यूनिकवि प्रतियोगिता के फरवरी माह की तीसरी कविता की ओर बढ़ते हैं। इस स्थान की कविता के रचयिता विवेक आसरी की एक कविता हमने पिछले महीने भी प्रकाशित की थी।
पुरस्कृत कविता- सूरज को सज़ा दोगे?
अंधेरा रात के बलात्कार में बिजी है
और सुबह की उम्मीद
बेड के पास पड़ी
सिसक रही है
ख्वाबों के पांव तले की ज़मीन
धीरे-धीरे खिसक रही है
रूह खौल रही है
गुजरते वक्त की तेज होती आंच पर।
किसका बस है !!!
कभी-कभी लगता है
उम्मीद एक फालतू शब्द है
हर रात के बाद दिन होगा
इस तसल्ली से मुझे चिढ़ होती है
मुझसे किसने पूछा था
सुबह और शाम बनाते वक़्त।
न मेरी सहमति ली गई
रात को अंधेरे में छिपाते वक़्त।
तो रोशनी के लिए
मैं क्यों सहर तलक इंतज़ार करूं?
गर रोशनी से पहले
मौत आ गई… उम्मीद को
तो क्या सूरज को सज़ा दोगे?
प्रथम चरण मिला स्थान- पंद्रहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- तीसरा
पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता अच्छी है और एक तरह का आक्रोश व्यक्त है इसमें ।
क्या अंग्रेजी के कुछ शब्दों को हटाया नहीं जा सकता था जैसे - बिजी और बेड ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
कविता है
या अकविता?
कौन बताये यार?
भाव गहरे हैं |
फ़िर भी शिल्प आदि के पैमाने से तो रचना नही जमा पा रही है |
अच्छी रचना मिलेगी ऐसी शुभ कामना |
बधाई |
अवनीश तिवारी
मौत आ गई… उम्मीद को
तो क्या सूरज को सज़ा दोगे?
YE LINE PASAND AAYEE
गर रोशनी से पहले
मौत आ गई… उम्मीद को
तो क्या सूरज को सज़ा दोगे?
इन पंक्तियो को पढकर कविता समझ आयी
काफी निराशावादी कविता पर पढने मे अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
काफी निराशावादी कविता पर पढने मे अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
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