो सदियों से डरती है,
ज़मीं पे आने की जद्दोज़हद में,
किस-किस से निपटती है.
तुम जान देने से डरते हो
पर वो
आबरू छुपाये फिरती है,
क्योंकि वो जान से कम और
इससे ज्यादा प्यार करती है.
तुम तो ढँके चेहरों और
असलहे वाले हाथों से सहमते हो,
वो तुम्हारे खुले चेहरे,
खाली हाथों से सिहरती है.
तुम मौत से बचने को बिलखते हो,
वो जिंदगी पे सिसकती है.
तुम्हे लगता है...
औरत अख़बार नहीं पढ़ती तो..
कुछ नहीं समझती,
अरे चाहे पिछडी रहे
शिक्षा में मगर,
सभ्यता में
आदमी से कई कदम आगे रहती है.
इसलिए
हाँ इसलिए,
हमसे कई गुना ज्यादा,
वो आतंकवाद समझती है
वो आतंकवाद समझती है....
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। अक्टूबर माह के अन्य तीन सोमवारों की कविता प्रकाशित करवाने का मौका।
इस बार यूनिकवि दीपक चौरसिया 'मशाल' को नीलेश माथुर की ओर से रु 1100 का नगद पुरस्कार भी दिया जा रहा है।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें हम डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें भेंट करेंगे, उनके नाम हैं-
अखिलेश श्रीवास्तव
उमेश पंत
तरव अमित
आलोक उपाध्याय "नज़र"
रवि मिश्रा
प्रदीप वर्मा
मयंक सिंह सचान
विवेक रंजन श्रीवास्तव
राजीव यादव
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 5 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
दीपाली मिश्रा
अनिल फ़राग
अकेलामुसाफिर
कविता रावत
राजाभाई कौशिक
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अक्टूबर 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
पाठकों की बात करते हैं। इस बार हमने निर्मला कविता को यूनिपाठिका बनाने का निश्चय किया है। निर्मला कपिला पिछले कई महीनों से हिन्द-युग्म से जुड़ी हैं और बहुत तत्परता से हिन्द-युग्म की सभी गतिविधियों पर नज़र रखती हैं।
यूनिपाठिका- निर्मला कपिला
निर्मला कपिला पंजाब सरकार के सेहत कल्याण विभाग में चीफ फार्मासिस्ट के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद लेखन को समर्पित हैं। इसके अतिरिक्त गरीब बच्चों को पढ़ने-लिखने में मदद करती हैं। कला साहित्य प्रचार मंच की अध्य़क्ष हैं। तीन पुस्तकें सुबह से पहले (कविता संग्रह), वीरबहुटी (कहानी संग्रह) और प्रेम सेतु (कहानी संग्रह) प्रकाशित हुई हैं। दो छपने के लिये तयार हैं।
अनेक पत्र पत्रिकायों मे प्रकाशन। विविध भारती जालन्धर से कहानी का प्रसारण
सम्मान-
1॰ पंजाब सहित्य कला अकादमी, जालन्धर की ओरे से सम्मान
2॰ ग्वालियर सहित्य अकादमी, ग्वालियर की ओर से शब्दमाधुरी सम्मान। शब्द भारती सम्मान व विशिष्ठ सम्मान
3॰ देश की 51 कवियत्रियों की काव्य कृति शब्द माधुरी में कविताओं का प्रकाशन
4॰ कला प्रयास मंच, नंगल द्वारा सम्मानित
पुरस्कार और सम्मान- डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र।
इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः मनोज कुमार, विनोद कुमार पांडेय और सुमिता प्रवीण को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें दी जायेंगी।
इनके अलावा हम विमल कुमार हेड़ा, नीति सागर इत्यादि का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवगत कराया।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 15 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
चतुर्वेदी धर्मेन्द्र धीर
सूफियान अश्वनी
अम्बरीष श्रीवास्तव
बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘‘ उत्कर्ष'’
उमेश शुक्ल
संजीवन मयंक
सिद्धार्थ कुमार
सुमीता प्रवीण
नीलेश माथुर
शिवानन्द द्विवेदी "सहर"
रतन शर्मा
शन्नो अग्रवाल
मोहित चौहान
शामिख फ़राज़
मुहम्मद अहसन
संगीता सेठी
मनोज मौर्य
नीरज वशिष्ठ
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
डा0अनिल चड्डा
शोभना चौरे
गीतिका "वेदिका"
रामनिवास तिवारी
लोकेंद्र सिंह राजपूत
दीपाली पन्त तिवारी"दिशा"
अजय दुरेजा
मृत्युंजय साधक
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28 कविताप्रेमियों का कहना है :
दीपक जी, यूनिकवि बनाने पर बहुत बधाई, एक औरत की व्यथा को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है ! बधाई !
deepakji ko unikavi banne ke liye bahut-bahut badhayee.Itni Prabhavshali kavita vo bhi is choti se umra me.bahut sunder.Nirmalaji ko bhi yunipathika ke liye bahut badhayee. Hindyugm ke is sunder prayas ke liye bahut-bahut badhayee.
दीपक जी की काव्य की मशाल साहित्य जगत को प्रकाशित करे, यूनी कवि के लिए असीम बधाई .
निर्मला जी को यूनीपाठक बनने के लिए मुबारक ,बल्ले -बल्ले .
aap aaj ke daur me beedh nahi fard hai apki kavita padh ke laga isi tarike apna pryas jari rakhiye
deepkji jo unikavi bnne ki bdhai .
nirmlaji ko unipadhika bnne ki bahut badhai.
दीपक जी आप यूनिपाठक बनने की और निर्मला जी आप यूनिपाठिका बनने की मेरी ओर से भी बधाई स्वीकार करें. बहुत शुभकामनाएं.
deepak ji aur nirmala ji aap dono ko bahut bahut nadhai.
rachana
Yugm per aapka swagat hai.
hindi yugm ke liye yeh waqt aisa hai ki pathak badh rahe hai par pratibhaye dhere dhere kam hoti ja rahi hai.
yugm tabhi accha chal sakta hai jab acche sunne wale ho aur behter kehne wale.
aapki upstithi se sakoon milega.
kavita pratham sthan ke liye chuni gayee is ke liye badhayee.
दीपक जी, भाई वाह! अबला नारी का इतना सटीक चित्रण दिल को छूने वाला है । ...चाहे पिछ्ड़ी रहे शिक्षा में मगर सभ्यता में आदमी से कई कदम आगे रहती है... नारी का कितना सच्चा वर्णन है । आपकी रचना सर्वप्रथम आनी ही थी । आपको सहस्त्र बधाईयाँ ।
आपके स्नेह और आशीर्वचनों के लिए आभारी हूँ, कोशिश करूंगा की आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूं. सादर
main ahle bhi kaha hai kavita likh ne ke liye utni bhavnaaye nahi chahiye jitna use pad kar pachane ke liye.
nirmla ki ik acchi pathak hai ( samarth kaviyatri bhi ), vivodo se pare sacchi tipapariya bunti hai.
badhayee swikaar kare.
एक सही रचनाकार का काम आतंकवादी, सांप्रदायिकतावादी, पूंजीवादी, प्रतिक्रियावादी एवं यथास्थितिवादी शक्तियों के जाल में जकड़े समाज में छटपटाने की भावना और उस जाल को तोड़ने की शक्ति जागृत करना है। आप उसमें सफल हैं।
दीपक जी-
आतंक के कई रूप हैं
आपने जिस को रेखांकित किया वह दिल को छू लेने वाला है
बस यूँ ही हर इक पक्ष को उभारकर सत्य की 'मशाल' जलाए रखिए।
यूनिकवि बनने की ढेर सारी बधाई।
ब्लाग जगत में प्रकाशित होने वाली हर कविता को आदरणीय निर्मला कपिला जी का इंतजार रहता है
आप युनिपाठक तो हैं ही हमारे जैसे आलसी कवियों को नींद से जगाने का भी काम अपनी टिप्पणियों के माध्यम से बखूबी करती रहती हैं।
दीपक जी और निर्मला जी को बधाई।
_______________________
हिन्द युग्म को आभार जो हिन्दी की अनजानी प्रतिभाओं को मंच दे रहा है। हिन्दी के सेवकों को प्रणाम ।
bahut hi sundar rachana hai.
Deepak ji ko badhai.Nirmala Kapila ji ko bhi badhaai.
दीपक जी आपकी कविता पढ़ कर ऐसा लगा मानो आप हिंदयुग्म ही नही लाखों लोगों के दिलों के विजेता बन गये..नारी की व्यथा व्यक्त करती सुंदर कविता जो आतंकवाद को भी फीकी कर देती है..
बहुत बहुत बधाई..
निर्मला जी आपको बहुत बहुत बधाई..साहित्य से आपका इस कदर लगाव हम नये लेखकों में एक आत्मविश्वास भर देता है..
बहुत बहुत बधाई....
दीपक मशाल जी क्प पढना हमेशा अच्छा लगता है।िनकी मशाल सहित्य जगत को रोशन करती रहे यही कामना है। मुझे सम्मान देने के लिये आपका बहुत tबहुत धन्यवाद। इस बार व्यस्तता की वजह से भाग नहीं ले पाई।
मुझे नहीं पता था की अपने देश के जिन महान साहित्यकारों और सच्चे देशभक्तों, देशवासियों की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए एक तुच्छ सैनिक के रूप में हिंदी भाषा के गौरव के पुनर्स्थापन और इसको विश्वव्यापी बनाने की जिस मशाल को मैंने थामने का साहस किया, उस मशाल को प्रज्ज्वलित रखने के लिए आप जैसी पुण्यात्माओं का आशीर्वाद और स्नेह रुपी ईंधन मुझे इतने बड़े स्तर पे मिलेगा. बस ऐसे ही मुझे चेताते रहें.
माँ तुल्य निर्मला जी का ये बड़प्पन है की एक नौसिखिये रचनाकार का लिखा हुआ उन्हें पसंद आता है वरना उनकी स्वयं की टिप्पणी मात्र भी उत्कृष्ट रचनाओं की श्रेणी में आती हैं जो लेखक को ऊर्जा से भर देती हैं.
kavita ke aakalan ke liye comment hona chaahiye!chaaploosi ke liye nahi.deepak ki kavita sambhaavanayen jagati hain.
diben
9 अक्तूबर को पोस्ट की गई भाई गौतम राजरिशी की कविता "हवा चलने लगी है चाल अब बैसाखियोँ वाली" जितनी दिल के करीब लगी उतनी ही हकीकत के । "दुआओं का हमारे हाल होता है सदा ऐसा, कि जैसे लापता फ़ाईल हो कोई अर्ज़ियों वाली" यह उजागर करती है कि भगवान की व्यवस्था भी हमारी सरकार की तरह ही है ।
यूनिकवि और यूनिपाठक दोनों को मुबारकबाद.
आपकी कविता वाकई यूनिकविता ही है. मुबारकबाद.
आदमी से कई कदम आगे रहती है.
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