नवंबर माह की चौदहवीं और अंतिम रचना आशीष पंत की है। आशीष की पिछली कविता ने सितंबर माह मे तीसरा स्थान बनाया था।
कविता
तू उठे तो उठ जाते हैं कारवाँ
मेरे जनाजे में ऐसा काफिला नहीं आता,
तू थी तो हर्फ़-हर्फ़ इबादत था
तेरे बिना दुआओं में भी असर नहीं आता
कभी हर राह की मंजिल थी तेरी गली
अब तेरे शहर से कोई नामाबर नहीं आता
एक आंसू नहीं बहाने का वादा था
निभाया, अब लहू आता है अश्क नहीं आता
मेरे दिल के दर्द रूह के सुकूं
जान जाती है मेरी तू नज़र नहीं आता
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
... bahut badhiyaa !!
सुंदर रचना, बधाई
bahut khoobsurat rachna hai...
kon hai wo?
प्रतीक्षा का चरम।
सुंदर काव्य कृति आशीष भाई
bahut achchi lagi.
बेहतरीन...लाजवाब...उम्दा प्रस्तुति....बधाई...बधाई
बेहतरीन...लाजवाब...उम्दा प्रस्तुति....बधाई...बधाई
बहुत ही सुन्दर ।
एक आंसू नहीं बहाने का वादा था
निभाया, अब लहू आता है अश्क नहीं आता
मेरे दिल के दर्द रूह के सुकूं
जान जाती है मेरी तू नज़र नहीं आता
ye do sher bahut acche lage.....
ab lahoo aata hai, ashq nahin aata...
bahut barhiya... kaafi zazbaati hai...
दर्द कि शहजादी तो रचना में है
पर आशीष का अक्स नजर नहीं आता .
मज़ा आ गया आशीष भाई .
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