उर्दू में काव्य के व्याकरण को अरूज़ कहा जाता है जिस तरह से हिंदी में पिंगल शास्त्र है । हिंदी का पिंगल जो कि वास्तव में संस्कृत का पिंगल है वो दुनिया का सबसे पुराना काव्य व्याकरण माना जाता है । किंतु उसमें मात्राओं की गणना आदि की इतनी अधिक दुश्वारियां हैं कि उसके कारण काफी कठिन होता है छंद लिखना । अरबी व्याकरण जो अरूज़ के नाम से उर्दू में ग़ज़ल के लिये लिया गया वो वास्तव में यूनानी अरूज़ से काफी प्रभावित है । क्योंकि ख़लील बिन अहमद जिन्होंने अरबी अरूज़ को जन्म दिया लगभग आठवीं सदी में वे यूनानी ज़ुबानके जानकार थे ।इसी उर्दू पिंगल को अरूज़ कहा जाता है और इसके जानने वाले को अरूज़ी कहा जाता है । हालंकि उर्दू ग़ज़ल में बारे में मैं पहले भी कह चुका हूं कि ये तो वास्तव में घ्वनियों को ही खेल है । इसलिये कई लोग जिनको अरूज़ के बारे में ज़रा भी जानकारी नहीं है वे केवल रिदम या लय पर ही ग़ज़ल लिख लेते हैं और अक्सर पूरी तरह से बहर में ही लिख्ते हैं । ऐसा इसलिये क्योंकि ग़ज़ल में तो ध्वनियां ही हैं । अगर आप ताल पकड़ पाओ तो सब हो जाएगा । फिर भी बहर का ज्ञान होना इसलिये ज़रूरी है कि कई बार छोटी छोटी मात्राएं रिदम में आ जाती हैं मगर वास्तव में वैसा होता नहीं है । कई बार हम गा कर पढ़ देते हैं और आलाप में मात्राएं पी जाते हैं । इससे भी दोष ढंक जाता है पर रहता तो है ।
आज हम बात करते हैं रुक्नों की जिनके बारे में हमने पहले चर्चा नहीं की है । रुक्न के बारे में केवल मैंने इतना ही बताया है कि रुक्न मात्राओं के गुच्छे होते हैं । मात्राओं का वो समूह जिसको उच्चारण करते समय एक साथ पढ़ा जाता है उसको रुक्न कहते हैं । ग़जल की बहर निकालने में सबसे मुश्किल काम अगर कुछ है तो वो ये ही है । आप यदि ठीक प्रकार से रुक्न निकाल पाते हैं तो फिर आपके लिये बहर निकालना आसान काम है । मगर बात वही है कि रुक्न निकाले किस प्रकार जायें । मैंने पहले भी कहा है कि जो लोग गाते रहते हैं गुनगुनाते रहते हैं । वे लोग भले ही बिना बहर का ज्ञान हुए ग़ज़ल लिखें लेकिन उनकी ग़ज़लें बहर में ही होती हैं । ऐसा इसलिये क्योंकि गाने वाले को पता होता है कि मीटर क्या है । दरअसल में सीधे शब्दों में कहें तो जो मीटर है वही बहर भी है । जो मीटर में नहीं है वो बहर में भी नहीं हो सकता है । दोनों में एक फर्क ये है कि मीटर पर लिखने वाला एकाध ग़लती कर सकता है लेकिन जो बहर पर लिख रहा है उसके साथ ग़लती होने की संभावना ही नहीं होती है । तिस पर भी ये कि यदि बहर का ज्ञान होने के साथ संगीत का भी ज्ञान हो तो फिर तो सोने पर सुहागे वाली ही बात हो जाती है । जैसे मैं अपनी ही कहूं कि मैंने भले ही संगीत सीखा नहीं हो लेकिन मैं कॉलेज के दिनों में एक आर्केस्ट्रा में गाया भी करता था और कांगो तथा जैज़ ड्रम भी बजाया करता था । बाद में जब ग़ज़ल से जुड़ा तो मेरे लिये काम कुछ आसान था । क्योंकि रिदम मेरे अंदर पहले से था और अब तो केवल बहर को ही समझना था । रिदम पर लिखने के साथ उसको तोलना भी ज़रूरी है और ये तोल ही वज़्न कहलाती है । शे'र को बहर की तराज़ू में तौलना यानि कि उसका वज़्न करना है इसीको तक़तीई करना भी कहते हैं इसको आप सीधी भाषा में तख्ती करना भी कह सकते हैं । मतलब अपने शे'रों को बहर के तराज़ू पर एक एक कर के कसना और फिर उनमें दोष निकालना । ध्यान दें दोष दो प्रकार का होता है एक तो व्याकरण को दोष और दूसरा विचारों का दोष । व्याकरण का दोष तो अरूज के ज्ञान से चला जाता हे पर विचारों के लिये तो वही बात है करत करत अभ्यास .....।
बात हो रही थी रुक्नों की कि किस प्रकार रुक्नों को तोड़ा जाता है । पिछली कक्षा में भी मैंने कुछ ऐसी ही बात की थी । मगर आज हम उस अध्याय को विस्तार देने की कोशिश करते हैं । रुक्न का बहुवचन अरकान होता है । गज़ल में अगर मात्रा निकालना आ गया तो फि़र समझो काफी काम हो गया है । मैंने पहले भी कहा है कि ग़ज़ल में मात्राओं से मिलकर बनते हैं रुक्न रुक्न से मिलकर बनते हैं मिसरे मिसरों से मिलकर बनता है शे'र और शे'रों से मिलकर बनती है हमारी नाज़ुक सी ग़ज़ल । तो मिल मिलाकर खेल अक्षरों और शब्दों का ही है । ध्यान दें मात्रा, मात्रा से रुक्न, रुक्न से मिसरे, मिसरों से शे'र और शे'रों से ग़ज़ल । अब इसमें अगर पूर्णता लानी है तो समझ लें कि आपको उस जगह पर शुद्धत लानी होगी जहां से ग़ज़ल की शुरुअत होती है । अर्थात मात्राओं से । मात्रा लघु या दीर्घ जो भी हो उसको उसी क्रम में आना है । कई लोगों के मेल मिले हैं और कई लोग मात्रा गिनना जानना चाहते हैं । मेरा अनुरोध है कि पहले हम ग़ज़ल के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें उसके बाद हम तकतीई करना सीखेंगें तो आसानी होगी । एक दो कक्षाओं में हम और देखेंगें कि ग़ज़ल का वज़्न किस प्रकार निर्धारित होता है और उसके बाद हम खुद ही वज्न निकालना प्रारंभ करेंगें ।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बढिया जानकारी, शुक्रिया।
इस जानकारी के लिए धन्यवाद गुरू जी
मुझे पुराने गीतो और गजलो को सुनने का शौक है और मै सुनता भी हूँ पर रूकन ढूढने मे सफलता अभी तक नही मिली, कई बार एक ही गजल को जब दो अलग अलग गायक गाते है तो लय ही बदल जाती है तब समझ नही आता कि कौन सी गज़ल सुनकर रूकन तय करूँ
"मेरा अनुरोध है कि पहले हम ग़ज़ल के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें उसके बाद हम तकतीई करना सीखेंगें "
अनुरोध नहीं आदेश करें प्रभु...तकतीअ सीख ली तो समझो गंगा नहा लिए...इंतज़ार है...
नीरज
गुरू जी नमस्कार
शुक्रिया, कक्षाएं दोबारा से शुरू करने के लिये। बस एक अनुरोध है, अगर वह सम्भव हो तो। जैसे ही यहाँ कोई कक्षा का पोस्ट हो, तो मुझे इ-मेल आ जाये, तो बहुत बढ़िया होगा। मैं भूलकर भी कक्षा को मिस्स नही करना चाहता। इस लिये ऐसा कह रहा हूँ
बाकी आपकी अगली कक्षा का इंतज़ार रहेगा
धन्यवाद।
आपका शिष्य
योगेश गाँधी
योगेश जी,
इस पृष्ठ के दायीं ओर ऊपर के हिस्से में देखें, लिखा मिलेगा 'स्थाई पाठक बनें', उसमें अपनी ईमेल आईडी डाल दें, आपको रोज़ के सभी पोस्ट मिलने लगेंगे।
कुछ कुछ समझ आया.. कभी विस्तार से पढ़ूँगा...
शुक्रिया गुरूजी
खुशी हुयी इस ज्ञान को प्राप्त कर.
अगली कक्षा का इंतज़ार रहेगा
आभार !!!
गुरूजी !!
आज कुछ ग़ज़ल की पिछली कक्षाओ को दोहराया
एक उच्च कोटि के अध्यापक की तरह बहुत ही इमानदारी और लगन से आप ग़ज़ल लिखना
सीखा रहे हैं
निस्स्संदेह बहुत ही सुंदर प्रयास
सादर !!!!
गजल संबन्धी उपयोगी, व्यावहारिक, सारगर्भित जानकार देने के लिए धन्यवाद.
बहुत अच्छी कक्षाएं चलाई हैं आपने. बधाई!
bahut bahut dhanyavad!
very knowledgeable ,thank you
now present in your city
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