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Wednesday, April 09, 2008

माँ- प्रतियोगिता की दूसरी कविता


7 अप्रैल 2007 को हिन्द-युग्म ने मार्च महीने की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का परिणाम प्रकाशित किया और यह उद्‌घोषणा की कि अब प्रतियोगिता की मात्र 10 कविताएँ प्रकाशित होंगी। आज उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए हम दूसरी कविता को लेकर हाज़िर हैं जिसके रचनाकार का परिचय निम्नलिखित है-

नाम- अरुण मित्तल ‘अदभुत‘
जन्मस्थान- चरखी दादरी, जिला-भिवानी, हरियाणा
जन्म तिथि- 21-02-1985
शिक्षा- एम. बी. ए., एम. फिल., पी जी डी आर एम, पी. एच. डी. (शोधार्थी)।
कार्यक्षेत्र- प्रवक्ता, (प्रबंध), बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान (समतुल्य विश्वविद्यालय) ए -7 सेक्टर-1 नोएडा।
प्रकाशित रचनाएं- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 200 से अधिक कविताएं, गजलें, लेख, लघुकथाएं, कहानियां आदि प्रकाशित।
सम्मान-पुरस्कार
1. चरखी दादरी अग्रवाल सभा द्वारा ‘अग्रकुल गौरव‘ से सम्मानित।
2. लायंस क्लब, भिवानी द्वारा ‘साधना सम्मान‘।
3. मानव कल्याण संघ, चरखी दादरी द्वारा ‘साहित्य सेवी सम्मान‘।
4. दिल्ली प्रैस द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ‘युवा कहानी प्रतियोगिता-2005‘ में कहानी ‘गलतफहमी‘ को द्वितीय पुरस्कार।
5. विभिन्न मंचीय प्रतियोगिताओं मे लगभग 20 पुरस्कार।
6. स्थानीय गोष्ठियों से लेकर राष्ट्रीय हिन्दी काव्य मंचों से काव्य पाठ।
7 हिन्दी पद्य साहित्य में नारी विषय पर राष्ट्रीय अधिवेशन में शोध पत्र प्रस्तुत।

विशेष उल्लेख-

अंतरजाल पत्रिका रचनाकार, अनुभूति एवं सृजनगाथा, हिन्द युग्म में कविताएं एवं लेख प्रकाशित
हिन्दी छंद एवं ग़ज़ल व्याकरण में विशेष निपुणता मुख्यतः छंदबद्ध कविताओं का लेखन।
आकाशवाणी रोहतक एवं जैन टी वी, दिल्ली से काव्य पाठ।
अप्रकाशित महाकाव्य वीर बजरंगी का लेखन।
हिन्दी भवन, दिल्ली में दिशा फाउण्डेशन द्वारा विशेष रूप से युवा कवियों के लिए आयोजित कवि सम्मेलन 'दस्तक नई पाढ़ी की' में काव्य पाठ।

वर्तमान संपर्क-
बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान
(समतुल्य विश्वविद्यालय)
विस्तार केन्द्र- नोएडा
ए -7 सेक्टर-1 नोएडा।
उत्तर प्रदेश-201301
भ्रमणभाष- 09818057205

पुरस्कृत कविता- माँ

माँ
कोई शिकायत नहीं है तुमसे मुझे
कि तुमने मुझे गर्भ में ही मार दिया
तुम तो मजबूर थी ना
कितनी कोशिश की तुमने
लेकिन मुझे बचा नहीं पाई
पर मुझे कोई शिकायत नहीं है तुमसे
तुम तो यूं ही उदास हो
कोई पाप नहीं किया है तुमने
अरे मुझे जन्म ही तो नहीं लेने दिया न
मैं करती भी क्या जन्म लेकर
न तो थाली ही बजती मेरे जन्म पर
और ना ही बांटी जाती मिठाइयाँ
माँ
तुम रो क्यों रही हो
मैं तो समर्थन ही कर रही हूँ
तुम्हारे उस निर्णय का
जब तुमने दुःख के असीम पारावार से निकलकर
पापा को न केवल सांत्वना दी थी
बल्कि वादा भी किया था मुझे गर्भ मे ही ख़त्म कर देने का
माँ
तुम्हारा क्या कसूर है
तुम तो मजबूर थी ना
तुम नहीं विरोध नहीं कर सकती थी
दादी के आकांक्षा और पापा की आदेशनुमा अनुरोध का
और ......और .....हाँ
तुम सहन नहीं कर सकती थी .....
पड़ोस की औरतों के ताने
तुमने मुझे जन्म लेने से रोककर
रोक लिया
अपनी हर भावी पीड़ा और आंसुओं की संभावना को
और हाँ माँ मुझे जन्म न देने के जो दावे किए गए थे
वो सब भी तो ठीक ही थे
ठीक ही तो कहा था पापा ने
प्रेमचंद के गोदान का वो अंश
"चारा खली पर पहला हक बैलों का है
बचे सो गायों का"
क्या तुम चाहोगी की तुम्हारी बेटी को निम्नता का अहसास हो
वो हमारे बेटे की अपेक्षा दबकर जीवन जिए
उसकी हर इच्छा हमारे लिए गौण हो
नहीं ना
तो फिर उसे जन्म मत दो
और मेरी माँ
तुम तो सबसे ही आगे निकल गई
रूह कांप उठती है
जब याद करती हूँ तुम्हारे वो घटिया मानसिक मंथन से निकले हुए दावे
इसी तरह समझाया था ना तुम्हें ख़ुद को
"बेटी तो जन्म से कष्ट है
हर असहनीय सहन करना पड़ता है
एक बेटी के लिए
वो पराया धन हैं फिर भी
उसे पढ़ना लिखना पड़ेगा
वो सब उसके लिए किस काम का
वो बड़ी होगी तो समाज की गन्दी निगाहें उसे जीने नहीं देंगी
और शादी, दहेज़ की कल्पना से ही कोई भी कांप उठता है
और कहीं किसी से प्यार कर बैठेगी तो............
जीना, मरने से भी दूभर हो जायेगा
न जाने क्या हो वक्त बहुत ख़राब है
लड़की अगर हाथ से निकल जाए तो कहीं भी जा सकती है ................
वहां भी ........................
नहीं नहीं ............... इससे तो अच्छा है मैं उसे जन्म ही ना दूँ "
वाह माँ
कम से कम एक बार इतना तो सोचा होता
क्या बेटी को पढ़ाने से माँ-बाप कंगाल हो जाते हैं
क्या इस समाज में कोई नहीं मिलता बिना दहेज़ तुम्हारी बेटी का
हाथ थामने वाला
क्या तुम्हे बिल्कुल भी यकीन नहीं था अपनी परवरिश पर
ज़रा बताओ मुझे
क्या सभी लड़कियां बन जाती हैं वेश्याएं .......................
सच तो ये है माँ कि तुमने खून किया है मेरा
ख़ुद को बचाने के लिए बलि चढ़ा दिया तुमने मुझे
सूख गई तुम्हारी ममता और ख़त्म हो गया तुम्हारा वात्सल्य
चंद घटिया और खोखले दावों के सामने
अरे किसने दिया तुम्हें
माँ कहलाने का हक
इससे तो अच्छा होता की तुम मुझे जन्म देती
और गला घोंटकर मार देती
कम से कम इसी बहाने ये अभागिन
स्पर्श तो पा जाती तुम्हारे हाथों का..................
पर तुमने तो मुझे एक अवसर भी नहीं दिया
सुना है माँ ... अस्पताल के पीछे जहाँ दफनाया गया था मुझे
वहां उग आया है एक नन्हा सा पौधा
कभी फुरसत मिले तो कड़कती बेरहम धूप में
मुझे अपने आँचल की छाँव देने आ जाना .........
बस माँ यही कहना था तुमसे ............
और हाँ अब अपने आँसू पोंछ दो ........
भैया के स्कूल से आने को समय हो गया.......



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ७॰१५, ७, ५॰१
औसत अंक- ६॰५६२५
स्थान- द्वितीय


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ५, ७, ६॰५६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰५१५६
स्थान- द्वितीय



पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

mehek का कहना है कि -

अजन्मी बिटिया के भाव बहुत मार्मिक रूप से प्रगत किए है, बहुत बधाई

seema sachdeva का कहना है कि -

समाज मी फैलती भ्रूण हत्या जैसी बुराई और अजन्मी कन्या की मार्मिक व्यथा को आपने बखूबी बयान किया है |बधाई

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अरुण,
स्वागत है हुन्द युग्म पर |
बधाई हो |
आपकी अभी तक की उपलब्धियाँ मैंने जब पढ़ा तो अचरज हुया | बहुत सफलता मिली है |

रचना अच्छी है | एक संदेश है , शिकायत भी |
पर माँ को इतना कोसना मेरे गले नही उतरता | यह मेरा व्यक्तिगत विचार है |
पुन: बधाई |

अवनीश तिवारी

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अरूण जी, द्वितीय पुरस्कार की बधाई स्वीकारें।
आपके बारे में पढ़कर अच्छा लगा। इस विषय पर हिन्दयुग्म पर पहले भी पढ़ा जा चुका है। मुझे इस कविता की लम्बाई ने बहुत निराश किया है। मुझे लगता है कि ये छोटी हो सकती थी।
अंत की पंक्तियाँ अच्छी लगी

"सुना है माँ ... अस्पताल के पीछे जहाँ दफनाया गया था मुझे
वहां उग आया है एक नन्हा सा पौधा
कभी फुरसत मिले तो कड़कती बेरहम धूप में
मुझे अपने आँचल की छाँव देने आ जाना ........."

धन्यवाद

Anonymous का कहना है कि -

अरुण जी बधाई हो ,आपकी इतनी सारी सफलताएं देखकर अच्छा लगा पर माफ़ कीजियेगा इस कविता को पढ़कर मैंने भी कुछ असहज सा महसूस किया , किसी माँ को इतना कोसना, कुछ ठीक नहीं लगा...!!! और उससे भी ज़्यादा यह बात समझ नहीं आई कि पहले माँ से कोई शिकायत नहीं है और बाद में बहुत सारे सवालों के घेरे में कैद है माँ ???ऐसा क्यों ?
सुना है माँ ... अस्पताल के पीछे जहाँ दफनाया गया था मुझे
वहां उग आया है एक नन्हा सा पौधा
कभी फुरसत मिले तो कड़कती बेरहम धूप में
मुझे अपने आँचल की छाँव देने आ जाना .........
और
क्या तुम चाहोगी की तुम्हारी बेटी को निम्नता का अहसास हो
वो हमारे बेटे की अपेक्षा दबकर जीवन जिए
उसकी हर इच्छा हमारे लिए गौण हो
नहीं ना
तो फिर उसे जन्म मत दो
यह पंक्तियाँ अच्छी लगी .
पूजा अनिल

Dinesh Singh का कहना है कि -

अरुण,
मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी |
बहुत अच्छे | बधाई | शुभकामनाएं |

-- दिनेश सिंह

Anonymous का कहना है कि -

बधाई हो अरुण जी,बहुत अच्छी कविता है
आलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

प्रिय बन्धु,

कविता अच्छी है, मगर आद्ययंत में विरोधाभास है जो कविता को असहज बना रहा है...

हिन्द-युग्म पर आपका अभिनन्दन है..

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

अरुणजी,
आपकी उपलब्धियों पर दृष्टिपात के बावजूद आपकी रचना पर कुछ भी कहना मेरे लिए छोटी मुंह बड़ी बात जैसी है ! विरोधाभाष एवं अतिशयोक्ति के बावजूद यहाँ व्यक्त आपके भाव अत्यन्त मार्मिक एवं प्रभावशाली हैं. किंतु इसे कविता कहने में मुझे अभी तक संकोच हो रहा है ! आप को पूर्ण विश्वास है कि यह कविता ही है ??

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

कविता अत्यधिक लम्बी हो गई है। भ्रूण-हत्या के लिए केवल मॉ को जिम्मदार ठहराना उचित नहीं यह कविता की प्रारम्भिक लाइनें साफ बयान करतीं हैं। अंत की लाइनें अच्छी हैं। कुल मिलाकर कवि का विरोधाभासी मन इस कविता में परिलक्षित होता है। समस्या का मूल कारण भी यही है। यह पुरूष-समाज नारी पर सारा दोष मड़कर चैन की बंसी बजाना बखूबी जानता है। समस्या पर कवि की चिंता वंदनीय है।

मेनका का कहना है कि -

आज भी समाज मी ऐसी बुराइयां है...आपने अपने कविता के माध्यम से इसे सामने लाने की जो कोशिश की है वो बहुत ही सराहनीय है ..लेकिन मेरा हर पाठक से निवेदन है की इसे प्रयास मे भी लाये ..ताकि आने वाले समय मे ना ही कोई माँ दुखी हो अऔर् न ही किसी 'अजन्मी' का अंत हो|

Unknown का कहना है कि -

अरुण जी, आपकी कविता "माँ" वास्तवमे ही सराहनीय है कहीं माँ कीमजबूरी को समझने की व्यथा तो कहीं माँ के अविश्वास को धिक्कारने का अधिकार कि माँ अपनी बेटी के लिए सकारात्मक दृष्टि क्यों नही रख सकती" का सोच समाज कि इस कुप्रथा को बदल सकती है
शुभकामनाओं सहित
मैत्रेयी

Anonymous का कहना है कि -

excelent poem i like very much

Anonymous का कहना है कि -

अरुण जी बधाई हो

Unknown का कहना है कि -

Congratulations.........kavita bahut achhi hai,aap ne samasya to batayi lekin iska samadhan nahi bataya ,isliye ye adhuri hai.....yadi isme samadhan hota to ye kavita poori ho jati.

Aane wali nayi kavita k liye Shubhkamanye....vo jarur poori hogi...

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अद्भुत जी,
क्या सुंदर रचना की है! बधाई.

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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