माँ तुम……
बहुत याद आ रही हो
एक बात बताऊँ………
आजकल…..
तुम मुझमें समाती जा रही हो
आइने में अक्सर
तुम्हारा अक्स उभर आता है
और कानों में अतीत की
हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें
समझ नहीं पाती हूँ
पर स्वयं को आज
तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
हर पल हमारी राह देखती
तुम्हारी आँखें ……..
आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं
तुम्हारे दर्द को
आज समझ पाती हूँ
जब तुम्हारी ही तरह
स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
बहुत याद आ रही हो
एक बात बताऊँ………
आजकल…..
तुम मुझमें समाती जा रही हो
आइने में अक्सर
तुम्हारा अक्स उभर आता है
और कानों में अतीत की
हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें
समझ नहीं पाती हूँ
पर स्वयं को आज
तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
हर पल हमारी राह देखती
तुम्हारी आँखें ……..
आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं
तुम्हारे दर्द को
आज समझ पाती हूँ
जब तुम्हारी ही तरह
स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
शोभा जी आपकी कविता ने टू मुझे भावुक कर दिया , माँ बहुत याद आ रही है
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
माँ की याद हमेशा साथ ही रहती है चाहे वह कहीं भी भी रहे और यह भी सही है की हम सच में ख़ुद को कभी उन्ही की सिथ्ती में पाते हैं .एक अच्छी सच्ची रचना है शोभा जी
bahut bhavuk,marmik rachana,maa sach mein hum mein samayi hoti hai,bahut sundar badhai
हर पल हमारी राह देखती
तुम्हारी आँखें ……..
आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं
तुम्हारे दर्द को
आज समझ पाती हूँ
जब तुम्हारी ही तरह
स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
बहुत अच्छी कविता है....दिल को छू गई!
तुम्हारी जिस-जिस बात पर
घन्टों हँसा करती थी
कभी नाराज़ होती थी
झगड़ा भी किया करती थी
वही सब……
अब स्वयं करने लगी हूँ
अन्तर केवल इतना है कि
तब वक्ता थी और आज
श्रोता बन गई हूँ
ममत्व प्रधान, ममतामयी भावुक कविता..
वाह वाह वाह...........
आलोक सिंह "साहिल"
उम्र के खास मोड पर मां बडी शिद्दत से याद आती है। जब-तब उन्हीं समझौतों को हम करते हैं। जिनके लिये उन पर खीझा करते थे तब तो और भी ज्यादा। कुछ इसी भावों को लेकर बहुत पहले मैंने भी लिखा था।
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
bahut sunder or dil ko chune waali kavita likhi hai aapne
bahut maarmik....bahut achchhi rachana....seedhe seedhe dil tak mahsoos kar pa raha hoon main....
बहुत बेहतरीन कविता लिखी है आपने शोभा जी ......माँ के बारे में .........जीतना कहें उतना ही कम है ..........और माँ को जीतना हम प्रेम दे पाए ........उनके प्रेम और उनके जीवन के अमूल्य क्षणों के सामने कुछ नही जो उन्होंने हमे दीये ......
आपकी कविता ने सच बचपन की और माँ की याद दिला दी ........और उनके प्रती प्रेम से भर दिया मुझे ..........आपको प्रेम और बधाई
शोभा जी अपने माँ के प्यार अऔर् उसकी व्यथा को कितने प्यारे ढंग से स्पष्ट एवं रेखांकित किया है सचमुच एक बहुत ही अची कविता आपने रच दी है जो की वाकई मे बड़ा ही अतुलनीय है
बहुत खूब शोभा जी
सुच में माँ की ममता का बहुत अच्छे तरीके से वर्णन किया है
बधाई
मन करता है मेरा…
फिर से अतीत को लौटाऊँ
तुम्हारे पास आकर
तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ
आज तुम बेटी
और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर
मरहम मैं बन जाउँ
तुम कितनी अच्छी हो
कितनी प्यारी हो
ये सारी दुनिया को बताऊँ
शोभा जी.. माँ विषय हमेशा से ही कवियों को प्रिय रहा है .. आपने भी एक उल्लेखनीय प्रयास किया .. कविता अच्छी लगी!
वैसे कविता में थोड़ी लाक्षणिकता होती तो अच्छा होता ! आपने बिल्कुल सपाट तरीके से अपनी बातों को कहा है| यही बात कविता के सौंदर्य में बाधक है !
आपके भाव काबिल-ए-तारीफ हैं पर प्रस्तुतिकरण और सुधारा जा सकता था ..
मैं खॊ गया...भावों के समंदर में..
नि:शब्द हूँ मैं आज।
बहुत हीं खूबसूरत रचना है। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सरल है पर भाव सच्चे हैं.....माँ पर जितना भी लिखा जाए कम है.... बधाई
शोभा जी ,
सीधे सरल शब्दों में आपने ना सिर्फ़ माँ बल्कि बेटी की व्यथा भी कह डाली है, बहुत सही कहा है कि -
आइने में अक्सर
तुम्हारा अक्स उभर आता है
और कानों में अतीत की
हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें
समझ नहीं पाती हूँ
पर स्वयं को आज
तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
यही समझ का परिवर्तन है जो हमें बड़ी देर से समझ आता है,और जब तक समझ आए हम स्वयं उसी स्थिति में पहुँच चुके होते हैं जिसे हम समझा नहीं सकते!!!!
बहुत ही भावपूर्ण कविता है और सच को बयां करती हुई भी , बहुत बहुत बधाई
^^पूजा अनिल
very deep, thought provoking poem..........a girl realises the worth of her Mother when she herself becomes one
Thank you for the good info. Me and my friend were just preparing to do some research about this.
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This post is wonderful! Thanks for providing these detailed insights.
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