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Tuesday, April 27, 2010

लड़कियाँ जहाँ एक अजीब उधेड़बुन में रहती थीं


मार्च 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता की आठवीं कविता के रचनाकार अविनाश मिश्र का जन्म 5 जनवरी 1986 को गाजियाबाद में हुआ। शुरुआती शिक्षा कानपुर में, आगे के अध्ययन और आजीविका के लिए विगत आठ वर्षो से दिल्ली में रहनवारी। संगीत, रंगमंच तथा सिनेमा मे खास दिलचस्पी। अब तक हंस, कथादेश, समकालीन भारतीय साहित्य आदि पत्रिकाओं मे कविताएँ प्रकाशित।

पुरस्कृत कविताः जा तुझको सुखी संसार मिले

लड़कियाँ वहाँ एक अजीब उधेड़बुन में रहती थीं
जब पिता धावक में बदल जाते थे
और माँ एक बहुत बड़े आईने में
पिता लड़कियों की तस्वीरें लेकर
देर रात तक भागते रहते थे
वे उनके लिए आनंददाताओं की तलाश में थे

अब तक जैसा होता आया था
उसमें सबके एक-एक आनंददाता थे
बावजूद इसके ज़िंदगानियाँ रुआँसी ही रही आयीं
जब भी वक्‍त मिला या संग-साथ वो रो पड़ी

वे तनाव थीं और देखने पर झुक जाती थीं
आँखें उनमें न देखने का सदाचार जीती थीं
एक अक्षत असमंजस में
विरह या संयोग जैसा वहाँ कुछ भी नहीं था

स्त्रीत्व बस एक क्रम था
विवाह बस एक विकल्प
प्रेम बस एक शब्द
यात्राएँ बस एक विवशता
और हत्याएँ बस एक औपचारिकता

जहाँ वे रहती थीं एक अजीब उधेडबुन में


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

भूतकाल में लड़कियों एवं उनके परिवारों की दशा का बोध कराती रचना , बहुत बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

M VERMA का कहना है कि -

स्त्रीत्व बस एक क्रम था
विवाह बस एक विकल्प
प्रेम बस एक शब्द
यात्राएँ बस एक विवशता
और हत्याएँ बस एक औपचारिकता
और फिर सवाल तो उठने लाजिमी है कि इन सब के लिये जिम्मेदार कौन है
बहुत खूबसूरती से आपनी अपनी कविता को क्रम दिया है.

neelam का कहना है कि -

अब तक जैसा होता आया था
उसमें सबके एक-एक आनंददाता थे
बावजूद इसके ज़िंदगानियाँ रुआँसी ही रही आयीं
जब भी वक्‍त मिला या संग-साथ वो रो पड़ी

वे तनाव थीं और देखने पर झुक जाती थीं
आँखें उनमें न देखने का सदाचार जीती थीं
एक अक्षत असमंजस में
विरह या संयोग जैसा वहाँ कुछ भी नहीं था

स्त्रीत्व बस एक क्रम था
विवाह बस एक विकल्प
प्रेम बस एक शब्द
यात्राएँ बस एक विवशता

vimal ji ki tippni se ashmat bhootkaal nahi vartman paridrasya hai yah .

behtareen

kavi kulwant का कहना है कि -

sundar rachana...

rachana का कहना है कि -

sach ko aaina dikhati hai aap ki kavita.sunder hai
badhai
rachana

RAJEEV THEPRA का कहना है कि -

अविनाश यार....बहुत ही कडवी और निर्मम सच्चाई दिखाई दे रही है इस कविता में....अंतिम पैरे ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए सच.....क्या कहूँ....मैं तो कुछ कह भी नहीं पा रहा...

अपूर्व का कहना है कि -

पहली बार पढ़ कर यकीं नही होता कि इतने युवा कवि द्वारा लिखी गयी है यह प्रौढ़ कविता..चेतना के संकरे मार्ग पर चलती कविता सीधी ’बुल्स आइ’ का भेदन करती है..अपने उद्देश्य मे सर्वथा सफ़ल..और लड़कियों की उधेड़बुन के बहाने ही कुछ तल्ख सच्चाइयाँ सामने आती हैं..और परंपराओं की अतार्किक गिरहें कुछ और उलझ जाती हैं..और उस समाज के हिजाब खुल जाते हैं..जहाँ ’विवशता’ भी बस एक शब्दमात्र है..
हिंदयुग्म की पिछले कुछ समय की सशक्ततम रचनाओं मे से एक..

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