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Wednesday, March 11, 2009

दोहा गाथा सनातन - गोष्ठी : ७ दोहा दिल में ले बसा


दोहा दिल में ले बसा, कर तू सबसे प्यार.
चेहरे पर तब आएगा, तेरे 'सलिल' निखार.

सरस्वती को नमन कर, हुई लेखनी धन्य.
शब्द साधना से नहीं, श्रेष्ट साधना अन्य.

रमा रहा जो रमा में, उससे रुष्ट रमेश.
भक्ति-शक्ति से दूर वह, कैसे लखे दिनेश.

स्वागत में ऋतुराज के, दोहा कहिये मीत.
निज मन में उल्लास भर, नित्य लुटाएं प्रीत.

मन मथ मन्मथ जीत ले, सत-शिव-सुंदर देख.
सत-चित-आनंद को 'सलिल', श्वास-श्वास अवरेख


पाठ ४ के प्रकाशन के समय शहर से बाहर भ्रमण पर होने का कारण उसे पढ़कर तुंरत संशोधन नहीं करा सका. गण संबंधी चर्चा में मात्राये गलत छप गयी हैं. डॉ. श्याम सखा 'श्याम' ने सही इंगित किया है. उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद.
गण का सूत्र ''यमाताराजभानसलगा' है. हर अक्षर से एक गण बनता है, जो बाद के दो अक्षरों के साथ जुड़कर अपनी मात्राएँ बताता है.

य = यगण = यमाता = लघु+गुरु+गुरु = १+२+२ = ५
म = मगण = मातारा = गुरु+गुरु+गुरु = २+२+२ = ६
त = तगण = ताराज = गुरु+गुरु+लघु = २+२+१ = ५
र = रगण = राजभा = गुरु+लघु+गुरु = २+१+२ = ५
ज = जगण = जभान = लघु+गुरु+लघु = १+२+१ = ४
भ = भगण = भानस = गुरु+लघु+लघु = २+१+१ = ४
न = नगण = नसल = लघु+लघु+लघु = १+१+१ = ३
स = सगण = सलगा = लघु+लघु+गुरु = १+१+२ = ४


पाठ में टंकन की त्रुटि होने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. मैं अच्छा टंकक नहीं हूँ, युग्म के लिए पहली बार यूनिकोड में प्रयास किया है. अस्तु...

हिन्दी को पिंगल तथा व्याकरण संस्कृत से ही मिला है. इसलिए प्रारम्भ में उदाहरण संस्कृत से लिए हैं. पाठों की पुनरावृत्ति करते समय हिन्दी के उदाहरण लिए जाएँगे.

पाठ छोटे रखने का प्रयास किया जा रहा है. अजीत जी का अनुरोध शिरोधार्य. मनु जी अभी तो मैं स्वयं ही दोहा सागर के किनारे खडा, अन्दर उतरने का साहस जुटा रहा हूँ. दोहा सागर की गहराई तो बिरले ही जान पाए हैं.

पूजा जी! आपने दोहा को गंभीरता से लिया, आभार. आधे अक्षर का उच्चारण उससे पहलेवाले अक्षर के साथ जोडकर किया जाता है. संयुक्त (दो अक्षरों से मिलकर बनी) ध्वनि का उच्चारण दीर्घ या गुरु होता है, जिसकी मात्राएँ २ होती हैं. 'ज्यों' में आधे ज = 'ज्' तथा 'यों' का उच्चारण अलग-अलग नहीं किया जाता. एक साथ बोले जाने के कारण 'ज्' 'यों' के साथ जुड़ता है जिससे उसका उच्चारण समय 'यों' में मिल जाता है. एक प्रयोग करें- 'ज्यों', 'त्यों' तथा 'यों' को १०-१० बार अलग-अलग बोलें और बोलने में लगा समय जांचें. आप देखेंगी की तीनों को बोलने में सामान समय लगा. इसलिए 'यों' की तरह 'ज्यों', 'त्यों' की मात्रा २ होगी.

'ज्यों जीवन-नादान' की मात्राएँ २+२+१+१+२+२+१=११' हैं.

तप न करे जो वह तपन, कैसे पाये सिद्धि?
तप न सके यदि सूर्ये तो, कैसे होगी वृद्धि?

दोहे में जो निहित है, कहते अलंकार यमक
एक तप का अर्थ है तपस्या, दूजा गर्मी से भभक...


तपन जी! शाबास. आपने 'तप' शब्द के दोनों अर्थ सही बताये हैं. अलंकार भी सही बताया जबकि अभी कक्षा में अलंकार की चर्चा हुई ही नहीं है. आपके दोहे काप्रथम चरण सही है. दूसरे चरण में १३ मात्राएँ हैं जबकि ११ होनी चाहिए. तीसरे चरण में १७ मात्राओं के स्थान पर १३ तथा चौथे चरण में १३ मात्राओं के स्थान पर ११ मात्राएँ होना चाहिए. इसे कुछ बदलकर इस तरह लिखा जा सकता है-

तप का आशय तपस्या,
१ १ २ २ १ १ १ २ १ = १३
या गर्मी की भभक.
२ २ २ २ १ १ १ = ११
शब्द एक दो अर्थ हैं,
१ १ १ २ १ २ २ १ २ = १३
अलंकार है यमक.
१ २ २ १ २ १ १ १ = ११

रविकांत पाण्डेय जी आपको भी बधाई. आपने बिलकुल सही बूझा है.

आलम ने जो पद लिखा सुनिये चतुर सुजान
इसे सुनकर निश्चित ही सुख पावेंगे कान

"कनक छडी सी कामिनी कटि काहे अतिछीन"
अर्ज करूँ पद दूसरा शेख जिसे लिख दीन
अजब अनूठा काम ये पलभर में ही कीन
"कटि को कंचन काढ़ विधि कुचन माँहि धरि दीन"
आपके उक्त दोनों दोहे बिलकुल ठीक हैं.


आलम की पंक्ति -- "कनक छडी सी कामिनी, कटि काहे अति छीन"

शेख की पंक्ति -- "कटि को कंचन काट विधि, कुचन माँहि धरि दीन"


हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है.

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.
सदा ३ मात्रायं हुईं। चाहता में भी चा=२ हता=३

मानसी जी! मात्राएँ अक्षर की गिनिए, शब्द की नहीं, सदा की मात्राएँ स = १ + दा = २ कुल ३ हैं, इसी तरह चाहता की मात्राएँ चा= २ + ह = १ + ता = २ कुल ५ हैं. अपवाद को छोड़कर हिन्दी दोहे में एक अक्षर में ३ मात्राएँ नहीं होतीं.
रविकांत जी तथा तपन जी को दोहे का उपहार होली के अवसर पर देते हुए प्रसन्नता है-

तपन युक्त रविकांत यों, ज्यों मल दिया गुलाल.
पिचकारी ले मानसी, करती भिगा धमाल.


गप्प गोष्ठी में सुनिए एक सच्चा किस्सा.. बुंदेलखंड में एक विदुषी-सुन्दरी हुई है राय प्रवीण. वे महाकवि केशवदास की शिष्या थीं. नृत्य, गायन, काव्य लेखन तथा वाक् चातुर्य में उन जैसा कोई अन्य नहीं था. दिल्लीपति मुग़ल सम्राट अकबर से दरबारियों ने राय प्रवीण के गुणों की चर्चा की तथा उकसाया कि ऐसे नारी रत्न को बादशाह के दामन में होना चाहिए. अकबर ने ओरछा नरेश को संदेश भेजा कि राय प्रवीण को दरबार में हाज़िर किया जाए. ओरछा नरेश धर्म संकट में पड़े. अपनी प्रेयसी को भेजें तो राजसी आन तथा राजपूती मान नष्ट होने के साथ राय प्रवीण की प्रतिष्ठा तथा सतीत्व खतरे में पड़ता है, बादशाह का आदेश न मानें तो शक्तिशाली मुग़ल सेना के आक्रमण का खतरा.

राज्य बचाएँ या प्रतिष्ठा? उन्हें धर्म संकट में देखकर राय प्रवीण ने गुरुवर महाकवि केशवदास की शरण गही. महाकवि ने ओरछा नरेश को राजधर्म का पालन करने की राय दी तथा राय प्रवीण को सम्मान सहित सकुशल वापिस लाने का वचन दिया.

अकबर के दरबार में महाकवि तथा राय प्रवीण उपस्थित हुए. अकबर ने महाकवि का सम्मान करने के बाद राय प्रवीण को तलब किया. राय प्रवीण को ऐसे कठिन समय में भरोसा था अपनी त्वरित बुद्धि और कमर में खुंसी कटार का. लेकिन एन वक्त पर दोहा उनका रक्षक बनकर उनके काम आया. राय प्रवीण ने बादशाह को सलाम करते हुए एक दोहा कहा. दोहा सुनते ही दरबार में सन्नाटा छा गया.
बादशाह ने ओरछा नरेश के पास ऐसा नारी रत्न होने पर मुबारकबाद दी तथा राय प्रवीण को न केवल सम्मान सहित वापिस जाने दिया अपितु कई बेशकीमती नजराने भी दिए. क्या आप वह दोहा सुनना चाहते हैं जिसने राय प्रवीण लाज रख ली? वह अमर दोहा बताने वाले पाठक को उपहार में मिलेगा एक दोहा.

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

होली की रंगकामनायें स्‍वीकारें।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" का कहना है कि -

मन को मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
रंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग
आयो रे फिर से फाग हवा महके महके
जियरा नहीं बस में बोले बहके बहके...

आदरणीय हिंदी ब्लोगेर्स को होली की शुभकामनाएं और साथ में होली और हास्य
धन्यवाद.

manu का कहना है कि -

आचार्या को प्रणाम,,,,होली की शुभकामनायें.....
दोहा मैं लिखने ही जा रहा था,, एक दोहा मिलने के लालच में ,,,
पर आपसे ही लिया ज्ञान ,,आपके ही सम्मुख बखानने का मन नहीं हुआ,,,,,,
कुछ बेईमानी सी लगी,,,,,अतः किसी और को ही try करने दिया जाय,,,

रविकांत पाण्डेय का कहना है कि -

श्रोता मगन हो सुनिये दोहा सन्मुख आज।
चतुर रायप्रवीन की रख ली जिसने लाज॥

बिनति रायप्रवीन की सुनिये शाह सुजान।
जूठी पातर खात हैं बारी बायस स्वान॥

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

प्रणाम आचार्य...
समयाभाव के कारण यह पाठ नहीं पढ़ पाया हूँ। जल्द ही पढूँगा...
अलंकार तो बचपन में पढे़ थे.. अब तो भूलभाल गया हूँ। आशा है आप याद दिला देंगे अपने पाठों में..
होली की बधाई...

manu का कहना है कि -

ekdam sahi,,,,,,,,,,,,

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

रसगुल्‍ले जैसे लगा, यह दोहे का पाठ
सटसट उतरा मगज में, धन्‍य हुए पा ज्ञान।

एक स्वतन्त्र नागरिक का कहना है कि -

वो दोहा है

विनती राय प्रवीन की सुनिए शाह सुजान
जूठी पातर खात है बारी बायस स्वान

Pooja Anil का कहना है कि -

बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी, आपने मेरी दुविधा दूर कर दी है.

राय प्रवीण का दोहा तो पता नहीं है, पर कहानी बहुत ही रुचिकर है , हमारे साथ बांटने के लिए आभार.

अलंकार के बारे में जानने की उत्सुकता है.
पूजा अनिल

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

आचार्यजी ,
वास्तव में कक्षा में रह अभ्यास करना एक सुखद अनुभव लग रहा है |
आपको इस सब के लिए पुन: धन्यवाद |

यदि नीचे के दोहा में गलती हो तो संकेत दीजियेगा -

उत्तम है इस बार का
१२१ २ ११ २१ 2
दोहा गाथा सात |
22 22 21
आस है आचार्य से
21 2 222 2
करत रहे ऐसी बात |
111 12 22 २१


अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

avnish ji
aakhiri part mein 13 maatraayein ho gayee hain... change karna hoga...11 kijiye

manu का कहना है कि -

tiwari ji ,doosri laain mein gad bad lag rahi hai,,,,
baaki aachaaryaa ji hi bataa paayenge,,,

yaa agar aapne gin kar kahaa ho to shaayad sahi ho,,,mujhe to ginti aati nahi

mohamed sameer का कहना है कि -



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