स्वप्निल कुमार "आतिश" इन दिनों दिल्ली में हैं, लेकिन पैदाइश गाजीपुर(उत्तर प्रदेश)की है। B.Sc biotechnology की पढ़ाई कर चुके स्वप्निल के परिवार में इस तरह का माहौल रहा कि शायरी और साहित्य से रिश्ता बन गया। बचपन से लिखते रहे हैं। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में कुछ ग़ज़लें/ नज्में प्रकाशित हो चुकी हैं और हिंद युग्म पे पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं।
कविता
ये सहरे का सपना है
देखो कितना गीला है
मुझसे मिलता-जुलता है
सन्नाटे का चेहरा है
नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है
अपने घर के कोने में
गीली आँखें रखता है
मुझको दुनिया रास कहाँ
मकड़ी का घर कोना है
पूरी शब आकाश पढ़ो
सबका कच्चा चिट्ठा है
कमरे में कितने मच्छर
कहाँ आदमी तन्हा है
आइने की खिड़की पे
चेहरा दस्तक देता है
चाँद के रौशन माथे पर
लगा दीए का टीका है
शोहरत की आवाज़ सुने
इंसा कितना बहरा है
आँच लगी तो पता चला
आतिश सच्चा सोना है
प्रथम चरण मिला स्थान- चौथा
द्वितीय चरण मिला स्थान- ग्यारहवाँ
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है
बहुत सुन्दर कवित है बधाई
कमरे मे कितने मच्छर
कहाँ आदमी तन्हा है
हा हा हा सच कहा है
मुझे तो बहुत भाई ये रचना....लिखते रहें भाई
अच्छी रचना!
शोहरत की आवाज़ सुने
इंसा कितना बहरा है
क्या बात है ?
लिखते रहें!
it deserved much higher rank than eleventh.
ahsan
swapnil,
bahut sundar rachna..maza aaya padh kar
badhai
मुझसे मिलता-जुलता है
सन्नाटे का चेहरा है
नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है
आतिश साहब मुबारक हो.
so sweet.....
ALOK SINGH "SAHIL"
कमरे में कितने मच्छर
कहाँ आदमी तन्हा है :))
शोहरत की आवाज़ सुने
इंसा कितना बहरा है
उन्मुक्त भाव !!
aap sab ka tah-e-dil se shukriya ...
aap logon ka sath pana achha laga .....
आप ने छोटी छोटी बात को बहुत ही खूबी से कहा है आँख की डिबिया और हिंग की महक बहुत नया लगा .मच्छर की बात को देश याद आगया हाँ मच्छर की गुनगुनाहट अन्नाते तो तोड़ती थी आप को बधाई बहुत खूब लिखा है
रचना
rachna ji aap ne rachna ki khubiyon ko dekha .... achha laga
tah e dl se shukriya aap ka
jabardast.....
jabardast.....
bhaai kya bala hai ye ,
नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है
heeng ki tarah khwaab ki baat hajam hi nahi ho rahi hai ,waise heeng haajme ko durust rakhti hai
hhahahahahahaahahahahahahahhaah
shefali ji .....aap ko yahan dekh kar achha laga.....
shukriya aap ka ......
neelam ji ...shayd ise bala nahi "rupak " aur "upma " kahte hain ..
dibiya ko aankh ke roopak ke taur pe istemal kiya hai ..aur heeng ki upma khab ko di hai ..
jaise ek chhoti si bibiya me band heeng dibiya ke khulte hi apni khushbu charo taraf faila deti hai ..
waise raat ko dekha gaya khushnuma khab subah aankh khulte hi mann ko khushbu se bhar deta hai ..
ummid hai ab aap ko she'r samjh aaya hoga ..
baki bhagwaan aapka hazama durust kare .aisi naram cheezen bhi aap se hajam nahi hueen to ...
hehehehehe
नन्ही आँख की डिबिया में
ख्वाब हींग सा महक़ा है
शोहरत की आवाज़ सुने
इंसा कितना बहरा है
bahut khoob Aatish bhai.......
zor-e-kalam parwaaz paaye...
thankuu sooo musch raviiiiii :)
Atish,
ek lajawab aur behad kamal ki rachana he...badhai aur bhavishya ke liye shubhkamnaye.
Upmeya upmano ka paryog sartak hai.
Badahayi.
yeh to mujhe bahuta cchi lagi
badhai ho badhai
anjali , manju ji , vandana ji ...
aap sbaka tah e dil se shukriya hai ji ........
आइने की खिड़की पे
चेहरा दस्तक देता है ।
बहुत ही सुन्दर रचना ।
sundar!!
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