हम सितंबर 2010 की यूनिप्रतियोगिता के परिणाम ले कर उपस्थित हैं। कुछ निर्णायकों की अतिशय व्यस्तता के चलते परिणाम घोषित करने मे 3 दिन का विलम्ब हुआ, जिसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि सितंबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता हिंद-युग्म के इस मासिक कविता आयोजन का 45वाँ पड़ाव है। हर माह प्रतियोगिता से कई नये प्रतिभागियों का जुड़ना इस आयोजन की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है। आशा है कि आगे भी नयी प्रतिभाएँ यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से सामने आती रहेगीं और उन्हे पाठकों की गंभीर प्रतिक्रियाओँ का प्रतिसाद मिलता रहेगा।
यहाँ हम एक बात कहना चाहेंगे कि प्रतियोगिता के नियमों मे स्पष्ट कर देने के बावजूद कई प्रतिभागियों की पूर्वप्रकाशित या ब्लॉग आदि पर प्रकाशित प्रविष्टियाँ भी आ जाती हैं, जिन्हे कि हमें खेद सहित अस्वीकृत करना पड़ता है। अतः हम भावी प्रतिभागियों से अनुरोध करेंगे कि कृपया भविष्य मे पूर्णतः अप्रकाशित व मौलिक रचनाएँ ही प्रतियोगिता के लिये भेजें। साथ ही पिछले माहों मे भेजी जा चुकी किसी रचना को दोबारा प्रतियोगिता के लिये न भेजें।
इस बार प्रतियोगिता मे कुल 46 प्रविष्टियाँ सम्मिलित थीं। प्रथम चरण के 3 निर्णायकों द्वारा प्रदत्त अंकों के आधार पर कुल 18 कविताएँ द्वितीय चरण के लिये चयनित हुईं। द्वितीय चरण मे 2 निर्णायकों ने उन्हे आँका। दोनों चरणों के कुल प्राप्तांकों के औसत के आधार पर सभी 18 कविताओं का क्रम निर्धारित किया गया। कुल अंकों के आधार पर महेंद्र वर्मा की ग़ज़ल को सितंबर माह की यूनिकविता बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। इस बार कुछ अरसे के बाद एक ग़ज़ल यूनिकविता के रूप मे चुन कर आयी है। महेंद्र वर्मा पिछले कुछ माहों से ही यूनिप्रतियोगिता से जुड़े हैं। इनकी एक कविता जुलाई माह मे 13वें स्थान पर रही थी। वैसे तो इनका परिचय हम पाठकों से पहले करा चुके हैं, मगर यहाँ एक बार पुनः सितंबर माह के यूनिकवि का परिचय हम अपने पाठकों से बाँट रहे हैं।
यूनिकवि: महेंद्र वर्मा
जन्म - 30 जून 1955 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले के गांव बेरा में।
शैक्षणिक योग्यता - बी.एस-सी.,एम.ए.,दर्शनशास्त्र।
व्यवसाय- व्याख्याता
पता - जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बेमेतरा,जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़।
रुचियां - साहित्य, संगीत,विविध कलाएं और अध्ययन-लेखन।
साहित्यिक उपलब्धियां- बचपन से ही साहित्य पढ़ने लिखने का शौक। विविध विधाओं मे रचनाएं जैसे, आलेख, निबंध, गजलें, बाल कविताएं आदि के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। नवभारत,अमृत संदेश, सापेक्ष,सुरति योग आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। आकाशवाणी रायपुर से ग़ज़लें एवं वार्ताएं प्रसारित। अंतर्जाल की पत्रिका रचनाकार में ग़ज़लें प्रकाशित, सृजनगाथा एवं आखर कलश में ग़ज़लें प्रकाशनार्थ स्वीकृत। छत्तीसगढ़ की विद्यालयीन पाठ्य पुस्तक में एक गीत सम्मिलित। निष्ठा साहित्य समिति, बेमेतरा द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘‘निनाद‘‘ का संपादन। ‘सुरति योग‘ आध्यात्मिक पत्रिका के चार विशेषांकों का संपादन। विगत 25 वर्षों से वार्षिक स्मारिका शिक्षक दिवस का सम्पादन।
यूनिकविता: ग़ज़ल
आपकी दीवानगी बिल्कुल लगे मेरी तरह,
ये अचानक आप कैसे हो गए मेरी तरह।
इक अकेला मैं नहीं कुछ और भी हैं शहर में,
जेब में रक्खे हुए दो चेहरे, मेरी तरह।
भीड़ से पूछा किसी ने, किस तरह हो आदमी,
हो गई मुश्किल, कि सारे कह उठे मेरी तरह।
लोग, जो सब जानने का कर रहे दावा मगर,
दरहक़ीकत वे नहीं कुछ जानते मेरी तरह।
किसलिए यूँ आह के पैबंद टांके जा रहे,
क्या जिगर मे छेद हैं अहसास के मेरी तरह।
खुदपरस्ती के अंधेरे में भला कैसे जिएँ,
देख जैसे जल रहे हैं ये दिये मेरी तरह।
मजहबी धागे उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।
पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों को समयांतर पत्रिका की वार्षिक सदस्यता देंगे तथा उनकी कविता यहाँ प्रकाशित की जायेगी उनके क्रमशः नाम हैं-
आरसी चौहान
आशीष पंत
जितेंद्र जौहर
मनोज सिंह ’भावुक’
जया पाठक
ज्योत्स्ना पांडे
धर्मेंद्र कुमार सिंह सज्जन
कौशल किशोर
शील निगम
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित
4 अन्य कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
मनुपर्णा भटनागर
डॉ अनिल चड्डा
प्रियंका चित्रांशी
आलोक गौड़
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 अक्टूबर 2010 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। शीर्ष 18 कवियों के नाम अलग रंग से लिखित है।
अनिल कुलश्रेष्ठ
संतोष कुमार सिंह
कैलाश जोशी
वसीम अकरम
देवी नागरानी
राम डेंजारे
शेखर तिवारी
राजीव श्रीवास्तव
पवन तिवारी
योगेंद्र वर्मा व्योम
सोहन चौहान
संजीवन मयंक
रिम्पा परवीन
प्रवीण आर्य
सुरेंद्र अग्निहोत्री
अनिरुद्ध यादव
राकेश पुरी रिक्की
नूरैन अंसारी
अश्विनी राय
सनी कुमार
बोधिसत्व कस्तुरिया
नीरज पाल
जोमयिर जिनि
मुकुल उपाध्याय
अजय दुरेजा
प्रकाश यादव निर्भीक
श्याम गुप्ता
मंजरी शुक्ला
ऋषभ कुमार
अशोक शर्मा
अरविंद कुरील सागर
तोशा दुबे
नोट- हम यूनिपाठक/यूनिपाठिका का सम्मान वार्षिक पाठक सम्मान के तौर पर सुरक्षित रख रहे हैं। वार्षिक सम्मानों की घोषणा दिसम्बर 2010 में की जायेगी और उसी महीने हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव 2010 में उन्हें सम्मानित किया जायेगा।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
Badhaiyaan ..!
Ghazal ke ashaar atyadhik pasand aaye. Sabse adhik yah pasand aaya .. mubaraqbaad...
किसलिए यूँ आह के पैबंद टांके जा रहे,
क्या जिगर मे छेद हैं अहसास के मेरी तरह।
RC
किसलिए यूँ आह के पैबंद टांके जा रहे,
क्या जिगर मे छेद हैं अहसास के मेरी तरह।
yeh panktiya aapke jigar ki tah se nikalkar hamare jigar par chha gai.
shadhuvaad.
kailash joshi
9720007396
भाई महेन्द्र वर्मा जी,
बधाई हो...! यूँ तो इस ग़ज़ल का हर शे’र किसी-न-किसी रूप में क़ाबिले-तारीफ़ है,फिर भी मेरी दृष्टि में यदि सर्वश्रेष्ठ शे’र चुनना हो तो मैं कहूँगा कि :
"भीड़ से पूछा किसी ने, किस तरह हो आदमी,
हो गई मुश्किल, कि सारे कह उठे मेरी तरह।"
शैलेश जी,
यक़ीनन आपकी निष्पक्षता प्रशंसनीय है!‘हिन्दयुग्म’ दीर्घजीवी बनकर यूँ ही मेरे किसी-न-किसी सहधर्मी भाई को सम्मानित करता रहे,सृजन को प्रोत्साहन देता रहे...तथास्तु!
आपकी दीवानगी बिल्कुल लगे मेरी तरह,
ये अचानक आप कैसे हो गए मेरी तरह।
भीड़ से पूछा किसी ने, किस तरह हो आदमी,
हो गई मुश्किल, कि सारे कह उठे मेरी तरह।
लोग, जो सब जानने का कर रहे दावा मगर,
दरहक़ीकत वे नहीं कुछ जानते मेरी तरह।
किसलिए यूँ आह के पैबंद टांके जा रहे,
क्या जिगर मे छेद हैं अहसास के मेरी तरह।
आपकी दीवानगी बिल्कुल लगे मेरी तरह,
kya baat hai..kya baat hai
Bahut bahut khoob sir..Badhayi
गज़ल स्वयं कह रही है कि वह 'प्रथम' है।
हिंदयुग्म और आप सब के प्रति हृदय से आभार।
“खुदपरस्ती के अंधेरे में भला कैसे जिएँ,
देख जैसे जल रहे हैं ये दिये मेरी तरह।
मजहबी धागे उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।“ यूं तो मुझे आपके सभी शे’र नायाब लगे लेकिन इन दोनों का वज़न कुछ ज्यादा और काबिलेगौर लगा. लोगों के बीच मजहबी तनाज़े इस क़द्र उलझते जा रहे हैं कि इन्हें सुलझाने का ना तो किसी के पास वक्त है और ना ही दानिशमंदी. गालिबन सब लोग तलवार से ही इस तनाजे का हल चाहते हैं बिल्कुल मेरी तरह. आपने खुद को इन तमाम बातों के लिए ज़िम्मेदार माना है जो बहुत बड़ी बात है. काश हर इंसान इसी तरह सोचता तो कोई भी झगडा ना होता. गुरु नानक देव जी ने भी कहा था “मंदा जाने आप ने अवर भला संसार. इस खूबसूरत तखलीक के लिए वर्मा जी आपको बहुत बहुत मुबारकबाद. अश्विनी कुमार रॉय
राय जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी को विजेता बनने पर हार्दिक बधाई !
हिंदयुग्म के निर्णायकों का यह निर्णय स्वागत योग्य है ।
…
लेकिन रदीफ़ निभाने की नियमबद्धता के चलते वर्मा जी स्वयं पर आरोप आरूढ़ कर बैठे
मजहबी धागे उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।
वैसे पूरी ग़ज़ल अच्छी है…
बधाई और शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
धन्यवाद राजेन्द्र जी, ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए।
मजहबी धागे उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।
बेहतरीन गज़ल
भीड़ से पूछा किसी ने, किस तरह हो आदमी,
हो गई मुश्किल, कि सारे कह उठे मेरी तरह।
लोग, जो सब जानने का कर रहे दावा मगर,
दरहक़ीकत वे नहीं कुछ जानते मेरी तरह।
मजहबी धागे उलझते जा रहे थे, और वे,
नोक से तलवार की सुलझा रहे मेरी तरह।
यूँ तो हर एक शेर काबिल-ए-तारीफ़ है पर ये शेर लाजवाब हैं।
Ek ghazal is pratiyogita ke pahle paydan par dekhna sukhad raha...atyadhik sundar rachna..vijeta ko badhai...badhai hindyugm ko bhi yogya vijeta chunne par...
महेन्द्र वर्मा जी, आप को बहुत बधाइयां और शुभकामनायें. आप मेरे बहुत निकट हैं, मेरे साखी परिवाज के एक जागरूक सदस्य हैं, आप की इस उपलब्धि पर मुझे गर्व भरी प्रसन्नता हो रही है.
आदरणीय एम.वर्मा जी, सज्जन जी, आतिश जी और डॉ. राय जी ,आप सबके प्रति हुदय से आभार।
यूनिकवि महेंद्र जी को बधाई .. तथा सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाये .. ग़ज़ल बेहतरीन
खुदपरस्ती के अंधेरे में भला कैसे जिएँ,
देख जैसे जल रहे हैं ये दिये मेरी तरह।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां के साथ अनुपम प्रस्तुति
यूनिकवि बनने पर हमारी शुभकामनायें ।
लोग, जो सब जानने का कर रहे दावा मगर,
दरहक़ीकत वे नहीं कुछ जानते मेरी तरह।
bahut khoob,badhai
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)