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Friday, August 07, 2009

लम्बी थकान और तुम्हारा एक दिन का साथ


दिव्य प्रकाश दुबे आइडिया सेलुलर लिमिटेड में मार्केंटिंग प्रोफेशनल हैं। इनके द्वारा निर्मित और निर्देशित डाक्यूमेंट्री 'छोटे से पंख' को अंग्रेजी थिएटर के चर्चित शख़्स साइरस दस्तूर द्वारा शुरू की संस्था शामियाना- दी शॉर्ट फिल्म क्लब द्वारा तीसरा पुरस्कार भी मिला। अभी कुछ दिन पहले ही टॉम अल्टर की ओर से साथ में डिनर करने का निमंत्रण भी पा चुके हैं। बीटेक और सिम्बॉयसिस, पुणे से एम बी ए की पढ़ाई कर चुके दिव्य प्रकाश दुबे कविताएँ भी लिखते हैं। इंटरनेट पर ब्लॉग और ऑरकुट में सबसे अधिक बार चोरी होनी वाली कविता 'क्या लिखूँ' के रचयिता होने का श्रेय भी इन्हें प्राप्त है। कविताओं का प्रभावी पाठ करते हैं। आज जुलाई माह की प्रतियोगिता से हम इनकी कविता लेकर उपस्थित हैं, जिसने तीसरा स्थान बनाया है। साथ में इनकी प्रभावी आवाज़ में काव्यपाठ भी।

पुरस्कृत कविता

लो आज आ ही गया मैं,
जिन्दगी और तन्हाई बड़ी मुश्किल से चुरा के ला पाया हूँ,
चुपके से,
सबसे नज़र बचाकर,
सिटकनी को बंद कर लो...
घड़ियों से बैटरी को निकाल के फेंक दो कहीं ...
कमबख़्त बहुत ही तेज़ चलने लगाती है मुझको देख कर!!
फिर इत्मिनान से मुझको अपने पहलू में,
सारे गिले-शिकवों के साथ जज्ब कर लो तुम,
जैसे बाहर की दुनिया मुझे अपनी भीड़ में जज्ब कर लेती है...
एक दम से खो जाता हूँ मैं..
हाँ तुम्हारे साथ खोया तो शायद से सुकून से खो सकूँगा ....!!
फिर तुम शिकायत की सारी गाठें एक-एक करके,
खोल के दिखाओ मुझको,
तुम्हारी हर एक ख्वाहिश जो मैं पूरी नहीं कर पता ....
उसकी टीस को तुम ही सहला भी दो
वर्ना इतने सारे घावों के बीच में ...
मुझे डर हैं कि,
तुम्हारे दिये घाव कहीं खो न जायें
तुम्हारे दिया वैसे भी ज्यादा कुछ है कहाँ मेरे पास...!!
अच्छा सुनो,
जब किचेन से खाना बना के लाना तो,
बरामदे के कैलेंडर को पलट देना जरा,
एक ही दिन को सही,
मैं तारीख को पलट तो लूँ ....
वर्ना मुई तारीख ही हमेशा पलटती आई है मुझको ...!!
पता नहीं कितने दिनों की थकान ले के,
तुम्हारे पास आ तो गया हूँ,
पर थकान मिटने को .....
दिन “एक” ही ....चुरा पाया मैं ...


प्रथम चरण मिला स्थान- तेरहवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- तीसरा


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।

काव्यपाठ

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26 कविताप्रेमियों का कहना है :

अमिता का कहना है कि -

बहुत सुंदर कविता है सच मैं आजकल की व्यस्त जिंदगी मैं समय ही नहीं है बाकि सब कुछ है

एक ही दिन को सही,
मैं तारीख को पलट तो लूँ ....
वर्ना मुई तारीख ही हमेशा पलटती आई है मुझको ...!!
पता नहीं कितने दिनों की थकान ले के,
तुम्हारे पास आ तो गया हूँ,
पर थकान मिटने को .....
दिन “एक” ही ....चुरा पाया मैं ...
अति सुंदर
अमिता

Manju Gupta का कहना है कि -

दिल को छु देने वाली कविता है .प्यार का अनुभव बढिया है .बधाई .

mohammad ahsan का कहना है कि -

व्यक्तिगत बायो डेटा उच्च कोटि का , कविता निहाएत हलकी, चलतू टाइप की. कोई नया पन या गहराई नहीं

Mrityu का कहना है कि -

मोहम्मद एहसान जी, आजकल कविता के बहुत कम ही ऐसे जानकार मिलते हैं जैसे की आप हैं.आपको कविता की काफी अच्छी समझ है जैसा की मुझे प्रतीत होता है.आप ने इस जगह एक बहुत की प्रखर वाक्य बोला है जो,जिस से मेरा विश्वास गहरा हो गया है की आप वाकई एक पारखी नज़र रखते हैं. आप उन चंद आलोचकों में से हैं जिन्होंने एक लम्बे समय तक कविता का गहन अध्ययन किया है ऐसा प्रतीत हुआ.फिर आप कवि के एक जैव डेटा से कैसे प्रभावित हो गए जो की वाकई में एक अच्छे कवि के लिए बहुत हलकी हैं. मैं अवश्य किसी दिन आपका जैव डाटा देखना और आपकी कविता पढ़ना चाहूँगा. या फिर आप उन आलोचकों में से हैं जिन्हें किसी भी फोरम में टिप्पणी करने में पांडित्य प्राप्त है?मेरी इस असमंजस की स्थिति का निवारण करें, या फिर कवि की कोशिशों को सराहें. कम से कम अपने पांडित्य और साधुत्व का प्रमाण देने के लिए हम मनुष्यों को ये ज़रूर बता दें की चलतु प्रकार की कविता की क्या परिभाषा है? और ज़रूर अपनी एक कविता इस फोरम में अवश्य लिखें,और कृपया अपना जैव-डाटा अवश्य दिखाएं हमें भी ताकि हम भी प्रभावित हो सकें.

प्रिया का कहना है कि -

Divy kavita ki tareef karoon ya phir aapki awaaz ki .. ham jab kuch nahi kah paate to khamosh ho jaate hai.......May god bless you!

प्रमोद कुमार तिवारी का कहना है कि -

दिव्‍य प्रकाशजी
बधाई, आपकी रचना अच्‍छी लगी। कुछ बिंब बेहतर बन पडे हैं, और भावप्रवण तो है ही। हां भाषा में प्रूफ की गलतियां नहीं होनी चाहिए

'हाँ तुम्हारे साथ खोया तो शायद से सुकून से खो सकूँगा'
या फिर 'हर एक ख्वाहिश जो मैं पूरी नहीं कर पता' जैसी पंक्तियां खटकती हैं।
एक बात और एहसानजी की बातों को अन्‍यथा न लें, आज के जमाने में इतनी खरी-खरी बोलनेवाले मिलते कहां हैं। वैसे मेरी समझ से अच्‍छी कविता वह होती है जो हर बार पढने पर कुछ दे जाए और जिसमें एक भी शब्‍द फालतू न हों। शायद एहसान भाई का भी इशारा इसी ओर रहा हो। हमें प्रशंसा से ज्‍यादा आलोचना का स्‍वागत करना चाहिए और ये बिलकुल जरूरी नहीं है कि आलोचक कवि भी हो।
शुभकामनाओं सहित

प्रमोद

Nikhil का कहना है कि -

कविता से ज़्यादा अच्छी है आपकी आवाज़....कविता को तीसरा स्थान तो आवाज़ क पहला...अगर मैं जज होता तो...

Kunal Mahendru का कहना है कि -

Bahut hi sundar prayas. Dil ko chhu jaane wali panktiyan.

mohammad ahsan का कहना है कि -

कविता को दुबारा पढ़ा, यह सोच कर कि क्या मैं वाकई में गलत हूँ ! पाया कि मैं सही था , तब भी और अब भी. कविता न केवल सतही है बल्कि अंत तक पहुँचते पहुँचते उबाऊ भी हो जाती है. कविता भावों से कम फैशन के माप दंडों से अधिक लिखी गयी है.

Manish का कहना है कि -

amazing thots...the greatness lies in the simple facts like ghadi and calendar...too good...keep up the good work mate...

Manish

Akhilesh का कहना है कि -

kavita acchi hai per sahaj nahi hai.

acche prayaas ke liye badhayee.

वाणी गीत का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता ...!!

Anonymous का कहना है कि -

din pratidin aapki rachnao me nikhar aata ja raha.... Pratibha se apka saat janmo ka smbandh parlachit hota hai....
jalad hi apka ka novel market me dekhna chahta hu mai...

Abhishek Gupta
hamara ashirwad hai apke sath

neelam का कहना है कि -

kavita se pahle kahna chaahungi aapki aawaj ke baare me ,hindyugm ko ek aur achchi aawaaj mili hai .kavita bhi achchi hi hai ,kahin ek aadh jagh par kuch .........
waise hum to vinay ji ki baat me poora yakeen rakhte hain wo yah ki man jo piroye moti wo kavita hoti hai ,aur shaayad yah aapka sabse pyaara moti ho .
pramod ji ki baat se poori tarah sahmat hote hue teesre number par aapki kavita ka hum swagat karte hain .

neelam का कहना है कि -

व्यक्तिगत बायो डेटा उच्च कोटि का , कविता निहाएत हलकी, चलतू टाइप की. कोई नया पन या गहराई नहीं

ahsan bhaai ,
koi jaat kam n hogi ,koi martba n ghat-ta
jo bigad ke kah rahe ho jara muskura ke kahte

ahsan bhaai itni talkhmijaaji theek nahi .

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

नीलम जी,
आप ने इस कदर जोर की डाट लगायी कि वाकई मुझे शर्म आ रही है. आप से और कवि साहेब से मुआफी के साथ. और प्रयाश्चित स्वरुप अब अगले एक हफ्ते तक हिन्दयुग्म पर कोई कम्मेंट नहीं करुँ गा.
मुहम्मद अहसन

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

दिव्य भाई... बधाई...
आवाज़ तो हम पहले ही सुन चुके हैं... दिल्ली दोबारा आओ तो मिलना भी हो सके...

neelam का कहना है कि -

प्रयाश्चित स्वरुप अब अगले एक हफ्ते तक हिन्दयुग्म पर कोई कम्मेंट नहीं करुँ गा.

yaallllllllaaaaahhhhh ab ye bhi kya

baat hui ahsan bhaai ,apna halla bol

jaari rakhiye magar thodi si narmi ke saath .

गुरु कुम्हार शिस कुम्भ है ,

अंतर हाथ सहार दे बाहर मारे
चोट ,
इसी भावना के साथ नए लोगों का मार्गदर्शन करते रहिये ,बस |

gazalkbahane का कहना है कि -

खूबसूरत ढंग से रोज-रोज की चाह उजागर हुई
श्याम सखा श्याम

Divya Prakash का कहना है कि -

मैं आप सभी का शुक्रगुजार हूँ की अपने कविता को पढ़ा व् सुना ...
अहसन भाई मैं बिलकुल कोशिश करूँगा की अगली बार जब भी आप मुझे पढें तो मैं आपको निराश ना करूँ ...
कोई प्रायश्चित की आवश्यक नहीं है भाई
आप सभी का हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ....
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg

विश्व दीपक का कहना है कि -

मेरे हिसाब से यह एक प्रेम कविता है, जिसमें प्रेमी इस बात से वाकिफ़ है कि उसकी प्रेमिका/जीवन-संगिनी के पास कई सारी शिकायतें हैं जो वह अपने प्रेमी से शेयर करना चाहती है। प्रेमी भी चाहता है कि वह ज़िंदगी का कम-से-कम एक दिन अपनी प्रेमिका के नाम कर दे। तेजी से भागती इस ज़िंदगी से एक पल निकालना भी मुश्किल होता है, फिर पूरा का पूरा एक दिन तो निस्संदेह कठिन होगा। फिर भी अगर यहाँ प्रेम की बात चली है तो प्रेमी को अपनी प्रेमिका के लिए समय निकालना तो होगा हीं और उसके लिए वह तमाम कोशिशें करता है। वह दुनिया को बदल नहीं सकता लेकिन खुशफ़हमी (वह गलतफ़हमी जो खुशी दे) तो पाल हीं सकता है। और अगर किसी को खुश करना हो तो खुशफ़हमी पालना कोई बुरी बात नहीं।

यह कविता उन शादीशुदा लोगों पर भी फिट बैठती है जो भौतिक चीजों में हद से ज्यादा उलझ गए हैं और इस कारण से उन्हें रिश्तों के लिए समय नहीं मिलता।

ये तो रही अच्छी बातें, अब वह पंक्ति जो मुझे नागवार गुजरी:

"तुम्हारे दिये घाव कहीं खो न जायें "

यह कैसा प्यार कि आप अपने प्यार से यह शिकायत कर रहे हैं कि उसने आपको घाव दिए हैं। हो सकता है कि मैने सही से समझा न हो। अगर ऐसी बात है तो कृप्या इस पंक्ति को स्पष्ट करें

-विश्व दीपक

सदा का कहना है कि -

दिल को छूते शब्‍दों के साथ बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आप की कविता मे जो भाव भरा है..बस इसे ही प्यार कहते है.आपने उसे बढ़िया और सहज ही शब्दों मे पिरो कर पेश किया.

बहुत बधाई...और हिंद युग्म को भी जिस के प्रयास से आपकी सुंदर कविता हम पढ़ पाएँ.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

तुम्हारे दिये घाव कहीं खो न जायें "
kavita ki sabse behtareen misra ya baat kahenge ise.. par kahin bhi yeh kavita se connect nahi ho paa rahi, agar hai to aap kaise us shaks se ek poora din, maang rahe ho jiske diye zakhm abhi bhare bhi nahi hai, khair yeh aapki personal life hai..
kavita mein mujhe koi bhi khaas baat ya baandhne wali baat nahi lagi. dekhun to lagta hai gulzaar saheb ki ek nazm se shayad prerit ho, jismein wo ek din apni priya ke saath guzarne ki hasrat rakhte hain, par gulzaar saheb ke kadmon ke nishaano. par chalna bhi bahut mushkil hai.
overall nazm mein jaan nahi hai




@ To owners n Administrator. n respected judges.

meri kisi bhi baat ko anyatha na lein.. hindyugm ke regular paathakon mein se ek hone ke naate, main aap sabhi se aaj kuch kehna chahungi.. pichle kuch samay se kavitaaaon ki quality ke girte star se main jara sa aahat hun.
jis tarah is partiyogita ki kavitaayein chhapni shuru hui, pehli hi kavita ke saath ummeed bandhi thi ki Aathwe sthan ki kavita mein jo jaan thi us se pehle ki kavitaayein umda hone ki poori ummeed thi. par jis tarah se star gira.. mujhe personally satisfaction nahi hua.. ek nuetral reader hone ke liye main kehna chahungi ki jo bhi rachnaayein prakaashit ho.n unhe kripya kewal marks dekh kar nahi unke bhaav dekh kar bhi chhapein, ek kavita sirf metaphors ( upmaaon ) se nahi banti, uske bhaav hi use baandhte hain. agar usmein bhaav nahi hue to bhaav vihin kavita ko chhapne se behtar hai aap na chaape.

main fir se kehti hun yadi meri koi bhi baat kisi ko bhi aahat kare, to Administrator mera comment delete karne ke liye azaad hain.

Best Regards
Deep

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही गज़ब. लाजवाब.


लो आज आ ही गया मैं,
जिन्दगी और तन्हाई बड़ी मुश्किल से चुरा के ला पाया हूँ,
चुपके से,
सबसे नज़र बचाकर,
सिटकनी को बंद कर लो...
घड़ियों से बैटरी को निकाल के फेंक दो कहीं ...
कमबख़्त बहुत ही तेज़ चलने लगाती है मुझको देख कर!!

मुझे ऐसा ही एक शे'र ध्यान आ रहा है लेकिन ठीक से याद नहीं है.

मेरी जाँ ज़िन्दगी की उलझनों से जब
मिलगी फुर्सत मुझे तो सुलझाऊंगा तेरी जुल्फे

Samarth Garg का कहना है कि -

Sabse pehle to Divya bhai ko badhai dena chaunga unki nayi kavita ke liye... Jaisa ki yahan sab logon ne bahut kuch kaha hai - kuch acha aur kuch jo nahi acha nahi laga aur sudhara ja sakta hai... main yahan yeh kehna chahunga ki Kavita ek Kavi k liye uske bachche samaan hoti hai... Kavi to apni taraf se puri koshish karta hai ki woh sabse achi ho par hum log use aur kavitaon se tolne lagte hain... per Divya tumne jo yeh naya drishtikon diya hai logon ko... jo ki log jaante hain per keh nahi paate... kahin na kahin har insaan is kavita se apne aap ko juda payega...
Mera saubhagya hai ki mujhe tumhare saath kaam karne ka mauka mila... jald hi hum aur bhi video banayenge...

Samarth

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