अभी 4 दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले करहईयाँ गाँव की एक औरत को डायन बताकर सैकड़ों लोगों के सामने उसकी जीभ काट दी गई। इस लोकतंत्र के भीतर के पंचीय लोकतंत्र का यह कोई नया फैसला नहीं है। पूरे हिन्दुस्तान में सोनभद्र जैसे कई पिछड़े हिस्से हैं जहाँ महिलाओं को डायन बताकर नंगा घुमाया जाता है, उनको गाँव-समाज से निकाल दिया जाता है, उनकी संपत्ती लूट ली जाती है, उनके साथ बलात्कार किया जाता है, उनको जिंदा जला दिया जाता है। ऐसे में एक कविमन आक्रोशित न हो, ऐसा सम्भव नहीं है। हम प्रमोद कुमार तिवारी की इस कविता के माध्यम इस घटना के प्रति अपना गुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं।
जीभ थी ही नहीं तो कटी कैसे??
(उस जागेश्वरी के लिए, जिसकी सोनभद्र जिले (यू.पी.) के करहिया गांव की भरी पंचायत में जीभ काट दी गई)
आदरणीय पंचो! जागेश्वरी डायन है
इसके कई सबूत हैं हमारे पास
पहला तो यह कि उसके चार बच्चे हैं
हमारी एक भी संतान नहीं और उसके चार बच्चे
ध्यान दीजिए चार-चार बच्चे।
दूसरा, जागेश्वरी बोलती है और जवाब देती है
आप ही बताइए, पूरे गाँव में है कोई स्त्री
जो हमारे सामने बोलने की जुर्रत करे
तीसरा, जागेश्वरी सुंदर है
चौथा, जागेश्वरी का नाम ‘जागेश्वरी’ है जबकि
कायदे से उसका नाम ‘बिगनी’, ‘गोबरी’ आदि होना चाहिए था
पाँचवा, आप खुद देख लें कि साज-शृंगार का इतना शौक है इसे
कि बाँह तक पर बनवाए हैं फूल।
छठा, हमारे और आप पंचों के सामने
बिना रिरियाये और पैर घसीटे जीए जा रही है जागेश्वरी।
अब क्या बताऊँ, हमें तो कहते भी शर्म आती है
पर महादेव कह रहा था कि
कई बार जागेश्वरी उसके सपने में आई
और ईख के खेत में चलने के लिए खींचने लगी।
और बसुमती तो कह रही थी
कि उसने अपने रोते बेटे को
नहीं छीना होता उसकी गोद से
तो चबा गई होती उसको!
रमकलिया भी कह रही थी कि
उसके मरद पर भी
मंतर पढ़ दिया है इसने
हरदम इसी को घूरता रहता है।
पंचो! इस सहदेव की बात छोड़ो
आपै बताओ
क्या अब भी जीने का हक है इसको??
साथियो! बिलकुल ठीक कह रहा है सहदेव
आप ही बताइए, भला जागेश्वरियों के पास
कहीं जीभ, दाँत और नाखून होते हैं?
डायन और चुड़ैल की अवधारणा देनेवाले पंचों ने
सदियों पहले ही काट दिया था इन्हें
साफ बात है,
जब जीभ थी ही नहीं, तो कटी कैसे
ये सब पंचायतों और सभ्य पुरुषों को
बदनाम करने की साजिश है बस।
-प्रमोद कुमार तिवारी
मो. 0986809719
(चित्र जनादेश से साभार)
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
हिंद-युग्म के माध्यम से इस घटना की जानकारी हुई..यह इक्कीसवीं सदी का ऐसा कुरूप सच है जिसके अस्तित्व के बारे मे भी हममे से तमाम को भरोसा नही होता..कविता सही कहती है..जागेश्वरी की जीभ तो शताब्दियों पहले ही काटी जा चुकी है...अब तो औपचारिकता है...वरना पंच-परमेश्वरों के यह दैवीय कृत्य कभी के अनावृत हो चुके होते..मगर जब समय सच की जुबाँ काटने की कोशिश करता है..तब दुस्साहसिक कवि की कलम की निर्भीक निब ही सच की जुबान बनती है..प्रमोद जी बधाई के पात्र हैं इस कविता के लिये..
प्रमोद जी....ये कहानी सिर्फ सोनभद्र की नहीं है...झारखंड में जब प्रभात खबर में था तो एक खबर आई थी....एक भतीजे ने चाची का सर काटकर थाने में सरेंडर कर दिया...वजह चाची 'डायन' थी....हम सिर्फ गुस्सा कर सकते हैं और कविताएं लिख सकते हैं....
निखिल आनंद गिरि
uff!! aisa kuchh hone ke baad bhi kya kar sakte hain..........kuchh nahi .............:(
aisee barbarta..........
kavita anmol hai......
DAYAN....
jina haram kr diya hai dayan ne...
aji aapka sonbhadra hi kya....bihar/jharkhand kya...sara hindustan pareshan hai dayan se....
mere rajasthan me bhi khule aam ghoom rahi hai DAYAN.....
par haan...ye purush vesh me hai is baar.....
arya manu, udaipur
7742363663
शुक्र है..
कि हम सिर्फ गुस्सा कर सकते हैं..और कविता लिख सकते हैं....
अच्छा ही है कि इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते...
शुक्र है..
कि हम सिर्फ गुस्सा कर सकते हैं..और कविता लिख सकते हैं....
अच्छा ही है कि इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते...
vah kya bat ghatna ko rachna ne bijli ki trah nas nas me bhar diya hay apko dukh bhari badhai badhai apne mahila ka dard mahsus kiya our dukh is adhunik yug me atyachar jhelti hahila ke liye, mahila cahe kisi pichde gaon ki ho ya sabhya samaj ki adhikansh uski jibh kati hi hui hay-shashi sharma -09837776625
जो विचार हजार शब्दों का लेख parhne में आये वैसे ही अनुभूति आपकी इस कविता को parne के बाद आया . bahut satik प्रहार किया है आपने मई abhari हूँ हिंदी युग्म का की इसने मुझे अवसर दिया इस रचना को परने ka
डायन होने का सबसे कारण तो शायद यही है कि
"जागेश्वरी बोलती है और जवाब देती है"
और फिर जीभ तो उत्तरदायी है तो काटना ही था.
बहुत तीखी और यथार्थ रचना है
प्रमोद कुमार तिवारी की यह कविता तल्ख हकीकत को बहुत प्रभावशाली तरीके से कहती है. 'जीभ थी ही नहीं तो कटी कैसे' शीर्षक भी दबी, सहमी, प्रतिरोध न कर सकने वाली आम औसत औरत के लिये बिल्कुल सही बैठता है.
बहुत ही अच्छी कविता.
तिलमिला देने वाले पद्य की इस शक्ति को जगाये रखें.
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
pata nahi kin paristhitiyo mein premchand ne panch o ko parmeshwer kaha tha , girawat sab taraf hai par parmod kuch aadrso aur aawazo ko kandha de rahe hai , is sahas aur kavi kerm ke liye badhayee.
dhatna ke bare me jan kar aur kavita
ko padh kar roye khade ho gaye .ander tak hila gai ye kavita
rachana
कहीं ऐसा तो नहीं कि इस कविता का विषय आपके मोबाइल नंबर की तरह सिर्फ नो अंकों का ही हो जो कभी लग ही नहीं सकता? अगर यह सत्य घटना पर आधारित है तो केवल कविता लिख कर ही इतिश्री न करिए अपितु कुछ और भी करें ताकि हमारे बेजुबान लोग भी अपने शब्दों को आवाज़ दे सकें. कविता तो अच्छी है परन्तु मैं आपसे और भी ज्यादा उम्मीद रखता हूँ.बहुत साधुवाद.
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