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Saturday, May 16, 2009

मेरे नुख्से कारगर हो सकते हैं


अप्रैल माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की सातवीं कविता के रचनाकार आलोक उपाध्याय मूलतः उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के टोकवा गांव के निवासी हैं। वर्तमान में Crest Logix Softseve Pvt Ltd इलाहबाद में बतौर Software Engineer काम कर रहे हैं। साथ ही IGNOU से MCA की पढ़ाई भी कर रहे हैं। बचपन से ही उर्दू साहित्य और हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव रहा है। हालाँकि पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक नहीं थी लेकिन इनकी माँ ने अपने मन की कोमलता बचपन में ही इनके मन के अन्दर कहीं डाल दी थी। वक़्त-वक़्त पर मिली उपेक्षाओं और एकाकीपन ने उस कोमल मन पर प्रहार किया तो ज़ज्बात और सोच कागजों पर उभरने लगे।

पुरस्कृत कविता- फूल भी पत्थर हो सकते हैं

ये आंसुओ से तर हो सकते हैं
रिश्ते और बेहतर हो सकते हैं

चंद सांसे अभी भी बाकी हैं
मेरे नुख्से कारगर हो सकते हैं

हमें अब तक यकीं नहीं आया
वो भी सितमगर हो सकते हैं

ये वक़्त का एक फलसफा है
फूल भी पत्थर हो सकते हैं

नुकसान की तो बात न करो
ये जनाब जानवर हो सकते हैं

दरख्त सूखने लगे अचानक
कई परिंदे बेघर हो सकते हैं

इस तरह मुलाक़ात की उसने
ये चर्चे उम्र भर हो सकते हैं

अपने घर में कभी न सोचा
हम भी बेक़दर हो सकते हैं

बात यकीं पे आके रुकती है
सायेबां सूखे शजर हो सकते हैं

कैफ़ियत यूँ ठीक नहीं अपनी
तीर-ए-नज़र बेअसर हो सकते हैं



प्रथम चरण मिला स्थान- पाँचवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- सातवाँ


पुरस्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' के व्यंग्य-संग्रह 'कौआ कान ले गया' की एक प्रति।

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

सही है........हो सकता है सागर भी मीठा पानी बन जाये,
दुनिया ना माने !

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आलोक जी को बहुत बहुत बधाई।


-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

आलोक जी,
आपकी रचना मन को बेहद भायी. और साथ में बहुत बधाई.

चाँद साँसे अभी भी बाकी हैं
मेरे नुस्खे कारगर हो सकते हैं.

अपने घर में कभी न सोचा
हम भी बेकदर हो सकते हैं.

वाह! क्या पंक्तियाँ लिखी हैं!

manu का कहना है कि -

चाँद साँसे अभी भी बाकी हैं
मेरे नुस्खे कारगर हो सकते हैं.

बहुत खूब,,,,,,,,
अच्छी रचना,,,,,,,,,

mohammad ahsan का कहना है कि -

prabhaavshaali lekhan.

neeti sagar का कहना है कि -

मुझे तो आपकी पूरी कविता ही अच्छी लगी.बहुत-बहुत बधाई....

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

बहुत ही प्रभावशाली रचना, मुझे तो हर शेर पसंद आया बधाई ..............

Ria Sharma का कहना है कि -

ये वक़्त का एक फलसफा है
फूल भी पत्थर हो सकते हैं

दरख्त सूखने लगे अचानक
कई परिंदे बेघर हो सकते हैं

लाज़वाब शेर !!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

bilkul ji apka paryas kargar hua hai bahut bahut badhai

Dinesh Dard का कहना है कि -

Ghazal padhi tumhari to yu laga "alok",
Lafz-Lafz asar ho sakte hain.

Acchi koshish hai Alok bhai.

Badhaai.

sangeeta sethi का कहना है कि -

आलोक जी
आपने सही कहा कि रिश्ते और बेहतर हो सकते है | मन को छू गयी रचना

संगीता सेठी

SURINDER RATTI का कहना है कि -

आलोक जी,
चंद सांसे अभी भी बाकी हैं
मेरे नुख्से कारगर हो सकते हैं
ये वक़्त का एक फलसफा है
फूल भी पत्थर हो सकते हैं
बहुत खूब, बधाई ..
सुरिन्दर रत्ती

Shahid Ajnabi का कहना है कि -

आलोक जी,
बात यकीं पे आके रुकती है
सायेबां सूखे शजर हो सकते हैं

यूँ तो ग़ज़ल का हर एक अशार वजनी है. मगर इस शेर की बात ही कुछ और है, यकीन पे पूरी दुनिया का दारोमदार है. वो बखूबी बयां किया आपने इसमें.
बहुत बहुत मुबारक हो एक खुबसूरत प्यारी सुन्दर रचना के लिए.

शाहिद "अजनबी"

सदा का कहना है कि -

दरख्त सूखने लगे अचानक
कई परिंदे बेघर हो सकते हैं

बहुत ही बेहतरीन ।

Unknown का कहना है कि -

Superve Alok sahab...

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