चांदनी बारूद-सी उतरती है जहन में
आग पहले से लगा रखी है
हरपल धमाकों में गुजरता है
चीथड़ों में ज़िन्दगी उड़ी जाती है
खामोशी तूफान-सी आती है नज़र में
हर सय शिकवा किए जाता है
हर रात कांच के मानिन्द कोई*
न जाने कई बार बिखर जाता है
नशा जज़्बात-सी करामाती है असर में
सरेआम राज़ खोले जाती है
कितने रिश्ते मिट चुके हैं अब तक
न जाने कितने और बाकी हैं?
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
चांदनी बारूद-सी उतरती है जहन में
आग पहले से लगा रखी है
हरपल धमाकों में गुजरता है
चीथड़ों में ज़िन्दगी उड़ी जाती ही
---यह बंद काबिल तारीफ़ है, क्या बात है!
खामोशी तूफान-सी आती है नज़र में
हर सय शिकवा किए जाता है
हर रात कांच के मानिन्द कोई*
न जाने कई बार बिखर जाता है
---सय शब्द समझ नहीं आ रहा ही. क्या यह उर्दू का 'शय' लफ्ज़ है? अगर शय है तो व्याकरण गलत है
नशा जज़्बात-सी करामाती है असर में
सरेआम राज़ खोले जाती है
कितने रिश्ते मिट चुके हैं अब तक
न जाने कितने और बाकी हैं?
--नशा जज़्बात-सी... यह वास्तव में कही टाइपिंग की गलती लगती है. समझ मैं नहीं आया
कुल मिला कर अच्छा प्रयास
दहशतगर्दों का दुनियाँ में फैल गया है जाल।
लेकिन ये हालात बने क्यों उठता यही सवाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
शब्द-अर्थ, लय, भाव, रस,
बिम्ब प्रतीक विधान.
शैली- कविता में 'सलिल',
हो सटीक- दे जान.
-दिव्यनर्मडा.ब्लागस्पाट.कॉम
कई त्रुटियाँ हैं,,
जो की अहसान जी ने बताई हैं,,,,
पर एक सुंदर रचना ,,,
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति हैशुभकामनायें
अभिषेक जी,
रचना में रवानी है, और हर रवानी की अपनी एक कहानी होती है। इसे पढने में कोई रूकावट नही होती है, रचना जुबां से होती हुई दिल में उतर जाती है।
अहसान भाई के ने बिल्कुल ठीक कहा है पहले बंद के बारे में, बहुत ही अच्छा है।
दूसरे बंद में मुझे लगता है कि ’सय’ " शै " होगा यह टाईपोग्राफिकल त्रुटी हो सकतई है। हाँ यदि मेरा अनुमान ठीक है तो ’जाता’ " जाती” हो जायेगा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक संवेदनशील रचना.....
अभिषेक जी,
अच्छा प्रयास. एक भाव-पूर्ण रचना.
आप के लिए मेरी शुभ कामनाएं!
सुन्दर भावपूर्ण मनमोहक रचना...पढ़कर आनंद आया.आभार.
nice poem
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