सितम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की ग्यारहवीं कविता के रचयिता धर्मेन्द्र चतुर्वेदी 'धीर' का जन्म मध्यप्रदेश के कुख्यात चम्बल के बीहडों में स्थित भिंड जिले के अकोड़ा ग्राम में 5 जुलाई 1989 को हुआ और यहीं इनकी परवरिश हुई। इनमें कविता की शक्ति तब उजागर हुई जब ये दसवीं कक्षा में थे। तब से छिटपुट लेखन प्रारंभ किया। बीच में IIT-JEE की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के दौरान साहित्य से विमुख रहे। आईटी-बी एच यू में दाखिले के 1 वर्ष उपरांत लेखनी पुनः चलने लगी। इसी दरम्यान साहित्य के अटूट अध्ययन से परिपक्वता आती रही और यह प्रक्रिया अद्यतन जारी है। वर्तमान में इलेक्ट्रानिक्स अभियान्त्रिकी में तृतीय वर्ष में अध्ययनरत। पिछले ६ माह से तन्मयता से काव्य-कर्म में संलग्न। भविष्य में कविता के अलावा अन्य विधाओं में भी लिखने की तमन्ना।
कविता- मैं कौन
मधुऋतु की कोमल बयार हूँ
गले का आशातीत हार हूँ
आया हूँ तुमसे मिलने
मैं जीवन की मधुता का सार हूँ
खुशबू बिखेरूँ चमन में
कर दूँ समर्पित आगमन में
मुरझा न सके जिसको अनल
मैं सुमन वो नव आकार हूँ
मलय जिसे उड़ा न सके
जलाधार जिसे डिगा न सके
निकलेंगी लहरी हर ऋतु
वो वीणा वरद का तार हूँ
हूँ रंग वो जीवन भरूँ
अनुभूति जो सुखानंद दूँ
इति न हो जिसकी कभी
वो प्रेम का त्यौहार हूँ
अवसाद, कुंठा, विषमता
संशय, भय और अगमता
इन्हें क्षीण, क्षुद्र, भंगुर करूँ
मैं वो प्रबल हथियार हूँ
सिन्धुतृषा को बिंदु से भर दूँ
मरुवन को मैं पुष्पित कर दूँ
नीरस को बहुरस-रंगी कर दूँ
मैं वो ललित कलाकार हूँ
धरती से लेकर ब्रह्माण्ड तक
कण-कण और हर एक खंड तक
गूंजेगा जो दिग-दिगंत तक
मैं शब्द वो साकार हूँ
प्रथम चरण मिला स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- ग्यारहवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुशबू बिखेरूँ चमन में
कर दूँ समर्पित आगमन में
मुरझा न सके जिसको अनल
मैं सुमन वो नव आकार हूँ
कविता की बहुत सच्ची परिभाषा...बेहतरीन कविता...
बधाई...
धरती से लेकर ब्रह्माण्ड तक
कण-कण और हर एक खंड तक
गूंजेगा जो दिग-दिगंत तक
मैं शब्द वो साकार हूँ
बहुत सुन्दर सकारातमक , उत्साह से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर कविता
अभियान्त्रिकी के छात्र द्वारा सुन्दर शब्द चयन |
नई पीढी से प्रार्थना है, कोमल भावों के वाहक हिंदी शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग करे |
प्रयोग ही भाषा संजीवनी है |
विनय के जोशी
बहुत सुंदर कविता में शब्दों का चयन है .बधाई .
कवि का सत्य और प्रकृति से साक्षात्कार दिलचस्प है।
वो प्रेम का त्योहार हूं...अति सुंदर ! आज के पा्श्चात्य परिवेश में भी युवाओं द्वारा हिन्दी में पर इतना अच्छा अधिकार होना बेहद खुशी की बात है। हिन्दी के उज्जवल भविश्य की किरण दिख रही है। सुंदर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!
क्या क्या है आप. यह तो मुझे नहीं पता लेकिन एक कवी ज़रूर हैं आप
हूँ रंग वो जीवन भरूँ
अनुभूति जो सुखानंद दूँ
इति न हो जिसकी कभी
वो प्रेम का त्यौहार हूँ
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