फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, March 06, 2009

फ्रायड ने देखा एक ख़्वाब


फ्रायड ने देखा एक ख़्वाब
मनुष्य जाति
जो मनोरोगों से ग्रस्त
मानसिक विकारों से त्रस्त
कैसे पूरी हो बीमारी को
दूर भगाने की आस
हो हर ताले की
कुंजी उसके पास

फिर सपने में देखा
झोली या डंडा
मुर्गी या अंडा
अंडे का फंडा
प्रत्येक का जरूर कोई अर्थ
लाठी, नाग, तलवार या चाकू
कूआ, खाई¸ पहाड़ या राई
सब कुछ यौन पिपासा
सर्व सेक्समयं जगत
सदा से भीतर कुण्ठायें रोई
जब चेतन मन बिल्ली की नींद सोया
दमित वासना़ का चूहा
चुपचाप
अपना भेष बदल कर निकला
मानो फ्रायड ने
चतुर बिल्ली की तरह
नींद का ढ़ोग रच कर
जान लिया चूहों का राज।

दंग रह गया फ्रायड
मन की गहराइयां बतलाते
ये सपने कितने सच्चे!
कि जैसे निरदोष बच्चे
बाकी झूठा इंसान
झूठी यह दुनियां।


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

विधि-हरि-हर से अपरिचित, था फ्रायड नादान.

वह क्या जाने कहाँ से, क्यों आया इंसान?

प्रकृति-पुरुष की नित्यता, अंड-पिंड का खेल.

घटाकाश की व्याप्तता, पाया नहीं सकेल.

सृजन भाव को सैक्स कह, तन का किया विचार.

मन को उसने भुलाया, 'सलिल' यही अविचार.

सीमा सचदेव का कहना है कि -

कविता पढकर कोई मजा नही आया | कविता के भाव-विचार मे कोई नयापन नही दिखा |
यह सच्चाई कोई नई बात नहीं है कि स्वपन अंतर्मन म कभी न कभी उमडे कोई भाव ही होते हैं |
केवल यही बात कहने के लिए आपने कविता लिख दे लेकिन उससे कोई नव-सन्देश निहित नही है |

neelam का कहना है कि -

aacharya ji ki baat se sahmati rakhte hue sirf itna hi kahungi ,nihaayat hi bakwaas hai ye chuhe ,billi ki rachna .

manu का कहना है कि -

रचना के बारे में तो ऊपर कहा ही जा चुका है,,,मगर मुझे आज तक ये बात समझ में नहीं आयी के जो खोज बीन हमारे यहाँ पर हजारों साल पहले हो चुकीं हैं.....पश्चिम के वैज्ञानिक आज तक उन को लेकर अजीब अजीब बयान बाजी करते नजर आते हैं......आये दिन अखबारों में होता है के फलां ने प्यार के जींस ढूंढ निकाले हैं...फलां ने बेवफाई के,,,हालांके साइंस की कैसी भी जानकारी मुझे नहीं है मगर ये सब कुछ ही हास्यास्पद लगता है...अभी पढा थ के अछे शास्त्रीय संगीत के प्रभाव से गाय अधिक दूध देती है,,,,,पौधे भी जल्दी बढ़ते हैं....
ये बात तो हम लोग हजारों साल से नहीं जानते क्या,,,,,जब हम प्रक्रति से अपने ढंग से पूज कर या मान दे कर नाता जोड़ते हैं तो हमें मूर्ख और अन्धविश्वासी करार दे दिया जाता है,,,,,पर उन्ही सब बातो को जब पश्चिम वाले एडी छोटी का जोर लगा कर खोज कर के कहते हैं तो वही बात महत्त्वपूर्ण हो जाती है,,,जिन चीजों की खोज आज अंतरीक्ष में की जा रही है,,,,, उन से किता मिलता जुलता हम लोग अपने ग्रंथो में पढ़ चुके हैं,,,,,,

प्रणाम आचार्य ,
सीमा जी ,नीलम जी की पसंद से,,,,
आचार्या के ज्ञान से पूरी तरह सहमत

Harihar का कहना है कि -

आचार्यजी ! दोहों में आपने खूबसूरत ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त की । विचार अपने अपने!
मनुजी!
१. विज्ञान को भारत में क्या प्रतिक्रिया होती है उससे कुछ नहीं लेना देना।
२. सम्मोहन को हजारों साल से जाना गया है
जिसे विज्ञान ने अब स्वीकार किया है फिर भी विज्ञान का श्रम सार्थक है - केंसर आदि व किटाणु
वाली बिमारी में सम्मोहन काम नहीं करता यह
पता चला । सबूत का अपना महत्व है।
३. विज्ञान एक-एक इंच बढ़ता है मिडिया अपने ढंग से अतिशयोक्ति लगाता है। विज्ञान की हर खोज में assumption जो होते हैं मिडिया उन्हे बताने
की बात तो दूर अपने ढंग से मिर्च-मसाले लगा देता है।
आशा है आपको उत्तर मिल गया है।

Anonymous का कहना है कि -

फ़्रायड ने जो कुछ कहा नहीं गलत श्रीमान
पर उसकी सोच का आधार पश्चिमी वितान
बाब तुलसी ने एक जगह लिखा है
बन्दऊ संत असज्जन चरणा,दुखप्रद उभय बीच कछु बरणा
अर्थात-सन्त-दुष्ट दोनो एक समान है मात्र बाल जितना याने थोड़ा सा अन्तर है।
वही अन्तर पशु और मनुष्य में है आप इसे बड़ा अन्तर कह सकते हैं।पशु में विवेक की कमी होती है-क्योंकि उसमे दिमाग का वह हिस्सा [ silent area or frontal lobe] बहुत कम विकसित होता है और जैसे मनु ने लिखा कि फ़्रायड की बातें हमारे ग्रंथों में है सच है;इसके अतिरिक्त यौन शक्ति को भारत ने कभी नकारा नहीं इसका उदाहरण काम-शास्त्र,अजन्ता गुफ़ाएं ही नहीं हैं,हमारे सभी ऋषि-मुनियों ,भगवानो [अपवाद छोड़कर]का सप्त्नि होना भी देखा जा सकता है।हमारे ग्रंथोम में यौन नियन्त्रण का उल्लेख है ,यौन दमन का नहीं।फ़िर भी पश्चिमी परिपेक्ष में हिस्टिरिया आदि अनेक रोगों में फ़्रायड के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
श्याम सखा ‘श्याम’

Anita kumar का कहना है कि -

हरिहर जी बहुत ही बड़िया कविता बना दी आप ने तो फ़्रायड के सिंद्धातों पर, साधूवाद्। ऐसी ही और कविताओं का इंतजार रहेगा।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)