चूहे कुतर देते फाईलें
नंगी किताबें, चिट्ठियां
सपने हमारे
किसी की दी हुयी रुमाल में
लिपटे सुनहरे खूबसूरत पल,
अकेला चित्र बचपन का,
द्वंद्व के क्षण, समूचा कल
चूहे कुतर देते रजत रातें
मेरे मन के खिले नभ के
फूल सारे
हमारे साथ जो था वक़्त
हमसे कट गया है,
नयी दुश्वारियों वाले समय से
घर समूचा पट गया है
सहेजें किस तरह बिखरे हुए सामान
चूहे छोड़ देते हैं उदासी भरे
लम्हे वो सारे
उचटती नींद में निस्तब्धता घर की
कचोटे दिल हमारा,
अँधेरा देखकर ऐसा लगे
अवसाद ने है पर पसारा
किसी दिन यूँ भी हो जब हो न दुश्वारी
समूचा वक़्त अनरीता
हमारे साथ हो
बस संग हमारे
यूनिकवि- चन्द्रदेव यादव
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2 कविताप्रेमियों का कहना है :
हमारे चूहे तो सिर्फ पुराना अखबार ही कुतरते हैं,,,
हमारे बेकार से स्कूल सार्टिफिकेट ,,,बचपन की यादें,,,स्केच्स ,,,,
जाडों के कम्बल,,,,सहेज कर रखे पुराने ख़त,,,,,
पुरानी डायरी ,,बच्चों के ऊनी कपडे,,,,गर्म शाल बीवी का ,,
और शादी की एल्बम,,,,
कुछ भी नहीं खाते,,,,,
सिर्फ और सिर्फ ,,,,अखबार खाते हैं छांटकर ,,,
शायद कभी हम ,,कोसते,,
नहीं हैं,,
बेचारे चूहों को,,,,
शायद ,,इसीलिए,,,,
hamein bakhsh
dete hon,,,,?
चूहे नश्वर कुतरते, नहीं अनश्वर याद.
माटी को माटी करें, समय न कर बर्बाद.
चूहे तो मजबूर हैं, करते मेहनत नित्य.
चिर भूखे मजदूर हैं, पूजें काम अनित्य.
हर आतंकी शिविर में, यदि दें इनको भेज.
कुतर उन्हें खा जायेंगे, दांत बहुत हैं तेज.
संसद में जा सकें तो, नेताओं को काट.
सोते से देंगें जगा, रोज खादी कर खाट.
हिन्दयुग्म में गए तो, इनकी ही आवाज.
पोडकास्ट पर मिलेगी, होगा इनका राज.
धूम बाल उद्यान में, मचा सकेंगे रोज.
चन्द्र देव से मिलेंगे, खायेंगे संग भोज.
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