१.
आँखें निकालकर
खोंस डाली हैं सीने में मैने।
क्यों कहते हो कि दिल धड़कता है?
२.
खुरदरा चरित्र
हर जगह चिपक जाता है।
दोष मेरा नहीं, खुरदरी दुनिया का है।
३.
उनके हवाले
मेरे ज़ख्मों की तिमारदारी है।
हरे ज़ख्म नासूर बने अच्छे लगते हैं।
४.
बुरी बातों से
बद्दुआ नहीं लगती।
गैरों के सिम्त तेरी दुआ न हो तो बात बने।
५.
इशारों की मियादी
बुनियादी समस्या है
तुम्हारी।
तुमने ऊँगलियों में आँखें टाँक रखी है,
और आँखों की सीपी में
बोलते नगीने जब्त हैं
क्यों कहती हो कि
तुम कुछ कहती नहीं,
इशारों से पहले हीं शब्द "लीक" हो जाते हैं
तुम्हारे!!!!!!!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बिल्कुल भी ऐसी गलती नहीं करूंगा के किसी एक की तारीफ़ कर के बाकी सब का गुनाहगार हो जाऊं.
क्षणिका नहीं ...क्षण क्षण कर पिरोया एक एक हर्फ़ लाजवाब है ...........
इसके अलावा कुछ नहीं है कहने को.....
बहुत अच्छा ..............
CHALO THIK HAI. NARAYAN NARAYN
तन्हा जी, कहाँ से पिटारा खोला है
क्षणिकाओं का शब्द शब्द बोला है
एक एक क्षणिका गाम्भीर्य है..
बुरी बातों से
बद्दुआ नहीं लगती।
गैरों के सिम्त तेरी दुआ न हो तो बात बने।
बहुत दिनों बाद तुम्हारा लिखा पढ़ा बहुत बढिया लगी यह ...
tanha bhai,
इशारों से पहले हीं शब्द "लीक" हो जाते हैं
sare bimb naye hain.
No 1 aur 5 kafi achche hain.
2 aur achchi ho sakti thi.
बोलती हुए क्षणिका
अच्छी लगी
अच्छा लिखा है।
तन्हा जी,
आपकी रचनाओं में हमेशा एक दर्द छुपा रहता है, ये क्षणिकाएं भी उस दर्द से अछूती नहीं हैं . इस दर्द के साथ पढ़ना भी सुखद है :).
सादर
^^पूजा अनिल
उनके हवाले
मेरे ज़ख्मों की तिमारदारी है।
हरे ज़ख्म नासूर बने अच्छे लगते हैं।
क्या खूब लिखा है
सादर
रचना
"और आँखों की सीपी में
बोलते नगीने जब्त हैं"
...
"इशारों से पहले हीं शब्द "लीक" हो जाते हैं"
kaash main bhi nagin ki bhasha samajh pata, phir ishaaron ki taak mein har raat jagna na padta !!
tanha bhai,ek ek lafj gahre tak utar gaye.mast ho mood.
ALOK SINGH "SAHIL"
deepak ..bahut khub..
--
randhir kumar
आपकी क्षणिकाएँ मशीन गन की तरह चलीं और दिल की कत्ल कर दिया
आपकी क्षणिकाएँ मशीन गन की तरह चलीं और दिल की कत्ल कर दिया
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