गोधुली की अंगड़ाईयों के बाद,
अब आसमां के माथे पर शब चढ चुकी है,
घुमती-फिरती ख्वाहिशों की सड़क,
दिन भर,
पाँव तले पीसने के बाद
फफोले लिये अपनी मंजिल को लौट आई है,
अंधेरों से से लड़ते-झगड़ते
तारों की टिमटिमाहट के साथ
रौशनदान पर दस्तक दे रही है ।
शायद उसमें अब इतना भी हौसला नहीं
कि
घर के अंदर पल रही मजबूरियों को
मात दे सके ,
शायद उसमें अब
आशा की खिड़की खोलने का भी
माद्दा नहीं बचा।
और तभी
बादलॊं के तह को बेधते,
किस्मत के आबसारों से
चाँदनी की दो किरणें
टपक पड़ती हैं।
मेरी बोझिल निगाहें कुछ सकपकाकर
उठती हैं,
तो मैं चाँद को
पूजा की थाली लिये
अपने बगल में खड़ा पाता हूँ।
उन अधरों से अपना नाम सुनकर
तुम्हारा और फिर अपना भान होता है।
सहसा सड़कों के किनारे चमक उठते हैं,
खिड़की से चाँद के कुछ टुकड़े आकर
यह आभास दिलाते हैं
कि चाँद को घर लाने के लिए
आज तुमने कुछ नहीं खाया।
मेरे फफोलों को सहलाते हुए
फिर तुम
करवाचौथ के कुछ शब्द गुनगुनाती हो
और मैं
यूँ हीं खड़ा-खड़ा
इस शब को अपने सहर में
परिवर्तित होता हुआ देखता हूँ।
जिस पल तुम अपने नयनों में
मुझे बंद कर मुझे अपना खुदा बताती हो,
उस पल मैं अपने "काबा" में
तुम्हें स्थापित करता होता हूँ
और जिस पल
तुम मेरे कदमों को छूती हो,
मेरा हृदय तुम्हारे हर एक रोम को
"सजदे" करता होता है।
मैं अपने खुदा को
खुद से एक पल भी दूर नहीं रख सकता,
यही सोच कर ,मानो,
मैं तुमसे लिपट पड़ता हूँ।
आँखों से कुछ जलधाराएँ फूट पड़ती हैं,
संग तुम भी बिलख पड़ती हो
और तुम्हारी अंखियों की मोती को मैं
अपने हृदय में पिरोने लगता हूँ।
आज भी चाँद बिन बुलाये नहीं आया,
आज भी तुमने मेरे साथ के लिये
उपवास रखा है,
आज भी मेरे प्यार में तुम्हारे नैन
भर आए हैं,
कई जन्मों की तिस्नगी उबल पड़ी है
आज देखो,
शायद इस कदर प्यासा मैं कभी न था।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut achchaa tanaha ji
बधाई के पात्र आप इस रुप में है कि इस विषय के साथ आपने पूर्णत: न्याय किया है…लेकिन वो आँसू स्वार्थी है…जिससे मन में भ्रम होता है कि वो मेरे ही
लिए है जबकि वह तो पुण्य पाने का अवसर था…
तनहा जी..
मन प्रसन्न हो गया| हृदय के हर तार को कविता छूती है|
"शायद इस कदर प्यासा मैं कभी न था".....
राजीव रंजन प्रसाद
bahut sundar upastithi hai.....is vishay main isse behtar aur kya likha jaa sakta hai....ek ek pankti apne aap main poorna hai...badhaai sweekaaren
तन्हाजी, हमेशा की तरह ही आपकी एक और बहतरीन प्रस्तुति।
आपका विषय का चुनाव और उसमें रम जाना दोनों ही बहुत उम्दा है, आपकी कविताएँ दिल को छूती है।
दीपक जी,
आपने इस कविता से सिद्ध कर दिया कि कविता भावनाओं से भरी होती है। मुझे यह कविता इतनी पसंद आयी कि मैंने इसे ४ बार पढ़ा। सच में महान है आपकी लेखनी।
badhai ho uss kavi ko jo iss vishay ko ek anokha roop diya.. ek anokhe tarike se upasthit kiya...
tanha kavi ROXXXXXX
Grt work Deepakji... regularily update karte jaiye..... was nice to read...
gud one tanha ji,aise hi kavita ka maypan ham pyaaso ko karaate rahiye :)
आज भी चाँद बिन बुलाये नहीं आया,
आज भी तुमने मेरे साथ के लिये
उपवास रखा है,
आज भी मेरे प्यार में तुम्हारे नैन
भर आए हैं,
कई जन्मों की तिस्नगी उबल पड़ी है
आज देखो,
शायद इस कदर प्यासा मैं कभी न था।
aapni in panktiyon ne khyaal ko soch ko jhkjhor kar rakh diya hai .
bhaut bhuat gahti baat aur bhaut achhe sabdo ka chayan aapki ye kavita mere man ke kareeb rahegi dost
aise hi aap likhte rahe meri subhkaamnaye aapke satah hai
"आज देखो,
शायद इस कदर प्यासा मैं कभी न था।"
अनुपम, गहरे भाव, सशक्त लेखन
तनहा जी, पढते हुये स्वतः ही दृष्यान्तर हो उठता है और मन भीग जाता है
आपके छन्दों का बहुत आनन्द लिया है आज नयी विधा के रसपान से प्रसन्न हो गया
सबल भाव कि सहज अभिव्यक्ति में आप सिद्धहस्त हैं
हार्दिक शुभकामनायें
सस्नेह
गौरव शुक्ल
Kavitaa baad ki baat hai. Aap ye feelings rakhte hain, bhaavnaon ko samajhte hain, rasm ki izzat karte hain ... ye bahut badi baat hai.
Kavita bhi bahut achchi hai.
मैं चाँद को पूजा की थाली लिये
अपने बगल में खड़ा पाता हूँ।
... one of the many lines I liked.
Thodi lambi kavita hai, but I think the occassion deserved it!
RC
hi i am kuldeep kumar mishra
my blog-
http://kkmishra10.blogspot.com
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