सर्वप्रथम हम अपने पाठकों से माफी माँगते हैं कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से हमें नवम्बर माह की यूनि प्रतियोगिता का परिणाम प्रकाशित करने में विलम्ब हुआ।
नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सबसे अधिक कवियों ने भाग लिया। नवम्बर माह की यूनिकवि की होड़ में कुल 67 कवि शामिल हुए जो हिन्द-युग्म की इस मासिक प्रतियोगिता के लिए सर्वाधिक प्रतिभागिता है।
हम एक खुशख़बरी के साथ भी उपस्थित हैं कि इस परिणाम से हमारे विजेताओं को प्रतिष्ठित पत्रिका 'समयांतर' की ओर से उपहार प्रेषित किये जायेंगे। इससे व्यक्तिगत लेखकों द्वारा भेजे जाने वाले उपहारों को प्राप्त होने में होनेवाले विलम्ब से भी हम बच पायेंगे। श्रेष्ठ कविताओं का प्रकाशन भी समयांतर में किया जायेगा।
नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता का निर्णय 2 चरणों में कराया गया। पहले चरण में 2 जजों द्वारा दूसरे चरण में 3 जजों के निर्णय को शामिल किया गया। पहले चरण के निर्णय के बाद कुल 28 कविताओं को दूसरे चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। और सभी पाँच निर्णायकों की पसंद और इनके द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर
रवीन्द्र शर्मा 'रवि' की कविता
'हम कब लौटेंगे' को इस माह की सर्वश्रेष्ठ कविता चुना गया।
रवीन्द्र शर्मा 'रवि' ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता से हिन्द-युग्म पर दस्तक देना शुरू किया है। अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में भी इनकी
एक ग़ज़ल ने शीर्ष 10 में स्थान बनाया था।
यूनिकवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'
पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
विद्यार्थी जीवन में प्राथमिक विद्यालय में ही भाषण कला में निपुण होने के कारण "नेहरु "नाम से संबोधित किया जाने लगे। सन् १९६९ में महात्मा गाँधी कि जन्मशती के दौरान अंतर विद्यालय भाषण प्रतियोगिता में दिल्ली में प्रथम पुरस्कार एवं कई अन्य पुरस्कार जीते। सन् १९७९ में नागरिक परिषद् दिल्ली द्बारा विज्ञान भवन में आयोजित आशु लेख प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाये। उसी वर्ष महाविद्यालय द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ट साहित्यकार के रूप में सन्मानित काव्य संग्रह "अंधेरों के खिलाफ", "हस्ताक्षर समय के वक्ष पर", क्षितिज कि दहलीज पर और "परिचय-राग" में कवितायें प्रकाशित। समाचार पत्र पंजाब केसरी में लगभग १२ कहानियों का प्रकाशन। इसके अतिरिक्त नवभारत टाईम्स आदि अनेक समाचार पत्रों में रचनाओं को स्थान मिला। राजधानी के लगभग सभी प्रतिष्टित मुशायरों, कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों में लगातार काव्यपाठ। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओ का प्रसारण। दिल्ली की साहित्यिक संस्थाओं "परिचय साहित्य परिषद्", "डेल्ही सोसाइटी ऑफ़ औथोर्स", हल्का ए तशनागाना अ अदब", पोएट्स ऑफ़ डेल्ही", "आनंदम", "कवितायन","उदभव" इत्यादि से सम्बद्ध।
रवींद्र शर्मा "रवि" को इस बात का गर्व है कि उन्होंने पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे के बारे में तब लिखना शुरू कर दिया था जब कोई इसकी बात भी नहीं करता था। रवींद्र शर्मा "रवि " का मानना है कि उनकी कविता गाँव और शहर कि हवा के घर्षण से उपजी ऊर्जा है।
पुरस्कृत कविता- हम कब लौटेंगेबताओ बापू
हम कब लौटेंगे
अपने उसी छोटे से गाँव में
जहाँ
एक प्यारी सी सफ़ेद हवेली बनाने का सपना लेकर
तुम इस जगमगाते शहर में चले आये थे
बहुत ढेर से पैसे बटोरने
आज से कई साल पहले ....
कितना कुछ बदल गया है इस बीच ...
शहर की सड़कों की तमाम कालिख
तुम्हारी आँखों के नीचे वाले गड्ढों में सिमट आई है
साफ़ दीखता है
तुम्हारे गले की नीली नसों में
ज़हरीली दूषित हवा का रंग
अकाल पीड़ित धरती की मानिंद तुम्हारा माथा
ज्योतिष के लिए चुनौती हो गया है ..
इतने दिशाहीन हो गए हो तुम
कि अक्सर जब भी मैंने
रात के सन्नाटे में
तुमसे ध्रुवतारे के विषये में पूछा है
तो यूँ ही ऊँगली उठाते हुए
समझ नहीं पाए हो तुम
कि उत्तर कहाँ है ...
और ये भी
कि सफ़ेद दूधिया बगुलों की कतारें
इस शहर के आकाश से होकर
क्यों नहीं गुज़रती सांझ ढले ....
मैने स्वयं देखा था तुम्हें
क्षितिज तक फैले धान के खेतों को
गाकर लांघते हुए
फिर ऐसा क्या है
इन काली सपाट सड़कों में
जो चूस लेता है हर रोज़
तुम्हारी सहजता का एक हिस्सा
और हर शाम
एक सहमा हुआ व्यक्तित्व लाद कर घर ले आते हो तुम
लौट आते हो हर शाम
आधे-अधूरे से
और फिर देर रात तक करते रहते हो
बंधुआ मजदूरों कि सी बातें ...
तब मुझे अक्सर लगा है
कि तुमने सचमुच खो दी है
इन्द्रधनुषी रंगों की पहचान
और तुम्हारा इस अचेतना से लौट आना
असाध्य हो गया है शायद .....
याद करो बापू
क्या तुम्हें बिलकुल याद नहीं
जब तुमने अपना गाँव छोड़ा था ...
गाँव का आवारा पीला चाँद
बहुत दूर तक
गाड़ी के साथ दौड़ा था ...
नदियाँ-नाले फलांगता
अलसी के कुँआरे फूलों को रौंदता
बया के घोंसलों में उलझता
पोखर के पानी पर तिरता ...
और फिर जाने कहाँ गुम हो गया था
शहर की तेज चकाचौंध रोशनियों में ...
याद करो बापू
सफेदे के लम्बे वृक्ष
हाथ हिला हिला कर
रोकते रहे थे तुम्हें
और बूढ़े अनुभवी पीपल ने दूर तक
अपने सूखे पत्ते दौड़ाए थे तुम्हारे पीछे ...
तब तुमने
सफेदे के वृक्षों की तुलना
शहर की गगनचुम्बी इमारतों से की थी
इस बात से अनभिज्ञ
कि इमारत जितनी बड़ी होती है
इंसान उतना ही छोटा
और शहर में
गाँव वाला चाँद कभी नहीं उगता ...
सच कहना बापू
कैसा लगता है तुम्हें
अब उसी भीड़ का हिस्सा होना
जिसकी नियति
बदहवास दौड़ते जाने के सिवा कुछ भी नहीं
बहुत कुछ पाकर भी तुम
कुछ नहीं बटोर पाए हो
अपनी माटी की गंध भी खो आये हो ...
सुनो बापू
मैं तुम्हे आदर्श की तरह नहीं
आत्मज की तरह निभाऊंगा
तुम्हें एक बार
उसी सोंधी माटी वाले गाँव में
ज़रूर ले जाऊंगा ...
बहुत संभव है
उस गाँव के उजड्ड लोगों ने
अब भी सहेज रखे हों
इंसानियत के आदमकद अंधविश्वास ...
आओ लौट चलें बापू
शायद तुम्हारी चेतना के मरुथल में
सावनी हवाओं से हरारत आ जाए
शायद हमारा वह चाँद
किसी झाड़ में फंसा पा जाए
कोई विरही पगडण्डी
हमें स्टेशन तक लेने आ जाए ....
फिर मैं तुम्हें गाते हुए देखूंगा
और जी भर कर देखूंगा
सफ़ेद बगुले
पनघट का पीपल
जवान सफेदे
और दूर तक छिटके
सरसों के कुआरे फूल ...
बताओ बापू
हम कब लौटेंगे ....
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से
रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा
प्रशस्ति-पत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रदान किया जायेगा। दिसम्बर माह के अन्य दो सोमवारों को कविता प्रकाशित करवाने का मौका। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका
समयांतर की ओर से पुस्तकें प्रेषित की जायेंगी, उनके नाम हैं-
अभिषेक कुशवाहा
मनोज कुमार
आवेश तिवारी
जतिन्दर परवाज़
भावना सक्सैना
आलोक उपाध्याय "नज़र"
संगीता सेठी
उमेश पंत
शामिख़ फ़राज़हम शीर्ष 10 के अतिरिक्त भी बहुत सी उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन करते हैं। इस बार हम निम्नलिखित 3 कवियों की कविताएँ भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे-
दीपक मशाल
अभिषेक पाठक
डॉ॰ अनिल चड्डाउपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 दिसम्बर 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।पाठकों में राकेश कौशिक के रूप हिन्द-युग्म को बहुत ऊर्जावान पाठक मिला है। राकेश कौशिक की टिप्पणियों से ऐसा लगता है कि वे हर पोस्ट को बहुत ध्यान से पढ़ते हैं और अपनी समझ के अनुसार उसकी समीक्षा भी करते हैं। विनोद कुमार पाण्डेय ने राकेश कौशिक को कड़ी टक्कर दी। लेकिन वे काफी अनियमित रहे। इसलिए हमने राकेश कौशिक को ही यूनिपाठक बनाने का फैसला किया है।
यूनिपाठक- राकेश कौशिक
पच्चीस साल से राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली में कार्यरत। वर्तमान में कार्यकारी निदेशक के निजी सहायक के पद पर कार्यरत। 15 साल पहले, अनायास ही सितम्बर के महीने में कार्यालय में मनाये जाने वाले हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत होने वाली हिंदी काव्य पाठ प्रतियोगिता से कविता लेखन की शुरूआत। लेखनी और वाणी पर माँ सरस्वती की कृपा की ऐसी बरसात हुई कि इनकी पहली कविता को ही प्रथम पुरुस्कार का सम्मान मिला। शौक को हवा लगी और हर वर्ष प्रतियोगिता के लिए कविता लिखने लगे, कवितायें लोगों को पसंद आने लगीं, कार्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुईं और कभी-कभी कविता पाठ कार्यालय की सीमाओं से बाहर भी निकलने लगे। लेखनी और वाणी पर वीणा वादिनी की अनुकम्पा होती रही ....... जारी है।
विशेष: इन्हें यदि कोई सम्मान मिलता है तो उसमें इनकी पत्नी, बेटा और बेटी का बहुत बड़ा सहयोग है।
पुरस्कार और सम्मान- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका
समयांतर की ओर से पुस्तकें तथा हिन्द-युग्म की ओर से प्रशस्ति-पत्र।
इस बार हमने दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के विजेता पाठकों के लिए हमने क्रमशः
विनोद कुमार पांडेय, सफरचंद और
डॉ॰ श्याम गुप्ता को चुना है। इन तीनों विजेताओं को भी विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका
समयांतर की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेगी।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। इस बार शीर्ष 13 कविताओं के बाद की कविताओं का कोई क्रम नहीं बनाया गया है, इसलिए निम्नलिखित नाम कविताओं के प्राप्त होने से क्रम से सुनियोजित किये गये हैं।
प्रियंका सागर
रवि ठाकुर "गाफिल"
मृत्युंजय साधक
शंकर सिंह
डॉ.कृष्ण कन्हैया
आलोक गौड़
अम्बरीष श्रीवास्तव
राकेश कौशिक
रतन कुमार शर्मा
मंजु गुप्ता
मुहम्मद अहसन
सौरभ कुमार
कुमार देव
रोहित अरोरा
अमित श्रीवास्तव
जितेन्द्र कुमार दीक्षित
राजेशा
दिवाकर कुमार रंजन (कविराज)
कमलप्रीत सिंह
स्नेह पीयूष
डॉ॰ कमल किशोर सिंह
राजीव यादव
दिव्य प्रकाश दुबे
रंजना डीने
लीना गोला
माधव माधवी
एम वर्मा
विनोद कुमार पांडेय
धर्मेन्द्र मन्नु
राम निवास 'इंडिया'
उमेश पंत
मनोज मौर्य
डॉ॰ भूपेन्द्र
कुलदीप पाल
पृथ्वीपाल रावत
अजय दुरेजा
सुनील गज्जाणी
स्वर्ण ज्योति
शारदा अरोरा
विवेक रंजन श्रीवास्तव
किशोर कुमार खोरेन्द्र
दीपक ...... इटानगर
उमेश्वर दत्त"निशीथ"
रेणू दीपक
पिंकी वाजपेयी
शन्नो अग्रवाल
भरत बिष्ट (लक्की)
अरविन्द कुरील
सुशील कुमार पटियाल
डा श्याम गुप्त
कविता रावत
एम के बिजेवार (आतिश)
चंद्रकांत सिंह
नीति सागर
अनिल यादव