युवा कवि मृत्युंजय साधक की दो कविताएँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हो चुकी हैं। आज हम इनकी तीसरी कविता प्रकाशित करने जा रहे हैं, जिसने मार्च माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में तीसरा स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविताः स्नेह
घर
बहुत दिन बाद आया बेटा
माँ
उसे सीने से लगा लेती है
पूछती है
कैसे रहे?
कोई
तकलीफ तो नहीं?
बेटा
नहीं कह कर
माँ
के आँचल में छुप जाता है
ठीक
वैसे ही जब बचपन में
माँ
की डाँट से बचने के लिए
छुपा करता था....
माँ
की ममतामयी आँचल
आज
भींग गई है आँसुओं से
आँचल
में छुपा बेटा
रोक
नहीं पाता अपने को
और
बह पड़ती है
गंगा-जमुनी धारा
नेत्र
के दोनों कूलों से
एक
दूसरे का कर रहे
जलाभिषेक
आँसुओं से.......
कोई एक
दूसरे को
छोड़ना
नहीं चाहता
बहुत
दिनों का दर्द
आज
सामूहिक हो गया है
कौन
हटाये उन्हें कैसे हटें वे
दोनो
की आँखें लाल
पर
आँसू रुकना ही नहीं चाहते
उन्हे
तो बहुत दिनों के बाद
स्नेह
का स्वाद मिला है
बेटा
झट माँ के चरण छूता है
माँ
उसके माथे को चूमती है...
बेटे
के माथे पर कटे निशान को
याद
कर फिर रो लेती है...
जब
उसके बेटे को लगी थी
कैंची साइकिल चलाते समय गिरकर चोट
बेटा
माँ की फटी साड़ी से
झाँकते
बालों को छिपाता है...
पर
अपने आँसू नहीं छिपा पाता
दोनों
की यादें आज हरी हो गई हैं
पा
रहीं हैं पानी दोनों के आँसुओं का
अब
कौन किससे कहे
कौन
किसकी सुने
दोनों
मौन ...नि:शब्द...
बेटे
को अभी माँ के लिए
लाई
साड़ी निकालनी है
तो
माँ को बेटे के लिए
बूढ़ी
आँखों से बुने ऊनी दास्ताने....
बेटे
को अभी पूछना है
नंदिनी
गाय ने अबकी बाछा दी या बाछी
संवरु
कुत्ता कहाँ ....?
आज
चौराहे पर नहीं मिला .....
माँ
को भी बताना है
मंगरु
के बेटी लाली का गौना हो गया
और
वो चली गई
और
पड़ोस के राय साहब आये थे
कुंडली, फोटो दे गये हैं...................
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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2 कविताप्रेमियों का कहना है :
maa bete ka ye milan andar tak rula gaya kahi vastav me is rishte jaisa koi dujjaa rishta nahi.
सुन्दर रचना....बधाई!
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