यूनिकवि प्रतियोगिता की अंतिम यानी दसवीं कविता लेकर हम उपस्थित है। इस कविता के रचयिता कवि सतीश वाघमारे की कविता से भेंट स्कूल से छूटने के ३३ वर्षों के बाद हिन्द-युग्म के काव्य-पल्लवन में हुई। मतलब हिन्दी कविता लिखना इन्होंने हिन्द-युग्म से जुड़ने के बाद शुरू किया। लगातार प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे और इस बार खुद को शीर्ष १० में लाकर स्थापित कर दिया और इस बात का संकेत दे दिया है कि इनमें बहुत सी संभावनायें हैं। ४८ वर्षीय सतीश मुम्बई के एक सरकारी बैंक में कार्यरत हैं और ब्लॉग-अड्डा के माध्यम से हम तक पहुँचे हैं।
पुरस्कृत कविता- रूप कविता के
जीवन में कविता,
हर रूप में मिलती है
कभी भावुकता की छाया में, कभी
दर्शन की धूप में खिलती है.
कभी सहास्य सखी चंद्रमुखी,
अनजान अधोवदना, कभी दुखी
कभी बन बहना पहन गहना
बन दुहिता, कभी पितृवंदना !
ममताभरी कभी लोरी दुलारी
पड़ गलबैया मारे किलकारी
तबस्सुम में वह यौवन के खिले
सिसकती कभी झुर्रियों में मिले..
कहे खुलेआम मन की,आंखो ही आंखों में
कनखियों से करे बात कभी सलाखों में
आजाद परिन्दों में ,सरहद की गश्तों में
हालात के बंधों में, ख्वाबों की किश्तों में.
परिचित लिखावट की अनखुली चिट्ठियों में
किसी नवजात की अधखुली मुट्ठियों में..
अनबुझी चाहों की अनसुनी आहों में
निष्ठुर थपेडों में,सहलाती बाहों में
रदीफों के मुहल्लों में, काफियों के काफिलों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- २॰५, ६॰४५, ५, ७॰२
औसत अंक- ५॰२८७५
स्थान- सत्रहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६॰२, ५॰५, ५॰२८७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२४६८७५
स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
जीवन में कविता,
हर रूप में मिलती है
कभी भावुकता की छाया में, कभी
दर्शन की धूप में खिलती है.
हां.......बल्कि,
उससे भेंट होती है नित नयी अदाओं में
वो कभी किसी से भी एक सा नहीं मिलता..
रदीफों के मुहल्लों में, काफियों के काफिलों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
-- नही समझ पा रहा ह कि कितनी तारीफ करूँ एन ४ पंक्तियों की ?
बहुत बहुत सुंदर लगा |
अवनीश तिवारी
रदीफों के मुहल्लों में, काफियों के काफिलों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
nice poem
sumit bhardwaj
परिचित लिखावट की अनखुली चिट्ठियों में
किसी नवजात की अधखुली मुट्ठियों में..
अनबुझी चाहों की अनसुनी आहों में
निष्ठुर थपेडों में,सहलाती बाहों में
वाह...बहुत सुन्दर कविता
कहे खुलेआम मन की,आंखो ही आंखों में
कनखियों से करे बात कभी सलाखों में
आजाद परिन्दों में ,सरहद की गश्तों में
हालात के बंधों में, ख्वाबों की किश्तों में.
वाह सतीश जी कविता की बात ही कुछ ऐसी है
मन में पीड़ा जब सताती
बन कविता मुस्कुराती
बहुत खूब ,बधाई...सीमा
रदीफों के मुहल्लों में, काफियों के काफिलों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
बहुत सुंदर बधाई
सतीश जी,
बहुत ही स्तरीय कविता बनी है..
परिचित लिखावट की अनखुली चिट्ठियों में
किसी नवजात की अधखुली मुट्ठियों में..
अनबुझी चाहों की अनसुनी आहों में
निष्ठुर थपेडों में,सहलाती बाहों में
रदीफों के मुहल्लों में, काफियों के काफिलों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
सुन्दर, अति सुन्दर..
बार बार बधाई
दाद देता हूँ आपकी क्षमता की,सुंदर
आलोक सिंह "साहिल"
सतीश जी
भुत अच्छा लिखा है. विशेष रूप से आपकी संस्कृत निष्ट शैली ने -
ममताभरी कभी लोरी दुलारी
पड़ गलबैया मारे किलकारी
तबस्सुम में वह यौवन के खिले
सिसकती कभी झुर्रियों में मिले..
बधाई स्वीकारें
सतीश जी आपने जो कविता का जो वीशय है वो मुझे बहुत अच्छा लगा ........ और जैसे आपने हर तरफ़ से ......... जीवन के अलग अलग ......... हीस्सों से कविता का आना .... पैदा होना दिखाया है वो बहुत अच्छा लगा ........... आपकी नज़र सच में देख पाती है कविता की उतपत्ती के अवसर .......... और यही है एक बेहतरीन कवी की पहचान :)
तो फीर कौन रोक पाएगा अब आपको और आगे बढ़ने से ..........
किसी नवजात की अधखुली मुट्ठियों में..
अनबुझी चाहों की अनसुनी आहों में
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
ये कुछ पंकतिया मुझे पसंद आई बहुत .........और आपको बहुत बधाई तथा प्रेम
गुणीजनों ,
आपको मिले आनंद से मुझे भी आनंद मिला.
मेरी रचना को आपका जो स्नेह प्राप्त हुआ है , वह मेरे लिए एक बड़ा पुरस्कार है !
सादर धन्यवाद.
सतीश जी ,
बहुत ही सुंदर लिखा है .
अपने हिस्से के अंधेरों में,गैरों के उजालों में
आँखों की नमी में, अपनों की कमी में
कविता पनपती है, दिलों की जमीं में !
शब्द चयन भी अति सुंदर है .बधाई
माफ़ी चाहती हूँ , आपकी कविता थोडी देर से पढ़ पाई .
^^पूजा अनिल
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