सब कुछ ठीक नहीं है
इस तथ्य की उपेक्षा कर
यथासंभव जीते ही जाना,
आज के वक़्त में
इतना भी काफी है
सड़क जाम में एम्बुलेंस
जीवन-मृत्यु का संघर्ष
छटपटाता हुआ शासन-तंत्र
हालत मात्र गंभीर
इतना भी काफी है
जूठे बर्तन, ईंट-बालू, धुआँ
इनमें सना देश का भविष्य,
संविधान में प्रावधान है
बाल-श्रम निषेध
इतना भी काफी है
अपने मूर्ति रूप में आराध्य
अनेकों "राधा-कृष्ण" की लाशें,
उन्हीं मुहल्लों में दोबारा
प्रेम पनपा है
इतना भी काफी है
मित्रता-प्रतियोगिता का द्वंद्व
वासना का प्रेम से षड़यंत्र,
चंद टुकड़े बेईमानी ही सही
जीवन सफल है
इतना भी काफी है ।
स्मिता पांडेय
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुछ करने की सोच सही,
आज चलो इतना काफी है।
यही तो दुःख है कि हमें इतना भी काफी लगने लगा है। अच्छाई की परिभाषाएँ दिन ब दिन गिरती जा रही हैं और बुराई अपने समर्थकों को दिन ब दिन बढ़ाती जा रही है। सुंदर रचना बधाई
स्मिता जी, इसी समझोतावादी और संतुष्टतावादी दृष्टिकोण ने हमारी यह हालत कर दी है, कृपया इसे बदलने का प्रयास करें.
अपने मूर्ति रूप में आराध्य
अनेकों "राधा-कृष्ण" की लाशें,
उन्हीं मुहल्लों में दोबारा
प्रेम पनपा है
इतना भी काफी है
sahi kaha abhi bhi yadi prem hai to bahut hai .hum ne taklifon me jina sikh liya hai to yadi thoda bhi achchha hota hai to lagta hai ki bahut hai
sunder kavita
rachana
स्मिता जी कथ्य शानदार है, सुंदर प्रस्तुति है| एक छोटी सी प्रार्थना, यदि संभव हो तो स्वीकार करना|
जिस तरह हमारे माँ-बाप की ग़लती होने के बावजूद हम किसी दूसरे के मुँह से उनके बारे में अनुचित सुनना पसंद नहीं करते [सामान्यत:], उसी तरह हमें अपने आराध्यों से जुड़कर बात करते समय शब्द प्रयोग भी सावधानी से करने चाहिए| यक एक सलाह मात्र है, उचित न लगे तो इग्नोर कर देना|
सुंदर प्रस्तुति
bahut badiya.. chalo itna hi kaafi hai..
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nazar me bariqian ,koshish kalam me hai
badlegi tasveer kabhi,ye shuruaat hi kafi hai.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
kavita acchi hai...
par thodi nirashavadi kavita lagi
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