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Monday, December 15, 2008

बुधवार 17 दिसम्बर से सीखिए 'दोहा' का छंदज्ञान


आज हमें यह बताते हुए अत्यंत खुशी हो रही है कि 'ग़ज़ल लिखना कैसे सीखें' पाठ के साथ-साथ हिन्द-युग्म अब 'दोहा और इसका छंद व्यवहार' पर भी पाठों की शृंखला शुरू कर रहा है।

जिस प्रकार से बहुत बड़े पाठक वर्ग ने यूनिग़ज़लप्रशिक्षक पंकज सुबीर की कक्षाओं को गंभीरता से लिया, उसने हमें इस दिशा कुछ और प्रयास करने की हिम्मद दी।

आचार्य संजीव सलिल
दोहा का इतिहास ग़ज़ल के इतिहास से भी पुराना है। कहा जाता है कि भारत के बहुत से युद्धों में दोहों ने अहम भूमिका निभाई है। भारत में ऐसा कौन होगा जिसे कोई न कोई दोहा न याद हो। कबीर के कुछ दोहे तो लोगों-लोगों की जुबान पर हैं। हम यूँ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'दोहा' भारतीय जन मानस में मुहावरों और लोकोक्तियों की तरह रचा-बसा है।

कविता के दो शृंगारिक तत्व माने गये हैं। बाह्य तथा आंतरिक। बाह्य सौंदर्य में एक नाम 'छंद' का भी आता है। कहते हैं कि प्रमाणित छंद में लिखे पद्यों को पढ़ने और गाने से विशेष तरंगे निष्कासित होती हैं, जिनमें वातावरण को बदलने की क्षमता होती है।

हिन्द-युग्म छंद की नई-पुरानी किसी भी विधा को अस्वीकारा नहीं है। बल्कि सभी पर सार्थक चर्चा करना चाहता है। बेहतर से बेहतर जानकारी अपने पाठकों को मुहैया कराना चाहता है।

जबकि 'दोहा' इतना महत्वपूर्ण छंद है, तो क्यों ना इतिहास घूम आया जाये। क्या पता आप भी सीखकर कोई ऐसा दोहा रच दें, जिससे दुनिया से आतंकवाद मिट जाये। आतंकवादियों का मन बदल जाये।

खैर॰॰॰ यह जिम्मा हम छंदशास्त्री आचार्य संजीव सलिल को दे रहे हैं। इनका परिचय यहाँ देखें।

बुधवार १७ दिसम्बर २००८ से प्रत्येक बुधवार और शनिवार को दोहा की कक्षाएँ चलेंगी। हम 'दोहा' की कक्षाएँ भी ग़ज़ल की कक्षाओं की तरह ही चलायेंगे। यानी बुधवार को यूनिदोहाप्रशिक्षक आचार्य संजीव सलिल 'दोहा' के बारे में बतायेंगे। पाठक अपनी शंकाएँ शुक्रवार तक संबंधित पाठ पर कमेंट (टिप्पणी) के रूप में लिखेंगे, जिसका समाधान शनिवार की कक्षा में किया जायेगा।

तो भाग लीजिए हमारी इस विशेष ई-पाठशाला में और सीखिए छंदज्ञान।

ज़रूर बतायें कि आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा?

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Nikhil का कहना है कि -

प्रतीक्षा रहेगी....
निखिल

manu का कहना है कि -

यदि आप ना आते तो मैं शैलेश जी को कहने की सोच रहा था .........

"अर्श" का कहना है कि -

बहोत ही बेशब्री से इंतज़ार रहेगा इसके लिए मैं नियमित रूप से पाठशाला में उपस्थित रहूँगा ..

आभार
अर्श

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मैंने दोहे कभी नहीं लिखे.... अब समझ में आयेगा आखिर दोहा होता क्या है...
धन्यवाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

'सलिल' सिखाने को चले, दोहा दोहन आज ।
हम भी आतुर छन्द के, खुलें घुंघटिया राज ॥

इंतजार अब हो रहा, कब आये शनिवार ।
कक्षाओं में बैठने को हम भी तैयार ॥

विश्व दीपक का कहना है कि -

कक्षा का इंतज़ार रहेगा।
छंद और दोहे तो अपनी भारतीय संस्कृति के प्रतिबिंब हैं, इन्हें सीखने और लिखने में जो मज़ा है, वह और कहीं नहीं है।
सलिल जी को अग्रिम धन्यवाद और युग्म को बधाईयाँ।
-तन्हा

Pooja Anil का कहना है कि -

बचपन से दोहे, पढ़ते सुनते रहे हैं, अब दोहे लिखने का ज्ञान भी मिलेगा,यह अवसर देने के लिए हिंद युग्म का आभार.

कक्षा का इंतज़ार रहेगा.
^^पूजा अनिल

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