जाने क्यों,
कब,
कैसे,
लेकिन कुछ छूट जाता है
बहुत सहेजा,
नाज़ुक रिश्ता,
टूट जाता है....
माँ से हर बात बाँटना
पिता से छोटी-छोटी
चीजों पर ज़िद करना
ज़रा-ज़रा सी बात पर
बहन से रूठना,
भाई से झगड़ना,
परिवार के
हर सदस्य ...
हर वस्तु ...
पर अपना अधिकार
खोने लगता है
जाते हुए मुड़ कर देखना,
किसी के माँगने पर दे देना,
ख़ुशी होते ही हँस देना,
दर्द होते ही रो देना,
ये सभी आदतें
बचकानी-सी लगती हैं,
दोस्तों पर विश्वास,
प्यार पर आस्था,
जड़ों की अहमियत,
यहाँ तक कि
ईश्वर के अस्तित्व पर भी
संदेह होने लगता है ...
लेकिन घूम-फिर कर
थक-हार कर
कभी-न-कभी
जिंदगी में
फिर वो वक़्त
आता है,
जब ज़रुरत महसूस होती है
तलाशने की,
उन खोई हुई जड़ों को,
उन टूटे हुए धागों को,
उन छूटे हुए रिश्तों को ...
अपने अस्तित्व को ....
कवयित्री- कु॰ स्मिता पाण्डेय
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
जब ज़रुरत महसूस होती है
तलाशने की,
उन खोई हुई जड़ों को,
उन टूटे हुए धागों को,
उन छूटे हुए रिश्तों को ...
अपने अस्तित्व को ....
ये ही तो जिन्दगी है, बहुत बढि्या बधाई
रिश्ते की अपनी अलग परिभाषा को परिभाषित करती ये कविता अछि लगी ... बधाई इनको मेरे तरफ से भी
अर्श
बहुत सुंदर तरीके से भावनाओं को व्यक्त किया है। जब जरुरत महसूस होती है तलाशने की...बहुत अच्छी रचना बधाई !
बहुत सुंदर कविता लगी .बधाई
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति - जब जरूरत होती है तलाशने की ---- अपने अस्तित्व को …
शायद इसी को कहते है हारे को हरी नाम !!!!..................वैसे यह कविता कुछ ज्यादा समझ न आयी !
bahut sarahniya prayas hai. meri shubhkamna kaviyatri ko dein aaur sath mein ek request bhi karein (wahi request jo kisi ne mujhe paramarsh ke roop mein diya tha 1963 mein)---Khoob padhe...likhne se jyada padhna zaroori hai abhi is kaviyatri ke liye..Ye ladki to bahut kuch de sakti hai hindi ko
Safarchand
bahut sarahniya prayas hai. meri shubhkamna kaviyatri ko dein aaur sath mein ek request bhi karein (wahi request jo kisi ne mujhe paramarsh ke roop mein diya tha 1963 mein)---Khoob padhe...likhne se jyada padhna zaroori hai abhi is kaviyatri ke liye..Ye ladki to bahut kuch de sakti hai hindi ko
Safarchand
आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
हारे को हरी नाम नहीं सत्य को प्रणाम करती कविता।
apne astitv ko tlashti stri ki bhavnao ko rekhankit karti sundar kavita
badhai
hum sab ek tanha wajood hain aur jeeney ka matlab bichhadtey-jana bhi hai...Smita ek lamhe me kitni parten ho sakti hain purani yadon ki....aapne is reshe ko thama hai...kehti rahiye yunhi...aur tasweer me jaisi hain waisi hi khoobsoorat bani rahiyega...hamesha....waise Shair to hotey hi khoobsoorat hain!
saraahniiya kavita, saral si, madhur si, nirmal si.......
जाने क्यों,
कब,
कैसे,
लेकिन कुछ छूट जाता है
बहुत सहेजा,
नाज़ुक रिश्ता,
टूट जाता है....
shuruaat hi itni shandar thi ki pata hi nahin chala kab kavita khatm ho gayee. laga ki jaise 2 minute me koi ghar ke aangan me khelti bachchi, kishorawastha me pahunchi aur fir badi bhi ho gayee, byah bhi di gai. sankshep me nari jeevan hai ye.
sundar kavita, shukriya aisa likhne ke liye.
दोस्तों पर विश्वास,
प्यार पर आस्था,
जड़ों की अहमियत,
यहाँ तक कि
ईश्वर के अस्तित्व पर भी
संदेह होने लगता है ...
बहुत खूब ....जिंदगी की हकीक़त को बखूबी बयां किया है आपने
देर से ही सही ..बधाई स्वीकारें ....
बहुत सुन्दर शब्दों से पिरोया है कविता को
जाने क्यों,
कब,
कैसे,
लेकिन कुछ छूट जाता है
बहुत सहेजा,
नाज़ुक रिश्ता,
टूट जाता है....
दोस्तों पर विश्वास,
प्यार पर आस्था,
जड़ों की अहमियत,
यहाँ तक कि
ईश्वर के अस्तित्व पर भी
संदेह होने लगता है ...
रिश्ते इसे ही कहते है
बेहतरीन
जब ज़रुरत महसूस होती है
तलाशने की,
उन खोई हुई जड़ों को,
उन टूटे हुए धागों को,
उन छूटे हुए रिश्तों को ...
अपने अस्तित्व को ....
kya aapki soch samuch aisi hai ya ye bas ek kivita hai. yadi aap sachmuch aisa sochti hain to phir 1baar dhyan se sochiyega please.
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