8 मार्च को दुनिया भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। हम भी इस अवसर को अपने तरह से मनाने की कोशिश करेंगे। जिसकी शुरूआत कर रहे हैं साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' की ३८ शे'रों की ग़ज़ल 'लड़कियों की ज़िंदगी'॰॰॰
1
काँच का बस एक घर है लड़कियों की जिन्दगी
और काँटों की डगर है लड़कियों की जिन्दगी
2
मायके से जब चले है सजके ये दुल्हिन बनी
दोस्त अनजाना सफर है लड़कियों की जिन्दगी
3
एक घर ससुराल है तो दूसरा है मायका
फिर भी रहती दर-ब-दर है लड़कियों की जिन्दगी
4
खूब देखा, खूब परखा, सास को आती न आँच,
स्टोव का फटना मगर है लड़कियों की जिन्दगी
5
पढलें लिखलें और करलें नौकरी भी ये भले
सेज पर सजना मगर है लड़कियों की जिन्दगी
6
इस नई तकनीक ने तो है बना दी कोख भी
आह कब्रिस्तान भर है लड़कियों की जिन्दगी
7
कारखानों अस्पतालों या घरों में भी तो यह
रोज लड़ती इक समर है लड़कियों की जिन्दगी
8
लूटते इज्जत हैं इसकी मर्द ही जब, तब कहो
क्यों भला बनती खबर है लड़कियों की जिन्दगी
9
बाप-मां के बाद अधिकार है भरतार का
फर्ज का संसार भर है लड़कियों की जिन्दगी
10
हो रहीं तबदीलियां दुनिया ये अब तो हर जगह
वक्त की तलवार पर है लड़कियों की जिन्दगी
11
क्यों हैं करती दुश्मनी खुद औरतों से औरतें
बस दुखी यह जानकर है लड़कियों की जिन्दगी
12
माँ बहन हैं बेटियाँ भी ये हमारी दोस्तो
बिस्तरा होना मगर है लड़कियों की जिन्दगी
13
किस धरम, किस जात में इन्साफ इसको है मिला
जीतती सब हार कर है लड़कियों की जिन्दगी
14
हो अहल्या या हो मीरा या हो बेशक जानकी
मात्र चलना आग पर है लड़कियों की जिन्दगी
15
द्रोपदी हो, पद्मिनी हो, हो भले ही डायना
रोज लगती दाँव पर है लड़कियों की जिन्दगी
16
एक रजिया एक लक्ष्मी और इक इन्दिरा भला
क्या नहीं अपवाद-भर है लड़कियों की जिन्दगी
17
क्या जवानी क्या बुढ़ापा या भले हो बचपना
सहती हर दम बद नजर है लड़कियों की जिन्दगी
18
हों घरों में, आफिसों में, हों सियासत में भले
क्या कहीं भी मोतबर है लड़कियों की जिन्दगी
19
औरतों के हक में हों कानून कितने ही बने
दर हकीकत बेअसर है लड़कियों की जिन्दगी
20
तू अगर इसको कभी अपने बराबर मान ले
फिर तो तेरी हमसपफर है लड़कियों की जिन्दगी
21
घर भी तो इनके बिना बनता नहीं घर दोस्तो
क्यों भला फ़िर घाट पर है लड़कियों की जिन्दगी
22
आह धन की लालसा का आज ये अंजाम है
इश्तिहारों पर मुखर है लड़कियों की जिन्दगी
23
कर नुमाइश जिस्म की क्या खुद नहीं अब आ खड़ी
नग्नता के द्वार पर है लड़कियों की जिन्दगी
24
प्यार करने की खता जो कहीं करलें ये कभी
तब लटकती डाल पर है लड़कियों की जिन्दगी
25
जानती सब, बूझती सब, फिर भला क्यों बन रही
हुस्न की किरदार भर है लड़कियों की जिन्दगी
26
ठीक है आजाद होना, हो मगर उद्दण्ड तो
कब भला पायी सँवर है लड़कियों की जिन्दगी
27
माँ बहन बेटी कभी पत्नी कभी, कभी है प्रेयसी
जानती क्या-क्या हुनर है लड़कियों की जिन्दगी
28
मुम्बई हो, कोलकाता, राजधानी देहली
चल रही दिल थामकर है लड़कियों की जिन्दगी
29
ले रही वेतन बराबर, हक बराबर, पर नहीं
इतनी सी तकरार भर है लड़कियों की जिन्दगी
30
आदमी कब मानता इन्सान इसको है भला
काम की सौगात भर है लड़कियों की जिन्दगी
31
शोर करते हैं सभी तादाद इनकी घट रही
बन गई अनुपात भर है लड़कियों की जिन्दगी
32
ठान लें जो कर गुजरने की कहीं ये आज भी
फिर तो मेधा पाटकर है लड़कियों की जिन्दगी
33
क्यों नहीं तैतीसवां हिस्सा भी इसको दे रहे,
आधे की हकदार गर है लड़कियों की जिन्दगी
34
देवता बसते वहाँ है पूजते नारी जहाँ
क्यों धरा पर भार भर है लड़कियों की जिन्दगी
35
हाँ, कहीं इनको मिले गर प्यारा थोड़ा दोस्तो
तब सुधा की इक लहर है लड़कियों की जिन्दगी
36
मैंने तुमने और सबने कह दिया सुन भी लिया
क्यों न फिर जाती सुधर है लड़कियों की जिन्दगी
37
माफ मुझको अब तू कर दे ऐ खुदा मालिक मेरे
हाँ यही किस्मत अगर है लड़कियों की जिन्दगी
38
‘कल्पना’ को ‘श्याम’ जब अवसर दिया इतिहास ने
उड़ चली आकाश पर है लड़कियों की जिन्दगी
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
ग़ज़लगो- श्याम सखा 'श्याम'
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
इस नई तकनीक ने तो है बना दी कोख भी
आह कब्रिस्तान भर है लड़कियों की जिन्दगी
वाह श्यामजी किसी एक शेर को पकड़ना
नाइंसाफी होगी
बहुत बढ़िया
bahot hi sachhi gazal kahi hai shyaam ji ne ... ek shanka hai भरतार ... is shabd ka matalab nahi samajha... agar iska matalab... pati hai to kya aise shabd ka yupyog sahi hai.... kyun ke iska istemaal alag tarike se kiya jaata hai... meri baat ko anyatha naa lem.. sikhne ki prakriya me hun isliye puchh baitha...
aapka
arsh
अर्श जी,
बिलकुल सही है। यह तो संस्कृत का शब्द है। 'भरतार' संस्कृत के 'भर्ता' शब्द का ही हिन्दी रूप है, जिसका अर्थ होता है भरण-पोषण करने वाल। इसका इस्तेमाल 'पति' के लिए भी किया जाता है। कबीर ने भी 'भरतार' का इस्तेमाल किया है। शायद आपने ज़रूर पढ़ा-सुना होगा-
दुल्हिन गइहौ मंगलाचार
हमरे घर अइहै राजा राम भरतार
यहाँ पर कबीर ने खुद को राम की पत्नी के रूप रखकर इस 'रमैनी' की रचना की है।
फिर से एक बार दिल जीत लिया श्याम भाई....और क्या कहें...
bahut badhia rachna shyam ji
Bahut khoob...
हर तरफ़ बस ज़ुल्म ही सहती है ये भी सच नहीं
प्यार से भी तर-बतर है लड़कियों की ज़िंदगी
बहुत ही अच्छी गजल
श्याम जी
अच्छी रचना के लिए बधाई हो श्याम जी । साथ ही सभी पाठकों को रंगबिरंगे होली पर्व की बधाई हो । ३८ शे’रों में महिलाओं की जिन्दगी के पहलुओं का कितना सटीक चित्र खींचा है । अधिकतर चित्र निराशा जगाने वाले हैं पर सच्चाई तो है ही । या दूसरे दृष्टिकोण से ये आँखें खोलने वाले हैं कि लड़कियों को उचित स्थान देने में हमारा समाज अभी कितना पीछे है । लड़कियों को दया दिखाने की जरूरत नहीं है, बस उन्हें सामान्य मनुष्य जैसा देखने लगें और उनसे वैसे ही व्यवहार करें जैसे किसी सामान्य पुरुष से करते हैं । पर यह भी ठीक नहीं होगा । अधिकतर लोग महिलाओं से कोमल व्यवहार करना पसन्द करते हैं । जहाँ किसी पुरुष के होने पर सामान्यतः रूखा व्यवहार किया जाता है, वहाँ भी अक्सर महिला के होने पर कोमल या सामान्य व्यवहार किया जाता है । यदि ऐसा न भी हो तो उतनी रुखाई तो नहीं रहती जितनी पुरुष के साथ । इधर ध्यान जाता है तो लगता है कि इस सन्दर्भ में समाज को केवल कोसते रहना ठीक नहीं होगा । समाज कई जगह महिलाओं के प्रति उदारता भी दिखाता है (भले ही यह गैर-बराबरी माना जाए) और इसकी जरूरत भी है । ठीक ही कहा है मानसी (मानोशी) जी ने -
हर तरफ़ बस ज़ुल्म ही सहती है ये भी सच नहीं
प्यार से भी तर-बतर है लड़कियों की ज़िंदगी
लड़कियों के लिए हमारी राय है कि अगर बाहर निकलने, आने-जाने में होने वाले डर को खत्म किया जा सके तो उन्हें समानता दिलाने की राह में बड़ा हिस्सा तय कर लिया कहा जा सकता है ।
महिलाओं की ज़िंदगी से जुड़े हर सवाल को आपने अपनी रचना में शामिल किया है। बहुत बढ़िया लिखा है।
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