साहित्य समय का दस्तावेज होता है। हिन्द-युग्म समय का यही दस्तावेजीकरण पिछले 32 महीनों से इंटरनेट पर कर रहा है। सहेजने की इस प्रक्रिया में हमें कई तरीकों से और कई माध्यमों से सहयोग मिला। साहित्य-प्रस्फुटन का एक मार्ग हमने यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता को भी चुना, जिसका आयोजन जनवरी 2007 से अनवरत प्रत्येक माह हो रहा है।
इस प्रतियोगिता के माध्यम से हमारा उद्देश्य भाषा-संरक्षण के नव-उपायों के प्रयोग को प्रोत्साहित करना तो था ही, साथ ही साथ नव रचनाधर्मिता और पठनीयता का समर्थन भी था। एक-एक करके इस प्रयास-गुच्छ में 28 पुष्षों का पल्लवन हुआ। अभी 3 दिन पहले ही हमने यह घोषणा कि इस प्रतियोगिता के भावी यूनिकवियों को रु 1000 के मूल्य तक की पुस्तकें और शेष विजेताओं को गीतकार राकेश खंडेलवाल के काव्य-पुस्तक की एक-एक प्रति दी जायेगी।
आज हम काव्य-उपवन के 28वें प्रकोष्ठ के मालियों और भ्रमरों की बात करने जा रहे हैं। अप्रैल महीने की प्रतियोगिता में कुल 40 कविता-प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। निर्णय दो चरणों में कराया गया। प्रत्येक चरण में तीन जजों ने भाग लिया। पहले चरण से कुल 22 कविताएँ दूसरे चरण के निर्णय के लिए भेजी गईं। यह स्पष्ट कर देना भी उचिता जान पड़ता है कि किसी भी निर्णयकर्ता को न तो यह ज्ञात होता है कि शेष निर्णयकर्ता कौन-कौन हैं और न ही यह कि कौन सी रचना का कौन रचनाकार। पहले चरण के तीन निर्णायकों द्वारा मिले अंकों का औसत दूसरे चरण के निर्णायकों के औसत में भी जुड़ता है। मतलब यूनिकविता को कम से कम 6 जजों की कसौटी पर खरा उतरना होता है।
इस बार यह स्थान बनाया है मुकेश कुमार तिवारी की कविता 'सिमटते आँगन.......बंटती दहलीज' ने। मुकेश कुमार तिवारी पिछले 1-2 महीनों से हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। मार्च माह की प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया था।
यूनिकवि- मुकेश कुमार तिवारी
कवि का जन्म इंदौर (म॰प्र॰) के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ, जहाँ ज़रुरतें जेब से बड़ी और समझदारी उम्र से ज्यादा बड़ी होती है और उस पर चार भाई-बहनों में सबसे बड़ा होने के नाते कुछ ज्यादा ही समझदारी का बोझ ढोते जवान हो गये। कवि ने करीब से जिन्दगी के लगभग सभी रंगों में देखा, जहाँ अभावों ने सदा हौसला बढाया कि हासिल करने को और भी मुकाम हैं सा सबक हर कदम पर याद रहा। कविता इन्हें लगातार उर्जा देती है और अपनी मुश्किलों से जूझने का हौसला भी। बी.एस.सी., बी.ई.(मेकेनिकल), ए.आई.सी.डब्ल्यू.ए.(इण्टर) इत्यादि की शिक्षा प्राप्त मुकेश फिलहाल काईनेटिक मोटर कम्पनी लिमिटेड में असिस्टेंट जनरल मैनेजर (परचेस) कार्यरत हैं। इनकी रचनाएँ साहित्य-कुंज, स्वर्गविभा इत्यादि अंतरजालीय पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। ईमेल संपर्क- mukuti@gmail.com ; mukeshtiwari@webdunia.com
पुरस्कृत कविता- सिमटते आँगन.......बंटती दहलीज
बच्चे,
पैदा होने के बाद की
खुशियाँ खत्म होते ही
बदलने लगते हैं जिम्मेदारियों में
और आज-कल बांटे जाने लगते हैं तेरे-मेरे हिस्से में
पहले हमारे जमाने में
या उससे भी पहले जब आदमी सीख चुका था
आग, पानी और हवा में भेद
और रोटी कैसे पैदा करना है
तब भी बच्चे अकस्मात ही आ जाते थे
जिन्दगी में
और यूँ ही पाले भी जाते थे
जब,
बच्चे अपने आकार और वजन से
गोद में भारी लगने लगे तो
उतार दिये जाते थे जमीन पर
चलना सीखने के लिये
तब,
घरों में जमीन थी / बड़ा सा आँगन था
और छोटे दरवाजों पर ऊँची दहलीज थी
इतना सब था कि
बच्चा,
बस फुदकता रहता था जमीन पर
अपने से बाहर कहीं जा ही नही सकता था
हम उसे हमारी तय हदों से
ज्यादा चलना सिखाना ही नहीं चाहते थे
फिर,
घरों में लोग बदलने लगे भीड़ में
आँगन सिमटे / दीवारें ऊँची होने लगीं
और दहलीज इतने हिस्सों में बंटी कि
नहीं बचा पाई अस्तित्व
तब बच्चे के पैर में बांध कर डोरी
हमने तय कर लिया कि कितना चलना है
और कहाँ तक
इस जमाने में,
घर को ही जमीन नसीब नहीं होती
हवा में बने होते हैं इसलिये शायद
रिश्तों में भी गहराइयाँ नहीं रहीं
अब,
जो बच्चे हम देख रहे हैं
किसी तय प्लान के मुताबिक ही पैदा हुये हैं
यह तय है कि
कितनी देर किसे गोद में लेना है/
किसे खेलना है बच्चे के साथ कब तक/
कौन छोड़ेगा क्रेच में कौन लेकर आयेगा/
तब से अब के,
बीच इतना सच तो है कि
हम ने कभी नहीं चाहा
बच्चे खुद सीखें चलना/
चुनें राहें / तय करें अपनी मंजिलें/
देखे दुनिया अपनी नजरों से
हमने, उसे
दहलीज से ज्यादा ऊँचा हौंसला दिया ही नहीं कभी
रोशनदानों से जो दिखता है वही दुनिया है सिखाया है
उसके पैरों में डाली हैं डोरियां कठपुतली सा नचाया है
उसकी आँखों पर थोपा है नजरिया अपना
फटकारों के डर से अपने सच की रस्सी पर चलाया है
मुझे,
लगता है कि
बच्चे अगर नहीं कर सकते
वो सब,
जो करना चाहते है अपने तरीके से
तो हमें पैदा करना चाहिये
नन्हें बूढ़े,
और छोड़ देना चाहिये उन्हें उनके हाल पर
प्रथम चरण मिला स्थान- बारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें इनाम देंगे, उनके नाम हैं-
सत्यप्रसन्न
प्रदीप वर्मा
दिबेन
अनुराधा शर्मा
पुरु मालव
आलोक कुमार उपाध्याय 'नज़र इलाहाबादी'
रवि कांत ’अनमोल’
मनु बेतखल्लुस
अमित साहू
नोट- दूसरे से पाँचवें स्थान के कवियों को अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक-एक प्रति भेंट की जायेगी। छठवें से 10वें स्थान के कवियों को विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' के व्यंग्य-संग्रह 'कौआ कान ले गया' की एक-एक प्रति भेंट की जायेगी।
इनके अतिरिक्त हम निम्नलिखित दो कवियों की कविताएँ भी प्रकाशित करेंगे-
तरूण सोनी
प्रदीप कुमार पाण्डेय
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 मई 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
पाठकों की बात करें तो एक पाठक ने हमें जितना पढ़ा, उतना शायद ही किसी और ने पढ़ा होगा। कम से कम एक महीने के अंदर इतनी सारी बातें कमेंट में पक्के तौर पर किसी और पाठक नहीं कही। हमारे स्थाई पाठक तो समझ ही गये होंगे कि हम किसकी चर्चा कर रहे हैं। जी हाँ वे हैं शन्नो अग्रवाल
यूनिपाठिका- शन्नो अग्रवाल
जन्म तिथि- 9 दिसम्बर
शिक्षा- M.A. (अंग्रेजी साहित्य में)
रुचि- पढना और शब्दों के संग खेलकर काल्पनिक चीज़ें लिखना.
साथ- आजकल तो हिन्दयुग्म के ही साथ अधिक बिताती हैं। जब भी समय मिलता है। इस नयी दुनिया से जब से पहचान हुई है तब से इनकी कल्पना को और भी पर लग गये है। और उसे शब्दों में उकेर कर उड़ान भरती रहती हैं जब-तब। या फिर यह कह सकते हैं कि जैसे बंधे पानी को प्रवाह मिल गया हो।
इनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जिला पीलीभीत के पास एक छोटे से क़स्बा पूरनपुर में हुआ। परिवार में सभी की लाडली थीं। प्यार से भर-पूर बचपन बीता। पढ़ने के विषय में माता-पिता सभी की तरफ से बहुत प्रोत्साहन मिला। कहानियां-कवितायेँ पढ़ने का बहुत शौक था, इतना कि हर दिन एक कहानी की किताब पढ़े बिना बेचैनी चरम सीमा पर पहुँच जाती थी। घर में मेरे लिए काफी किताबें लायी जाती थीं। शिक्षा आदि प्राप्त करते हुए जीवन के वह अनमोल दिन पता नहीं कैसे गुजर गए और फिर एक दिन शादी हुई और परिवार से दूर होकर विदेश में आना पड़ा। अपने को एक नए रास्ते पर पाया। जीवन ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि हिंदी-साहित्य से दूर हो गयीं। अब इतने दिनों बाद कुछ ऐसा संयोग हुआ कि हिन्दयुग्म के संपर्क में आकर जीवन में कुछ नयी लहरियां उठने लगीं।
पुरस्कार और सम्मान- अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।
इनके अतिरिक्त मोहम्मद अहसन ने भी हिन्द-युग्म को खूब पढ़ा। हालाँकि इनकी टिप्पणियाँ रोमन-हिन्दी में अधिक थीं, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि निकट भविष्य में इनकी भी सभी टिप्पणियाँ देवनागरी-हिन्दी में आने लगेंगी।
संगीता पुरी हिन्द-युग्म की हरेक गतिविधि पर नज़र रखती हैं और बहुत छोटे से वाक्य में आलोचना-प्रोत्साहन करती-रहती हैं।
हम इन दोनों पाठको को भी मसि-कागद की ओर से पुस्तकें भेंट करेंगे।
जो पाठक लगातार पढ़ रहे हैं और यूनिपाठक का पुरस्कार जीत चुके हैं वे वार्षिक हिन्द-युग्म पाठक सम्मान के प्रतिभागी बनते जा रहे हैं। इसलिए पढ़ने में कोई कसर न छोड़ें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें।
मनोज 'भावुक'
संजीव वर्मा 'सलिल'
अलका मिश्रा
कवि दीपेन्द्र
राजीव रंजन मिश्र
डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
अवनीश तिवारी
मुहम्मद अहसन
महेश द्विवेदी
केशव कुमार कर्ण
कुलदीप यादव
सोनिया उपाध्याय
संदीप कुमार
अभिषेक ताम्रकार
सुरिन्दर रत्ती
कमलप्रीत सिंह
अमित श्रीवास्तव
बलराज
डॉ॰ अनिल चड्डा
सुधीर कुमार मेश्राम
हिमांशु शेखर त्रिपाठी 'चाँद'
मंजू गुप्ता
विद्या सागर आचार्य
अम्बरीष श्रीवास्तव
आलोक गौड़
मुकेश सोनी
तपन शर्मा
अजय कुमार
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
मनोज जी,
आपकी कविता तक पहुचने से पहले आपके परिचय से गुजरा...काफी कुछ समझ अ गया था की कविता में वो बात जरुर देखने को मिलेगी जो आपके परिचय में दिखी...
बेहतरीन कविता...बधाई स्वीकार करें...
आलोक सिंह "साहिल"
शन्नो जी,
एक अच्छे पाठक के तौरपर जिस गर्मजोशी का परिचय आपने दिया है,उसकी जितनी भी तारीफ की जाये कम है...यूँ ही अपने आर्शीवाद से कवी साथियों को प्रोत्साहित करती रहे...
हार्दिक शुभकामनाएं...
आलोक सिंह "साहिल"
अप्रैल महीने की प्रतियोगिता का परिणाम जानकर खुशी हुई .. बहुत बहुत धन्यवाद शैलेश जी .. शायद इसलिए ही आपने मेरा पता लिया था।
Priya Sri mukesh ji;
Unikavi April 09 mr pratham sthan ke liye hardik badhayee.Bahut hi shashakt aur kasi hui rachna hai. Sadhuvad avam shubhakamnayen.
"कविता पहले पायेदान पर काबिज़ हुई, बहुत-बहुत मुबराक़ मुकेश जी"
सिमटते आँगन......बंटती देहलीज़
मुकेश जी,
सच कहा आपने आँगन सिमट गए हैं और देहलीजें बंट गई हैं. और ये त्रासदी इसलिए घाट रही है क्यूंकि हम खुद भी अपने-आप में ना जाने कितने-कितने हिस्सों में बँट गए हैं, टूट गए हैं और इस पर गलतफ़हमी ये कि इस टूटन को हम अपनी आज़ादी मान लेते हैं.
शायद इसीलिए टूटने और बँटने का ये सिलसिला जारी है. अफ़सोस इसके थमने के आसार भी नज़र नहीं आते !!!
दिनेश "दर्द", उज्जैन
यूनी कवि को बधाई,,,,,
और शन्नो जी को तो इस बार यूनिपाठिका होना ही था,,,,,,
उन्हें देख कर और उनके बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा,,,,,,
वे ना केवल युग्म के हर मंच की ,,,बल्कि मैं कहना चाहूंगा के " दोहा-कक्षा" की एक स्पेशल छात्रा हैं,,,,, आपसे प्रेरित होकर जो हम लोग लिखते हैं ,,तो बड़ा भला लगता है,,,,
मोनिटर जी को पुनः बधाई,,,,
ये ,,,, कबिता है का लेख जो पहले कर्मांक पर है , बोलो
नया कवि
दिल्ली
सबसे पहले मैं हिन्दयुग्म को व आप सभी लोगों को बहुत धन्यबाद और आभार कहना चाहती हूँ जिन्होंने मुझे यूनीपाठिका के नाम से सम्मानित किया. मुझे कभी नहीं लगा था कि कभी ऐसा भी होगा, और किसी को मेरे लिखे में कोई रूचि भी होगी. ख़ुशी के मारे अब भी मन में गुदगुदी हो रही है. यूनिकवि मुकेश जी को, संगीता जी को भी बधाई.
और आलोक जी, मनु जी,
आप दोनों ने जो कहा है मेरे बारे में उसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा. लेकिन आप लोगों में जो प्रतिभा है वह मुझमें नहीं. आपकी विनम्रता ही तो आप सबका इतना बड़ा गुण है.
मनु जी,
हिन्दयुग्म के बिना और आप सबको बिना जाने मैं अपने को कभी इतना पहचान ना पाती. मुझसे ही मेरी पहचान कराने का श्रेय आप सभी को जाता है पहले. आप सबने ही तो मुझे प्रेरणा दी है. सभी को इस बात का बहुत धन्यबाद और मेरा आभार.
आप सभी को भी मेरी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं!
हिन्द-युग्म परिवार और सम्स्त ब्लॉगर्स साथियों,
मैं दिल की गहराईयों से सभी पढने, चाहने वालों का शुक्र गुजार हूँ कि आप सभी के प्यार और प्रोत्साहन ने मुझ अकिंचन को यूनि-कवि बना दिया।
मैं हिन्द-युग्म के नियंत्रक, सभी सम्माननीय निर्णायकों का भी शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मेरे लिखे को इस काबिल समझा और मेरा मान बढाया।
अंत में एक बार सभी ब्लॉगर्स साथियों का धन्यवाद कि उनकी मूल्यवान टिप्पणियों और प्रोत्साहन के बिना मैं इस सफलता को हांसिल नही कर सकता था।
धन्यवाद,
मुकेश कुमार तिवारी
मनोज जी व शन्नो जी को बहुत बधाई !!
mukesh ji
gr8 & congr8.....aaj kai dino ke bad net dekha... aur sabase pahale aapko dekha... sahaj, laral aur soumya vyaktitva... phir padhi aapki kavita... na...na...na... kavyaroop me jivan darshan... jindagi ki vartman sachai ko aapne kalam ki nok par rakha... ukera... wah... badalte parivesh ki sahaj abhivyakti... itane lahaj roop me... aapki lekhani sanso ke saath satat chalati rahe... dua... punah badhai...
kuchh apani baat... maine apani gazal ke azal par shandar tips dekhe... achha laga... ek sachai bata dun... mai computer typing kam janata hoon... aur nukta kaise lagata hai comp. me ye mujhe nahi malum... mera 'azal' se aashay shrishti ki utpatti se hai... meri galati ki apni gazal ke sath meaning nahi de paya ... aur nukta kaise lagate hain ye pata nahi... resp. shailesh ji kshamayachana... jinhone coments diye wo mera pyaaaaaaaar... badhai di un sabako antarman se aabhar...
suresh
email id - sureshti163@gmail.com
मुकेश जी को बधाई ,सच लिखा पर गद्य अधिक है ,हम ज्यादा कुछ तो लिख नहीं पाते पर फिर भी ,सच को बयान करती हुई कुछ अधिक ही अकविता लगी |
शन्नो बेटा ,हाय राम ,
पर हम तो अब भी आपको बेटा ही कहेंगे अपनी पहेलियों की कक्षा में ,यूनिपाठिका बन्ने पर ढेरों बधाई ,हिन्दयुग्म कुछ लोगों को एक परिवार की तरह लगता है ,और आपके आने से इस परिवार का अपनापन और भी बढ़ गया है |
हाय राम! कैसी बातें कर रहीं हैं आप मैडम नीलम जी, आप तो हमेशा ही मेरे लिए वही रहेंगी और मैं आपके लिए भी वही हूँ जो अब तक थी. जब तक वह शैतान बच्चा सुमीत न पकड़ में आ जाये. और फिर सबसे पहले तो मुझे अपनापन चाहिए और बातें तो बाद में आती हैं. सबके अपनेपन से ही हिम्मत और कभी-कभी हिमाकत भी कर सकी वह सब कुछ लिखने की जो मैंने लिखा अब तक. (पता नहीं किसी को कुछ समझ में भी आ रहा है कि नहीं कि मैं क्या कह रही हूँ या फिर मैं सबको कन्फयूज कर रही हूँ, वैसे नीलम जी आप और मनु जी तो समझ ही रहे होंगे ना कि मेरा क्या मतलब है कहने का). हिन्दयुग्म परिवार के सभी सदस्यों के साथ व प्यार के लिए बहुत शुक्रिया.
एक सधे हुए लेख को यूनिकविता सम्मान....???????? , उदारवाद के प्रारम्भ के लिए हिन्दयुग्म को बधाई ।
शन्नो जी आप जितनी मेहनत टिप्पणी लिखने में करती हैं तो आपका सम्मान तो पक्का था ।
बहुत-बहुत बधाई ।
अरे सीमा जी, आप? बहुत धन्यबाद मुझे बधाई देने के लिए. यह तो आप सबने ही मिलकर मुझे यह सम्मान दिया है वरना मैं किस काबिल. हिन्दयुग्म के परिवार ने मुझे भी अपने में जगह देकर इतना प्यार और हौसला दिया कि जितना कहूं उतना कम होगा. .
आप सबके सामने मैं कुछ भी तो नहीं. अगर आपकी बात करूं तो कहना होगा कि एक हीरे को अपनी पहचान खुद नहीं होती बल्कि दूसरे उसकी चमक को पहचानते हैं. आप कितना कुछ करती आई हैं यह सभी को विदित होगा.
आप को भी ढेरों शुभकामनाएं!
हर विजेता को मेरी शुभकामनायें.......साहित्य का नाम इसी तरह
रौशन रहे
शन्नो जी! हैं नायिका, दर्शक हैं हम-आप.
अपनेपन की छोड़तीं, आप सभी पर छाप.
दोहा और पहेलियाँ, दोनों हर्षित आज.
शन्नो जी के शीश पर, सजा देखकर ताज.
दोहा-कुण्डली-सृजन की, गति होगी अब तेज.
'सलिल' बजाकर तालियाँ रखना इन्हें सहेज..
यूनिकवि को बधाई
सिमटते आँगन......बंटती देहलीज़..यूनिकवि बनने की बधाई मुकेश जी .. बहुत पसंद आई आपकी यह कविता
बाकी सभी जीतने वालों को भी बधाई
मुकेश जी आप को बहुत बहुत बधाई
शन्नो जी आप का लिखा बहुत ही रोचक और अच्छा होता है .आप को पढ़ के बस दिल झूम झूम जाता है बधाई सदा यूँ हो लिखती रहें
रचना
मुकेश कुमार तिवारीजी को यूनिकवि चयनित होने पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ |भौतिकवादिता के इस युग में टूटते हुए रिश्तों और बदलते हुए सामाजिक परिदृश्य का चित्रण करती हुई एक बहुत ही सुंदर कविता...
'सलिल जी', सेहर जी, रचना जी व अन्य सभी लोगों को मुझे अपना प्यार व बधाई देने के लिए हार्दिक धन्यबाद.
मन मेरा शीतल हुआ, पा हिन्दयुग्म की छांव
उठकर फिर मैं चल पड़ी, अब ना रुकते पांव
अब ना रुकते पांव, है समझा जिसको ताज
वह नेह 'सलिल' का, पा धन्य हो गयी आज
दोहे सीख आपसे, हुई शन्नो बहुत मगन
नेह की बारिश से, खिल उठा मुरझाया मन.
'सलिल जी', सेहर जी, रचना जी व अन्य सभी लोगों को मुझे अपना प्यार व बधाई देने के लिए हार्दिक धन्यबाद.
मन मेरा शीतल हुआ, पा हिन्दयुग्म की छांव
उठकर फिर मैं चल पड़ी, अब ना रुकते पांव
अब ना रुकते पांव, है समझा जिसको ताज
वह नेह 'सलिल' का, पा धन्य हो गयी आज
दोहे सीख आपसे, हुई शन्नो बहुत मगन
नेह की बारिश से, खिल उठा मुरझाया मन.
तिवारी जी रचनाएँ ,सरल और सुबोध हैं /मानव की मानसिक पीडा का दर्शन कराती रचनाये इनकी होती हैंकिन परिस्थितियों ;में मानव मष्तिष्क में क्या विचार उत्पन्नं होते हैं या हो सकते हैं ,का ,इनकी रचनाएँ सजीवचित्रण करती है ,इन्हें मानव मस्तिष्क का चितेरा कहा जा सकता हैइनकी रचनाएँ अनेकार्थी और बहु आयामी होती हैं /आपका साहित्यिक योग सराहनीय है
ऐसे रचनाधर्मी का सम्मान किये जाने पर हिंदी युग्म को धन्यवाद ,तिवारी जी को बधाई
एक और बात -इनकी रचनाओं से कभी कभी मुझे ऐसा प्रतीत होता है किसाहित्यकार जीवन का प्रति निष्ठावान होते हुए भी अपने प्रति अत्यंत निरपेक्ष है
भविष्य में कोई समानधर्मा होगा जो इनका साहित्य;समझेगाइनका साहित्य दूसरों तक कब पहुंचेगा ,यह तो तय नहीं ,लेकिन पहुंचेगा यह विश्वास है
प्रिय भाई बेहतर भाव और कथ्य के लिए बधाई। सभी पुरस्कृत कवियों को बधाई। अब जिम्मेदारी बढ़ गयी है। ध्यान रखें। लगे रहो मुन्ना भाई। प्रदीप
मुकेश जी ! की कविता बहुत प्रभावशाली है.....बहुत अच्छी, सहज और विषय भी जीवित उतना समसामयिक.....आपने पौध की जड़ों में लगे कुर्मुए (पौधे की जड़ में लगाने वाला एक कीड़ा) दिखाए और और बिना कहे उपचार भी लेने की चेतावनी देदी और ये सब बड़ी सहजता से.
कविता अच्छी है....मैंने उसमें बहाना महसूस किया.....पर एक बात पूरी सच्चाई से कहना चाहता हूँ. वो ये की जब कविता खत्म हुई तो लगा की जैसे आसमान में ऊँची उरती हुई पतंग की डोर अचानक टूट गई हो मैं उसके साथ......और बहना चाहा था....और कही तय मंजिल की उम्मीद थी...कुछ ऐसे की यहाँ से चला और वहां पहुंचा ....शिकायत नही है कुछ कविता अच्छी है ये वो बाटी जो मैंने महसूस की.....आशा है आप अन्यथा ना लेंगे.......हमे एक अच्छी कविता देने की लिए शुक्रिया. मुकुल उपाध्याय.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)