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Saturday, May 02, 2009

दोहा गाथा सनातन: 15- रम जा दोहे में तनिक


रम जा दोहे में तनिक, मत कर चित्त उचाट.
ध्यान अधूरा यदि रहा, भटक जायेगा बाट..
दोहा की गति-लय पकड़, कर किंचित अभ्यास.
या मात्रा गिनकर 'सलिल', कर लेखन-अभ्यास..
भ्रमर सुभ्रामर से मिले, शरभ-श्येन को जान.
आज मिलें मंडूक से, मरकत को पहचान..
अट्ठारह-बारह रहें, गुरु-लघु हो मंडूक.
सत्रह-चौदह से बने, मरकत करें न चूक..


१८/१२ - मंडूक

जाको राखे साइयाँ, मार सके ना कोय.
बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय..
राम निकाई रावरी, है सभी कौ नीक.
जो यह साँची है सदा, तौ नीकौ तुलसीक..
संत तुलसीदास

का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच.
काम जु आवै कामरी, का लै करै कमाँच..
संत तुलसीदास

पिय को जिय जासो रमै, सोई ज्येष्ठा होइ.
आनि कनिष्ठा जानिए, कहै सयाने लोइ..
तोष कवि

बानी तो पानी भरै, चारू बेद मजूर.
करनी तो गारा करै, साहब का घर दूर..
-कबीर

दोहा में होता सदा, युग का सच ही व्यक्त.
देखे दोहाकार हर, सच्चे स्वप्न सशक्त..
- सलिल

कोई नहीं विकल्प हो, फिर भी एक विकल्प.
पूरी श्रृद्धा से करुँ, मैं प्रार्थना अनल्प..
- चंद्रसेन 'विराट'

१७/१४ - मरकत

कागा का को धन हरे, कोयल का को देय.
मीठी बानी बोल के, जग बस में कर लेय..
रूप नहीं रेखा नहीं, नाहीं है कुल-गोत.
बिन देही का साहिबा, झिलमिल देखूं जोत..
- संत सिंगाजी

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय.
माली सींचै सौ घडा, ऋतु आये फल होय..
-स्वामी प्राणनाथ

कानों में अब शूल सी, चुभती मंद बयार.
खेतों में दिखने लगा, श्वेत कपासी प्यार..
अशोक गीते

मोह एक आसक्ति है, और प्रेम है मुक्ति.
जहाँ मुक्ति होती नहीं, वहां सिर्फ पुनरुक्ति..
-सुरेश उपाध्याय

द्वार खुले ही रह गए, तूने दिया न ध्यान.
क्यों तेरे घर में नहीं, घुस आएगा श्वान?.
- डॉ. अनंत राम मिश्र 'अनंत'

चहरों की होती नहीं, अपने से पहचान.
दर्पण भी अंधा हुआ, है खुद से नादान..
डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी

दोहा दरबार के २३ रत्नों में से ६ से आपका परिचय हो चुका है. इनके जितना निकट आयेंगे उतना ही अधिक आनंद आएगा.

गृह कार्य:

१. उक्त ६ प्रकार के दोहों को बार-बार पढें यह देखें कि इनकी लय में क्या अंतर है? लय को पकड़ सकें तो बिना मात्रा गिने भी इन्हें लिख सकेंगे.

२. खुसरो को दोहों की विशेषता बताइये. ये दोहे आपको क्यों पसंद हैं अथवा क्यों पसंद नहीं हैं? गोष्टी में इस बिंदु पर चर्चा करना उपयोगी होगा.

३. आप में से हर एक कबीर का कम से कम एक-एक दोहा लाये और कबीर तथा खुसरो के दोहों की भाषा तथा कथ्य पर ध्यान देकर अपनी बात टिप्पणी में दे.

४. ऊपर विविध समयों के दोहकारों के दोहे दिए गए हैं. समकालिक दोहकारों को आप भाषा और कथ्य से जान लेंगे. उनकी कहन और कथन पर ध्यान दें. इससे आज के दोहों का शिल्प और भाव समझने में मदद मिलेगी.

दोहों का पत्राचार और टिप्पणी में प्रयोग कीजिये. सोरठा, रोला और कुण्डली का अभ्यास करते रहिये.
अब एक सलाह दीजिये कि इस दोहा गाथा को इसी तरह चलने दिया जाए, संक्षिप्त कर समाप्त किया जाए या आगे और गहराई में उतरा जाये? यह आपकी, आपके लिए, आपके द्वारा है. आपमें से बहुमत जैसा चाहेगा वैसा ही रूपाकार रखा जायेगा. यह उबाऊ हो रहा हो तो भी निस्संकोच संकेत करें.

अब कक्षा समाप्त करने के पूर्व दोहा छुपल में सुनिए एक और सच्चा किस्सा:

रज्जब तू गज्जब किया...निर्गुण पंथ से सादृश्यता रखते दादूपंथ के संस्थापक संत दादू दयाल (संवत १६०१, अहमदाबाद- संवत १६६०, नारना, जयपुर) साबरमती नदी में शिशु के रूप में बहते हुए लादी राम नामक ब्राम्हण को मिले थे. दादू के दोहों में हिंदी, गुजराती, राजस्थानी तथा पंजाबी का प्रयोग हुआ है. इनकी विषय वास्तु अलौकिक प्रेम तत्व की सरस व्यंजनासतगुरु महिमा, ईश्वर की व्यापकता, भौतिक जग की क्षण भंगुरता तथा आत्म बोध है. दादू के कुछ दोहो का आनंद लीजिये-

घीव दूध में रमि रहा, व्यापक सब ही ठौर.
'दादू' बकता बहुत है, माथि काढे ते और..
साध मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि की प्यास.
'दादू' संगत साधू की, अविगत पावै आस..
'दादू' देख दयाल को, सकल रहा भरपूर.
रोम-रोम में रमि रह्या, तू जनि जाने दूर..
केते पारिख पच मुए, कीमती कही न जाइ.
'दादू' सब हैरान हैं, गूंगे का गुड खाइ.
जब मन लागे राम सौं, अनत काय को जाइ.
'दादू' पाणी-लूण ज्यों, ऐसे रही समाइ..


दादू के प्रमुख ५२ शिष्यों में से एक आमेर शहर के निवासी रज़्ज़ब भी थे. दादू बहर यात्रा पर गए तो घरवालों ने अपनी मुहब्बत का वास्ता देकर रज़्ज़ब को विवाह के लिए मजबूर कर दिया. बेमन से रज़्ज़ब को जमा पहनकर, सर पर सेहरा बांधकर मौर सजाये घोडे पर बैठना पड़ा. उन्होंने बहुत कोशिश की कि बच सकें पर उनकी एक न चली. तब उन्होंने अपने गुरु दादू को याद किया. गुरु शिष्य की पुकार कैसे अनसुनी करते? रज़्ज़ब बारात के साथ गाजे-बजे के साथ जा रहे थे कि अचानक गुरु दादू दिखाई पड़े. रज़्ज़ब ने गोदे पर बैठे-बैठे ही गुरु को प्रणाम किया. दादू ने आशीष देते हुए उच्चस्वर में एक दोहा कहा जिसे सुनते ही रज़्ज़ब सेहरा फेंककर घोडे से कूदकर आँखों में आँसू भरे हुए गुरु के श्री चरणों में लोटने लगा. गुरु ने उसे उठाकर ह्रदय से लगाया और दीक्षा दी, कोई रोक नहीं पाया. रज़्ज़ब को सांसारिक मोह-जाल से बचाकर भक्ति-मार्ग पर ले जानेवाला दोहा सुनिए-

रज़्ज़ब तू गज्ज़ब किया, सर पर बांधा मौर.
आया था हरि-भजन को, जाता है किस ओर..


कालांतर में रज़्ज़ब खुद भी सिद्ध संत हुए. उनका भी एक दोहा पढिए-

रज़्ज़ब जाकी चाल सों, दिल न दुखाया जाय.
जहाँ खलक खिदमत करे, उत है खुसी खुदाय..
निराकार-निर्गुण भजै, दोहा खोजे राम.
गुप्त चित्र ओंकार का, चित में रख निष्काम..



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30 कविताप्रेमियों का कहना है :

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

!!!! "अद्भुत" !! ये ज्ञान तो विलक्षण हैं, सलिल जी मेरा प्रणाम स्वीकार करें मैं तो सामान्य लय में आने वाले तथा मात्राओं का पालन करने वाले मिसरों को जोड़कर देहे लिखता था, पर दोहे के भी प्रकार होते हैं मालूम न था इस पर तो कडा अभ्यास करना पड़ेगा, मैं तो प्रिंट आउट निकाल कर रख रहा हूँ पढता रहूँगा धीरे धीरे.
सच कह रहा हूँ
"दोहा छोटा हैं नहीं, फैला ज्ञान अपार
दोहे की महिमा अजब, अद्भुत है संसार

मुझे नहीं पता उपरोक्त में दोहे का कौन सा प्रकार है

सादर
अरुण अद्भुत

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आचार्य जी,
शुभ प्रभात

आपकी सेवा में यह दोहे लायी हूँ. कुछ और भी आज दोबारा आकर प्रस्तुत करूंगी.

जबसे करने मैं लगी, हिन्दयुग्म पे सैर
हर दिन नयी आस मिले, अपने लगते गैर.

घर बैठे करने चली, पूरे चारों धाम
यात्रा तो चलती रहे, पैर करें आराम.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

आचार्यजी
आपके आदेश का पालन किया है परन्‍तु सही है या नहीं इसका निर्णय तो आप ही करेंगे। इस कक्षा में आपने खुसरो के बारे में चर्चा प्रारम्‍भ की है। वैसे तो हम हिन्‍दी साहित्‍य के विद्यार्थी नहीं हैं लेकिन फिर भी मैंने यह जाना है कि खुसरो दरबारी कवि थे और उन्‍होंने सात बादशाहों के लिए सृजन किया था। उनके दोहों में प्रेम प्रसंग अधिक है।
कबीर संत थे अत: उनके दोहों में दर्शन है।
दो-दो दोहे दोनों के ही प्रस्‍तुत हैं -
गोरी सोवत सेज पे मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देस

खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीउ को दोऊ भये एक रंग

चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय
दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपणा मुझसे बुरा न कोय।

आपने कक्षा के बारे में जानकारी चाही है। हमें शेष छंदों का भी ज्ञान करना है। यदि संक्षिप्‍त में भी बताएंगे तो चलेगा।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
मैंने आज सुबह दो दोहे भेजे थे और अब उनके प्रकार जानने की कोशिश की. किन्तु जितने प्रकार अब तक बताये हैं आपने उनमे से वह मैच नहीं किये. दिमाग चकरा रहा है.

जबसे करने मैं लगी, हिन्दयुग्म पे सैर =१६+८ =२४
हर दिन नयी आस मिले, अपने लगते गैर = १२+१२ =२४

२८+२० इसे क्या बोलूँ? क्या प्रकार है? समझायिए.

घर बैठे करने चली, पूरे चारों धाम =१८+६
यात्रा तो चलती रहे, पैर करें आराम. =१८+६

३६+१२ और यह किस प्रकार का है? कृपया इसके बारे में भी बतायिए. बिना अच्छी तरह समझे रूचि लेने में बाधा हो रही है. धन्यबाद.

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

दोहा कक्षा को आगे बढाए | हो सके तो कुछ दिनों तक दोहराने की कक्षा रख , अभ्यास करवा लीजिये |

आपके इस सराहनीय कोशिश के लिए धन्यवाद |

अवनीश तिवारी

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शान्‍नो जी
आप गुरू की मात्रा को भी एक ही गिने, हमें कुल गुरू मात्रा कितनी हैं यह देखना है। तब यह संख्‍या होगी 14 + 20 = हंस
18+12 = मंडूक

manu का कहना है कि -

शुक्र है ये टेंशन भरा काम हमें नहीं मिला,,,,
अजित जी को मिला है,,,,
:::::::::::)))))))
पर आचार्य कितने दिन की छुटी पर जा रहे है आप,,,,,,,,,?????
अंग्रेज (शन्नो जी) के दोहे अच्छे लगे...जी हाँ मेरे वाली पोस्ट पर पूरा का पूरा आखिरी कमेंट शुद्ध अंग्रेजी में चिपका रखा है.....कहीं कहीं से तो पल्ले बी नहीं पडा,,,,हिंद युग्म पर ये हाल..?

और हाँ ,अजित जी को भी बधाई ,,,अपना काम पूरे ध्यान से देखने के liye,,,,

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
मेरी उलझन सुलझाने का बहुत धन्यबाद. लेकिन जो उदाहरण देखे सबके दोहों के तो वहां गुरु, लघु की मात्राओं को दुगना करके दिखाया गया है. एक दोहे के दोनों पंक्तिओं के लघु की मात्राओं को जोड़कर करके और फिर सारी गुरु मात्राओं को आपस में जोड़कर और फिर दुगना करके तब दोहे के नाम को बताया गया है. हर दोहे में यही देखा. जितनी मात्राएँ अपने दोहों में मैंने देखीं उतनी किसी भी दोहे में नहीं दिखीं मुझे. इसीलिए confusion हो गया.
आपके चियाँ पर लिखे दोहों का खूब आनंद उठा रही हूँ. अच्छा लगता है पढ़कर कि चियाँ आपको खूब प्रेरणा दे रही है. उसे मेरा ढेर सारा आशीर्वाद. और आप अपनी पताका आराम से फहराती रहें. लगता है गुरु जी किसी महफ़िल में बैठे झूम रहे होंगें. बतायिएगा नहीं उन्हें कि मैंने क्या बोला है. ssshhh...

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी, किस अंग्रेजी की बात हो रही है यहाँ? एक्स्कूज़ मी! अब हम हिंदी में स्पीकिंग. ओ.के? आपकी टेंशन इतनी जल्दी नहीं जाने वाली. गुरु जी किसी भी समय इस लेथन में आपको डालने वाले हैं. तब तक गिनती गिनिये और शुक्र मनाइये. एक-आध भजन गा कर मन को शांत करिये.

मन रक्खें अपना दुरुस्त, बनें काम में चुस्त =१३+11
चाय-शाय पीते रहें , कक्षा में न हों सुस्त. =१३+11

यह दोहा मेरी तरफ से आपके लिए होमवर्क (दोहा की पहेली) है. कृपा करके आन्सर ढूंढ कर लाइए और बताइये कि यह किस प्रकार का दोहा है. ओ.के.??

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आचार्य जी, प्रणाम

आपके दिये गये गृह-कार्य के बारे में:

१. लय देख ली और बिचार किया.
२. खुसरो साहिब का एक दोहा है:

सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग है रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत.

इनके दोहों में भक्ति- भाव झलकता है. इस विशेषता से इनके दोहे अच्छे लगते हैं.

३. अब कबीर जी का एक दोहा है:

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय
अपना मन शीतल करें, औरन को सुख होय.

इनके दोहों में सीखें हैं. इस दोहे में सीख है कि मधुर शब्द बोलो ताकि इससे सदभाव व एकता बढे. ऐसा करके अपने को भी अच्छा लगता है और दूसरे को भी. लेकिन कड़वे व कठोर वचन बोल कर नफरत पैदा होती है और सुनने वाले के मन को तकलीफ पहुँचती है. पूरे मन से कोशिश करिये कि दूसरों का मन न दुखने पाये.

४. दोहाकारों के कथन पर ध्यान दूंगी (कोशिश करूंगी) .

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

मनुजी, ज्‍यादा खुश मत होइए। यह तो शिक्षक-प्रशिक्षण वाली कक्षाएं हैं। अगली कक्षा आपको ही लेनी है। मेरे सर की टोपी शीघ्र की आपके सर पर आने वाली है। तैयार रहिए। गए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास वाली बात हो गयी है। आचार्य जी ने एक और गृह-कार्य दे दिया है, वैसे ही गर्मी बहुत है, पसीने छूट रहे हैं। आप सभी की शुभकामनाएं चाहिए।
वैसे शन्‍नोजी जैसे छात्र कक्षा में हों तब आनन्‍द तो पूरा मिलता है। मैं तो उन्‍हीं के प्रश्‍नों की प्रतीक्षा करती हूँ। बड़े ही मजेदार होते हैं। शन्‍नों जी अब शायद आपको भी दोहे के 23 प्रकार समझ आने लगे होंगे। मात्राओं की संख्‍या गिननी है उनका वजन नहीं।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
आपकी टिप्पणी पढ़कर मुझे बड़ा मजा आया. हंसी आई जानकर कि आपका गृह-कार्य 'दुगना' हो गया है गुरु जी की तरफ से.....तो आप अपना भी गृह-कार्य करिए और हमारे भी गृह-कार्य का मुआयना करती रहें.....(आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास..क्या बात!) गर्मी में पसीना तो छूटेगा ही...खासतौर पर एक और एक्स्ट्रा टोपी पहनकर. मेरी सहानुभूति और शुभकामनाएं दोनों ही आपके साथ हैं. मनु जी घबरा रहे होंगे यह बातें सुनकर. आप दोनों गर्मी में एक दूसरे के सर पर अपनी-अपनी टोपी फिट करने के चक्कर में हैं. तो आपस में विचार-विमर्श करिए. (ही..ही..) फिर मैं प्रस्थान करती हूँ...
'मैं चली, मैं चली, मैं चली यह ना पूछो कहाँ.......
लौट के फिर से मुझे आना होगा यहाँ.....'

manu का कहना है कि -

मन रक्खें अपना दुरुस्त, बनें काम में चुस्त =१३+11
चाय-शाय पीते रहें , कक्षा में न हों सुस्त. =१३+11

कक्षा में हो सुस्त तो बोलो क्या कर लोगी...?
टीप टाप टिपण्णी ही टोपी पर डालोगी.......?
कहे मनु जो कुछ भी हिंद युग्म पर लिक्खें .
अंगरेजी के बदले हिंदी मन में रक्खें

आचार्य जी,
अभी तो कुंडली तक भी नहीं पहुंचा था और आप ने सीधे रेल सी चला दी...
सब तो अजित जी जैसे मेहनती नहीं हो सकते ना,,,?
aur mere sir pe to pahle hi ek adad topi hai.....

manu का कहना है कि -

हे राम,
हम कुंडली लिखते रह गए और हमसे पहले कमेंट १२ वाँ कमेंट चिपका दिया,,,

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

देखिये, अजित जी, टोपी वाले ने चुपचाप हमारी बातें सुन ली हैं और अब मुझे धमकी मिल रही है कि.. 'क्या कर लोगी'. लगता है कि गर्मी में दिमाग का पारा भी चढ़ गया है. और कक्षा में पंगा तक की नौबत आ गयी है.. बोलिए अब क्या करूं?...आप तो इंचार्ज हैं कक्षा की. जानती हूँ कि आप को और पसीने आने लगे होंगे यह सब देखकर, लेकिन आपकी पोजीशन जो है उसमे आपको कुछ और पॉवर भी तो मिली होंगीं.?????

और ओ टोपी वाले, अब दे यह भी बता
भाग जाये कर गिटपिट, यह ना मेरी खता.

(खुद तो अंग्रेजी में हिंदी बोल के लोग चले जाते हैं.. और मुझे धमकी देते है फिर. अपने को तो ध्यान नहीं रहता..और चले हैं हमें बताने.....हून्ह्ह....) क्या धांधलेबाजी है? घोर अंधेर!

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

बच्‍चे बहुत शरारती, करते धी्गामस्‍त
गुरुजी छुट्टी पर गए, मॉनीटर है पस्‍त
मॉनीटर है पस्‍त, सम्‍भाले कक्षा कैसे
टोपी-टोपी खेल, लड़त हैं इच्‍छा जैसे
वितनी सुन अजित की, यहाँ सब मन के सच्‍चे
गुरुजी कुछ न कहना, यहाँ है सारे बच्‍चे।

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

आचार्य जी के आदेशानुसार दोहे की समस्‍त कक्षाओं का सार यहाँ प्रस्‍तुत है।
दोहा - कक्षा - सार
दोहे की कक्षाओं में हमने अभी तक जो भी ज्ञान प्राप्‍त किया है उसका सार-संक्षिप्‍त यह है -
1- दोहे की दो पंक्तियों में चार चरण होते हैं।
2- प्रथम एवं तृतीय चरणों में 13-13 मात्राएं होती हैं ये विषम चरण हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं और ये सम चरण हैं। 3- द्वितीय और चतुर्थ चरण का अन्तिम शब्‍द गुरु-लघु होता है। जैसे – और, खूब, जाय आदि। साथ ही अन्तिम अक्षर समान होता है। जैसे द्वितीय चरण में अन्तिम अक्षर म है तो चतुर्थ चरण में भी म ही होना चाहिए। जैसे – काम-राम-धाम आदि।
4- गुरु या दीर्घ मात्रा के लिए 2 का प्रयोग करते हैं जबकि लघु मात्रा के लिए 1 का प्रयोग होता है। 5- दोहे में 8 गण होते हैं जिनका सूत्र है – यमाताराजभानसलगा। ये गण हैं-
य गण – यमाता – 122
म गण – मातारा – 222 त गण – ताराज – 221 र गण – राजभा – 212 ज गण – जभान – 121 भ गण – भानस – 211 न गण – नसल – 111 स गण – सलगा – 112 6- दोहे के सम चरणों के प्रथम शब्‍द में जगण अर्थात 121 मात्राओं का प्रयोग वर्जित है।
7- मात्राओं की गणना – अक्षर के उच्‍चारण में लगने वाले समय की द्योतक हैं मात्राएं। जैसे अ अक्षर में समय कम लगता है जबकि आ अक्षर में समय अधिक लगता है अत: अ अक्षर की मात्रा हुई एक अर्थात लघु और आ अक्षर की हो गयी दो अर्थात गुरु। जिन अक्षरों पर चन्‍द्र बिन्‍दु है वे भी लघु ही होंगे। तथा जिन अक्षरों के साथ र की मात्रा मिश्रित है वे भी लघु ही होंगे जैसे प्र, क्र, श्र आदि। आधे अक्षर प्रथम अक्षर के साथ संयुक्‍त होकर दीर्घ मात्रा बनेंगी। जैसे – प्रकल्‍प में प्र की 1 और क और ल्‍ की मिलकर दो मात्रा होंगी।
8- जैसे गजल में बहर होती है वैसे ही दोहों के भी 23 प्रकार हैं। एक दोहे में कितनी गुरु और कितनी लघु मात्राएं हैं उन्‍हीं की गणना को विभिन्‍न प्रकारों में बाँटा गया है। जो निम्‍न प्रकार है -
१. भ्रामर २२ ४ २६ ४८
२. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८
३. शरभ २० ८ २८ ४८
४. श्येन १९ १० २९ ४८
५. मंडूक १८ १२ ३० ४८
६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८
७. करभ १६ १६ ३२ ४८
८. नर १५ १८ ३३ ४८
९. हंस १४ २० ३४ ४८
१०. गयंद १३ २२ ३५ ४८
११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८
१२. बल ११ २६ ३८ ४८
१३. पान १० २८ ३८ ४८
१४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८
१५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८
१६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८
१७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८
१८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८
१९. व्याल ४ ४० ४४ ४८
२०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८
२१. श्वान २ ४४ ४६ ४८
२२. उदर १ ४६ ४७ ४८
२३. सर्प ० ४८ ४८ ४८
दोहा छंद के अतिरिक्‍त रोला, सोरठा और कुण्‍डली के बारे में भी हमने जानकारी प्राप्‍त की है। इनका सार भी निम्‍न प्रकार से है - रोला – यह भी दोहे की तरह ही 24-24 मात्राओं का छंद होता है। इसमें दोहे के विपरीत 11/13 की यति होती है। अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। दोहे में अन्‍त में गुरु लघु मात्रा होती है जबकि रोला में दो गुरु होते हैं। लेकिन कभी-कभी दो लघु भी होते हैं। (आचार्य जी मैंने एक पुस्‍तक में पढ़ा है कि रोला के अन्‍त में दो लघु होते हैं, इसको स्‍पष्‍ट करें।)
कुण्‍डली – कुण्‍डली में छ पद/चरण होते हैं अर्थात तीन छंद। जिनमें एक दोहा और दो रोला के छंद होते हैं। प्रथम छंद में दोहा होता है और दूसरे व तीसरे छंद में रोला होता है। लेकिन दोहे और रोले को जोड़ने के लिए दोहे के चतुर्थ पद को पुन: रोने के प्रथम पद में लिखते हैं। कुण्‍डली के पांचवे पद में कवि का नाम लिखने की प्रथा है, लेकिन यह आवश्‍यक नहीं है तथा अन्तिम पद का शब्‍द और दोहे का प्रथम या द्वितीय भी शब्‍द समान होना चाहिए। जैसे साँप जब कुण्‍डली मारे बैठा होता है तब उसकी पूँछ और मुँह एक समान दिखायी देते हैं।
उदाहरण –
लोकतन्‍त्र की गूँज है, लोक मिले ना खोज राजतन्‍त्र ही रह गया, वोट बिके हैं रोज वोट बिके हैं रोज, देश की चिन्‍ता किसको भाषण पढ़ते आज, बोलते नेता इनको हाथ हिलाते देख, यह मनसा राजतन्‍त्र की लोक कहाँ हैं सोच, हार है लोकतन्‍त्र की।

दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान.
चंचल जल दिन चारि को, ठाऊँ न रहत निदान.
ठाऊँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै.
मीठे बचन सुने, बिनय सब ही की कीजै.
कह गिरिधर कविराय, अरे! यह सब घट तौलत.
पाहून निशि-दिन चारि, रहत सब ही के दौलत.

सोरठा – सोरठा में भी 11/13 पर यति। लेकिन पदांत बंधन विषम चरण अर्थात प्रथम और तृतीय चरण में होता है। दोहे को उल्‍टा करने पर सोरठा बनता है। जैसे -
दोहा: काल ग्रन्थ का पृष्ठ नव, दे सुख-यश-उत्कर्ष.
करनी के हस्ताक्षर, अंकित करें सहर्ष.

सोरठा- दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रन्थ का पृष्ठ नव.
अंकित करे सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर.

सोरठा- जो काबिल फनकार, जो अच्छे इन्सान.
है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?

दोहा- जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार.
ऊपरवाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी, (उर्फ़ मानीटर जी)
गुरु जी की अनुपस्थिति में आप उनकी आज्ञा अनुसार अपने कन्धों पर डाले हुए बोझ को आसानी से संभाल रही हैं इसकी प्रशंशा के लिए जितना कहूं उतना कम होगा. आप सारी कक्षा को संभाल रही हैं, सबकी नादानियों को बर्दाश्त कर रही हैं और फटाफट पसीने को पोंछते हुए सारे दोहो का सार भी निचोड़ कर रख दिया हैं हमारे सामने. वाह! वाह! मानीटर हो तो ऐसा. आपने तो कमाल कर दिया. आपने इतने पुन्य का काम करके हम जैसे कितने ही निखट्टू लोगों का भला किया है कि आप इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकती हैं. अगर मैंने टोपी पहनी हुई होती तो मैं जरूर आपके सम्मान में उसे उतार कर प्रणाम करती (मेरा मतलब टोपी को नहीं आपको प्रणाम करती). (इशारा, इशारा, इशारा.....) लेकिन वैसा न होने पर मैं नतमस्तक होती हूँ. इस एक्स्ट्रा कार्य-भार को इस खूबी से निभाना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है. सबकी शैतानियों से आप बहुत त्रस्त लग रही हैं, फिर भी आप किसी को भी दंड नहीं दे रही हैं, कितना विशाल है आपका ह्रदय. मैं भी बताना चाहती हूँ कि:

टोपी वाला हो गया, बहुत अधिक उद्दंड
गुरु जी आयेंगें जभी, देंगें उसको दंड.
देंगें उसको दंड, छेड़ दिया यहाँ प्रसंग
आता है देर से, है करता सबको तंग
डर से शन्नो कहे, लगे जो भोला-भाला
उत्तर न दे पूरे, नाम है टोपी वाला.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी
आपकी चुहलबाजी से कॉलेज जीवन याद आ गया। हम सब एक ही कक्षा के विद्यार्थी हैं और आपने इस कक्षा को जीवन्‍त कर दिया है। आप से एक शिकायत है, आपका ब्‍लाग पर फोटो तक उपलब्‍ध नहीं है, आप अपनी जन्‍मकुण्‍डली तो उपलब्‍ध कराएं। आचार्य जी ने सचमुच में गुरुतर गृहकार्य दे दिया था, उसे पूरा करने का उत्‍साह आप सभी से मिला। अभी एक और कार्य है, वो थोड़ा अधिक कठिन है लेकिन गुरु की आज्ञा शिरोधार्य। चलिए अपना पूरा परिचय दें, जिससे मित्रता पक्‍की हो सके।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अजित जी,

सारे नियमों को एक साथ रखने के लिए धन्यवाद|
यह मैंने शुरू किया था , लेकिन जब आपने कर दिया है तो मैं रुक रहा हूँ |

यह सब बहुत योयोगी है |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

उपयोगी *

नियंत्रक । Admin का कहना है कि -

डॉ॰ अजित जी,

शन्नो जी का परिचय पढ़ने व चित्र देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
आपकी टिप्पणी पढ़ी, बड़ा अच्छा लगा. मैंने फिर आपके ब्लॉग पर आपका ईमेल पता ढूंढ कर ईमेल भी भेजी पर दोनों बार delivery failure का notification आ गया. आपके पते में कुछ गड़बड़ है. मुझे अपना सही पता उपलब्ध कराइये. धन्यबाद.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी
ajit_09@yahoo.com
ajit.09@gmail.com

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

nivedan yah hai ki aap dohe ki kaksha ko dheere dheere aage badhaate rahein...
par aap humein aur bhi gyaan de sakte hain... hindi kavitaaon ke baare mein chhand-chhand mukt kavitaayein... hindi vyaakaran... ya kuch bhi rochak aur gyaan vardhak jaankaari jo hindi aur hindi saahitya se judi ho....
aasha hai aap mera matlab samajh gaye honge.. aapse aur bhi alag alag jaankaari mile yahi ichha rakhte hain

yogesh pandey का कहना है कि -

द्वार खुला भी रह गया तो क्या तेरा जाय
जाके जो तकदीर मा वो तो वो ही पाय
जीवन है इक आइना देख सके तो देख
तेरे सब अच्छे बुरे करमन का है लेख
सत्य अहिंसा दे गये बापू तुम उपहार
मानव इतना स्वार्थी कैसे हो व्यवहार

योगेश

yogesh pandey का कहना है कि -

द्वार खुला भी रह गया तो क्या तेरा जाय
जाके जो तकदीर मा वो तो वो ही पाय
जीवन है इक आइना देख सके तो देख
तेरे सब अच्छे बुरे करमन का है लेख
सत्य अहिंसा दे गये बापू तुम उपहार
मानव इतना स्वार्थी कैसे हो व्यवहार

योगेश

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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Lillian Cruz का कहना है कि -

I discovered your blog site on google and check a few of your early posts. Continue to keep up the very good operate. I just additional up your RSS feed to my MSN News Reader. Seeking forward to reading more from you later on!…

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yanmaneee का कहना है कि -

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