हर माह जिस घर का ख़र्च महज़ 2500 रुपये से चलता है उस घर के बच्चे को 500 का खिलोना कैसे दिलवाया जा सकता है !
बेटा,तुझे यह खिलौना मैं नही दे सकती !
चुप हो जा ...
तुझे रोता मैं नही देख सकती...!
माँ और छोटे बच्चे के बीच अक्सर ऐसी बातें होती हैं ,
बच्चा तो रोकर चुप हो जाता है,
माँ के दिल में टीस उठती है |
वो पूछती है भगवान से...
निर्दयी... !
तूने ऐसा क्यों किया?
मुझे माँ बनाना ही था..
तो निर्बलता का साथ क्यों दिया ?
सच तू पत्थर ही है ...
जो तब भी नही पिघलता है,
जब मेरा "लाल"..
छोटे से खिलौने के लिए मचलता है..!
मेरी साड़ी खींचता है,
बार बार रोता है, कहता है ,
"मुझे आज यह चाहिए ही,
वरना मैं खाना नही खाऊंगा.."
अरे! उसे मैं कैसे समझाऊ?
बेटा... !! ऊपर वाले ने प्रण किया है,
तेरी माँ को बार बार रुलाऊंगा !
तू अशक्त है ! बार बार बताऊँगा |
ख़ैर, माँ बच्चे को लोरी सुनाती है
सो गया ..थोड़ा सुकून पाती है |
नहीं ! अभी कहाँ ?
अभी असली परीक्षा तो बाक़ी है
अभी पति की बातें भी सुननी हैं ,
बस ख़ामोशी ही सच्ची साथी है |
"हर बात मे बेटा बेटा करती है ,
सच ने तूने इसे बिगाड़ दिया |
देखा ! साले ने,
भरे बाज़ार मे कैसा लजवा दिया !
माँ बस ख़ामोशी से सुनती है..
पता है ..!
यह वो छत है ,
जो कितनी भी आँधियाँ चले, तूफ़ान आए..
कभी नही गिर सकती है |
ख़ुद गीली होगी,
बच्चे को बचाएगी..
बच्चा कहेगा...
"छत गंदी है टपक रही है"
पर छत को क्या ?
उसे पता है.. क्या करना है..
वो चुपचाप अपना काम करती जाएगी |
माँ का लाल बड़ा हो गया...
छोटा था , तब चेहरे की लाली अच्छी लगती थी..
माँ गोद में ले कर घंटो देखती थी..
आज लाल बड़ा हो गया ,
बात बात पर ग़ुस्से से लाल होता है !
पर माँ का प्यार जैसे नदी की धारा..
हमेशा बहता ही रहता है !
लाल कहता है ...
तूने मेरे लिए क्या किया ?
वो तो मैं था..
जो इतनी मुसीबतो मे पला ..
फिर भी "आदमी" बन गया
अब इस आदमी की आदमीयत क्या है ?
इस बात पर शोध होना चाहिए ...
पर माँ फिर भी ख़ुश !
कहती है बेटा तू ख़ुश रहे ...बस मुझे और क्या चाहिए?
सब सुनती है माँ पर चुप रहती है ..
और रहना भी चाहिए |
आख़िर कुछ भी हो वो माँ है,
इसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए..!
सच है, दुनिया मे किसी के सामने भले मत झुको ,
पर औलाद के सामने झुकना पड़ता है |
फूलवाला हो या काँटेदार यह एक पौधा है ,
जिसको ख़ून से सींचना पड़ता है !
औलाद... मतलब जैसे कोई लाटरी ,
अच्छी निकली तो मालामाल....
वरना जीवन भर रोना पड़ता है !
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता पर मेरी मिश्रित प्रतिकृया है।
कहीं कहीं कविता इतनी सशक्त है कि बरबस ही वाह निकलती है तो कही कहीं बिलकुल लचर। पहला पैरा संवेदित नहीं करता, काव्यात्मकता भी नहीं है। दूसरे पैरा में भी गहराई का अभाव है। तीसरे पैरा तक लगता है कि कविता झूल गयी है..
लेकिन आपकी लेखनी की धार यहाँ जा कर पुन: दीख पडती है:
"यह वो छत है ,
जो कितनी भी आँधियाँ चले, तूफ़ान आए..
कभी नही गिर सकती है |
ख़ुद गीली होगी,
बच्चे को बचाएगी..
बच्चा कहेगा...
"छत गंदी है टपक रही है"
पर छत को क्या ?
उसे पता है.. क्या करना है..
वो चुपचाप अपना काम करती जाएगी"
"लाल कहता है ...
तूने मेरे लिए क्या किया ?
वो तो मैं था..
जो इतनी मुसीबतो मे पला ..
फिर भी "आदमी" बन गया"
कविता के अंत नें पूरी रचना की गंभीरता समाप्त कर दी। विपुल जी इस कविता को पुन: तराशें। आपकी अन्य अच्छी रचनाओं कें इंतज़ार में..
*** राजीव रंजन प्रसाद
एक हद तक राजीव रंजन की टिप्पणी से सहमत हूं, परन्तु इतनी गूढ़ता की बातें मैं क्या जानूं!
मैं तॊ बस इतना जानता हूं कि कविता दिल में उतर रही है.... धीरे धीरे|
विपुल जी,
राजीव जी की टिप्पणी से मैं सहमत हूं..किसी विषय को ले कर उस को बांध कर चलना जरूरी है.. थोडा सा भी भटकाव रचना पर भारी पड जाता है..आप के रचना निम्न स्तर की कतई नही है.. बस शिल्प की आवश्यकता और है.
भाव बड़े सुंदर जान पड़ते है
, बात कावयातमकता की नही है और ना ही यह कहा जा सकता है कि कविता झूल रही है अथवा गहराई नही है यही कवि क़ि शैली है ....(पूर्व रचित कविताएँ देखें)जैसे तेरी माँ को बार बार रुलाऊंगा...वो अशक्त है बार बार बतलाऊँगा
वरण या कहें क़ि बस गटयातमकता ज़रा ज़्यादा रहती तो रचना अदभुत जान पड़ती पर मेरी नज़रों मे यह एक सुंदर रचना है
कविता में शिल्प भी है, हाँ यह ज़रूर है कि इस कविता का पूरा आनंद लेने के लिए कविता को एक ख़ास स्टाईल में पढ़ना होगा, या यूँ कहिए की गाना होगा। वैसे विपुल शुक्ला जी बहुत जल्द हिन्द-युग्म की सभी कविताओं को अपनी आवाज़ देने वाले हैं, तब शायद मंज़र बदल जायेगा।
कुछ पंक्तियों ने बहुत अधिक प्रभावित किया। जैसे-
आख़िर कुछ भी हो वो माँ है,
इसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए..!
औलाद... मतलब जैसे कोई लाटरी ,
अच्छी निकली तो मालामाल....
वरना जीवन भर रोना पड़ता है !
हाँ, यह भी बात है कि हिन्द-युग्म के पाठकों को यूनिकवियों से अधिक की उम्मीद रहती है, इसलिए विपुल शुक्ला से निवेदन करूँगा कि वो और मेहनत करें।
विपुलजी,
कविताओं में मुझे जिस चिज की तलास रहती है, वह आपकी इस कविता में है, मजा आया। मेरी नज़र में कविता का मूल भाव में है, भाव खुलकर सामने आने चाहिये, और आपकी इस कविता में भाव खुलकर सामने आये हैं...
मुझे आपकी इस रचना से कोई शिकायत नहीं, बधाई स्वीकार करें।
विपुल बहुत अच्छे भाव-प्रद रचना हैं,..हर माह जिस घर का ख़र्च महज़ 2500 रुपये से चलता है उस घर के बच्चे को 500 का खिलोना कैसे दिलवाया जा सकता है ! बिल्कुल सही लिखा है तुमने...
माँ का लाल बड़ा हो गया...
छोटा था , तब चेहरे की लाली अच्छी लगती थी..
माँ गोद में ले कर घंटो देखती थी..
आज लाल बड़ा हो गया ,
बात बात पर ग़ुस्से से लाल होता है !
पर माँ का प्यार जैसे नदी की धारा..
हमेशा बहता ही रहता है !
लाल कहता है ...
तूने मेरे लिए क्या किया ?
वो तो मैं था..
जो इतनी मुसीबतो मे पला ..
फिर भी "आदमी" बन गया
ये पक्तिंया आईने की तरह साफ़ है यही तो होता आया है दुनिया में...
सुनीता(शानू)
अच्छी भाव
कविता अच्छी बन पडी है विपुल जी
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
लिखते रहिये विपुल जी। कविता में धार खुद-बखुद आ जाएगा। बाकी आप तो यूनिकवि ठहरें, आप से सबको बड़ी उम्मीदें हैं। यह कविता भी अच्छी बन पड़ी है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसका विषय हीं बहुत अच्छा चुना है आपने। बस कहीं-कहीं शिल्पगत कमियाँ हैं। सुधर जाएँगी , बस इसी हौसले से नया कुछ देते रहिये हमें।
waah! kya kahuoon shabad nahi hai... kawita seedhe dil mein utarti hai.. chot karti hai marm par..Maa ki is se sahi wyakhyaa kya ho sakti hai.. aur jo sawaal uthe hain.. wo majboor karte hain khudmein jhaankne ko... sachmuch adbhut.. prwaah ek dum bhaawnaon jaisa hai.. kahin koi banawatipan nahi dikhta..aapka bahut shukriya....
लाल कहता है ...
तूने मेरे लिए क्या किया ?
वो तो मैं था..
जो इतनी मुसीबतो मे पला ..
फिर भी "आदमी" बन गया
अब इस आदमी की आदमीयत क्या है ?
इस बात पर शोध होना चाहिए ...
पर माँ फिर भी ख़ुश !
कहती है बेटा तू ख़ुश रहे ...बस मुझे और क्या चाहिए?
सब सुनती है माँ पर चुप रहती है ..
और रहना भी चाहिए |
आख़िर कुछ भी हो वो माँ है,
इसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए..!
in pnktioyn mein kuch aisa hai jo taareef ka mohtaaj nahi.. bas samjhane ki jaroorat hai..
Regards
Manya
माँ का लाल बड़ा हो गया...
छोटा था , तब चेहरे की लाली अच्छी लगती थी..
माँ गोद में ले कर घंटो देखती थी..
आज लाल बड़ा हो गया ,
बात बात पर ग़ुस्से से लाल होता है !
पर माँ का प्यार जैसे नदी की धारा..
मर्मस्पर्शी पंक्तियां हैं।
bahut hi marmik drshay ho jata hoga jab ek maa apne bachhe ko wo ahi de sakti jo use bahut si khushi de sakta hai
bahut hi bebas aur bahut majboor sa ehsaas hai ismain aur vipul ji aapne is kavita ka aisa varan kiya jaise ye aankhon ke saamne sajeev ho uthi chal chitra ke roop main aapki ek ek line hoti hue dekh saki
pahli baar aapko padha aur aapko hamesha padhne ka ab intezar rahega
wah vipul i liked ir very much very nise.
Regards - yamini
ha Bhai Shukla ji mazaa aa gayaa.
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