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Thursday, August 26, 2010

क्रोध से बौरा गए होंगे नदी-नाले सभी


प्रतियोगिता की 13वीं कविता की बात करते हैं। इसके रचयिता महेन्द्र वर्मा का जन्म 30 जून 1955 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले के गांव बेरा में हुआ। महेन्द्र ने बी.एस-सी.,एम.ए. (दर्शनशास्त्र) तक की शिक्षा हासिल की है। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बेमेतरा, जिला दुर्ग, छत्तीसगढ़ में व्याख्याता के पद पर कार्यरत महेन्द्र वर्मा को बचपन से ही साहित्य पढ़ने-लिखने का शौक है। इनकी रचनाएँ विविध रूपों जैसे, आलेख, निबंध, गजलें, बाल कविताएं आदि के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। नवभारत, अमृत संदेश, सापेक्ष, सुरति योग आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी रायपुर से ग़ज़लें एवं वार्ताएं प्रसारित। अंतर्जाल की पत्रिका रचनाकार में ग़ज़लें प्रकाशित, सृजनगाथा एवं आखर कलश में ग़ज़लें प्रकाशनार्थ स्वीकृत। छत्तीसगढ़ की विद्यालयीन पाठ्य पुस्तक में एक गीत सम्मिलित। निष्ठा साहित्य समिति, बेमेतरा द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘‘निनाद‘‘ का संपादन। ‘सुरति योग‘ आध्यात्मिक पत्रिका के चार विशेषांकों का संपादन। विगत 25 वर्षों से वार्षिक स्मारिका शिक्षक दिवस का सम्पादन।

पुरस्कृत कविताः बरसात में

धरणि धारण कर रही चुनरी हरी बरसात में,
साजती शृंगार सोलह बावरी बरसात में।
रोक ली है राह काले बादलों ने किरण की,
पीत मुख वह झाँकती सहमी डरी बरसात में,
याद जो आई किसी की मन हुआ है तरबतर,
तन भिगो देती छलकती गागरी बरसात में।
एक तो बूँदें हृदय में सूचिका सी चुभ रहीं,
क्यों किसी ने छेड़ दी फिर बाँसुरी बरसात में।
क्रोध से बौरा गए होंगे नदी-नाले सभी,
सोचते ही आ रही है झुरझुरी बरसात में।
ऊपले गीले हुए जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता इस मरी बरसात में।

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

behtareen rachna... is tarah ki hindi me ghazal kam hi padhne ko milti hai par jab bhi milti hai annad aa jata hai .... anand aayaa

Manish aka Manu Majaal का कहना है कि -

प्रकृति को न सुहाया छेड़ना मनुष्य का,
कही चैत्र, कही भादों, एक ही बरसात में!

रंजना का कहना है कि -

वाह...वाह...वाह...लाजवाब !!!!

शब्द चयन,भाव ,प्रवाहमयता सब बेजोड़ है इस कविता में...
इस सुन्दर कविता को पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार...

M VERMA का कहना है कि -

ऊपले गीले हुए जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता इस मरी बरसात में।
प्रकृति का सजीव चित्रण ..
समसामयिक और अत्यंत खूबसूरत रचना

कविता रावत का कहना है कि -

Prakriti ka manohari chitran

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

प्रिय आतिश जी, मजाल जी, रंजना जी, एम.वर्मा जी और कविता जी, मेरी रचना आपको पसंद आई, धन्यवाद। उत्साहवर्धन के लिए आभार।

सदा का कहना है कि -

ऊपले गीले हुए जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता इस मरी बरसात में।

बहुत ही गहरे भावों के साथ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

सुनील गज्जाणी का कहना है कि -

क्रोध से बौरा गए होंगे नदी-नाले सभी,
सोचते ही आ रही है झुरझुरी बरसात में।
mahendra jee,
namaskar !
sunder abhivyakti ,
sadhuwad
saadar!

manu का कहना है कि -

bhai...bahut sunder...


aanand aa gayaa....

Ashish का कहना है कि -

एक तो बूँदें हृदय में सूचिका सी चुभ रहीं,
क्यों किसी ने छेड़ दी फिर बाँसुरी बरसात में।

आनंद आ गया
बहुत सुन्दर रचना


------आशीष

Safarchand का कहना है कि -

Is khoobsoorat rachna par Majal..ka comment:
प्रकृति को न सुहाया छेड़ना मनुष्य का,
कही चैत्र, कही भादों, एक ही बरसात में!

sudar dar sundar....

निर्मला कपिला का कहना है कि -

क्रोध से बौरा गए होंगे नदी-नाले सभी,
सोचते ही आ रही है झुरझुरी बरसात में।
सही बात है। बहुत अच्छी लगी कविता बधाई ।

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