दफ्न कर दो मुझे भी अब
जी नहीं सकता मैं भी
और तुम भी नहीं सहन कर सकते
मेरा चैतन्य होना
दफ्न कर दो मुझे अब क्योंकि
दफ्न कर चुके हो तुम सारी मर्यादाएं
हर विषय
जड़-चेतन
स्वतंत्र सोच और निस्सीम शब्द
आह और पुकार
चिंतन का विस्तार
विद्रोह से उपजे कुछ अनुत्तरित प्रश्न
दफ्न कर दो मुझे
क्योंकि जाने कितने ही भेंट चढ़ गए इस क्रांति की
कुछ असहाय और बेबस थे
तो कुछ खुद्दार और दुस्साहसी
पर जो भी हो खून तो सबने ही बहाया न
दफ्न कर दो मुझे भी अब क्योंकि
मैं जानता हूँ कि
मेरी मृत्यु ही मेरे पुनर्जन्म का आधार है
मेरे अस्तित्व की नवीन देह और
आस्था का विस्तार है
मैं फिर जन्म लूँगा
सूरज की पहली किरण के साथ
तमस को चीरता हुआ
सागर की लहरों से स्वागत पाता हुआ
भौर में औंस की बूंदों को बाहों में समेटे
धरती के गर्भ से अंकुर सा फूटता हुआ,
बेखौफ दफ्न कर दो मुझे
पर ये समझ लेना
की मुझे दफ्न करना नहीं है
मेरी आत्मा को दफ्न करना
मेरी चेतना को दफ्न करना
क्योंकि तुम देख नहीं पा रहे हो मैं यहीं हूँ
मेरा अंश कहीं न कहीं तो बिखरा ही है
सूरज की किरण
औंस की बूँद
सागर की लहरें और
धरती की ऊपरी सतह की कोमल मिट्टी
मुझे फिर जन्म देंगी
एक विद्रोह के लिए
एक क्रांति के लिए
एक परिवर्तन के लिए
अरुण मित्तल "अद्भुत"
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
दफ़्न कर भी दीजिये इन्हें अब ,
हा हा हा हा
अच्छी क्रांतिकारी विचारों से परिपूर्ण एक ओजपूर्ण कविता अद्भुत जी |
are aapne to pahale hii dafan kar rakhaa hai ham kyaa karen mere saamne to kavita ka sheershk hee dikhaai de raha hai kavita kahaan gayee
अरूण जी,
खूब लिखा है, किसी विचार को दफ़न करना इतना आसान नही है।
मन मोह लेती है :-
मैं जानता हूँ कि
मेरी मृत्यु ही मेरे पुनर्जन्म का आधार है
मेरे अस्तित्व की नवीन देह और
आस्था का विस्तार है
मैं फिर जन्म लूँगा
सूरज की पहली किरण के साथ
तमस को चीरता हुआ
सागर की लहरों से स्वागत पाता हुआ
भौर में औंस की बूंदों को बाहों में समेटे
धरती के गर्भ से अंकुर सा फूटता हुआ
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
माफ करना भई, पर मुझे तो कोई मैटर ही नहीं दिखा, फिर पता कैसे चले कि किसे दफन किया जाना है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पूरा का पूरा कथ्य सर्वसामान्य याने generalised लगा |
आपकी और अच्छी रचना की प्रतीक्षा में |
अवनीश तिवारी
अरुण जी की कविता दफन कर दो मुझे '' मेरा रोम-रोम खडा कर गयी |
संगीता
अरुण जी की कविता दफन कर दो मुझे '' मेरा रोम-रोम खडा कर गयी |
संगीता
धरती की ऊपरी सतह की कोमल मिट्टी
मुझे फिर जन्म देंगी
एक विद्रोह के लिए
एक क्रांति के लिए
एक परिवर्तन के लिए
......बहुत ही बढिया
मुझे लगा के किसी नंबर वन वाले यूनी कवी की रचना पढ़ रहा हूँ,,,,,,,,
अंत में नाम देखा तो अपने आठवें नवें नंबर वाले अद्भुत जी हैं,,,,,
सुंदर प्रयास,,,,,
जबरदस्त प्रेशर,,,,,( कविता समय पर पोस्ट करने का )
का हो गया है भाई जी,,,,,,,,,
आप तो वाहक बनते ही नाहक लिखने लगे,,,,,,
छंद में आओ डीयर,,,,,
कही कही वाकई मजा आया है
पर इस प्रकार की अकविता के लिए भी एक अलग ही कुशलता चाहिए,,,,,,
या ये भी हो सकता है के मैं ही ज्यादा गहराई में नहीं उतर पाया हूँ......
मनु जी,
मैं कभी प्रेसर में नहीं लिखता और दूसरी बात ये है की कम से कम २० गजले तो रखी ही हैं पोस्ट करने के लिए तो ऐसा नहीं है की शुक्रवार नजदीक आया तो १५ मिनट में कोई भी बौद्धिक व्यायाम
लिखा और डाल दिया हिन्दयुग्म पर
सच तो ये है की ये कविता मैंने इस माह की कविता प्रतियोगिता के लिए भेजी थी जवाब मिला की आप तो वाहक हो गए हैं इसलिए कविता प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकते हैं मैंने कहा ठीक है फिर इस कविता का क्या करें क्योंकि अकविता को मंच पर या किसी भी महफ़िल में तो सुनाया नहीं जा सकता पर हिन्दयुग्म मुक्त छंद को स्वीकार करता है ही इसलिए यहाँ पोस्ट कर दी,
अगली बार से फिर गजल में एंट्री ................
अरुण अद्भुत
kawita agar thodi aur kasi-bandhi hoti; bhaavon, vichaaron aur shabdon ki kayi jageh punravratti hai.
भाई ,
हम भी तो यही कह रहे हैं के "एक्स्ट्रा" थी तो हम को दे देते ना,,,?????????
क्या पता अब के हम ही बन जाते नम्बर वन.....!!!!!!!!!
Lekin dafan hona kya vakai itna asaan hai? Iss kavita mein rawaani hai, vidroh hai, sapna hai...aur haquiqat hai. Shayad zindagi ka yahi mukhtsar sa falsafa hai.
Ek nayaab kavita hai!
Ashwani Roy
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