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फ्रायड ने देखा एक ख़्वाब


फ्रायड ने देखा एक ख़्वाब
मनुष्य जाति
जो मनोरोगों से ग्रस्त
मानसिक विकारों से त्रस्त
कैसे पूरी हो बीमारी को
दूर भगाने की आस
हो हर ताले की
कुंजी उसके पास

फिर सपने में देखा
झोली या डंडा
मुर्गी या अंडा
अंडे का फंडा
प्रत्येक का जरूर कोई अर्थ
लाठी, नाग, तलवार या चाकू
कूआ, खाई¸ पहाड़ या राई
सब कुछ यौन पिपासा
सर्व सेक्समयं जगत
सदा से भीतर कुण्ठायें रोई
जब चेतन मन बिल्ली की नींद सोया
दमित वासना़ का चूहा
चुपचाप
अपना भेष बदल कर निकला
मानो फ्रायड ने
चतुर बिल्ली की तरह
नींद का ढ़ोग रच कर
जान लिया चूहों का राज।

दंग रह गया फ्रायड
मन की गहराइयां बतलाते
ये सपने कितने सच्चे!
कि जैसे निरदोष बच्चे
बाकी झूठा इंसान
झूठी यह दुनियां।


परीक्षा


मस्ती के आलम में
कहां से चली आई
एक परीक्षा
जिसके लिये
मै बिल्कुल तैयार नहीं
क्या बताऊं !
मेरा तो बज गया बाजा
मै ऊंघ रहा हूं
स्वप्न में भी
यह परीक्षा है या स्वप्न ?


पर यह भाव कि
खेला किया और गवांया जीवन
पढ़ा नहीं और अब
असफल कोशीश !
क्या करुं ?
थर थर कांपे तन मन
कितना असहाय !
बेखबर दुनियां से
अनाथ अनजान सा
डरा सहमा सा
मर गया मैं या मेरी नानी
पर श्राद्धपींड नजर आ गये।



काली डरावनी
गुफा मे खो गया टाइमटेबल
घंटी बजेगी घनघन …
प्रश्न कब होंगे सामने
कुछ पता नहीं
शायद आज ही !
अचानक कापी बनी आसमान
मेरा हाथ कलम
सूख गई सतकर्मों की स्याही
सामने यमराज सा परीक्षक
या फिर परीक्षक सा यमराज !
पता ही न चला
कैसी परीक्षा ? कैसी निन्द्रा ?
बाप रे बाप !
बचाओ मुझे बचाओ !!
मैं देख रहा हूँ
अपना ही मृत शरीर
यह मेरी नींद है या चिरनिंद्रा ?
घेरे हुये स्वजन
रोती बिलखती
और चीखती चिल्लाती पत्नी
फिर भी मेरी…
आंख क्यों नहीं खुल रही !



- हरिहर झा