प्रतियोगिता की दूसरी कविता के रचयिता सत्यप्रसन्न पहली बार हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं और मूलतः तेलगू भाषी हैं। आंध्र प्रदेश राज्य के श्रिकाकुलम जिले में 3 मई 1949 को जन्मे सत्यप्रसन्न की शिक्षा-दीक्षा पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश एवं वर्तमान छत्तीसगढ़ के सरगुजा, रायपुर तथा रायगढ़ जिले में हुई। बी.एस.सी. करने के बाद मेकैनिकल इंजिनीयरिंग में पत्रोपाधि प्राप्त किया, उसके के पश्चात छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में, कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभियन्ता, कार्यपालन अभियन्ता एवं अधीक्षण अभियन्ता के पद पर ३४ वर्ष तक कार्य किया। 31 मई 2007 को सेवानिवृत्त हो गये। 5 भाईयों और 5 बहिनों में सबसे बड़े सत्यप्रसन्न को कविताओं तथा कहानियों से बचपन से ही लगाव है। लिखना वर्ष 1980 से प्रारंभ किया। कविता तथा लघु कथाओं से विशेष प्रेम। विभिन्न सन्ग्रहों में प्रकशित और आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारित।
पुरस्कृत कविता- विषधरों से डर नहीं है
विषधरों से डर नहीं है
केंचुओं से डर रहा हूँ।
था बरी मैं जिस सज़ा से
वो सज़ा ही भर रहा हूँ।
जो चढ़े शिखरों पे उनकी
जीत का अवसर रहा हूँ ।
आग थी औरों की लेकिन
राख़ सा मैं झर रहा हूँ ।
जीत का अवसर रहा हूँ ।
आग थी औरों की लेकिन
राख़ सा मैं झर रहा हूँ ।
थी जहाँ भी हार निश्चित
मैं वहाँ अक्सर रहा हूँ।
आसमाँ की सोच पाले
मैं हमेशा घर रहा हूँ।
रास्ते मुझसे ही गुजरे
मैं तो केवल दर रहा हूँ।
थी नहीं परवाज़ मेरी
मैं तो केवल, पर रहा हूँ।
मैं तो केवल दर रहा हूँ।
थी नहीं परवाज़ मेरी
मैं तो केवल, पर रहा हूँ।
भोथरी थी धार तो क्या
कट गया जो, सर रहा हूँ।
हैं बने मुझसे समंदर
मैं तो क़तरा भर रहा हूँ ।
काफ़िले बढ़ते गये हैं
मील का पत्थर रहा हूँ।
हर पुरस्कृत गीत के
हर शब्द का अक्षर रहा हूँ।
मील का पत्थर रहा हूँ।
हर पुरस्कृत गीत के
हर शब्द का अक्षर रहा हूँ।
आज जिनके हाथ में है
मैं उन्हीं का कल रहा हूँ ।
आचमन कर देखिए तो
मैं भी गंगाजल रहा हूँ ।
प्रथम चरण मिला स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- दूसरा
पुरस्कार- अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक प्रति।
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
ati uttam rachna.
बहुत ही सुन्दर कविता है आपने अच्छे ढंग से अपनी बात प्रस्तुत कि है...............
ये पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आई
काफ़िले बढ़ते गये हैं
मील का पत्थर रहा हूँ।
हर पुरस्कृत गीत के
हर शब्द का अक्षर रहा हूँ।
आपकी और कवितायों का इंतज़ार रहेगा
अरुण अद्भुत
जो चढ़े शिखरों पे उनकी
जीत का अवसर रहा हूँ ।
आग थी औरों की लेकिन
राख़ सा मैं झर रहा हूँ ।
kavita pahley paaydaan par kyoun nahi ,
bahut hi achchhi kavita. poori tareh laybaddh. vichaar parak. ise ghazal ki shreni mein bhi rakkhaa ja sakta hai.
kavi ko bahut haardik badhaayi.
-ahsan
आपकी इतनी सुंदर रचना के लिए धन्यबाद.
सुदर रचना और प्रतियोगिता में स्थान पाने के लिए बहुत बहुत बधाई।
अहसन जी रचना अच्छी है पर मैंने इसे दुबारा अच्छी तरह पढ़ा है और मेरा अध्ययन कहता है कि इसे गजल कि श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, हां कविता/नज्म अच्छी है, बहुत बारीक बातें हैं कुछ जो शायद युग्म पर करना मेरी लिए संभव नहीं है......... अगर आप गजल लिखते हैं तो आपको पता होगा ही आपको
अरुण 'अद्भुत'
काफी समय बाद यहा आना हुआ और इतनी सुन्दर कविता पढकर मन खुश हो गया
सुमित भारद्वाज
इतनी सुन्दर कविता पढकर मन खुश हो गया
adhubut ji,
thanks. you are certainly right. what i meant was that many of the couplets are independently meaningful. they are like ash'ars.
the poem is exceedingly beautiful.
regards
-ahsan
09415409325
गजल नहीं है पर गजल होने में कुछ खास बाकी भी नहीं है,,,,
बेहद खूबसूरत ,,,दिल खोल कर तारीफ़ करने लायक,,,,,ले,,, छंद ,,,, बहर ,,चाहे जो भी कह लें,,,
एकदम बराबर,,,,
और सभी ख़याल,,,,लाजवाब,,,,,
पहले शब्द से लेकर आखिरी शब्द तक ,,वाह वाह और बस वाह वाह,,,,
यूं तो दूसरा नंबर है,,,,और वो भी काफी पीछे है,,,,
जो चढ़े शिखरों पे उनकी
जीत का अवसर रहा हूँ ।
आग थी औरों की लेकिन
राख़ सा मैं झर रहा हूँ ।
क्या खूब कहा है सारी बातें गहरी और सच
बधाई
रचना
थी जहाँ भी हार निश्चित
मैं वहाँ अक्सर रहा हूँ।
आसमाँ की सोच पाले
मैं हमेशा घर रहा हूँ।......बधाई इस संवेदनशील रचना के लिए
Bahut khoob! Bahut khoob!
u to aapki har rachna adbhut aur alag hoti hai.aur aapki ye kavita bhi aapki kavitao ki diary roopi samudra ka ek aur nayab moti hai.aapko purusakar prapt karne ki bahut bahut bdhaeya.
aapki bitiya
manjula
Sir main kya bataun...aapne itna achha likhahai kil khush hogaya ...bahut khoob!!
--Gaurav
adbhut lajavaab.har bar ki tarh is baar bi dil ko choo gai.I proud ki u r my father.aap aur likhe aur nai nai manjile isi tarh paar karte jaaaye.
Ur son
manoj
adbhut lajavaab.har bar ki tarh is baar bi dil ko choo gai.I proud ki u r my father.aap aur likhe aur nai nai manjile isi tarh paar karte jaaaye.
Ur son
manoj
adbhut lajavaab.har bar ki tarh is baar bi dil ko choo gai.I proud ki u r my father.aap aur likhe aur nai nai manjile isi tarh paar karte jaaaye.
Ur son
manoj
adbhut lajavaab.har bar ki tarh is baar bi dil ko choo gai.I proud ki u r my father.aap aur likhe aur nai nai manjile isi tarh paar karte jaaaye.
Ur son
manoj
adbhut lajavaab.har bar ki tarh is baar bi dil ko choo gai.I proud ki u r my father.aap aur likhe aur nai nai manjile isi tarh paar karte jaaaye.
Ur son
manoj
रास्ते मुझसे ही गुजरे
मैं तो केवल दर रहा हूँ।
थी नहीं परवाज़ मेरी
मैं तो केवल, पर रहा हूँ।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)