सर्वप्रथम सभी पाठकों को होली की बधाइयाँ। फरवरी माह के काव्य-पल्लवन में शामिख फ़राज़ की तस्वीर पर २१ कवियों ने अपनी राय रखी। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हम लाये हैं एक नया चित्र। इस माह हमें जिस पाठक से चित्र प्राप्त हुआ वे हैं कमलप्रीत सिंह। किन्तु इस माह हम जो चित्र लेकर आये हैं वो हमें पिछले महीने प्राप्त हुआ था और इसे भेजा है विवेक रंजन श्रीवास्तव ने। चूँकि हम एक बार में एक ही चित्र पर रचनायें आमंत्रित करते हैं इसलिये यह चित्र फरवरी के काव्यपल्लवन में सम्मिलित नहीं हो पाया। हम आशा करते हैं कि हमेशा की तरह इस बार भी आप लोगों का सहयोग मिलेगा।
आप अपनी लिखी हुई व अप्रकाशित रचना हमें २२ मार्च २००९ तक अवश्य भेज दें। आप हिन्दी में चार पंक्तियाँ भी लिखेंगे तो हमारे प्रयास को बल मिलेगा। इस बात की कोशिश करें कि प्रविष्टि देवनागरी में ही टंकित हो। इस बार का काव्य-पल्लवन का अंक २६ मार्च २००९ को प्रकाशित होगा। यदि आप भी अपनी किसी फोटो अथवा चित्र पर काव्य-पल्लवन आयोजित करवाना चाहते हैं तो स्वयं द्वारा ली गई फोटो या स्वयं द्वारा बनी पेंटिंग हमें २८ मार्च २००९ तक भेज सकते हैं।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
स्वागत नए प्रयास का, सहभागी हो लोक.
मिलकर रचनाकार, सब फैलाएं आलोक
बहुत ही अच्छी तस्वीर है. उम्मीद है की इस बार ढेरो रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगीं.
पता नहीं ये एक संयोग है या हिंदी-युग्म की सूझबूझ कि तस्वीर Womens' Day Celebration को प्रतिबिंबित करती है.
- सोनी जर्मनी से
aadha darjan ladkiyon kaa,,,achchha groop photo,,,
baher kuchh khaas nahi,,,,,par bheeter,,,,,,,,,,,,,,,,,
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मनु जी,
चिंता न करें आधा दर्जन को देखकर. इनपर कविता लिखनी है. इनकी शादी या दहेज़ की व्यबस्था नहीं करनी है आपने. तो please आप अपने को दुखी न करिए अभी से.
सर्वप्रथम विवेक रंजन श्रीवास्तव जी को बहुत धन्यवाद..
बहुत ही बेहतरीन चित्र..ये बालिकाएं ,आज की नारी...और इनसे बनता समाज
बहुत खूब !!!!
कभी डाली बनकर, कभी माली बनकर,
हमें ही ख़िलाना है, इस ज़ीवन की बगिया को।
सुंदर तस्वीर।
हमें भी अपना किशोर-अल्ल्डपन याद दिला दिया।
आभार।
शन्नो जी,
आने वाले वक्त में शादी की या दहेज़ की फिक्र ( खासकर दुल्हन या बहू की ) ,,फिक्र तो लड़कों को या लड़के वालो को होगी,,,,,
कविता तो मैं (जैसी भी हो) पोस्ट कर चुका हु,,,,
मगर इनके भीतर क्या चल रहा होगा,,,,,,,,,,
मेरे या सबके कविता भेजने के बाद भी,,,,,वो सोच रहा था,,,,,,,
मनु जी,
ना मैंने सही कहा न आपने. बस दहेज़ शब्द अपने आप में एक सामाजिक खुजली के समान लगता है. मेरा मतलब है:
दहेज़ की प्रथा सबको देती है बहुत व्यथा
किसी ने लड़की दी और किसी ने लड़का
माँ-बाप पर कोई भी ना भार डालो लेकिन
वह जितना भी प्यार से दें उसे स्वीकार लो.
और आपने अपनी कविता भेज दी है जानकर ख़ुशी हुई. चलो फिर अगले हफ्ते हम सब लोग मिलकर एक दुसरे की कवितायों का आनंद लेते हैं.
जब बात दहेज़ की निकली है तो मेरी २ साल पहले लिखी क्षणिका याद आई -
बेटियाँ भगवान् की देन
फिर विवाह में
कैसा लेन-देन |
सो उम्मीद है लड़का हो या लड़की , किसी को दहेज़ नहीं देना पड़े ! आखिर शादी कोई व्यापार थोड़े ही है
- सोनी जर्मनी से
बहुत खूब ! बिलकुल सही कहा आपने सोनी जी.
इश्वर करे के ये बिमारी हर हाल में जड़ सहित ख़त्म हो जाए,,,,,
मैंने इसलिए लिखा था के जिस तरह से लड़कियों को पैदा ही नहीं होने दिया जा रहा है,,,
तो आने वाले समय में कही दहेज़ का उलटा रूप ना देखने को मिले,,,,
आप कृपया एक बार मेरे ढंग से भी सोच कर देखें,,,,,
अच्छा, तो यह मतलब था आपका मनु जी, तभी आपने ऐसा कहा था. हम आपकी बात से यह समझ नहीं पाए थे. कोई बात नहीं, अब ग़लतफ़हमी दूर हो गयी. कमी होने पर शायद ऐसी संभावना हो सकती है जैसा आप सोच रहे हैं या नहीं भी. समय और इंसान की सोच के साथ पता नहीं क्या-क्या बदलता रहता है. लेकिन अभी तक तो.........जहाँ ढेर सी लड़कियां हैं वहां लोग उन्हें ही बीमारी की तरह समझने लगते हैं दहेज़ की बात सोचकर. यह संसार, समाज और इसके तौर-तरीके विचित्र हैं. कभी कुछ, कभी कुछ. सर चकराने लगता है सोच-सोच कर. जाकर अब चाय पियूं और आप भी मनु जी. ऐसी बातों पर तो:
' केवल आने वाला समय ही गवाह होगा
जब किसी का किसी से विवाह होंगा.'
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