दोहा है सबका सगा, करे कामना पूर्ण.
छंदराज में समाहित, काव्य-शास्त्र सम्पूर्ण..
किसने किससे क्या लिया, पढें-करें अनुमान.
शे'र और कप्लेट का, मिला हमें कुछ ज्ञान..
हुई कुण्डली से तनिक, जिसकी भी पहचान.
गले कुण्डली से मिला, बन रसनिधि-रसखान. .
शन्नो जी!
गुरु जी अब कप-प्लेट का, छोडें चक्कर आप.
पी गिलास में चाय लें, शक्कर डालें नाप..
रखा जैम में क्या कहें, खाएं बस गुलकंद
कपलेट को हम भूलकर, गाएन अपने छंद..
शुद्ध किया मम कार्य को, मिला ज्ञान का नीर.
आभारी हूँ मैं बहुत, चल दोहे के तीर..
इच्छा पूरी मैं करुँ, है सचमुच अनिवार्य
हे ईश्वर! मैं क्या करुँ, पूर्ण हो सके कार्य..
लज्जित मुझे न कीजिये, करके मुझे नमन
मैं अपने श्रद्धा-सुमन, करती रहूँ अर्पन..
मनु जी रहे अलाप अब, बहुत अनोखा राग
अंतरिक्ष पर जाऊंगा, मैं जल्दी ही भाग..
गुरु जी! करिये अब दया, खींचें मनु के कान
मस्ती सारा दिन करें, हुए बहुत शैतान.
पैर कुल्हाडी मार ली, शन्नो ने हो त्रस्त
कहाँ पताका अजित की, खाली है अब हस्त.
मनु जी! वंदन आपका, किया अनूठा काम.
बहर खोजकर ला रहे, दोहा की अभिराम.
मफाइलुन मुत्फ़ाइलुन फेलुन फाल फ़ऊल
कलम पटक कर भाग लीं, शन्नो जी फ़िलहाल.
झपट अजित जी ने कलम, फिर थामी तत्काल..
फ़यिलातुन फेलुन फऊ फ़यिलातुन मफऊल
झंडा ले मनु आ गए, करने फिर उत्पात.
कहते हैं यह काम ना, करें- उठे ज़ज्बात..
फेलुन फेलुन फ़ाइलुन फेलुन फेलुन फाय
काम न मुश्किल था मगर, मुश्किल था यह काम.
काम करा बिन काम के, दोहा-झंडा थाम..
जान बहर को यह लगा, हूँ खुशियों से दूर.
भीतरवाली बहर को, सौत नहीं मंजूर..
बाहर-भीतर के नहीं, पड़ें फेर में आप.
दोनों को गर जान लें, यश पाएंगे आप..
अंगरेजी मन भाया दोहा:
दोहा के चमत्कारिक प्रभाव से अंगरेजी बच नहीं सकी. 'हीरोइक' अर्थात वीर-काव्य में सामान्यतः इसी छंद का प्रयोग किये जाने से इसे 'हीरोइक'' की संज्ञा मिली. इसकी प्रत्येक पंक्ति 'आयम्बिक पञ्चपदी' होती है अर्थात अतुकांत छंद की भांति प्रत्येक पंक्ति में दस शब्दांश होते हैं जिनमें से ५ दीर्घ होते हैं. सामान्यतः हृस्व पद पहले तथा दीर्घ पद बाद में होता है.
यथा-
''to err / is hu' / man, to' / forgive' / divine.''
अर्थात- त्रुटि है मानव-सुलभ, क्षमा करना देवोपम.
(सन्दर्भ- विलियम हेनरी हडसन, अंगरेजी साहित्य का इतिहास, अनु. जगदीशबिहारी मिश्र, पृष्ठ १००, १०९, १३१, १३२, १३९, २१७)
सर्व प्रथम महापंडित-महाकवि मिल्टन (९ दिसम्बर १६०८- ८ नवम्बर १६७४) ने 'पैराडाइस लास्ट' के लिये 'तुकरहित हीरोइक छंद चुना. कालांतर में अतिरंजना व दुर्बोधता की शिकार 'मेटाफ़िजिकल' कवियों की रचनाओं से क्लांत अंगरेजी छंदशास्त्र का सुधार एडमंड बॉलर (१६०५-१६८७) तथा सर जॉन डेग्हम (१६१५-१६६९) ने किया. ड्राइडेन (१६३१-१७००) के अनुसार 'बॉलर से पूर्व तुकांत की श्रेष्ठता और भव्यता का ज्ञान किसी को नहीं था. उसी ने हमें इसका ज्ञान कराया...लेखन को कला बना दिया...बताया कि किस प्रकार प्रत्येक भावः कि समाप्ति दोहे कि दो पंक्तियों में ही की जा सकती है. उसने 'हीरोइक दोहे के 'क्लासिक' ( निमीलित ) रूप को प्रचलित किया जिसमें भाव एक दोहे से दूसरे दोहे में अबाध रूप से न चलकर दूसरी पंक्ति के साथ समाप्त हो जाए. पॉप (१६८८-१७४४) तथा डेनहम ने इसे पूर्णता के शिखर पर पहुँचाया. पॉप के 'एस्से ऑफ़ क्रिटीसिज्म' की प्रसिद्ध पंक्तियों में कवि काव्य-देवी के अश्व को एड लगाने की अपेक्षा उससे पथ- प्रदर्शन की अपेक्षा करता है-''T'is more to guide than spur the Muse's speed,
Restrain his fury, than provoke his speed,
The winged coarser, like a gen'rous horse,
Shows most true mettle when you check his course,
Those rules of old discovere'd not devise'd,
Are Nature still, but nature methodise'd,
By the same laws which tirst herself ordained.
Learn hence for ancient rules a just esteem,
To copy Nature is to copy them.
(लहरों पर नाव -डॉ. कृष्ण कुमार सिंह ठाकुर)
अर्थात-
काव्य-कल्पना के घोडे को, एड लगा मत वेग बाधाएं.
आवेशों को करें नियंत्रित, मार्ग निदर्शन उससे पायें..
उड़न अश्व की सच्ची प्रतिभा होती केवल तब ही दर्शित.
चालक वल्गा थाम करों में करता हो जब चाल नियंत्रित..
अन्वेषित प्राचीन काल में, नियम नहीं थे केवल कल्पित.
प्रकृति सदृश वे नियम अभी भी, प्रकृति सदृश हैं पूर्ण व्यवस्थित..
स्वंत्रता के सदृश प्रकृति भी रहती है बंधन में.
उन नियमों के, जिन्हें बनाया स्वयं उसीने मन में.
अतः' पुरातन नियमों का सम्मान, उचित करना है.
नियम पालना ही प्रकृति के साथ-साथ चलना है.'
क्लासिकल दोहा छंद का पॉप-रचित निम्न उदाहरण उसके काव्य नैपुण्य का परिचायक है.
'A wits a feather and a chief a rod.
An honest man's the noblestwork of God.'
अर्थात-
वाक-चतुर है पंख और मुखिया है दंड समान.
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति-मानव- जिसमें ईमान..
वाग-विदग्धता के कुहासे से नैसर्गिक रोमांटिकता के उल्लासपूर्ण परिवेश में अंगरेजी दोहा लोकप्रियता के सोपानों पर अभिषिक्त हुआ. वर्ड्सवर्थ (१७७०-१८५०) की पंक्तियों का आनंद लें-
'Bliss was it in that dawn to be alive.
But to be young was very heaven.'
अर्थात-
उस ऊषा में जीवित रहना ही था परमानन्द.
किन्तु युवा होना तो सचमुच ही बस स्वर्गिक था.
कप्लेट-गाथा छोड़ चलें हम, दोहा की रंग-छवियों में-
बुन्देली दोहा-
मन्दिर-मन्दिर कूल्ह रै, चिल्ला रै सब गाँव.
फिर से जंगल खों उठे, रामचंद के पाँव..- प्रो. शरद मिश्र.
छत्तीसगढी दोहा-
चिखला मती सीट अऊ, घाम जौन डर्राय.
ऐसे कायर पूत पे, लछमी कभू न आय.. - स्व. हरि ठाकुर
बृज दोहा-
कदम कुञ्ज व्है हौं कबै, श्री वृन्दावन मांह.
'ललितकिसोरी' लाडलै, बिहरेंगे तिहि छाँह.. -ललितकिसोरी
उर्दू दोहा-
सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग हर रीत.
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाये गीत.. - निदा फाज़ली
मराठी दोहा- (अभंग)
या भजनात या गाऊ, ज्ञानाचा अभंग.
गाव-गाव साक्षरतेत, नांदण्डयाचा चंग.. -- भारत सातपुते
हाड़ौती दोहा-
शादी-ब्याऊँ बारांता , तम्बू-कनाता देख.
'रामू' ब्याऊ के पाछै, करज चुकाता देख.. -रामेश्वर शर्मा 'रामू भैय्या'
भोजपुरी दोहा-
दम नइखे दम के भरम, बिटवा भयल जवान.
एक कमा दू खर्च के, ऊँची भरत उदान.. -- सलिल
निमाड़ी दोहा-
जिनी वाट मं$ झाड़ नी, उनी वाट की छाँव.
नेह, मोह, ममता, लगन, को नारी छे छाँव.. -- सलिल
हरयाणवी दोहा-
सच्चाई कड़वी घणी, मिट्ठा लागे झूठ.
सच्चाई कै कारणे, रिश्ते जावें टूट.. --रामकुमार आत्रेय.
राजस्थानी दोहा-
करी तपस्या आकरी, सरगां मिस सगरोत.
भागीरथ भागीरथी, ल्याया धरा बहोत.. - भूपतिराम जी.
गोष्ठी के अंत में -
कथा विसर्जन होत है, सुनहुं वीर हनुमान.
जो जन जहाँ से आयें हैं, सो तंह करहु पयान..
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
Good Dohas
I liked these
न न करते ,हम भी दोहे पढने लगे ,
चाहते नहीं थे ,फिर भी हम रमने लगे |
बहुत बहुत अच्छी जानकारी ,आभार आपका
आचार्य जी
आचार्य जी
दोहा कक्षा के माध्यम से हमने छंद के बारे में बहुत ज्ञान प्राप्त किया। यह सब आपकी मेहनत और धैर्य का ही परिणाम रहा। दोहे का छंद हमेशा आकर्षित करता था लेकिन इसका पूर्ण ज्ञान नहीं था। मात्राओं को गिनने में भी कहीं न कहीं चूक हो ही जाती थी। आपने हमें जो ज्ञान दिया उसके लिए हम सब आपके आभारी हैं। हिन्दयुग्म के माध्यम से कक्षाओं का संचालन सभी के लिए हितकारी है। इसी प्रकार की अन्य कक्षाएं भी संचालित की जाएंगी तो सभी का सैद्धान्ति पक्ष और सुदृढ होगा। पुन: आभार।
प्रत्येक दोहे में एक सार्थकता है,और रोचकता....
गुरु जी प्रणाम,
आप कक्षा में आये. अद्भुत! बहुत अच्छा लगा. हमें लग रहा था कि आप हमें छोड़कर कहीं चले गये हैं. और मनु जी रोने-रोने को हो आये थे.
कक्षा के साथिओं आपसे कुछ कहना है यहाँ.
और आचार्य जी, उर्फ़ Our Great Master of Doha-kaksha:
I have brought some of my own Hindi - Dohas
And turned them into couplets to your delight
Have no complaints now, hope they amuse you
Don't taunt me either, and take pity on my plight.
1.
क्यों इतना मचा रखा, सबने यहाँ द्वंद
अंग्रेजी में हो रहे, अब यह दोहा-छंद.
What's wrong, and this fuss all about
Now English couplets in, hindi - Dohas out.
2.
ना भागी मैदान से, और ना कन्फ़ूज़न
अब यहाँ पर हो रहा है, दोहों का फ्यूजन
I havn't run away nor am confused
Master now wants doha-couplet fused
3.
गुरु जी का व्यंग सुना, कान नहीं हैं बन्द
मुझे तो अब मुदित करें, अपने दोहा - छंद.
I heard Master's taunts but my ears are not shut
I still prefer Dohas instead of English Couplets.
4.
अपने गुरु जी हैं बने, अंग्रेजी के भक्त
कक्षा में पलट दिया, अब मेरा ही तख्त.
Now our Guru ji have become a devotee of English
Having turned tables on me is wallowing in it's bliss.
I have noticed I made a slight grammatical mistake by using the wrong verb in a sentence, unintentionally.
'Now our Guru ji have become a devotee of English.'
Instead of 'have' the right verb is 'has'.
क्या बात है शन्नो जी,,,,,,,
कमाल किया है आपने,,,,,और शुक्र है के ट्रांसलेट भी कर दिया वरना दिक्कत हो जाती हमें तो,,,,
मजा आ गया ,,,,,, आपको बहुत बहुत बधाई,,,,,,,
एक और संशोधन:
3.
गुरु जी का व्यंग सुना, कान नहीं हैं बन्द
मुझे तो अब मुदित करें, अपने दोहा-छंद.
I heard Master's taunts as my ears are not shut
I still prefer Dohas instead of English Couplet.
Another unintentional mistake :
In the first line of couplet 'As' is right here because 'but' changes it's meaning.
मनु जी,
समझाने की आपको, मेरी नहीं बिसात
प्रतिभावान हैं स्वयं, देते सबको मात.
For thinking of me so high you are too kind.
But talented as you are you leave us all behind.
अभिभूत हूँ - आचार्यजी की व्याख्या से
और शन्नोजी की प्रतिक्रिया से ।
आचार्य जी ज्ञानवर्धन का बहुत आभार..
यथा - पढ़कर मन अति आनंदित हो गया
नमन है आपको मेरा !!
शन्नो जी तो मेरिट लिस्ट वाली छात्र हो गई हैं..बहुत खूब लिखतीं हैं
मनु जी ..दोहों में भी महारथ?? talented student :)
हरिहर और सतीश से, मिल दोहा परिवार.
है प्रसन्न, आ गया है, सब पर नवल निखार..
नीलाभित नीलम करे, सेहर-मन को मुग्ध.
रश्मि प्रभा की कांति वर, गंगा लगतीं दुग्ध..
मनु बहरों को बताते, बहरों के गुण खूब.
अलंकार यह यमक है, इसे समझ लें डूब..
जनगण-मन होता अजित होती है सरकार.
द्वेष श्लेष से मत करें, बिखरें बारम्बार..
शन्नो जी सोनेट को, आप न जाएँ भूल.
हिंदी-अंग्रेजी हुईं, ठंडी-ठंडी-कूल..
हिंदी मैया धारती, भाँति-भाँति के रूप..
कुछ की रंगत दिखाता, दोहा दिव्य अनूप..
शेष रहे जो लाइए, खोज-खोज कर मीत.
मन जीतें मन हारकर, मन हारें मन जीत..
छिपा न भागा था 'सलिल', गया राम के धाम.
लखनऊ हो लौटा तुरत, करता विनत प्रणाम..
दोहा ना आउट हुआ, कप्लेट हुआ न इन.
शन्नो जी संग नाचता, ता-ता-ता-ता-धिन..
फ्यूजन कन्फ्यूजन नहीं, और न इंग्लिश-भक्त.
हम सबमें है एक ही, हिंदी माँ का रक्त..
गिरतीं मिस मिस्टेक से, झेंपें बिन मिस्टेक.
फिर उठतीं मिस टेक कर, नैना होते लेक..
आँसू औ' मुस्कान दे, पूरे हुए चुनाव.
भाव किसी का बढ़ गया, गर किसी का भाव..
होमवर्क यह लाइए, कुछ दोहे सरकार.
जो कह दें सरकार से, कैसी हो सरकार..
आदरणीय आचार्य जी,
सोंनेट का वादा रहा, पूरा करुँ जरूर
समय की तंगी से कुछ, मैं बेहद मजबूर
मैं बेहद मजबूर, कहीं को अब है जाना
फिर हैं कार्य अन्य, यह ना कोई बहाना
शन्नो बेबस बहुत, काम ज़रा हैं ज्यादा
कभी पूरा होगा, सोंनेट का भी वादा.
तो अब गुरुवर दें मुझे, जाने की इजाज़त
आ ना जाये कहीं से , फिर कोई मुसीबत.
आचार्य जी, गुड मोर्निंग
आपने भड़काया जो, यह है अब प्रतिक्रिया
दोहे सीखे आपसे, तर्क हमें आ गया.
दोहे-कप्लेट से अब, मैं हो गयी टुन्न
नाच-नाच कर हो गये, पैर मेरे सुन्न.
देख रहे हैं लोग सब, बहुत और नचैया
मनु, अजित अब नाचेंगें, यहाँ ता-ता थैया.
आचार्य जी,
''सोनेट का वादा रहा'' में १४ मात्राएँ हो गयी हैं (क्यों, क्यों, क्यों हो जाती हैं यह गलतियाँ???)
इसलिये:
''सोनेट का वादा भी'' समझियेगा जैसा आखिर के चरण में है.
शन्नो जी दोहा रचे, मनुजी बांचे शेर
ये दोनो ही प्रथम हैं, हम तो होते ढेर।
आचार्य जी,
आप ढेर तो बहुत हैं, पर न हुये हैं ढेर
मनु अगर शेर हैं यहाँ, तो आप सवा सेर.
सॉरी, आचार्य जी वह आप नहीं थे अजित जी थीं. मैं अजित जी को आप समझ बैठी थी.
अजित जी,
दिमाग जरा उलझन में है, इसलिए कन्फयूजन हो गया. गुरु जी को संबोधित कर गयी मैं. अब मैं क्या करुँ? वह मुझे धिक्कार रहे होंगे और शायद मन ही मन में कोस भी रहे होंगे. कोई बात नहीं आजकल जरा चिकना घड़ा बनने की कोशिश कर रही हूँ. तो चलिए फिर से लिखती हूँ आपके लिए:
आप ढेर तो बहुत हैं, पर न हुयी हैं ढेर
पकडे झंडा आप हो, मनु अगर सवा सेर.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)