रोटियाँ....
थाली में....
पहले सूख गईं...
....सड़ गई
फिर...आहिस्ता-आहिस्ता
गायब हो गईं....
एक रिश्ता....
उस थाली में
अब तक पड़ा है
गुजरे हैं...
महज पच्चीस-एक साल
अब कोई कैसे कहे
बड़ी फजीहत होती है...
...कहे बिना
जब....एक हादसे में
कोई...मर जाता है
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये ही जीवन है शायद....
बहुत खूब
अभिषेक जी , लगता है कोई दर्द छिपा है आपके भीतर जिसकी शिकायत कर रहे हो !!! बहुत खूब लिखा है -
जब....एक हादसे में
कोई...मर जाता है
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना !!
शुभकामनाएँ , पूजा अनिल
बेहद गूढ रचना है। कम शब्दों में हीं आप बड़ी बात कहने में सफल हुए हैं\
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
रचना बेहद संवेदित करती है,
एक रिश्ता....
उस थाली में
अब तक पड़ा है
........ ........
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना !!
*** राजीव रंजन प्रसाद
अच्छी कविता
अब कोई कैसे कहे
बड़ी फजीहत होती है...
...कहे बिना
जब....एक हादसे में
कोई...मर जाता है
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना !!
बहुत ही गहरा दर्द झलकता है इन पंक्तियों मे
मौन हो गया इस कथ्य पर
वाह !
सुन्दर रचना, गहराई लिये हुए..
अब कोई कैसे कहे
बड़ी फजीहत होती है...
...कहे बिना
जब....एक हादसे में
कोई...मर जाता है
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना !!
बधाई
बहुत सुंदर रचना पाटनी जी,बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"
मैं सोचता हूं..कि लोग ऐसी संवेदना लाते कहां से हैं...एक कविता लिखते समय.....
good one..last few lines are really meaning full.
excellent lines :
एक हादसे में
कोई...मर जाता है
जिन्दा रिश्तों को
दफ़न किए बिना
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