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Saturday, March 07, 2009

दोहा गाथा सनातन पाठ ७ दोहा शिव-आराधना


दोहा 'सत्' की साधना, करें शब्द-सुत नित्य.
दोहा 'शिव' आराधना, 'सुंदर' सतत अनित्य.


अरुण जी, मनु जी एवं पूजा जी ने दोहा के साथ कुछ यात्रा की, इसलिए दोहा उनके साथ रहे यह स्वाभाविक है. संगत का लाभ 'तन्हा' जी को भी मिला है.

अद्भुत पूजा अरुण की, कर मनु तन्हा धन्य.
'सलिल' विश्व दीपक जला, दीपित दिशा अनन्य.

कविता से छल कवि करे, क्षम्य नहीं अपराध.
ख़ुद को ख़ुद ही मारता, जैसे कोई व्याध.


पूजा जी पहले और तीसरे चरण में क्रमशः 'कान्हा' को 'कान्ह' तथा 'हर्षित माता देखकर' परिवर्तन करने से दोष दूर हो जाता है.

गोष्ठी ६ के आरम्भ में दिए दोहों के भाव तथा अर्थ संभवतः सभी समझ गए हैं इसलिए कोई प्रश्न नहीं है. अस्तु...

तप न करे जो वह तपन, कैसे पाये सिद्धि?
तप न सके यदि सूर्ये तो, कैसे होगी वृद्धि?


उक्त दोहा में 'तप' शब्द के दो भिन्न अर्थ तथा उसमें निहित अलंकार का नाम बतानेवालों को दोहा का उपहार मिलेगा. तपन जी! आपके दोहे में मात्राएँ अधिक हैं. आपत्ति न हो तो इस तरह कर लें-

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.


हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है. एक बार प्रयास और करें ग़लत हुआ तो सुधारकर दिखाऊँगा.

अजित अमित औत्सुक्य ही, -- पहला चरण, १३ मात्राएँ
१ १ १ १ १ १ २ २ १ २ = १३
भरे ज्ञान - भंडार. -- दूसरा चरण, ११ मात्राएँ
१ २ २ १ २ २ १ = ११
मधु-मति की रस सिक्तता, -- तीसरा चरण, १३ मात्राएँ
१ १ १ १ २ १ १ २ १ २ = १३
दे आनंद अपार. -- चौथा चरण, ११ मात्राएँ
२ २ २ १ १ २ १ = ११ मात्राएँ.

दो पंक्तियाँ (पद) तथा चार चरण सभी को ज्ञात हैं. पहली तथा तीसरी आधी पंक्ति (चरण) दूसरी तथा चौथी आधी पंक्ति (चरण) से अधिक लम्बी हैं क्योकि पहले एवं तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ हैं जबकि दूसरे एवं चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ हैं. मात्रा से दूर रहनेवाले विविध चरणों को बोलने में लगने वाले समय, उतर-चढाव तथा लय का ध्यान रखें.

दूसरे एवं चौथे चरण के अंत पर ध्यान दें. किसी भी दोहे की पंक्ति के अंत में दीर्घ, गुरु या बड़ी मात्रा नहीं है. दोहे की पंक्तियों का अंत सम (दूसरे, चौथे) चरण से होता है. इनके अंत में लघु या छोटी मात्रा तथा उसके पहले गुरु या बड़ी मात्रा होती ही है. अन्तिम शब्द क्रमशः भंडार तथा अपार हैं. ध्यान दें की ये दोनों शब्द गजल के पहले शे'र की तरह सम तुकांत हैं दोहे के दोनों पदों की सम तुकांतता अनिवार्य है. भंडार तथा अपार का अन्तिम अक्षर 'र'
लघु है जबकि उससे ठीक पहले 'डा' एवं 'पा' हैं जो गुरु हैं. अन्य दोहो में इसकी जांच करिए तो अभ्यास हो जाएगा.
पाठ ६ में बताया गया अगला नियम -- (' पहले तथा तीसरे चरण के आरम्भ में जगण = जभान = १२१ का प्रयोग एक शब्द में वर्जित है किंतु दो शब्दों में जगण हो तो वर्जित नहीं है.') की भी इसी प्रकार जांच कीजिये. इस नियम के अनुसार पहले तथा तीसरे चरण के प्रारम्भ में पहले शब्द में लघु गुरु लघु (१+२+१+४) मात्राएँ नहीं होना चाहिए. उक्त दोहों में इस नियम को भी परखें. किसी दोहे में दोहाकार की भूल से ऐसा हो तो वह दोहा पढ़ते समय लय भंग होती है. दो शब्दों के बीच का विराम इन्हें संतुलित करता है. अस नियम पर विस्तार से चर्चा बाद में होगी.
पाठ ६ में बताया गया अन्तिम नियम दूसरे तथा चौथे चरण के अंत में तगण = ताराज = २२१, जगण = जभान = १२१ या नगण = नसल = १११ होना चाहिए. शेष गणों के अंत में गुरु या दीर्घ मात्रा = २ होने के कारण दूसरे व चौथे चरण के अंत में प्रयोग नहीं होते.
एक बार फ़िर गण-सूत्र देखें- 'य मा ता रा ज भा न स ल गा'

गण का नाम विस्तार
यगण यमाता १+२+२
मगण मातारा २+२+२
तगण ताराज २+२+१
रगण राजभा २+१+२
जगण जभान १+२+१
भगण भानस २+१+१
नगण नसल १+१+१
सगण सलगा १+१+२

उक्त गण तालिका में केवल तगण व जगण के अंत में गुरु+लघु है. नगण में तीनों लघु है. इसका प्रयोग कम ही किया जाता hai. नगण = न स ल में न+स को मिलकर गुरु मात्रा मानने पर सम पदों के अंत में गुरु लघु की शर्त पूरी होती hai.

सारतः यह याद रखें कि दोहा ध्वनि पर आधारित सबसे अधिक पुराना छंद है. ध्वनि के ही आधार पर हिन्दी-उर्दू के अन्य छंद कालांतर में विकसित हुए. ग़ज़ल की बहर भी लय-खंड ही है. लय या मात्रा का अभ्यास हो तो किसी भी विधा के किसी भी छंद में रचना निर्दोष होगी. अजित जी एवं मनु जी क्या इतना पर्याप्त है या और विस्तार?

चलिए, इस चर्चा से आप को हो रही ऊब को यहीं समाप्त कर के रोचक किस्सा कहें और गोष्ठी समाप्त करें.

किस्सा आलम-शेख का...

सिद्धहस्त दोहाकार आलम जन्म से ब्राम्हण थे लेकिन एक बार एक दोहे का पहला पद लिखने के बाद अटक गए. बहुत कोशिश की पर दूसरा पद नहीं बन पाया, पहला पद भूल न जाएँ यह सोचकर उनहोंने कागज़ की एक पर्ची पर पहला पद लिखकर पगडी में खोंस लिया. घर आकर पगडी उतारी और सो गए. कुछ देर बाद शेख नामक रंगरेजिन आयी तो परिवारजनों ने आलम की पगडी मैली देख कर उसे धोने के लिए दे दी.

शेख ने कपड़े धोते समय पगडी में रखी पर्ची देखी, अधूरा दोहा पढ़ा और मुस्कुराई. उसने धुले हुए कपड़े आलम के घर वापिस पहुंचाने के पहले अधूरे दोहे को पूरा किया और पर्ची पहले की तरह पगडी में रख दी. कुछ दिन बाद आलम को अधूरे दोहे की याद आयी. पगडी धुली देखी तो सिर पीट लिया कि दोहा तो गया मगर खोजा तो न केवल पर्ची मिल गयी बल्कि दोहा भी पूरा हो गया था. आलम दोहा पूरा देख के खुश तो हुए पर यह चिंता भी हुई कि दोहा पूरा किसने किया? अपने कॉल के अनुसार उन्हें दोहा पूरा करनेवाले की एक इच्छा पूरी करना थी. परिवारजनों में से कोई दोहा रचना जानता नहीं था. इससे अनुमान लगाया कि दोहा रंगरेज के घर में किसी ने पूरा किया है, किसने किया?, कैसे पता चले?. उन्हें परेशां देखकर दोस्तों ने पतासाजी का जिम्मा लिया और कुछ दिन बाद भेद दिया कि रंगरेजिन शेख शेरो-सुखन का शौक रखती है, हो न हो यह कारनामा उसी का है.

आलम ने अपनी छोटी बहिन और भौजाई का सहारा लिया ताकि सच्चाई मालूम कर अपना वचन पूरा कर सकें. आखिरकार सच सामने आ ही गया मगर परेशानी और बढ़ गयी. बार-बार पूछने पर शेख ने दोहा पूरा करने की बात तो कुबूल कर ली पर अपनी इच्छा बताने को तैयार न हो. आलम की भाभी ने देखा कि आलम का ज़िक्र होते ही शेख संकुचा जाती थी. उन्होंने अंदाज़ लगाया कि कुछ न कुछ रहस्य ज़ुरूर है. ही कोशिश रंग लाई. भाभी ने शेख से कबुलवा लिया कि वह आलम को चाहती है. मुश्किल यह कि आलम ब्राम्हण और शेख मुसलमान... सबने शेख से कोई दूसरी इच्छा बताने को कहा, पर वह राजी न हुई. आलम भी अपनी बात से पीछे हटाने को तैयार न था. यह पेचीदा गुत्थी सुलझती ही ने थी. तब आलम ने एक बड़ा फैसला लिया और मजहब बदल कर शेख से शादी कर ली. दो दिलों को जोड़ने वाला वह अमर दोहा जो पाठक बताएगा उसे ईनाम के तौर पर एक दोहा संग्रह भेट किया जाएगा अन्यथा अगली गोष्ठी में वह दोहा आपको बताया जाएगा.

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

रविकांत पाण्डेय का कहना है कि -

आलम ने जो पद लिखा सुनिये चतुर सुजान
इसे सुनकर निश्चित ही सुख पावेंगे कान

"कनक छडी सी कामिनी कटि काहे अतिछीन"

अर्ज करूँ पद दूसरा शेख जिसे लिख दीन
अजब अनूठा काम ये पलभर में ही कीन

"कटि को कंचन काढ़ विधि कुचन माँहि धरि दीन"

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

दोहे में जो निहित है, कहते अलंकार यमक
एक तप का अर्थ है तपस्या, दूजा गर्मी से भभक...

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी का कहना है कि -

बात ठीक से समझ नहीं पाई।

हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है.

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.

सदा ३ मात्रायं हुईं। चाहता में भी चा=२ हता=३

कृपया सोदाहरण समझायें। पोस्ट बहुत अच्छे, मगर उदाहरणों की कमी दिखाई देती है।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

tapan j ne alankaar AUR ARATH to pahle hi bataa diya YAMAK ALANKAAR , vahi ham bhi kahenge .

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