जि़न्दगी थी, ग़म न था
हादसा यह कम न था
इश्क में होगी सजा
जानता आदम न था
आसमाँ नजदीक था
बस परों में दम न था
सोग में तो थे महल
पर वहाँ मातम न था
टेढ़ी मेढ़ी राह थी
गेसुओं का खम न था
जख्म की थी बस्तियां
पर वहां मरहम न था
बारिशें आँखों में थीं
अब्र का मौसम न था
दूब सूरज जब मिले
फिर दिखा शबनम न था
बेवफ़ा ये 'श्याम’ तो
ऐ मेरे हमदम न था
27/11/98.1 am श्यामसखा‘श्याम’
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25 कविताप्रेमियों का कहना है :
मित्रो
आज मैं आपको दावत दे रहा हूं अपने एक अन्य ब्लाग पर और इस दावे के साथ कि वहां मेरी रचनाएं आपको निराश न करेंगी
एक और बात कल जो गजल वहां पोस्ट की है
उसका
एक शे‘र देखें
देखता जब भी तुझे हूं सुन मेरी तू गुलबदन
साँस थमती और धड़कन लड़खड़ाती है कि बस
श्याम
http//:gazalkbahane.blogspot.com/
श्याम जी!
"गज़ल" के शेर भी पसंद आए और आपकी टिप्पणी के भी। आपको ब्लाग जरूर देखूँगा...कहने की कोई बात है क्या!
वैसे पहली मर्तबा यह हुआ है कि "लेखक" ने हीं पहली "टिप्पणी" भी की हो :)
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
उन घरों में सोग था
पर वहाँ मातम न था
bahoot khoob Shyam sakah ji.
उन घरों में सोग था
पर वहाँ मातम न था
श्याम सखा श्याम जी की कलम को तो मेरा सदा नमन है इस गज़ल ने तो मन मोह लिया बेहतरीन आभार्
देखकर सब चल दिए
जख्म थे, मरहम न था
बारिशें आँखों में थीं
अब्र का मौसम न था
mujhe to ye choti si gazal bahut raas aayi
अच्छी गज़ल है श्याम जी।
देखकर सब चल दिए
जख्म थे, मरहम न था
सुन्दर अन्दाज है।
सादर
बहुत अच्छी अच्छी ग़ज़ल है
आसमाँ नजदीक था
पर, परों में दम न था
उन घरों में सोग था
पर वहाँ मातम न था
टेढ़ी मेढ़ी राह थी
गेसुओं का खम न था
देखकर सब चल दिए
जख्म थे, मरहम न था
बारिशें आँखों में थीं
अब्र का मौसम न था
दूब सूरज जब मिले
फिर दिखा शबनम न था
क्या कहने !
दूब सूरज जब मिले
फिर दिखा शबनम न था
मेरे विचार से , जैसा कि प्रयोग होता है, सही हो गा ' शबनम न थी' किन्तु तब काफिया खराब हो जाए गा.
बेवफ़ा ये 'श्याम’ तो
ऐ मेरे हमदम न था
इस शे'एर में भी कहीं कुछ खटक रहा है .मेरे विचार से इस में भी गलती है , यह होना चाहिए ' मेरा हमदम न था' किन्तु 'ऐ' शब्द का प्रयोग तब भी समझ में नहीं आ रहा.
उन घरों में सोग था
पर वहाँ मातम न था
bhala kya arth hua is ka !!
उन घरों में सोग था
पर वहाँ मातम न था
इस शेर ने तो दिल लूट लिया
वीनस केसरी
आसमाँ नजदीक था
पर, परों में दम न था
मेरी नज़र में ग़ज़ल का सबसे अच्छा शेर.
ahashan sahib
आपने देखा हो शायद इस गज़ल के नीचे इसके होने ,कहने की तारीख भी लिखी है,मैने यह गज़ल जस की तस पोस्ट कर दी थी,उसके पीछे मंशा भी थी कि
नव -गज़लकार जाने की हम कैसी-कैसी गलतियां भूलकर कर बैठते हैं ,यह गज़ल मेरे संग्रह-दुनिया भर के गम में सन२००७ में प्रकाशित हुई है वह हिन्द युग्म के कुछ सद्स्यों के पास भी है।उस संग्रह में शबनम वाला शे‘र नहीं है यानि निकाल दिया गया था kyonki shabanamस्त्री-लिंग में प्रयुक्त होता है जैसा आपने कहा है,
और श्बनम न थी
करने से रदीफ़ गड़बड़ा जाएगा-
कुछ और अशआर में भी तबदीलियां हुई हैंवहां उस संग्रह में -अब उस रूप में सेट किया है कृपया दोबारा गौर फर्माएं और मक्ते में तो ठीक कहन है वहां कहा जा रहा है ऐ मेरे हमदम ये श्याम बेवफ़ा तो न था
संभव हो तो मेरे ब्लॉग पर भी अपनी पारखी नज़र डालें
श्याम सखा‘श्याम’
आसमाँ नजदीक था
पर,परों में दम न था ।
बहुत ही गहरे भाव, बेहतरीन गजल के लिये आपका आभार ।
बारिशें आँखों में थीं
अब्र का मौसम न था....
waah...
आसमाँ नजदीक था
पर, परों में दम न था
is gazal ka behrtreen she'er, bila shak o shubha
आसमाँ नजदीक था
बस परों में दम न था
अक्सर ही एसा होता है बहुत ही सुंदर शेर है
जख्म की थी बस्तियां
पर वहां मरहम न था
सुन्दर शेर
सादर
rachana
जख्म की थी बस्तियां
पर वहां मरहम न था
itani khubsoorat sher hai ki bayaan nahi kar sakata.........jindagi kuchh isi tarah ki hoti hai
छोटी बहर मगर मस्त निभाया.
इश्क में होगी सजा
जानता आदम न था
आसमाँ नजदीक था
बस परों में दम न था
सोग में तो थे महल
पर वहाँ मातम न था
जख्म की थी बस्तियां
पर वहां मरहम न था
अब क्या कहें श्याम जी-खूब-खूब
अब तो कई बार जलन होने लगती है आपसे
ek achhi ghazal ....lekin jis sher ne sabse gehra asar choda wo ye hai ....
इश्क में होगी सजा
जानता आदम न था
bahut khub sir.....
काफी समय बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली ग़ज़ल अच्छी लगी
आप के ब्लॉग पर भी जरूर आऊँगा
काफी समय बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली ग़ज़ल अच्छी लगी
आप के ब्लॉग पर भी जरूर आऊँगा
श्याम जी आपकी गजलें अलग होती हैं, यह सब कहते हैं, पर आपकी दो पंक्तियों ने आपके विशाल एवं संवेदनशील हृदय का परिचय दिया।
आभार.......
श्याम जी आपकी गजलें अलग होती हैं, यह सब कहते हैं, पर आपकी दो पंक्तियों ने आपके विशाल एवं संवेदनशील हृदय का परिचय दिया।
आभार.......
Gazal Wah wah...!!!!!!1
Badhayi.
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