मैं तुम पर आश्रित नहीं
स्वयं सिद्धा हूँ
तुम्हारे स्नेह को पाकर
ना जाने क्यों
कमजोर हो जाती हूँ
स्वयं को बहुत असहाय पाती हूँ
शायद इसलिए
तुम्हारे हर स्पर्ष में
प्रेम की अनुभूति होती है
उस प्रेम को पाकर
मैं मालामाल हो जाती हूँ
और अपनी उस दौलत पर
फूली नहीं समाती हूँ
अपनी इच्छा से
अपने को पराश्रित
और बंदी बना लेती हूँ
किन्तु तुम्हारा अहंकार
बढ़ते ही
मेरी जंजीरें स्वयं
टूटने लगती हैं
मेरी खोई हुई शक्ति
पुनः लौट आती है
और मैं आत्म विश्वास से भर
हुँकारने लगती हूँ
मेरी कोमलता
मेरी दुर्बलता नहीं
मेरा श्रृंगार है
यह तो तुम्हें सम्मान देने का
मेरा अंदाज़ है
वरना नारी
कब किसी की मोहताज़ है ?
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
शोभा जी बहुत अच्छी संवेदनाओं के साथ पूरी हुई है रचना... बधाई...
Happy womens day
नाज़िम नक़वी
मेरी कोमलता
मेरी दुर्बलता नहीं
मेरा श्रृंगार है
शोभा जी, बहुत सुंदर एवं सारगर्भित रचना। बधाई।
जो सिद्धा उसको नमन, करुँ जोड़कर हाथ.
अड़कर बरगद टूटता, बचे दूब नत-माथ.
शोभा कोमलता 'सलिल', है कठोरता दोष.
नमन वहां करते सभी, जहाँ ज्ञान का कोष.
शोभा जी ,
नारी की कोमलता ,,,और वज्र से भी अधिक कठोरता कहती सुंदर कविता,,,,
दोनों रूप सराहनीय ,,,,,
kitni sahaj satya sunder abhivyakti ko saral shabdon me kaha hai mujhe lagta hai yahi samvednaayen har naaree ki hain bahut bahut badhaai
bahut sundar rachana . naaree ki vinamarataa aur komalataa ko usaki kamjori hi samajh liya jaataa hai . naari divas par naari samvednaayon ko vyakt karti kavita ke liye badhaaii
सोभा जी
नारी के दोनों रूप आप ने बहुत सुन्दरता से दिखायें हैं .
दरिया बन चरणों में बह जाती है
खुद बिखर तुम को समेट जाती है
ये नारी ही है जो एसा कर पाती है
त्याग में उसके ईश्वर बसता है
सृष्टि तभी उस को सृजन का अधिकार दे जाती है
सादर
रचना
. .
किन्तु तुम्हारा अहंकार
बढ़ते ही
मेरी जंजीरें स्वयं
टूटने लगती हैं
मेरी खोई हुई शक्ति
. .
impressive! I liked your way of expressing yourself.
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