'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के प्रथम अंक के परिणाम बहुत लुभावने हैं। यूनिकवि का सम्मान कवि आलोक शंकर को उनकी कविता 'एक कहानी' को जाता है और आश्चर्यजनक रूप से यूनिपाठक का सम्मान भी उन्हें ही दिया जाता है।
यह प्रतियोगिता जनवरी माह के १०वें से २०वें दिवस तक आयोजित की गई जिसमें कुल छः कवियों की रचनाएँ नामांकित हुईं।
यद्यपि प्रतियोगिता में कुछ अन्य रचनाकारों ने भी भाग लिया था, परन्तु उनकी रचनाएँ इसलिए प्रतियोगिता से बाहर हो गईं क्योंकि वे पूर्वप्रकाशित थीं।
आज हम आपके समक्ष हमारे प्रथम यूनिकवि आलोक शंकर की रचना 'एक कहानी' को लेकर प्रस्तुत हैं। इस कविता के लिए उन्हें हिन्द-युग्म की ओर से रु ३००/- का नकद पुरस्कार और रु १००/- तक की राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कृतियाँ दी जाती हैं। चूँकि यूनिकवि आलोक शंकर फरवरी माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी रचनाएँ पोस्ट करने का वादा कर चुके हैं, इसलिए उन्हें प्रत्येक सोमवार रु १००/- के हिसाब से रु ३००/- का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
यूनिपाठक के लिए सम्मान के रूप में आलोक शंकर ने रु २००/- तक की गजानन मुक्तिबोध की पुस्तकें लेने का विचार व्यक्त किया है, अतः उन्हें मुक्तिबोध की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।
पाठक के रूप में आलोक शंकर ने १० जनवरी से ३१ जनवरी के मध्य कुल १९ टिप्पणियाँ की (सभी यूनिकोड में)।
आलोक शंकर- एक परिचय
जन्मतिथि- 25 अक्तूबर 1983स्थान- रामपुरवा,पूर्वी चम्पारण,बिहार
शिक्षा- स्नातक (अन्तिम वर्ष)
विद्यालय- विकास विद्यालय, राँची, जहाँ गुरु श्री बी आर मिश्रा जी ने लेखन के लिये प्रोत्साहित किया।
सूचना प्रौद्योगिकी में इंजीनियरिंग चतुर्थ वर्ष,कोचीन विश्वविद्यालय अभी कवि स्नातक अन्तिम वर्ष में हैं, इन्होंने अभी तक शौकिया लेखन किया है। अभी तक विद्यालय की हिन्दी पत्रिका का सम्पादन किया है और हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अभी नये हैं। कुछ कवितायें (आग़ाज़, चार छोटी कविताएँ, भीष्म , भीष्म-प्रतिज्ञा, परछाइयाँ, हाशिये पर ज़िंदगी) "अनुभूति" में प्रकाशित। कवि अभी कोचीन,केरल में रह्ते हैं ।इस वर्ष स्नातक की पढाई पूरी होने के बाद ये CISCO SYSTEMS ,Bangalore में अपनी पहली नौकरी की शुरुआत करेंगे । कम्प्यूटर विज्ञान, शास्त्रीय संगीत और खेल इनकी अन्य रूचियाँ हैं।
पुरस्कृत कविता- एक कहानी
उसको देखा जब भी, जिस क्षण,
कृश तन , विदग्ध सा अंतर्मन;
ले तड़प-तड़पकर जीता है,
अपमान - हलाहल पीता है।
पूछा मैनें , रे चिर- बेकल,
कृश यह काया,ये नैन सजल;
तू किसपर क्रोधित है भाई,
जो इतनी खामोशी पाई?
तू कृषक, अन्न उपजाता है,
फ़िर क्यों भूखा रह जाता है?
इतना उत्ताप भला कोई ,
किस तरह सहन कर पाता है?
लख तेरी हालत, रह न सका;
कुछ कहना चाहा,
कह न सका।
पर साहस आज जुटा पाया,
जिज्ञासावश होकर आया;
दे मेरे प्रश्नों का उत्तर ,
तज लाज़-हया का तम दुस्तर।
फ़िर उसने मुझे बताया था,
किस तरह कहूँ, सुन पाया था?
बोला- भाई , तुम जान रहे,
दुखियारा मैं , पहचान रहे।
मैं भी तो जीवन जीता था,
सुख से कुछ जीवन बीता था;
सब यहाँ चैन से रहते थे,
सुख - दुःख बाँटकर सह्ते थे।
पर समय कभी क्या एक रहा?
दुःख - सुख में तो हर एक रहा।
मानव बस एक निशाना है,
दोनों का आना जाना है।
निज गृह पर विपदा आई थी,
अपने संगी भी लाई थी।
वह रात पड़ी मुझपर भारी,
थी चोरी हुई फ़सल सारी।
सोने से गेहूँ के दानों
सी सुडौल मेरी आशायें;
दो जून पेट भरकर खाना,
टूटतीं कर्ज की बाधायें।
थी नहीं नियति को भी भाईं
मेरी खुशियाँ छोटी छोटी;
तन ढकने भर थोड़ा कपड़ा,
दो वक्त तोड़ने को रोटी।
सब महाज़नों पर बाकी था,
मुझ प्यासे हित जो साकी था;
अधरों तक आकर टूट गया,
राशन -पानी तक छूट गया।
विपदा को थी पर छूट बड़ी
अब वृषभ-द्वयों पर टूट पड़ी;
जो बाकी था , वह भी न रहा,
घर- बार, वस्त्र ,कुछ भी न रहा।
सुत - भार्या थे , जब तड़प रहे,
थे क्षुधा - कोप से बिलख रहे;
तब मुझसे अधिक रहा न गया,
उनका दुःख अधिक सहा न गया।
हल थे, उनको मैं बेच आया,
खाना खरीदकर ले आया;
उनको ही सबकुछ खिला दिया,
खुद का दुःख कुछ पल भुला दिया।
यह भी तो पड़ा मुझे भारी,
बनियों की करामात सारी;
उसमें कुछ गरल गिराया था,
क्या सितम भूख ने ढाया था !
दोनों थे अब मृत पड़े हुए,
कुछ गम भी नहीं मनाया था;
मैं सीने पर पत्थर रखकर
उनका तर्पण कर आया था।
थाने जा रपट लिखाई थी,
अपनी हालत बतलाई थी;
निर्धन था, और निरक्षर भी,
सो, बस घुड़की ही खाई थी।
मैं भला अकेला क्या करता,
किस- किससे जा- जाकर लड़ता;
सच्चाई है, धनवानों को ही
न्याय सदैव मिला करता।
कहने को अबतक जीता हूँ,
बाहर - भीतर से रीता हूँ;
वे कहते हैं मैं सुनता हूँ,
पर नहीं कभी सिर धुनता हूँ।
मैं नहीं अकेला निर्जन में,
लाखों मुझ जैसे इस वन में;
सबकी मुझ- जैसी गाथा है,
सबका मन यही सुनाता है।
मृत- सा रहकर भी जी लूँगा,
हर तिरस्कार को पी लूँगा;
दुखियों का कौन विधाता है?
बस, यही हमारी गाथा है।
निर्मोह अनल का ताप
आज मुझसे न सहा ज़ाता है;
उड़ती करुणा की भाप,
अचल मुझसे न रहा जाता है।
मलयानिल से रससार पृथक हो
शुष्क हुआ जाता है;
आलोक चर रहा शलभ ,
देख उच्छवास निकल आता है।
जब जीवनदायी रोता है,
संसार सुखी कब होता है?
जो भारत का निर्माता है,
सारे दुःख वह ही पाता है;
अतिचारी मौज मनाते हैं
वे 'कालजयी' कहलाते हैं।
शोणित कृषकों का पी करके,
पौरुष दिखलाते जी भरके।
जबतक होंगें ये दुराचार,
रोयेगी संस्कृति इस प्रकार ।
मानवता पर यह दुष्प्रहार,
लख अब न रहा जाता है।
पुरस्कार राशि, पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र आलोक शंकर को भेजी जा रही हैं।
आप भी इस प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा उत्साहवर्धन कर सकते हैं। हमारा यह प्रयास तभी फलीभूत होगा जब आप इसमें सक्रिय रूप से भाग लेंगे। कृपया हमें अपनी रचनाएँ १५ फरवरी तक hindyugm@gmail.com पर भेजें। यह ब्लॉग रोज़ाना अद्ययित होता है। रोज़ नयी कविता परोसने को हम कटिबद्ध हैं। कृपया आप आयें, रचनाओं की समालोचना करें और पुरस्कार तथा सम्मान पायें। सम्पूर्ण जानकारी के लिए यहाँ देखें- http://niyamawamsharten.blogspot.com/2007/01/blog-post.html
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33 कविताप्रेमियों का कहना है :
आलोक शंकरजी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई!!!
आलोक शंकरजी को मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई!!!
साथ ही हिन्दी युग्म को भी साधुवाद
बधाई आलोक शंकरजी को!
आलोक शंकर जी को बधाई।
हिन्दी युग्म को इस तरह की प्रतियोगिता के आयोजन के लिए साधुवाद।
आलोक शंकरजी को हार्दिक बधाई
बधाई आलोक जी
हिन्दी युग्म और आलोक शंकर को शुभकामना ।
hindiyugm badhayi ka patra hai..visheshkar shailesh bhai... Aur haan unki puri team. Alok shanker uttarotar pragati path par badhate rahen, lekhan me jitna beetar jitnaa peeche jaa saken, ham pathakon ko utani hi ananddayak rahanon ka asvadan kara sakenge. Alok ji ko bahdaeyan... Par vishesh badhayi Hindi YUgm ko hee.
(Giriraj bhai....apki baat maan raha hun, apko bhi salaam)
aapko hamaari or se hardik bhadhaiyaan
हिन्दी युग्म से जुड़े तमाम मित्रों का स्वागत और अभिनंदन - निसंदेह यह कार्य इंटरनेट पर हिन्दी की समृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित होगा.
आलोक को बधाई.
alok shankar ji ko aur hind yugm ko unki safalata par meri or se hardik shubhkaamnayein.
आलोक शंकर को मेरी ओर से हार्दिक बधाई!!!
आलोक शंकर जी को बधाई।
यह तय करना कि आलोक शंकर जी की रचना 'एक कहानी' एक कविता है या पद्यात्मक कहानी, एक मसला हो सकता है क्योंकि इसमें दोनो के गुण समान रूप से मौजूद हैं। परन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं हो सकता कि यह रचना अपने शब्दचयन तथा भावगत सौंदर्य, दोनों मायनों में एक उच्चस्तरीय कृति है। इसके लिए कवि तथा हिन्दी-युग्म दोनों बधाई के पात्र हैं।
बहुत बधाई हो भाई आलोक शंकर जी... लेकिन आप कविताओं की भाषा थोड़ी और सरल करें... हमेशा जिन कविताओं ने व्यापक जन से खुद को जोड़ा, वही महान हुई है... कबीर से लेकर नागार्जुन तक को देखिए... मैं भी बेतिया में रहा हूं... और रांची से मेरी भी पढ़ाई-लिखाई हुई है...
बधाई आपको इस सफल आयोजन के लिए तथा शंकर जी को यह पुरुस्कार जीतने पर।
आलोक शंकर जी मेरी भी बधाईयाँ स्वीकारें
आलोक शंकर और हिन्दी युग्म दोनो को ही हार्दिक बधाई.
आप सभी का मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ । हिन्द युग्म टीम को भी मैं इस प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिये धन्यवाद और बधाई देता हूँ । आशा है कि आप सभी का प्यार और मार्गदर्शन मुझे अच्छा लिखने की प्रेरणा देता रहेगा ।
सधन्यवाद,
आलोक
आलोक और हिन्दी युग्म दोनो को हार्दिक बधाई ।
aalok shanakr ji ko meri taraf se bhi bhaut bhaut badhayi
aapki kavita kahani dono hi achhhi lagi usse bhi jayada achha laga aapka is umar mai hindi main likhna jaha desh english ki taraf bhaag raha hai aapne hindi mai likhna shuru kiya aur wo bhi itni shuddh hindi
aapki nayi job ke liye bhi meri taraf se abhi se hardik subhkamanye hai
Bahut hee sundar likhaa hai bhai.. aapne .. have no words to say more .!
Ripudaman
Hindi se hame bhi pyar hai, kya kare pyar beshumar hai, ham kavi nahi to kya hua, hindi ke pyar se kisko inkar hai.
Par mere dost, kewal hindi ke hit me likhne se kya hoga jab website me hi galtiyo ki bharmar hai?
ALOK TRIVEDI
tri_alok@yahoo.com
Bhopal
मैं उनिकोडे टाइपिंग नही जानता हूँ ...रचनाएं भेजने का इच्छुक हूँ ...मार्गदर्शन करें ....शैलेश जी आपका प्रयास सराहनीय है
Hindi se hame bhi pyar hai, kya kare pyar beshumar hai, ham kavi nahi to kya hua, hindi ke pyar se kisko inkar hai.
Par mere dost, kewal hindi ke hit me likhne se kya hoga jab website me hi galtiyo ki bharmar hai?
LEKIN APP BHUL GAYE DOST. KI AAP BAHUT DINO SE BIMAR HAIN AUR BIMARI KE SHIKAR HAIN.
SORRY LEKIN MAJBURI THI. YE BATEIN KEHNA ZARURI THI. AGAR AAP GALTIYAN BATA RAHEN HAIN TO SUDHARNE K LIYE BATAIYE KYA SUDHAREIN. SIRF KEHNA KI GALTIYON KI BHARMAR HAI SE AAP DOST NAHIN KEHLA SAKTE.
MERE KO J.M.SOREN KEHTE HAIN.
jyotimunna@rediffmail.com
मानव की कल्पना की उड़ान देखी जा सकती है 'बिजली' पर प्रकाशित कवितायों में. विविध तरह के मनोरंजन के लिए सभी कवियों को बहुत बहुत धन्यवाद और हिन्द युग्म को हार्दिक बधाई.
कोई लन्दन से गुज़र रहा हो तो हम उसे नेहरु केन्द्र में आमंत्रित करना चाहेंगे, हमारे कार्यक्रमों की सूची इस वेबसाईट पर देखी जा सकती है : www.nehrucentre.org.uk
सप्ताहंत के लिए बहुत सी सामग्री है पढने के लिए, शुभकामनाओं के साथ और सस्नेह,
दिव्या माथुर
नेहरु केन्द्र, लन्दन
POORI NAHI PADH SAKA, LEKIN BAHUT ACHHI KAVITA THI.
अन्नदाता के जीवन का मार्मिक चित्रण और उसकी इस द्सा के जिम्मेवार व्यकित्यों पर बाण आजे यह जरूरी है सचमुच ह्रदय स्पर्शी कविता है एक हलधर के धैर्य को दिखाती है और सोचने को मजबूर करती है कि क्या ऐसे समाज कि कल्पना कि थी हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने बापू ने जहाँ दलाल करने वाले अमीर होते जाएँ और मेहनतकश भूखा रहे | आलोक जी इस प्रस्तुति और पुरस्कार के लिए बहुत बधाई |
आलोक शंकरजी की कविता एक कहानी ने जो कहा है ,उनकी श्रेष्ट संवेदना को व्यक्त करती है. कवि या लेखक जब अपने शब्दों से किसी को बाँध दे तो वो वो सफल हो जाता है. वास्तव में अपनी मार्मिक अनुभूति से पाठक वर्ग को झकझोर देना ही पुरस्कार है. बधाई नवयुवा लेखक को.
अलका मधुसूदन पटेल
साहित्यकार-लेखिका
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