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Monday, April 26, 2010

तुम्हारे जन्मदिन पर और कुछ


मार्च 2010 के यूनिकवि विमल चंद्र पाण्डेय की कविता 'तुम्हारे जन्मदिन पर' पिछले हफ्ते प्रकाशित हुई थी, जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया। हिम्मत करके हम उस कविता की दूसरी कड़ी प्रकाशित कर रहे हैं।

तुम्हारे जन्मदिन पर-2

तुम्हारे आने और जाने के समय में कोई साम्य नहीं है
और यही मेरे डर का सबसे बड़ा कारण है
मेरी निर्द्वन्दता पर हमला
तुम आहट देती हो धीरे से अपने आने की
और जाते वक़्त तो बिलकुल खामोश ही होती हो
तुम उगी हो ज़मीन के बाहर-बाहर
तुम्हारी जड़ें फैली हैं अन्दर दूर तक
मैं तुम्हारी फनगियों को सहलाता हूँ
तुम शर्म से अपनी जड़ें सिकोड़ती हो
तुम्हारी साँसों के घटते जाने पर आज
हाँ, आज ख़ास तौर पर
मुझे बहुत चिन्ता हो रही है
तुम्हारे फलों का स्वाद लेने के बाद
एक अपूर्व सन्तुष्टि के बीच
तुम पूछती हो "हमने अभी जो किया वह प्रेम था न"
उस समय भी तुम्हारी बीतती साँसों में छिपी होती है मृत्यु
जो तुम अपने होंठों से मेरे भीतर उतारती हो
प्रियंवद की नायिका हो तुम
उद्दाम प्रेम में पगी, फिर भी कभी निश्चिन्त, कभी उद्विग्न
मेरे पास तुम्हें छिपाने के लिये हृदय से बेहतर कोई स्थान नहीं
जब हरी दूब की नोक पर रखा पाता हूँ तुम्हारे आँसू
इधर-उध नज़र घुमाने पर तुरन्त एक कोने में सहमी
मिलती हो तुम
तुम्हें छूता हूँ तो पेड़ हो जाता हूँ
और तुम एक लता
तुमने मुझे रोना सिखाया है
पूरी श्रेष्ठता में पूरा उठकर
पूरी तरह जगमग-जगमग रोना
मैं हमेशा रोता रहूँगा
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हें हृदय में रखूँगा इस तरह
जैसे आसमान नदियों में सुरक्षित रखता है अपना रंग
जैसे आँधियाँ झाड़ियों में छिपा रखती हैं अपना तोड़
जैसे साज़िन्दे सुर में सहेज रखते हैं अपनी आवाज़

यूनिकवि विमल चंद्र पाण्डेय

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2 कविताप्रेमियों का कहना है :

दीपक 'मशाल' का कहना है कि -

Prakriti ke sahare bahut sundar kavita nirmit kee apne preyasi ke liye..

kumar anupam का कहना है कि -

vimal chandra pandey hindi kahani ke chamkte sitare hain, kavita pradesh mein unki aamd swagatyogya hai. bahut badhai.

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