फ्रायड ने देखा एक ख़्वाब
मनुष्य जाति
जो मनोरोगों से ग्रस्त
मानसिक विकारों से त्रस्त
कैसे पूरी हो बीमारी को
दूर भगाने की आस
हो हर ताले की
कुंजी उसके पास
फिर सपने में देखा
झोली या डंडा
मुर्गी या अंडा
अंडे का फंडा
प्रत्येक का जरूर कोई अर्थ
लाठी, नाग, तलवार या चाकू
कूआ, खाई¸ पहाड़ या राई
सब कुछ यौन पिपासा
सर्व सेक्समयं जगत
सदा से भीतर कुण्ठायें रोई
जब चेतन मन बिल्ली की नींद सोया
दमित वासना़ का चूहा
चुपचाप
अपना भेष बदल कर निकला
मानो फ्रायड ने
चतुर बिल्ली की तरह
नींद का ढ़ोग रच कर
जान लिया चूहों का राज।
दंग रह गया फ्रायड
मन की गहराइयां बतलाते
ये सपने कितने सच्चे!
कि जैसे निरदोष बच्चे
बाकी झूठा इंसान
झूठी यह दुनियां।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
विधि-हरि-हर से अपरिचित, था फ्रायड नादान.
वह क्या जाने कहाँ से, क्यों आया इंसान?
प्रकृति-पुरुष की नित्यता, अंड-पिंड का खेल.
घटाकाश की व्याप्तता, पाया नहीं सकेल.
सृजन भाव को सैक्स कह, तन का किया विचार.
मन को उसने भुलाया, 'सलिल' यही अविचार.
कविता पढकर कोई मजा नही आया | कविता के भाव-विचार मे कोई नयापन नही दिखा |
यह सच्चाई कोई नई बात नहीं है कि स्वपन अंतर्मन म कभी न कभी उमडे कोई भाव ही होते हैं |
केवल यही बात कहने के लिए आपने कविता लिख दे लेकिन उससे कोई नव-सन्देश निहित नही है |
aacharya ji ki baat se sahmati rakhte hue sirf itna hi kahungi ,nihaayat hi bakwaas hai ye chuhe ,billi ki rachna .
रचना के बारे में तो ऊपर कहा ही जा चुका है,,,मगर मुझे आज तक ये बात समझ में नहीं आयी के जो खोज बीन हमारे यहाँ पर हजारों साल पहले हो चुकीं हैं.....पश्चिम के वैज्ञानिक आज तक उन को लेकर अजीब अजीब बयान बाजी करते नजर आते हैं......आये दिन अखबारों में होता है के फलां ने प्यार के जींस ढूंढ निकाले हैं...फलां ने बेवफाई के,,,हालांके साइंस की कैसी भी जानकारी मुझे नहीं है मगर ये सब कुछ ही हास्यास्पद लगता है...अभी पढा थ के अछे शास्त्रीय संगीत के प्रभाव से गाय अधिक दूध देती है,,,,,पौधे भी जल्दी बढ़ते हैं....
ये बात तो हम लोग हजारों साल से नहीं जानते क्या,,,,,जब हम प्रक्रति से अपने ढंग से पूज कर या मान दे कर नाता जोड़ते हैं तो हमें मूर्ख और अन्धविश्वासी करार दे दिया जाता है,,,,,पर उन्ही सब बातो को जब पश्चिम वाले एडी छोटी का जोर लगा कर खोज कर के कहते हैं तो वही बात महत्त्वपूर्ण हो जाती है,,,जिन चीजों की खोज आज अंतरीक्ष में की जा रही है,,,,, उन से किता मिलता जुलता हम लोग अपने ग्रंथो में पढ़ चुके हैं,,,,,,
प्रणाम आचार्य ,
सीमा जी ,नीलम जी की पसंद से,,,,
आचार्या के ज्ञान से पूरी तरह सहमत
आचार्यजी ! दोहों में आपने खूबसूरत ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त की । विचार अपने अपने!
मनुजी!
१. विज्ञान को भारत में क्या प्रतिक्रिया होती है उससे कुछ नहीं लेना देना।
२. सम्मोहन को हजारों साल से जाना गया है
जिसे विज्ञान ने अब स्वीकार किया है फिर भी विज्ञान का श्रम सार्थक है - केंसर आदि व किटाणु
वाली बिमारी में सम्मोहन काम नहीं करता यह
पता चला । सबूत का अपना महत्व है।
३. विज्ञान एक-एक इंच बढ़ता है मिडिया अपने ढंग से अतिशयोक्ति लगाता है। विज्ञान की हर खोज में assumption जो होते हैं मिडिया उन्हे बताने
की बात तो दूर अपने ढंग से मिर्च-मसाले लगा देता है।
आशा है आपको उत्तर मिल गया है।
फ़्रायड ने जो कुछ कहा नहीं गलत श्रीमान
पर उसकी सोच का आधार पश्चिमी वितान
बाब तुलसी ने एक जगह लिखा है
बन्दऊ संत असज्जन चरणा,दुखप्रद उभय बीच कछु बरणा
अर्थात-सन्त-दुष्ट दोनो एक समान है मात्र बाल जितना याने थोड़ा सा अन्तर है।
वही अन्तर पशु और मनुष्य में है आप इसे बड़ा अन्तर कह सकते हैं।पशु में विवेक की कमी होती है-क्योंकि उसमे दिमाग का वह हिस्सा [ silent area or frontal lobe] बहुत कम विकसित होता है और जैसे मनु ने लिखा कि फ़्रायड की बातें हमारे ग्रंथों में है सच है;इसके अतिरिक्त यौन शक्ति को भारत ने कभी नकारा नहीं इसका उदाहरण काम-शास्त्र,अजन्ता गुफ़ाएं ही नहीं हैं,हमारे सभी ऋषि-मुनियों ,भगवानो [अपवाद छोड़कर]का सप्त्नि होना भी देखा जा सकता है।हमारे ग्रंथोम में यौन नियन्त्रण का उल्लेख है ,यौन दमन का नहीं।फ़िर भी पश्चिमी परिपेक्ष में हिस्टिरिया आदि अनेक रोगों में फ़्रायड के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
श्याम सखा ‘श्याम’
हरिहर जी बहुत ही बड़िया कविता बना दी आप ने तो फ़्रायड के सिंद्धातों पर, साधूवाद्। ऐसी ही और कविताओं का इंतजार रहेगा।
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