देखते ही देखते हिन्द-युग्म की यूनिप्रतियोगिता ने अपना 36वाँ पग भी धर लिया और सबसे बड़ी बात यह रही कि अपने हर कदम के साथ इसने पिछले कदमों से कहीं अधिक मजबूत इरादों के साथ सिंहनाद की। पिछले तीन सालों में हिन्द-युग्म की इस प्रतियोगिता में 500 से अधिक कवियों और कई हज़ार पाठकों ने भाग लिया और कम से कम इतना कहा जा सकता है कि हमारे निर्णायकों ने हमेशा ऐसी सम्भावनाओं को चुना जिनमें से कई बहुत परिपक्व कविताएँ लिख रहे हैं।
36वीं यूनिकवि प्रतियोगिता में कुल 52 प्रतिभागियों ने भाग लिया। संख्या के हिसाब से इसकी तुलना नवम्बर 2009 माह में आयोजित यूनिकवि प्रतियोगिता से की जाये तो तो बहुत कम है, लेकिन यदि जजों की मानें तो कविताओं के स्तर के हिसाब दिसम्बर 2009 की यूनिकवि प्रतियोगिता अधिक सफल है।
पहले चरण में 3 निर्णायकों की पसंद के आधार पर कुल 26 कविताओं को दूसरे चरण में जगह दी गई। दूसरे चरण में भी 3 निर्णायकों से रचनाओं पर विचार माँगे गये, जिसके आधार पर हमने राज कुमार शर्मा "राजेशा" की कविता 'नाराज़गी का वृक्ष' को यूनिकविता चुना। इनकी कविता को सभी जजों ने पसंद किया।
राजेशा इससे पहले भी यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं, परंतु पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं।
यूनिकवि- राज कुमार शर्मा 'राजेशा'
जन्म 7 मई 1972 को गुरदासपुर, पंजाब में। सम्पूर्ण स्कूली एवं कॉलेज शिक्षा भोपाल में ही सम्पन्न हुई। उच्च शिक्षा में एम.ए. (हिन्दी साहित्य) और बी.एड. (हिन्दी भाषा शिक्षण) की उपाधि भोपाल विश्वविद्यालय से प्राप्त।
इनके जीवन में काव्य का उदय, इनके जीवन में सोच-विचार की क्षमता आने के साथ ही हुआ। नवीं कक्षा में अध्ययन के समय से ही कविताएँ और शे'र दिमाग में आने लगे। स्कूली किताब-कॉपियों के पिछले पन्नों पर मिली कविताओं पर शिक्षकों और सहपाठियों की प्रेरणास्पद टिप्पणियों से उत्साह बढ़ा। इसी के साथ चित्रकला और मूर्तिकला की ओर भी रूझान रहा। बचपन से ही हिन्दी साहित्य में रूचि थी। स्कूली पाठ्यपुस्तकों से इतर भी पुस्तकालयों और पुरानी साहित्य सामग्री खरीद कर पढ़ते रहे, रूचि बढ़ती रही। पढ़ाई-लिखाई, रोजगार-संघर्ष और जीवन की अन्य गतिविधियों को एक तरफ रखते हुए काव्य और कलायात्रा जारी है।
चूंकि महाविद्यालयीन जीवन से ही कम्प्यूटर संचालन कार्य के सम्पर्क में आ गये इसलिए एमए बीएड की उपाधि उपरांत जीवकोपार्जन की शुरूआत भोपाल से प्रकाशित एक मासिक पत्रिका ओजस्विनी में ‘‘ग्राफिक्स डिजाइनर’’ के रूप में की। विभिन्न निजी विज्ञापन एजेंसियों में कार्य करते हुए बने सम्पर्कों से भोपाल शहर के निवासियों में कुशल ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में जाने जाते हैं।
संप्रति: भोपाल की एक विज्ञापन एजेंसी में वरिष्ठ ग्राफिक्स डिजाइनर के रूप में कार्यरत।
पुरस्कृत कविता- नाराज़गी का वृक्ष
मैं नाराजगी का पेड़ हो गया हूँ
मेरी जड़ें काले अँधेरों में बहुत गहरी गई हैं
मुझे अनन्त गहराइयों तक आते हैं
नाराज होने के बहाने
माँ बाप से नाराज हूँ
कि उन्होंने अच्छे गर्भनिरोधक क्यों नहीं बरते।
शिक्षकों से नाराज हूँ
उन्होंने वो सब नहीं सीखने दिया
जो मैंने कक्षा में बैठकर
बाहर झाँकते हुए सीखना चाहा।
पड़ोसियों से नाराज हूँ
आधे पड़ोसी,
रिश्तेदारों से अच्छे थे
पर हर मकान बदलने के साथ ही
बदल जाते थे पड़ोसी
और
आधे पड़ोसी
इतने कमीने थे
कि हर नए घर के एक ओर
पुराने से कई गुना कमीना
पड़ोसी मिलता था।
दोस्तों से नाराज हूँ
क्योंकि कोई है ही नहीं
दोस्त-सा।
प्रेमिका से नाराज हूँ
कि
उसने मेरे प्रेम निवेदन के बारे में
सोचा तक नहीं
क्योंकि मैं उस तक
पैरों से चलने वाली
साईकिल से पहुँचा था।
बीवी से नाराज हूँ
कि वो फिल्मी हिरोइनों की तरह
एकउम्र की ही क्यों नहीं रहती
हर साल
मेरी जिस्म के बेडोलपन से
दुगनी बेडोलता से
बदल रहा है उसका जिस्म!
और वो होना ही नहीं चाहते
जिस्म के सिवा
कुछ और।
बच्चों से नाराज हूँ
कि वो तीन से पाँच साल की उम्र में ही
क्यों नहीं गाते
- श्रेया घोषाल की तरह सेक्सी गीत
- क्यों नहीं जमाते सचिन की तरह चौके-छक्के
और कुछ नहीं तो
क्यों नहीं करते ऐसी पेन्टिंग्स
जो करोड़ों में बिकें।
उन नेताओं से नाराज हूँ
जो चुनाव में खड़े ही नहीं होते
और अगर वो खड़े हों भी
तो जिन्हें मैं वोट कदापि नहीं दूँगा।
निर्धनों से नाराज हूँ
कि बहुत कम कीमत है उनके वोट की
जिससे दिहाड़ी भर की
दारू भी नहीं खरीदी जा सकती।
नाराज हूँ
जंगली जानवरों से
कि वो यदा-कदा खा जाते हैं किसी मनुष्य को
नाराज हूँ मनुष्य से
कि वो सारी प्रजाति के
जंगली घरेलू
समुद्री और नभचर
सारे प्राणियों को खा गया है
उसकी हवस को न पचा पाने के परिणामों से
सारा वातावरण दूषित है।
गांव और शहर से नाराज हूँ
गांव में दादी, नाना, बुआ, चाचा, मौसी
सभी मर गये हैं
शहर में,
मैं 40 साल रहते हुए भी
अजनबी हूँ
और लगातार होता जा रहा हूँ
और भी अजनबी।
अन्दर और
बाहर होने से नाराज हूँ।
घर की चारदीवारी में
मुझे घुटन महसूस होती है
और बाहर
दो पाँवों वालों के
चार पहिया वाहनों के पिछाड़े से निकला
जहरीला धुँआ है।
नाराज हूँ मौत नाम की चीज से
जो अचानक आती है
इतनी अचानक
कि मैं हर पल उसका इंतज़ार करूँ
तो भी
वो उतनी ही अचानक आयेगी
जितनी किसी चींटी की मौत पर
या अचानक धरती की मौत पर।
मैं सोचता हूं
मेरे नाराज होने से ही हो जायेगा सबकुछ
कोई बताये -
अतीत इतिहास में कभी
ऐसा कुछ हुआ है क्या???
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। जनवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को कविता प्रकाशित करवाने का मौका। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-
अखिलेश कुमार श्रीवास्तव
प्रशांत प्रेम
चंद्रकांत सिंह
अरविंद श्रीवास्तव
उमेश पंत
संगीता सेठी
तरुण ठाकुर
अनुराधा शर्मा
प्रिया
हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 5 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
देवेश पांडे
आलोक उपाध्याय ’नजर’
भावना सक्सेना
अनामिका (सुनीता)
धर्मेंद्र सिंह
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 8 फरवरी 2010 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
विनोद कुमार पाण्डेय 6 महीने से अधिक समय से कविताओं को पढ़ रहे हैं और यथासम्भव अपने सुझाव और प्रोत्साहन दे रहे हैं। दिसम्बर 2009 में इन्होंने कविता पृष्ठ को सबसे अधिक पढ़ा।
यूनिपाठक- विनोद कुमार पाण्डेय
हिन्द-युग्म के अत्यधिक सक्रिय पाठक विनोद कुमार पांडेय एक अच्छे कवि भी हैं। वाराणसी( उत्तर प्रदेश) में जन्मे और वर्तमान में नोएडा (उत्तर प्रदेश) को अपनी कार्यस्थली बना चुके विनोद की एक कविता ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सातवाँ स्थान बनाया है। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से संपन्न करने के पश्चात नोएडा के एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज से एम.सी.ए. करने के बाद नोएडा में ही पिछले 1.5 साल से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी मे सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं। खुद को गैर पेशेवर कहने वाले विनोद को ऐसा लगता है कि शायद साहित्य की जननी काशी की धरती पर पले-बढ़े होने के नाते साहित्य और हिन्दी से एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। लिखने और पढ़ने में सक्रियता 2 साल से,पिछले 8 माह से ब्लॉग पर सक्रिय,हास्य कविता और व्यंग में विशेष लेखन रूचि,अब तक 50 से ज़्यादा कविताएँ और ग़ज़लों का लेखन। हाल ही में एक हास्य व्यंग 'चाँद पानी पानी हो गया' एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ और बहुत पसंद किया गया। फिर भी इसे अभी लेखनी की शुरूआत कहते हैं और उम्मीद करता हैं कि भविष्य में हिन्दी और साहित्य के लिए हमेशा समर्पित रहेंगे। लोगों का मनोरंजन करना और साथ ही साथ अपनी रचनाओं के द्वारा कुछ अच्छे सार्थक बातों का प्रवाह करना भी इनका एक खास उद्देश्य होता है।
पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।
इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः मनोज कुमार, डॉ॰ श्याम गुप्ता और राकेश कौशिक को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेगी।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 15 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
अरविंद कुरील
अनिल चड्डा
मृत्युजय साधक
मेयनुर
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अरविंद शर्मा
सखी सिंह
नीरज वशिष्ठ
कुमार कश्यप
विनोद कुमार पांडेय
साबिर घायल
विजय आनंद
अम्बरीष श्रीवास्तव
किशोर कुमार जैन
बोधिसत्व कस्तुरिया
विजय सिंह
कुलदीप पाल
सुमिता केशवा
सुखपाल सिंह
शैली खत्री
अर्चना सोनी
अमोद श्रीवास्तव
दीपक
विमल हेडा
नीलिमा शर्मा
उमेश्वर दत्त नेशीथ
एम वर्मा
प्रियंका सागर
कैलाश जोशी
आदर्श मौर्य
सुजीत कुमार जलज
अनीता निहलानी
कमल किशोर सिंह
रेनु दीपक
अजय दुरेजा
नागेंद्र पाठक
लकी चतुर्वेदी
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
23 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahut Bahut Umdaa Kavita.....!! Rajkumar Ji ko ?Hardik Badhai... Aapki Kavita Sach me Pehla Sthan deserve Karti hai.. Keep It Up!
यूनिकवि- राज कुमार शर्मा 'राजेशा' एवं यूनिपाठक- विनोद कुमार पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई.
वंदनीय प्रयास।
--------
विश्व का सबसे शक्तिशली सुपर कम्प्यूटर।
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन चालू है।
मैं इस प्रतियोगिता के जजों मे से एक जज हूं और मुजे खुशी है कि जो कविता मुझे सबसे बेहतर लगी और वह और अजों को भी पसन्द आई
कविता वाकई खूबसूरत है बधाई शर्मा जी
नाराजगी के इस दौर में जहाँ हर कोई हर बात पर ही नाराज सा दिखता है, बड़ी खूबसूरती से लिखी गई यह कविता..........बधाई।
भावना सक्सैना
umada prayas hai,badhai,
vinamra anurodh hai ki hamari rachnaon ko bhi shamil karne ki kripa kare.
यूनिकवि- राज कुमार शर्मा 'राजेशा' एवं यूनिपाठक- विनोद कुमार पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई
मैं 40 साल रहते हुए भी
अजनबी हूँ
और लगातार होता जा रहा हूँ
और भी अजनबी।
बहुत ही सुंदर रचना हर इंसान कहीं न कहीं अपने को इसमे पाता है। शर्मा जी बहुत-बहुत आभार! आपको यूनिकवि और विनोद जी को यूनिपाठ्क बनने के लिये बहुत-बहुत बधाई!
नाराज़गी का पेड़ एक खूबसूरत विषय पर केंद्रित आप की यह कविता निश्चित रूप से विजयी कविता होने का श्रेय प्राप्त करती है...आदमी ऐसा सोचकर अपने को और अंधकार में ले जाता है साथ ही साथ दूसरों की नज़र में भी गिरता जाता है सिर्फ़ नाराज़ होने से कुछ भी भला नही होने वाला है....एक सुंदर कविता...हिन्दयुग्म के विजयी यूनिकवी के रूप में आपको बहुत बहुत बधाई...
bahut bahut badhayee sahab,
yaise hi behter likhte rahiye.
akavita sara sahaj bhasa mein likhi jati rahi to nischay hi
aam jan tak pahuchane mein safal rahegi.
badhayee.
राज कुमार शर्मा 'राजेशा' जी एवं विनोद कुमार पाण्डेय जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाये
विमल कुमार हेडा
??????????.....................'''''',,,,,
sumit
raj kumar ji aur vinod kumar ki aap dono ko badhai
rachana
राजेशा जी को युनिकवि चुने जाने पर हार्दिक बधाइयाँ..सच मे यह एक नयी जमीन तोड़ती, उद्वेलित करती से कविता है जिसमे कि जड़ों से उखडती हुई एक पूरी जनरेशन की क्षुब्धता का स्वर प्रतिध्वनित होता है..अपने आसपास की परि्स्थितियों से असंतुष्ट होने के बावजूद दिशाहीनता के अंधेरे मे इस समस्या का कोई सार्थक हल न खोज पाने की हताशा एक कुढ़न को जन्म देती है..जिसका समग्र चित्रण इस बेहतरीन कविता मे मिलता है..
विनोद जी के लिये तो क्या कहूँ कविता के प्रति जिस अनुराग के चलते वह हर कविता के रेशों को अलग-अलग करते हैं..वह अन्य पाठकों को भी कविता के विविध पक्षों को समझने मे मदद करती है..सो युनिपाठक तो चुना ही जाना था..आपको बधाई.
रचना बहुत सुंदर और सशक्त है। किन्तु कविता है या अकविता इस बारे में सोचा जाना चाहिए।
वैसे हिन्द युग्म के प्रबंधकों आदरणीय शैलेश जी को युनि अकवि प्रतियोगिता का आयोजन करने का सुझाव देना चाहूँगा। ताकि ऐसी रचनाओं को कचिता कहकर उन के साथ अन्याय न किया जाए।
यूनिकवि- राज कुमार शर्मा 'राजेशा' एवं यूनिपाठक- विनोद कुमार पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई कविता बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्
राजकुमार जी , नाराज़गी में यह भी सोचना होगा कि कहीं सामनेवाला भी तो नाराज़ नहीं.....तब शायद कुछ हो जाये .
वैसे बहुत अच्छा लगा आपको पढना
maine Aap ke pass pahle bhi meri savam ki likhi hui kavitayan bejvai thi or Aapne sammlit bhi ki thi uske liye aap ko dhnyvad par aab phir mai bhul gya ki kis tarh likana ha so please mujhe btaiye ki kese likhu fount konsa ha
Ratan Kumar Sharma
Hindi Teacher
The Aditya Birla public School
Gcw- Kovaya, Gujarat
Hindi yugam Teem ko nye sal ki mubarkvad ho .Aap sabhi ke jivan men khusiyan bhar de . Aap ke sabhi sapne pure hon .
Ratan Kumar Sharma
Hindi Teacher
ABPS- Kovaya
.
Mera maan-na hai ki ek kavi aur achche kavi ke beech ka antar unke observation se tay hota hai, aapne jeevan ke is pehlu ko bakhubi observe kiya hai aur apni baat behad prabhaavshali dhang se kahi hai, sach mein aaj har kisi ke paas naaraazgi ke hazaar bahaane hain, Gulzar ka likha ek geet yaad aata hai, aapki rachna padh kar -
"tujh se naaraaz nahin zindagi
hairaan hoon main
tere maasoom sawaalon se
pareshaan hoon main"
Sundar kavita hai . Bahut Bahut Badhai
.
युनिकवियों को बधाई...
आज बहुत दिनों बाद आना हुआ है... ईमेल फीड नहीं मिल पा रही थी.. फिरसे सबस्क्राइब कर लिया है..
अब नियमित आना होगा..
धन्यवाद!
बहुत सुंदर कविता । आपकी रचना ने मन मोह लिया । आगे भी प्रयास जारी रखियेगा ।
Kawita ki gun-guni narajgee uddhelan ka vistaar rachtee hai. Badhai Rajkunaar!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)