दोहा में कस-बल बहुत, लेकिन लघु आकार.
रचता नव इतिहास यह, साक्षी है संसार.
ग्यारह गुरु छब्बीस लघु, चल या बल दो नाम.
बिम्ब भाव रस-त्रिवेणी, दस दिश व्यापा नाम..
रजकण की महिमा अनत, अतुल धरम-विस्तार.
धरती के परमाणु की, महिमा अपरम्पार.. -शंकर सक्सेना
महुआ महका, पवन में सुरभित मंजुल राग.
सदा सुहागन वन्य श्री, वर ऋतुराज सुहाग.. - संजीव 'सलिल'
जनगण-मन को मुग्धकर, करे ह्रदय पर राज्य.
नव रस का यश कलश है, दोहों का साम्राज्य.. - संजीव 'सलिल'
परिवर्तन तो है नियम, उस पर क्या आवेश.
जब भी बदला है समय, बदल गया परिवेश.. -चंद्रसेन 'विराट'
दीरघ अनियारे सुगढ़, सुन्दर विमल सुलाज.
मकर छबी, बाढह मनो, मैन सुरूप जहाज.. - सूरदास मदन मोहन
चम-चम विद्युद्दाम हैं, तड़क रहे ललकार.
या अनंत-फ़ण कर उठे, उठ ऊपर फुंकार.. -डॉ.अनंतराम मिश्र 'अनंत'
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
सभी दोहे एक से एक बढ कर हैं आभार्
दोहे बहुत प्रभावशाली हैं
सभी दोहे प्रशंसनिए हैं. पढ़कर अच्छा लगा.
दोहा बतियाता रहा, मैंने साधा मौन,
बढ़ता जाये कारवाँ , रुका यहाँ है कौन?
प्रणाम आचार्य जी ,
बहुत समय तक कक्षा से दूर रहने के लिए माफ़ी चाहती हूँ, किसी कार्य में व्यस्त थी.
महुआ महका, पवन में सुरभित मंजुल राग.
1 1 2 1 1 2 1 1 1 2 1 1 1 1 1 1 1 2 1
सदा सुहागन वन्य श्री, वर ऋतुराज सुहाग.. - संजीव 'सलिल'
1 2 1 2 1 1 1 1 2 11 1 1 21 121
इस दोहे में ९ ही गुरु और २८ लघु मिले, जबकि आज के पाठ में आपने चल या बल नाम के दोहों की ११ गुरु और छब्बीस लघु मात्राएँ बताई हैं. क्या मैंने मात्राएँ गिनने में भूल की है?
पूजा जी!
आपका पुनर्प्रवेश पर स्वागत.
पिछले पाठ देखिये और लाभ लें.
महुआ महका, पवन में सुरभित मंजुल राग.
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सदा सुहागन वन्य श्री, वर ऋतुराज सुहाग.. - संजीव 'सलिल'
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प्रणाम आचार्य,,,
बढ़ता जाए कारवां,,,,यहाँ रुका है कौन,,,,
क्या बात है,,,
हम भी काफी दूर हो गए थे,,,खैर,,लौट ही आये,,,
:)
आचार्य जी
एक माह से पूना में थी इस कारण कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकी। अब निरन्तरता बनी रहेगी।
Gagar mein sagar bhar diya hai.
Badhayi.
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