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Wednesday, May 27, 2009

इश्क में रूह या बदन कहाँ होता है-एक-आजाद नज़्म



एक-आजाद नज़्म


मौसम की पहली बारिश है और तुम नहीं हो
हवाओं में अजीब साजिश है और तुम नहीं हो

अब तुम्हारे बिना यह मौसम यह हवा क्या है
कोई मुझको कहे तो सही मेरी खता क्या है

मैंने दिलो जान से तुझे चाहा क्या इसकी सजा है
तेरे रूठने की दिलबर और कौनसी वजह है

तू सामने आए, तो तुझे मना लूंगी मैं
इन सन्दल सी बाहों का हार पहना दूंगी मैं

पर तू तो किसी और जुल्फ के खम कैद लगता है
हो गया किसी और बीमार का वैद लगता है

यह फितनागरी अच्छी नहीं है सनम
गैरों से दिलबरी अच्छी नहीं है सनम

जब लौटेगा तो देखना पछताएगा
यह सरू का बूटा ये नैनों के कंवल नहीं पाएगा

मैं रूठी हूँ, सनम तू मना ले मुझको
मैं तो तेरी हूँ, तू भी अपना ले मुझको

मैं तेरी आशनां हूँ, तू भी हाथ बढ़ा दे मुझको
सबक इश्क का, आज पहला पढ़ा दे मुझको

फिर न ये मौसम न ये हवा होगी सनम
बहारों की न फिर फिजां होगी सनम

वस्ल तो जीने का इक बहाना है सनम
इश्क दिल का दिल से मिल जाना है सनम

इश्क में रूह या बदन कहाँ होता है
हम सी लैलाओं में हुस्न कहाँ होता है

हुस्न तो तेरी नजर में समाया है
यही तो उरूजे इश्क का सरमाया है

यह वक्त निकला तो फिर न आएगा
देखना हाथ मल-मल के तू पछताएगा

ये हुस्न ये जवानी कुछ दिन है यारब
तेरी मेरी ये कहानी कुछ दिन है यारब

फिर तो वक्त अपना ढंग दिखलाएगा
मौसम का भी रंग बदलता जाएगा

फिर न चूड़ियाँ खनकेगी, न पायल छमकेगी
स्याह जुल्फों में दूर से चाँदी चमकेगी

यह तव्वसुम, देखना वीरान हो जाएगा
यह जोबन, दो दिन का मेहमान हो जाएगा

फिर तो बैठेंगे गठिये की दर्द लिए
सुलगते होठों की जगह निगाहें सर्द लिए

आ बैठ कुछ देर मौसम का मजा लें हम
कुछ गुल अपने हँसी ख्वाबों में सजा लें हम

फिर तो यह मेला खुद-ब-खुद बिछुड़ जाएगा
यह दस्ते हिना, देखना इबादत में जुड़ जाएगा

यह मतवाला काजल भी तो बह जाएगा
या तो मैं अकेली या तू अकेला रह जाएगा

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

प्रेम की अभिव्यक्ति के सुन्दर रंगों को शब्दों मे पिरोया है बहुत खूब आभार्

निर्मला कपिला का कहना है कि -

प्रेम की अभिव्यक्ति के सुन्दर रंगों को शब्दों मे पिरोया है बहुत खूब आभार्

kavi kulwant का कहना है कि -

bahut khoob.. ji..

neeti sagar का कहना है कि -

बहुत खूब! एक स्त्री के मन को बखूबी पढ़ लेते है आप! बहुत अच्छी रचना बधाई!

Manju Gupta का कहना है कि -

Prem ki lajavab rachna hai.Bhadhai!
Manju Gupta

mohammad ahsan का कहना है कि -

यह नज़्म आज़ाद क्यूँ कहलाई , समझ से परे है. उर्दू नज्मों में शे'एर ही होते हैं और इस में भी हैं, यह अलग बात कि सब अलग अलग बहेर में हैं, शाएद इसी लिए आज़ाद कहा गया है. जहां तक मैं समझता हूँ आज़ाद नज्में वो होती हैं जो किसी थीम पर तो होती हैं लेकिन बहेर, काफिये, रदीफ़ वगैरा से आज़ाद होतीं हैं लेकिन उन में एक लय और रवानी ज़रूर होती है और कभी कभी शे'एर भी होते है और उन्वान भी होता है. मेरे ख़याल से इस का भी एक टाइटिल य'अनी उन्वान होना चाहिए था

प्रिया का कहना है कि -

humko bahut achchi lagi

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

अच्छी भावपूर्ण रचना | बांधे रखा |
इश्क में रूह या बदन कहाँ होता है
हम सी लैलाओं में हुस्न कहाँ होता है
"पंक्तियाँ" विशेष लगी |
सादर,

manu का कहना है कि -

कुछ कुछ जगह पर तो लगी अच्छी,,,,
पर ये शायद आजाद नज्म तो नहीं होती....
हालांके मुझे आजाद नज्म के बारे में ज्याद कुछ नहीं पता,,,

gazalkbahane का कहना है कि -

रचना आप लोगों को पसन्द आयी ,आप सभी का आभार
mohammad अहसान साहिब ,आपने आजाद नज़्म को सटीक परिभा्षित किया है और मेरे खयाल से मेरी यह नज़्म आपकी परिभाषा पर झरी उतरती है,मुझे अच्छा लगता अगर आप इसके content के बारे में भी टिपण्नी करते ।
श्याम सखा

mohammad ahsan का कहना है कि -

shyaam ji, qaabil e t'areef hai. classiky tarz ki shaeri hai. qissa goyi ka tarz hai shaeri mein, lutf aaya padh kar. bas yeh niiche wali line khatak rahi hai
हो गया किसी और बीमार का वैद लगता है
bas yehi line ,mere khayaal se ghair m'eari hai. baqi sab jaisa ki kaha qabil e t'areef aur ba hunar. umda rawaani ke saath.

gazalkbahane का कहना है कि -

अहसान साहिब आपकी जर्रानवाजी और हौसला-अफ़जाई का शुक्रिया,बन्दे ने इन पंक्तियों मे
पर तू तो किसी और जुल्फ के खम कैद लगता है
हो गया किसी और बीमार का वैद लगता है

यह कहने की कोशिश की है कि सनम अब तू किसी और की जुल्फों मे कैद है और मैं जो तेरे इश्क की में बीमार हूं मेरा इलाज करना छोड़कर किसी और के मर्जे-इश्क का इलाज करने वाला वैद हो गया है-अब अगर मैं यह कहने में कामयाब नहीं हुआ हूं तो यह कमी मेरी है।मेरा मानना है कि शायर की बात लोगों को समझ आये यह जिम्मेदारी शायर की है न कि श्रोता या पाठक की
पुन: धन्यवाद

mohammad ahsan का कहना है कि -

shyam ji baat to aap communicate kar rahe hain lekin shaeri ke lehaaz is line ka rang baqi rangon ke saath blend nahi kar raha hai. baat sirf saam'iin tak phunchne ki nahi hai. saare ash'aar aur misron ke rang bhi to ek jaise hon!

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