झगड़ा हुआ नेताजी और पत्रकार में
मंहगाई की मार से बावले हुये पत्रकार ने
मला सिर पर बाम
लगाया नेताजी पर इलजाम
किसी कोमलांगी के बदन को छूकर
उसके घूंघट की ओंट से निकला एक विडियो टेप
दूसरे दिन व्यभिचार¸ दुराचार की
सुर्खियां छाई
बड़े बड़े अक्षरों में
हाय तौबा हुई
टांग खिंचाई की जनता ने
नाराज हो कर पत्रकारिता की गंदी चाल पर
नेता चिल्लाया और झल्लाया
गेर जिम्मेदार मिडिया पर
भनभनाया "उस दो कौड़ी के पत्रकार" पर
झगड़े मे फंसी युवती से
नाटक किया राखी का
शब्दों की बैसाखी का
उल्टा फंसाया कलमघीसू को
हथकड़ी पहनाकर
बाजार मे घुमाया
हुआ हंगामा सदन में
जब जनता रोती रही रोजी रोटी को
बिजली, पानी और सूखी खेती को
तो जिम्मेदार मिडिया और सूचना के नियन्त्रण पर
भाषण हुये एक्ट बनाने
असंतुष्टो को मनाने
सेमिनारों पर
रकम हुई स्वाहा
मुहं से निकला अहाहा !
मलाई गई नेताजी को
हिस्सा मिला पत्रकार को
मिलीभगत हुई, लड़ाई टूटी
पर दोनो की इस मारामारी में
जनता की किस्मत फूटी।
-हरिहर झा
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
kuch to naya nahi hai isme ,kuch khaas nahi lagi .
जनता का किस्मत फूटी। गलत है | " की " रखिये
देश में चुनाव के मौसम के लिए सुन्दर रचना |
अवनीश तिवारी
जनता के दर्द को बताती अच्छी कविता .
सादर
रचना
वास्तव में आजकल यही स्थिति है । पत्रकार सनसईखेज समाचार बनाने के चक्कर में लगे हैं तो नेता भी जनता को बेवकूफ बना कर बस अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। हकीकत बयानी पर बधाई ।
जनता की किस्मत हमेशा फूटती है.....
अवनीश जी ध्यानाकर्षण के लिये धन्यवाद !
योगेन्द्र जी, रश्मी जी , नीलम जी, रचना जी
सब को धन्यवाद
हरिहर जी,
क्या मजेदार कविता लिखी है आपने 'जनता की किस्मत फूटी'. सही कहा है आपने कोई भी नेता बने या कोई भी सरकार हो जनता की समस्याओं को मजाक बना देतें हैं वह.
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