जैसाकि मैंने वादा किया था कि मैं समय-समय पर ऐसी कविताओं से भी रूबरू करवाता रहूँगा जो इसी कालखंड में लिखी जा रही हैं, लेकिन उनके रचनाकारों का संबंध इंटरनेट से थोड़ा का कम जुड़ा है। कई बार अपने दृष्टि-फ़लक को फैलाने में इन रचानाओं की भूमिका अहम हो जाती है।
पिछले सप्ताह इस शृंखला में आपने युवा कवयित्री अंजना बख्शी की कविताएँ पढ़ी। हरेप्रकाश उपाध्याय की कविताओं से भी हम हाल में ही जुड़े। ऐसे ही एक कवि हैं रामजी यादव।
13 अगस्त 1963 को वाराणसी में जन्मे रामजी यादव अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद राजनैतिक संगठनों के साथ काम करने लगे। पत्रकारिता का चस्का लगा, दिल्ली आ गये और डाक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माण में जुट गये। 'समय की शिला पे', 'एक औरत की अपनी यादें', 'सफ़रनामा', 'गाँव का आदमी', 'पैर अभी थके नहीं', 'द कास्ट मैटर्स', 'पानीवालियाँ', 'खिड़कियाँ हैं, बैल चाहिए' जैसी उल्लेखनीय वृत्तचित्रों का निर्माण किया। 60 से अधिक असंपादित डाक्यूमेंट्रियाँ बनाई हैं, उसे पूरा करना शेष है। इन दिनों दैनिक भास्कर, नई दुनिया, अमर उजाला जैसे अखबारों के लिए स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। इनकी साहित्यिक यात्रा भी लम्बी है। बहुत सी कहानियाँ कथादेश, हंस, नया ज्ञानोदय जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। 'अथकथा-इतिकथा' नाम का उपन्यास भी पूरा कर लिया है। कविताएँ भी लगातर लिख रहे हैं। आलोचना भी हाथ आजमा चुके हैं।
हिन्द-युग्म पर बहुत सी प्रेम कविताओं को अलग-अलग मौकों पर आप पढ़ते आये हैं। प्रेम की एक अलग ही छवि रामजी यादव की 'प्रेम' कविता में आपको देखने को मिलेगी।
'प्रेम'
अक्सर मैं सोचता हूँ क्या ज़रूरत थी
महिवाल को दूर देश से आने की चिनाब की ओर
फरहाद पगले को तस्वीर बनाने को किसने कहा था
शीरीं का
और उसकी आँखों में इस कदर डूब जाने का
कि निकल न सका जीवन भर
आशनाई तो चंद्रमोहन विश्नोई भी करते हैं
पहले चाँद मोहम्मद बन जाते हैं फिर गायब होकर
वही बन जाते है जो थे
और फिजाएँ यूँ ही बदहवास
बदलती रहती हैं रोज़-ब-रोज़
प्रेम एक ऐसा पारदर्शी आकाश है
कि सिर कटाओ तो रंगीन बना देता है
हवा, पानी, धरती, समाज, देश, घर, राजनीति
अर्थव्यवस्था, जंगल, पहाड़, नदी, समुन्दर और भाषा को
नहीं तो संगीन बनते देर नहीं लगती दुनिया
प्रेम में एक बूँद चालाक होकर तो देख लो!
प्रेम तिरोहित होने का नाम है
गोया सभ्यता की ओर बढ़ाते लोग पत्थरों में
बदल गए हों
मनुष्यता के सबक भूलते चले गए हों
याद नहीं रहता सौन्दर्य, राग बेसुरे हुए जाते हों
भंग होती जाती है एकाग्रता
और जीवन में आती-जाती है अलाय-बलाय सामग्री
समझ में नहीं आता कुछ कि क्या मतलब है दुनिया का
इतने अकेले और अलफनंग होते हैं अपने आप में लोग
पहले विचार मरते हैं
फिर वियाग्रा चली आती है दिमाग में
और लोग क्या समझते हैं?
बिंदास होकर कंडोम बोलने से वे
सच के करीब पहुँच जाएँगे?
मैं जानता हूँ वे बहुत दूर
बहुत देर बाद देखेंगे अपने आपको भी
एकदम निराश और कुछ न छोड़ पाने की कुंठा
लिए
तरसते हुए जीवन को पल-पल
न लौटना मुमकिन, न मौत के सामने ठट्ठा
मारने की हिम्मत
इतना कमज़र्फ़, इतना कमज़ोर, इतना लाचार
बनाती हैं सभ्यताएँ
दोस्त! केवल प्रेम खड़ा है ऐसी हर सभ्यता के
खिलाफ़
क्या तुमने बासी रोटी को कुतर-कुतर
खाया है प्रेम में
पानी को आहलाद की तरह पीया है
यूँ हाथ फड़फड़ाकर उड़ जाने के सपने देखे हैं
पहाड़ को दो टुकड़ों में काट देने की हिम्मत
पाई है अपने अंदर
क्या किसी की दो आँखें चमकती हैं तुम्हारी आत्मा में
अगर महरूम हो तुम इन सबसे तो देखना ध्यान से
कहीं तुम्हारे भीतर कोई तालिबानी तो नहीं बैठा है
तुम्हें केसरिया रंग तो नहीं पसंद आता
तुम पीछे तो नहीं भाग रहे शाश्वतता के नाम पर
तुम देश को माँ समझते हुए पितृसत्ता का झंडा तो
नहीं उठाए हुए हो
एक बार सोचना चुपचाप
कि प्रेम ही क्यों तोड़ता दीवारें सारी
जाति की, धर्म की, अमीरी की, गरीबी की, रंग की
रूप की, उम्र की, जन्म की, देश की
मटियामेट क्यों कर देता है प्रेम ही हर बार
तुम दाम्पत्य में प्रेम का गेमेक्सीन छिड़कते हो
और सोचते हो कि ठीक हो गया सबकुछ
मर गए नफरत के कीटाणु
लेकिन तुम हद से हद एक चौकन्ने पति हो
सकते हो
ध्यान से देखो
अभी भी तुम्हारी पत्नी को विश्वास नहीं है तुम पर
एक दिन थमाओ उसे एक गिलास पानी
दबाओ उसके पाँव और सहलाओ सिर
और खोल दो जुल्फ़ें
महसूस करो कि तुम सदियों से जानते हो उसे
लेकिन एक संवाद न हुआ अब तक
ठीक है अभी पूछ लो हाल-चाल उसका
हवा के रंग पूछो उससे और क्या वह जानती है
उड़ान के बारे में
पोछा लगाओ ठीक से
ध्यान रखना कोने-अंतरे का
बेसिन में पड़े बर्तन धो दो
यूँ नाक-भौं मत सिकोड़ो
इनमें से ज्यादातर तुम्हारे ही जूठे हैं
और सब्जी ठीक से काटो
भात कच्चे ही मत उतार देना
दूध में नमक न पड़ जाय कहीं
मैं जानता तुम्हारा प्रेम पहुँचेगा किस मुकाम पर
हो सकता है तुम नकली मर्यादाओं के पत्थर ढोते
पुरुष न रह जाओ
हो सकता है वह डरी हुई स्त्री न रहे
प्रेम में इंसान हो जाती है स्त्री
प्रेम में निर्भय होता है समाज
निर्भय होती हैं लड़कियाँ
एक सम्पत्तिशील और बर्बर समाज
भर जाता है रचनात्मकता से
प्रेम में गोल नहीं होतीं आँखें
जैसे छिछोरों और दृश्य रतिकों की होती हैं
प्रेम में रस भर आता है उनमें
और वे भरोसे से दीप्त हो उठती हैं
प्रेम एक मिट्टी है जैसे वह होती है
चाक पर रखे जाने के ठीक पहले।
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
शैलेश जी,
साधुवाद!!!
राम जी यादव की प्रेम कविता अभी तो सिर्फ पढी है। गुनना बाकी है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
प्रेम कोई नपी-तुली वस्तु नहीं, अतएव इसकी परिभाषा करते हुये लोग मात खा जायेंगे। इसकी अनुभूति व्यापक और इतनी विराट होती है कि हम शब्दश: इसे रख नहीं सकते। वह शब्द के आगे की वस्तु है। राम जी यादव की प्रेम-कविता दिन-दिन बुद्धिमती होती सभ्यता के निरंकुश होते स्वभाव के विरुद्ध एक बयान है जो वर्तमान के सच और समय की विडम्बना को गंभीरता से रेखांकित करती है। पर कविता बड़ी हो गयी है और कहीं-कहीं लयहीन भी,फिर भी मेरी समझ से आज खराब लिखी जा रही कविताओं के दौर में एक सफल कविता मानी जायेगी।,
***सुशील कुमार
सामग्री (matter) अच्छा होने के बावजूद भी रचना प्रभाव नहीं कर पा रही है , शिल्प, लय आदि कारणों से |
रचना के लिए बधाई |
अवनीश तिवारी
समकालीन कविताओं के कवि कई गलत फहमियों का शिकार हैं, जैसे कि १- कुछ गूढ़ गूढ़ लिख देने से कविता का प्रभाव बढ़ जाए गा २- दर्शन शास्त्र की थाली परोस देने से कविता बलवती हो जाए गी ३- यौन सम्बन्धी कुछ ' बोल्ड ' शब्द या वाक्य कविता की गंभीरता बढा दें गे. ४- कविता का छोटा होना कवि के छोटे होने के सामान है. बड़ी कविता बड़ा कवि
समय रहते यदि यह गलतफहमियां दूर हो जाएं तो सुन्दर सुरिचि पूर्ण कवितायेँ पढने को मिलें !
वाह अहसन जी........!!!!
शत प्रतिशत सत्य कहा आपने ....... इतने दिन से हिन्दयुग्म पर यही तो चिल्ला रहा हूँ मैं पर सुनता कौन है ........कोई बात नहीं ..आपकी प्रतिक्रिया में में मेरी प्रतिक्रिया भी आ गयी हम तो अपना कर्त्तव्य निभाएं....... आशा है कुछ तो सुधार होगा ही ...... दुष्यंत कुमार ने लिखा हैं:
"दस्तकों का अब किवाडों पर असर होगा जरूर
हर हथेली खून से तर और ज्यादा बेकरार"
अरुण अद्भुत
--:)
क्योंकि...
हर कमेन्ट कुछ कहता है.....
सुंदर विचार.....कमेन्टस में...
Prem to pavitra,aseem, vyapak hota hai.Us mein viagra si ashlilta nahi hoti hai. Asankhya tute dilo ko jod sakte hai. Ramji ki kavita mein sakaratmak paksh ka aabhav hai, chand yukt nahi hai, aadhunikta ka jama pehene huye hai.
Manju Gupta
यौन सम्बन्धी कुछ ' बोल्ड ' शब्द या वाक्य भी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा होते हैं. इन को पढ़ते ही पाठक पलट कर देखता है ki कवि कौन है. अब कविता भले दिमाग से उतर जाए, कवि दिमाग में चिपक जाए गा , यानी कि इन 'बोल्ड' फिकरों की बदौलत प्रसिद्व के शिखर पर चढ़ जाए गा.
इश्क इश्क और इश्क कहने से,
इश्क का हक़ अदा नहीं होता...
होता कुछ और , रहे-इश्क पे जो,
"बे-तखल्लुस" गया नहीं होता
बरोबर बोले साहब जी,,,,
अहसन साहब!
इस बार फिर से मैं कुछ बोल रहा हूँ,लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकालियेगा कि मैं आपके खिलाफ़ हूँ, मैं बस आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ।
कविता किसे कहते है? - कभी इसपर आलेख लिखें। किसे नहीं कहते हैं,यह कहने वाले तो हज़ार मिलेंगे, किसे कहते हैं, वह कोई नहीं बताता.... और हाँ आप यह नहीं कहिएगा कि छंदबद्ध रचनाओं को कविता कहते हैं,क्योंकि संयोगवश मैने आपकी छंदमुक्त(जिसे आप अकविता कहने से नहीं कतराते) कविताएँ पढी हैं।
अद्भुत जी!
अब आप भी युग्म के एक अंग हैं,इसलिए टिप्पणियों में अपनी बात कहने के साथ-साथ युग्म के संपादक-मंडल (औरों को नहीं जानते हों तो कम से कम शैलेश जी से हीं) से भी अपनी बात कहें। यही बात कमोबेश मनु जी पर भी लागू होती है।
एक और बात!
जो लोग यौन संबंधी बातों को "पाप" समझते हैं,वही इसे "बोल्ड" या "अश्लील" का दर्जा देंगे। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा। समझने वाले समझ गए होंगे।
धन्यवाद,
विश्व दीपक ’तन्हा’
yah kavita kavi ki ikshaon ka achchha bimb hai...iski gayata evam sabdon aur matraon ke chunav ko lekar bahas achchhi to hai lekin sanrachna par itna jod kisliye...bhavanayen pradhan hoti hain, mere khyal se...bold shabdon ko likhna kavi ki sachche man ko ujagar karta hai...Sri Ramji Yadav , apko dher badhaiyan...likhte rahen...
हेहे होहो हहह ,,,,,
जब नहीं मालुम है कविता या अकविता,
छंद और मुक्त छंद
तो क्यों सम्पंदन करते हो ,,,,
सही बात कहे तो चिल्लाते हो ,,,,, हहहहहः
अहसान भाई जा सही कह रहे है ,,, करोड़ की शर्त लगा लो
हिंदी भाषा और काव्य का जानकार इसे
काव्य में नहीं गिनेगा ,,,,
हेहेहेह हहहाह ,,,,,,,,,
नया कवी
दिल्ली
जितनी अच्छी कविता उतनी ओछी टिप्पणी -----
यूॅ लगा कि जैसे भौंरों के अथक गुनगुन से एक कली खिली हो और निष्ठुर ह्रदय उसे मसल देना चाहते हों।
एक सुन्दर भाव के प्रति ऐसी संवेदनहीनता -----आलोचकों को निंदा और आलोचना में फर्क समझना चाहिए। प्रथम दो टिप्पणियाॅ ही आलोचना की श्रेणी में रक्खी जा सकती हैं।
---देवेन्द्र पाण्डेय।
love are all about three things:
winning,losing and sharing.
winning trust
losing ego
and sharing joy n sorrow..
so always be related..
@ अक्षर जब शब्द बनते हैं..
कहीं कहीं लय हीन ..मतलब.....??
लय कहाँ कहाँ है............!!!!!!!!!!!!!!
@ अहसान जी.... ' बोल्ड ' शब्द या वाक्य भी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा होते हैं
मेरा भी यही मानना है....न केवल कविता में...बल्कि कहानी में भी.....समाचारों में भी....
@ तनहा जी.....
मैं तो ये भी चाहता हूँ के दोहा कक्षा की तरह इस कविता अकविता की भी क्लास होनी चाहिए....
क्योंकि हमें छंद का तो पता लग जाता है...पर इस अकविता में कई बार उलझ जाते हैं...क्योंकि ये शायद हमारे भीतर बसी हुई नहीं है..... अभी कुछ समय से ही देखि है...तो चाहते हैं के कोई समझाए...अब जैसे यही कविता है.....इमानदारी से कहूं...
ये तीसरा कमेन्ट या शायद चौथा दे रहा हूँ......सभी कमेन्ट ध्यान से पढ़े हैं.....पर कविता ....!!!
जी नहीं ....
एकदम गौर से नहीं पढी है.....बस चाँद सेकंड्स में जो एक नजर में आ गया...सो आ गया...
बोल्ड या खुला कहना गलत नहीं है....पर कहने की कुशलता का अभाव उसे गलत बना देता है.....
खजुराहो की मूर्तियाँ देखिये....और....आजकल के विज्ञापन....
फर्क साफ़ साफ़ दिखेगा....
@ एनी माउस .....
आप अभी नए हैं.....इसलिए शायद अब तक (,,,,,,,,,,,,,,,,)वाली की का इस्तेमाल कर रहे हैं...
आपसे भी दोबारा मिलना होगा......
::))
@ देवेन्द्र जी....
प्रथम दो टिप्पणिया क्या कह रही हैं...ज़रा दोबारा से गौर करें.... टिप्पन्निया शायद कविता की में कहे प्रेम भाव के बारे में हैं न के कविता के बारे में.....
मसलन....
दूसरी टिप्पणी को ज़रा सा भी रद्दो बदल कर दें....एकदम इन्हीं शब्दों को मामूली सा हिला दें....
वो भी बिना किसी तजुर्बे के....
तो ये भी एक कविता ही हो जायेगी,,,,,,
काफी हुआ....
अब कविता पढने की एक बार और कोशिश करता हूँ.....
कविता में अनिवार्य है
कथ्य शिल्प लय छंद
ज्यों गुलाब के पुष्प में
रूप रंग रस गंध
(काव्य गंगा पत्रिका के मुख्या पृष्ठ से लिया था शायद एक बात कह सकूं)
और मैं भी मुक्त छंद/ छंद मुक्त लिखता हूँ पर उसे कभी कविता नहीं कहता, अकविता कहता हूँ
एनी माउस टिपण्णी लिखने वाले तो बस.............. हैं उनके बारे में क्या कहे डूब के मर जाना चाहिए अगर इतना ही डर लगता है तो क्यों आते हो युग्म का अपमान करने
अरुण अद्भुत
बहुत दिनों बाद समकालीन कविता के शिल्प में रामजी यादव की यह प्रेम कविता पढ़ने को मिली .विस्तार के कारण बिखराव थोडा ज्यादा है और कही^ कही^ स्थूलता है .लेकिन अच्छी कविता है बधाई रामजी यादव को भी और शैलेश जी को भी यह उपक्रम जारी रखे
शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग
हिंद युग्म परेशान है, क्या करे , साहित्य की समझ नहीं, देखा दूसरों पर छीटा करने का फल
जाओ साहित्य पढो और फिर सम्पादन करना
tanha saheb,
kavita kise kahte hain aur kise nahi..... haan is par lekh likh duun ga, aap hind yugm par chhapwaane ki guarante lete hain?
hindi ki mukt kavita dar asl faishon ka shikaar ho gayi hai. yeh kayi videshi bhaashaaon yath koriyaai, japaani, kayi poorva yoropiiya deshon ki samkaaliin aur kisi had tak aadhunik amriki kavita ki bandar naqal karne mein lagi hui hai.
70 ke dashak mein Dinmaan mein anoke is prakaar ki bold videshi kavitaaon ke anuvaad padha karta tha. ramji yadav jaisi kavita bas unhi naqal hai, asal kuchh nahi.
ek koriyaai kavita ke bol kuchh is tareh the
' ab bahut ho chuka kamre mein
aao ab khuli sadak par sambho karain '.
isi prasang mein darjanon amriki va anya bhaashaaon ki kavitaaen padhwa duun.
कुछ जाने जाने से एनी माउस जी,
कविताएं अच्छी और खराब हर मंच पर होती हैं ...समझे,
और हर मंच पर ही क्यूं....
एक ही आदमी की सभी रचनाये कहाँ खूबसूरत होती है....
इन बातों से हिंद युग्म को कोई परेशानी नहीं होती,
हमारी टिपण्णी के अलावा आप दोनों अनाम टिपण्णी को डिलीट ना करना ही इसका सबसे बड़ा उदाहरण ही,,,,,,
परेशान कैसे होते हैं..... .... इसका उदाहरण अभी कुछ समय पहले देखा था.....
हिंद-युग्म की सेहत पर इन बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता,
और साहित्य का क्या पढ़कर सम्पादन करना ..........!!!!!!!
युग्म में ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं...जो इन सब बातो से बड़ी हैं...आपके पल्ले नहीं पड़ेगी अभी मेरी बात .....
इस पर aur अधिक प्रकाश डलवाना चाते हो तो अपनी असली आई. डी . से कमेन्ट करना...
चूहे पकड़ने का शौक है.....
उन पर दिमाग लगाने का नहीं...
सुशील जी ने जो दूसरा कमेंट किया है.. मेरे भी वही विचार हैं..
बहुत छोटा हूँ साहित्य का "स" भी नहीं जानता.. गिनती की किताबें पढ़ी हैं..
कविता-अकविता में मैं उलझना नहीं चाहता था.. इसलिये कुछ दिन बाद ही कमेंट्स पढने आया...:-)
अरूण जी, देवेंद्र जी, तन्हा भाई, मनु जी, अहसन जी, आचार्य जी, शयाम जी... सभी तो गुणी और वेशेषज्ञ हैं... आप लोगों से सीखने को बहुत कुछ मिलता है...एक अंतिम निर्णय पर आइये..मेरे जैसा बालक परेशान हो जाता है..क्या लिखें, क्या न लिखें..किसे अच्छा कहे किसे बुरा.. :-)
अरूण जी ने एक बात कही उससे एक समस्या का समाधान हो गया... वे छंद-मुक्त/मुक्त-छंद को अकविता कहते हैं..मैं इसका मतलब खोजे जा रहा था.. :-(
पर मैं फिर उलझ गया...
मुझे छंद-मुक्त/मुक्त-छंद में अंतर नहीं पता.. :-(
मनु जी.. आपकी आखिरी टिप्पणी पर जोरदार हँसी आ रही है... आपने माहौल को खुशनुमा कर दिया... वो चूहा पकड़ने का शौक..किसे है :-)
तो मैं भी अपनी तीन लाइनां लिख डालूँ..
छुप छुप कर करते हैं वार, फिर भी रहते सीना तान...
कोई कहता युग्म परेशान कोई सिखाये साहित्य ज्ञान..
हम तो राही अपनी मंजिल के, इन सब बातों से अंजान...
Anonymous बनकर किसी को भद्यी गाली देना शेरपन नहीं गिदड़पन है जनाब। गलियों के कुत्ते की कितनी कीमत होती है? पर सब जानतें है कि कुछ कुत्ते कितने कितने मंहगे होते हैं जो लावारिस नहीं होते और उनका नाम-पता होता है। जो कुता लावारिस हो और सब पर भूंके उसे क्या करना चाहिये साहब?
priya ramji
aapki rachna yadyapi prem kavita ke name se hai lekin kamal hai yah prem kavita manav ke dukh dard se babasta hai. bahut khoob. jeete rahiye aur yuin hi likhaate rahiye. apka samgharsh rang laega.
apka akela raamdas
maja AA GAYA BHAI
EXCELLENT!!!!!!
AUR SHABD NAHI HAIN MERE PAAS.
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