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Friday, May 15, 2009

जनता की किस्मत फूटी


झगड़ा हुआ नेताजी और पत्रकार में
मंहगाई की मार से बावले हुये पत्रकार ने
मला सिर पर बाम
लगाया नेताजी पर इलजाम
किसी कोमलांगी के बदन को छूकर
उसके घूंघट की ओंट से निकला एक विडियो टेप
दूसरे दिन व्यभिचार¸ दुराचार की
सुर्खियां छाई
बड़े बड़े अक्षरों में
हाय तौबा हुई
टांग खिंचाई की जनता ने
नाराज हो कर पत्रकारिता की गंदी चाल पर
नेता चिल्लाया और झल्लाया
गेर जिम्मेदार मिडिया पर
भनभनाया "उस दो कौड़ी के पत्रकार" पर
झगड़े मे फंसी युवती से
नाटक किया राखी का
शब्दों की बैसाखी का
उल्टा फंसाया कलमघीसू को
हथकड़ी पहनाकर
बाजार मे घुमाया
हुआ हंगामा सदन में
जब जनता रोती रही रोजी रोटी को
बिजली, पानी और सूखी खेती को
तो जिम्मेदार मिडिया और सूचना के नियन्त्रण पर
भाषण हुये एक्ट बनाने
असंतुष्टो को मनाने
सेमिनारों पर
रकम हुई स्वाहा
मुहं से निकला अहाहा !
मलाई गई नेताजी को
हिस्सा मिला पत्रकार को
मिलीभगत हुई, लड़ाई टूटी
पर दोनो की इस मारामारी में
जनता की किस्मत फूटी।

-हरिहर झा

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

kuch to naya nahi hai isme ,kuch khaas nahi lagi .

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

जनता का किस्मत फूटी। गलत है | " की " रखिये

देश में चुनाव के मौसम के लिए सुन्दर रचना |


अवनीश तिवारी

rachana का कहना है कि -

जनता के दर्द को बताती अच्छी कविता .
सादर
रचना

Yogendramani का कहना है कि -

वास्तव में आजकल यही स्थिति है । पत्रकार सनसईखेज समाचार बनाने के चक्कर में लगे हैं तो नेता भी जनता को बेवकूफ बना कर बस अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। हकीकत बयानी पर बधाई ।

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

जनता की किस्मत हमेशा फूटती है.....

Harihar का कहना है कि -

अवनीश जी ध्यानाकर्षण के लिये धन्यवाद !
योगेन्द्र जी, रश्मी जी , नीलम जी, रचना जी
सब को धन्यवाद

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

हरिहर जी,
क्या मजेदार कविता लिखी है आपने 'जनता की किस्मत फूटी'. सही कहा है आपने कोई भी नेता बने या कोई भी सरकार हो जनता की समस्याओं को मजाक बना देतें हैं वह.

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