मार्च माह की चौथी कविता एक ग़ज़ल है जिसे लिखा है रवीन्द्र शर्मा 'रवि' ने। रवि की ग़ज़लें हिन्द-युग्म के पाठक बहुत पसंद करते हैं। रवि एक बार हिन्द-युग्म के यूनिकवि भी रह चुके हैं।
पुरस्कृत ग़ज़ल
गरीबी में भी बच्चे यूँ उड़ाने पाल लेते हैं
ज़रा सी डाल झुक जाए तो झूला डाल लेते हैं
जहाँ में लोग जो ईमान की फसलों पे जिंदा हैं
बड़ी मुश्किल से दो वक्तों की रोटी दाल लेते हैं
शहर ने आज तक भी गाँव से जीना नहीं सीखा
हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं
परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते हैं
अभी नज़रों में वो बरसों पुराना ख्वाब रक्खा है
कोई भी कीमती सी चीज़ हो संभाल लेते हैं
ये मुमकिन है खुदा को याद करना भूल जाते हों
तुम्हारा नाम लेकिन हर घडी हर हाल लेते हैं
हमें दे दो हमारी ज़िन्दगी के वो पुराने दिन
'रवि' हम तो अभी तक भी पुराना माल लेते हैं
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते हैं
इस गज़ल का यह शेर सब से नायाब है. रविन्द्र जी की गज़लों की पहचान यह कि वे बेहद निश्छलता से लिखते हैं.
पसन्द आई आपकी ये ग़ज़ल , खास कर ये पंक्तियाँ
जहाँ में लोग जो ईमान की फसलों पे जिंदा हैं
बड़ी मुश्किल से दो वक्तों की रोटी दाल लेते हैं
शहर ने आज तक भी गाँव से जीना नहीं सीखा
हमेशा गाँव ही खुद को शहर में ढाल लेते हैं
अभी नज़रों में वो बरसों पुराना ख्वाब रक्खा है
कोई भी कीमती सी चीज़ हो संभाल लेते हैं
धन्यवाद सहजवाला जी . आपकी प्रेरणा और प्रेम सदा मेरे साथ रहे हैं .
ये मुमकिन है खुदा को याद करना भूल जाते हों
तुम्हारा नाम लेकिन हर घडी हर हाल लेते हैं
भाई मुझे तो सिर्फ इस शेर में ज्यादा नयापन नहीं लगा वर्ना बाकी पूरी ग़ज़ल ही नायब है.. आभार.
परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते है
गज़ब की प्रस्तुति……………………।एक से बढकर एक शानदार शेर्………………………॥पूरी गज़ल नायाब है।
ये मुमकिन है खुदा को याद करना भूल जाते हों
तुम्हारा नाम लेकिन हर घडी हर हाल लेते हैं
बहुत सुन्दर गज़ल. बेहतरीन
वाह! आनंद आ गया पढ़कर । अभी कमेंट करने के मूड में बिलकुल नहीं था मगर अपने आप को रोक नहीं सका।
--बधाई।
गरीबी में भी बच्चे यूँ उड़ाने पाल लेते हैं
ज़रा सी डाल झुक जाए तो झूला डाल लेते हैं
बेहद निश्छल, अच्छी गजल...बधाई।
अभी नज़रों में वो बरसों पुराना ख्वाब रक्खा है
कोई भी कीमती सी चीज़ हो संभाल लेते हैं
पूरी की पूरी गजल बहुत अच्छी है पढ़कर आनंद आया, रविंदरशर्मा जी को बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
jo log iman ki faslon par jinda hai mushkil se do vaqt ki roti daal lete hai
chote chote saral shabdon ne behad gehri baton ko bya kar diya hai
bahut khub sir
jo log iman ki faslon par jinda hai mushkil se do vaqt ki roti daal lete hai
chote chote saral shabdon ne behad gehri baton ko bya kar diya hai
bahut khub sir
एक शेर की तारीफ़ करुं और दूसरी छोड दूं, तो यह बेईमानी होगी,क्योकि हर शेर मे अपनी ही कुछ बात सी लगती है. यानि उसे जी हम रहे है और आप हमारे शब्दो को पिरो रहे है....बहुत-बहुत हार्दिक बधाई रवि जी!!शैलेश जी सही कहते है कि आपकी गज़लो का हम सभी को इन्तजार रहता है.
zabardast ravi ji./...behad umda..waqt ka zayza leti hui......
इस ग़ज़ल से कोई एक मिसरा उठाना उतना ही मुश्किल है जितना कि इसे पढ़ने के बाद खयालों के पन्ने पलट पाना..आपकी हर ग़ज़ल ्पिछली को मात देती हुई सी होती है..कि डर लगने लगता है कि अब आगे क्या आयेगा...
खैर इस शेर की तारीफ़ किये बिना नही रह सकता
परिंदों को मोहब्बत के कफस में कैद कर लीजे
न जाने लोग उनके वास्ते क्यों जाल लेते हैं
सोचता हूँ कि अगर कभी गांधी जी गज़ल लिखते तो यह शेर उन्होने ही कहा होता...!
और मतला तो...देर तक जेहन मे बजता रहता है..आकाशवाणी की तरह!!
सलाम है आपकी कलम को!
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